बुधवार, 20 अक्तूबर 2021

अन्यथा..."हमारा विंध्य-हमें लौटा दो"

 अन्यथा..."हमारा विंध्य-हमें लौटा दो"

लोकहित के विरुद्ध बना रोहनियाटोल

संविधान निर्माता शंभूनाथ शुक्ला के संविधान के साथ धोखाधड़ी है,


टोल टैक्स की वसूली...

(त्रिलोकीनाथ)

20 अक्टूबर से होने वाली वसूली हालांकि एक पत्र के जरिए रोहनिया टोल पर वसूली अब 25 अक्टूबर से होनी है।


एमपीआरडीसी (मध्य प्रदेश राज्य सड़क विकास निगम) के एक अधिकारी के अनुसार रीवा अमरकंटक सड़क मार्ग 15 साल के लिए  बी ओ टी (बिल्ड ऑपरेट ट्रांसफर) की शर्त पर बनाई गई थी। उनका कहना है यह सड़क सिर्फ 15 साल के लिए बनाई गई थी क्योंकि टोल टैक्स 15 वर्ष वसूलना था। वे अधिकारी पूरी बेशर्मी के साथ यह स्पष्ट करते हैं की ऐसी सड़क की लाइफ भी 15 साल ही होती है जबकि बिल्ड ऑपरेट एंड ट्रांसफर जिस अनुमान में बनाया गया था उसके बारे में एक बड़े उच्च अधिकारी का कहना है की ऐसी सड़कों की लाइफ 30 से 40 वर्ष तक होती हैं और इस गुणवत्ता पर बनाई जाती है तो फिर क्या कारण था कि "रीवा-अमरकंटक सड़क मार्ग" जिसकी कुल लागत दिग्विजय सिंह के सरकार में 110 करोड़ रुपए थी और उसमें भी करीब आधी रकम यह ने 55करोड़ रुपये मध्यप्रदेश शासन ने   बी ओ टी ठेकेदार को दिए थे। याने सिर्फ ₹55 करोड़ में 15 साल की लाइफ वाली सड़क बनाकर करीब 5000 करोड़ पर इस आदिवासी अंचल से क्यों लूटने दिया गया...? जिस आदिवासी अंचल में आदिवासी विकास के नाम पर अरबों  रुपए निवेश किए जाते हैं क्योंकि आदिवासी प्रक्षेत्र में अरबों खरबों रुपए का प्राकृतिक संसाधन भारत सरकार और मध्य प्रदेश सरकार को निकालना होता है तो जब आप प्राकृतिक संसाधनों की लूट मचाए हुए होते हैं और इसका उपयोग करने वाले अरबपति खरबपति व्यक्ति और संस्थाएं जिस सड़क सुविधा की कीमत पर प्राकृतिक संसाधन निकालती हैं उसी कीमत पर स्थानीय गरीब, आम आदमी, आदिवासी समाज के लोगों से वसूली क्यों की जाती है...?उन्हें अपने जमीन पर चलने की कीमत किसी अरबपति-खरबपति व्यक्ति के समानांतर क्यों वसूला जाता है..?

 


क्या संविधान की पांचवी अनुसूची में विशेष प्रावधान का यही उद्देश्य था...? यह प्रश्न खड़ा होता है; और उससे ज्यादा यह प्रश्न भी खड़ा होता है कि जो परंपरागत सड़कें  बी ओ टी ठेकेदारों को दी गई थी वह बिना किसी इंफ्रास्ट्रक्चर के, किसी लागत के साथ ट्रांसफर की गई थी अगर उन्हें 15 वर्ष मे "रीवा अमरकंटक सड़क मार्ग" से 5000 करोड़ रुपए वसूलने की छूट दी गई थी तो उन्होंने अपना सड़क क्यों नहीं बनाया...?

 बनी बनाई हुई सड़क में मरम्मत करके हजारों करोड़ रुपए लूटने की छूट देना, कितना जन हितकारी फैसला कहा जा सकता है....? तब जबकि 15 साल की समय सीमा के लिए टोल टैक्स वसूली के लिए बनाई गई सड़कों से सैकड़ों एक्सीडेंट में लोग मारे गए और  उस मूर्खता बनी पूर्ण नीति का परिणाम यह भी रहा की पूरी की पूरी बस इस घटिया सड़क के चलते नहर में जा समाई जिसमें 55 लोग अकाल मृत्यु की गोद में समा गए थे।

 यह सही है उसमें अफसरों के लड़के नहीं थे, उसमें मंत्री के लड़के नहीं थे, उस में मुख्यमंत्री के लड़के नहीं थे और ना ही प्रधानमंत्री के और शायद इसीलिए इन हत्याओं के बाद भी हमारा शासन और एमपीआरडीसी जैसी संस्थाएं आदिवासी क्षेत्रों में उसकी धैर्यता और सहजता को जान समझ कर अपने ठेकेदार से  अमरकंटक सड़क मार्ग में खुली डकैती डलवाने के बाद अब घटिया सड़क के मरम्मत के नाम पर टोल वसूलना चाहती है। तो फिर वह रोड टैक्स माफ क्यों नहीं कर देती है ताकि रोड टैक्स से मिलने वाले पूरी राशि सड़क के मरम्मत के काम आ जाए ।शायद सरकारों को ज्ञान हो गया है आम आदमी को जितना लूट सकते हो उतना लूटने की योजना बनानी चाहिए...?

 और शायद एमपीआरडीसी के उस अनुबंध में जिसके शर्तें समय अवधि समाप्त हो जाने के बाद भी पारदर्शी तरीके से रीवा अमरकंटक सड़क मार्ग के लोगों को नहीं बताई गई हैं अब उन्हें पुनः नए सिरे से मरम्मत के नाम पर मनमानी टोल वसूलने की अनुमति कैसे दी जा सकती है  ...? 

यह तो अंग्रेजी शासन की गुलामी भरी फैसलों की याद दिलाती है जिसमें खेत तो हमारे होते थे किंतु नील की खेती करने की बाध्यता अंग्रेजी शासन प्रणाली की तानाशाही का प्रमाण था। अब वही प्रक्रिया को नए सिरे से लागू करना इस प्रकार के नीति निर्धारकों का खुलेआम तानाशाही को प्रमाणित करता है।

 जिन कारणों से "रीवा अमरकंटक सड़क मार्ग" बर्बाद हो गई है या अपने लाइफटाइम को पूर्ण नहीं कर पा रही है इसे तत्काल प्रतिबंधित कर देना चाहिए।



शायद संविधान की पांचवी अनुसूची में भारत के संविधान निर्माताओं का यही उद्देश्य रहा होगा, कम से कम विंध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे और संविधान निर्माता मे एक पंडित शंभूनाथ शुक्ला के सोच में रीवा अमरकंटक सड़क मार्ग निर्माण के वक्त यही उद्देश्य रहा होगा की सड़क आम आदमी विंध्य प्रदेश के आम नागरिकों के सुविधा के लिए बनाई जाए ना कि भविष्य में इस सड़क को  बी ओ टी नामक ठेकेदार नुमा राक्षस के जरिए खून चूसने का कारण बनाया जाए ।किंतु वर्तमान शासन और प्रशासन संविधान निर्माता शंभूनाथ शुक्ला के साथ अब धोखाधड़ी करते दिखाई देते हैं... जो पांचवी अनुसूची मे संविधान में दिए गए आदिवासी स्थानीय आम आदमियों के हितों  के विपरीत भी प्रतीत होता है।




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