इति आदिवासी क्षेत्रे......
दिव्यांग आदिवासी महिला को
रोजगार हटाने का किया षड्यंत्र....?
मनरेगा अधिकारी ने
मैं चाहे ये करूं,
मैं चाहे वो करुं...
मेरी मर्जी....
( त्रिलोकीनाथ )
अमरकंटक विश्वविद्यालय में मध्य प्रदेश की भाजपा सरकार के जनजाति आयोग के पूर्व अध्यक्ष नरेंद्र मरावी के आरोप में जनजातियों को प्रताड़ित करने का मामला ठंडा हुआ नहीं था की शहडोल जिला पंचायत में दिव्यांग आदिवासी महिला को षड्यंत्र कर हटाने की बात सामने आई है और हो भी क्यों ना जब तक उच्च प्रशासनिक अधिकारी भ्रष्टाचार के समंदर में गोते लगाता रहता है तब तक निचला अमला उसी रफ्तार से अपनी छलांग की लगाने का प्रयास करता है, फिर उसे जरा भी शर्म नहीं आती कि चाहे यह अपराध 50 किलोमीटर दूर से आकर काम करने वाले आदिवासी महिला के रोजगार से जुड़ी हो...। वैसे तो बड़े-बड़े दावे किए जाते हैं आदिवासी उत्थान के लिए किंतु एक भी यदि घटना फाइलों में दर्ज होकर यह सिद्ध करती है की जिम्मेदार तबका ने जानबूझकर किसी दिव्यांग महिला के साथ मानसिक प्रताड़नापूर्ण न सिर्फ व्यवहार किया बल्कि उसे रोजगार से हटाकर रोड में लाने का भी काम किया और तब जबकि शासन के उच्च स्तरीय निर्देश रहे हो कि दिव्यांग महिला को रोजगार देना सुनिश्चित किया जाए।फिर क्या कारण था यह गंभीर चिंतन का विषय माना जाएगा।
सवाल यह है जब तक "भ्रष्टाचार मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है और मैं इसे पाकर रहूंगा..." इस अंदाज पर अधिकारी वर्ग अपनी कार्यशैली से जो संदेश दे रहे थे उसका परिणाम यह हुआ कि निचले स्तर पर जिला पंचायत शहडोल में निर्भीक होकर संबंधित अधिकारी रविंद्र अग्रवाल ने राहुल सक्सेना के साथ मिलकर जमकर मनमानी की और कथित तौर पर दिव्यांग महिला कुमारी गायत्री सिंह धुर्वे जो वाटर सेड सेल पर डाटा सेंटर में संविदा डाटा एंट्री ऑपरेटर के रूप में मनरेगा योजना पर पदस्थ थी, उसे अपनी तानाशाही और अपवित्र मंशा के चलते नोटशीट में हेराफेरी करते हुए भ्रामक जानकारी पैदा करके अंततः दर-दर भटकने के लिए छोड़ दिया। शायद पद के मद् में मस्त रविंद्र-राहुल की जोड़ी को यह भी भान नहीं रहा होगा जो वर्तमान में भ्रष्ट वातावरण है वह भविष्य में साफ सुथरा हो जाएगा और जवाबदेही का सामना करना पड़ जाएगा।
अब जबकि वर्तमान प्रशासन व्यवस्था साफ-सुथरा और इमानदार छवि वाला हो चुका है इसके बावजूद भी यदि दिव्यांग गायत्री को तत्काल फौरी राहत नहीं मिलती दिखाई देती। तब प्रश्न जरूर खड़े होते हैं कि आखिर गायत्री में क्या कमी थी जिस वजह से जिला पंचायत शहडोल में अधिकारियों ने मिलकर कुमारी गायत्री सिंह धुर्वे को सड़क में फेंक दिया।
क्रम से देखें तो जिला पंचायत शहडोल की नोट शीट 26 मार्च 21 को यह निर्देश दिए जाते की वाटर सेड सेल में डाटा सेंटर में कार्यरत डाटा एंट्री ऑपरेटर जिनकी नियुक्ति जिला स्तर से की गई थी उन्हें कृषि सिंचाई योजना वाटर सेड में अन्य योजनाओं के तहत रिक्त डाटा एंट्री ऑपरेटर के पदों पर नियमानुसार अनुबंधित किया जाए।
परियोजना अधिकारी पी. सातपुते ने 29 मार्च को गायत्री सिंह को
उच्चाधिकारियों के निर्देश पत्र अनुसार नियुक्त करने का प्रस्ताव भी किया। इस संबंध में संबंधित ओआईसी रविंद्र अग्रवाल से जो जानकारी ली गई उसके अनुसार रिक्त पदों के भरे हुए होने की सूचना 14 जून को दी गई। जबकि 26 मार्च को उक्त रविंद्र अग्रवाल ने अपने पत्र क्रमांक 1260 में को उच्च अधिकारी को पत्र लिखते हुए यह स्पष्ट रूप से जानकारी दी थी की डाटा एंट्री ऑपरेटर मैं एक पद रिक्त है।व रिक्त पद विरुद्ध सुश्री श्वेता जयसवाल कार्यरत हैं जिनकी मूल स्थापना बुढ़ार जनपद की है। और कार्य की अधिकता होने के कारण श्वेता जयसवाल को जिला स्तर पर संलग्न किया गया है।
इस तरह जबकि कुमारी गायत्री सिंह धुर्वे का प्रोजेक्ट जब समाप्त होना था और उन्हें रोजगार की अत्यंत आवश्यकता थी तब भ्रामक जानकारी देकर रविंद्र अग्रवाल ने रिक्त पद के भरे होने की नोटशीट चलाकर उच्चाधिकारियों को न सिर्फ भ्रमित किया बल्कि गायत्री सिंह धुर्वे को रोजगार ना मिल सके इसके लिए अर्धसत्य लिखकर नोटशीट चला दी। और क्योंकि रिक्त पद भरे थे इसलिए शासन के निर्देश के अनुसार गायत्री सिंह धुर्वे को बंद हो रहे प्रोजेक्ट से अन्य प्रोजेक्ट में रोजगार नहीं दिया जा सका। जबकि अपने ही दूसरे पत्र में स्पष्ट तौर पर पद रिक्त होने की सूचना 3 महीने पहले उनके द्वारा उच्च अधिकारी को दी गई थी। जिससे यह स्पष्ट होता है कि रविंद्र अग्रवाल ने जानबूझकर पहले पद रिक्त होने की बात कही और जब उसने जान लिया कि गायत्री सिंह धुर्वे को उसमें निर्देश अनुसार भर्ती किया जाएगा तब भ्रामक नोट शीट चलाकर जब तक प्रोजेक्ट समाप्त हो जाने के कारण गायत्री की नौकरी समाप्त नहीं हो जाती रिक्त पद की जानकारी छुपा कर रखी गई।
क्योंकि रविंद्र अग्रवाल जानते थे कि महिला दिव्यांग है मैं उतना दौड़-धूप नहीं कर सकती उन्होंने मानसिक प्रताड़ना देते हुए उच्चाधिकारियों के साथ षड्यंत्र करके दिव्यांग आदिवासी महिला को लगेलगाए रोजगार से बाहर कर दिया। ताकि अपने भ्रष्ट मंसा के अनुरूप जिला पंचायत में "भ्रष्टाचार का अपना रामराज्य" चला सके और यह बात तब सही थी जब भ्रष्टाचार का वातावरण उनके इर्द-गिर्द पल रहा हो तो उन्हें निर्भीकता से भ्रष्टाचार में गोते लगाने पर कोई नहीं रोका । अन्यथा संलग्न किए गए श्वेता जयसवाल को वह अपने पास क्यों रखना चाहते थे ...? जबकि शासन के निर्देश स्पष्ट हैं कि संलग्नी करण न किया जाए।
अब जबकि शहडोल में एक ईमानदार प्रशासन है संवेदनशील एक महिला कलेक्टर है क्या आदिवासी कुमारी गायत्री सिंह धुर्वे, दिव्यांग महिला को न्याय मिलेगा...? यह देखने की बात होगी। और उससे ज्यादा यह क्या,आदिवासी दिव्यांग महिला को शारीरिक, मानसिक और आर्थिक रूप से प्रताड़ित करने वाला रविंद्र राहुल यह जिम्मेदार अधिकारियों को दंडित किया जाएगा ताकि मनरेगा जैसे संवेदनशील रोजगार परक संस्थाओं में अज्ञात अपवित्र मंसा की कार्यशैली कि सभी संभावनाएं नष्ट हो सके।
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