शनिवार, 29 फ़रवरी 2020

भगवान भोजनाथ जिन खोजा..., तिन पाइयां

भगवान भोजनाथ
जिन खोजा..., तिन पाइयां

 तू ही आकार....
        तू ही विकार.....
 तू ही रचना......
         तू ही रचनाकार.......


तेरे प्रदोष......
        तेरे ही दोष......
 तेरी ही माया.....
        तू निराकार.......


तेरा ही अंश.... 
        तेरे ही दंश......
 तू अपरंपार......
         तेरे ही प्रकार.....











तू ही रूद्र.....
         तू ही दया......
 तेरी ही कृपा......
          तू ही श्रंगार..







हे भोजनाथ ,कृपा करो
       दया करो, हे त्रिलोकीनाथ....



शुक्रवार, 28 फ़रवरी 2020

ए रियल स्टोरी ÷ एक था राजा, एक थी रानी ..., ( त्रिलोकीनाथ)

÷ ÷  ए रियल स्टोरी ÷
एक था राजा, एक थी रानी ...,



एक था बाघ, एक थी बाघिन
कान्हा , बिजली की खतम कहानी,
एक था राजा, एक थी रानी।
( त्रिलोकी नाथ )
इसमें कुछ झूठी बनावट नहीं है सचमुच की मानवीय त्रासदी और उसके पतन का प्रमाण है। प्रत्येक जीव में चेतना है और उसकी अपनी चित्तवृत्ति भी। यह घटना यह दर्शाती है कि यदि जीव अपने परिवेश में नहीं रहता, अपनी प्रकृति में नहीं रहता तो वह गुलामी का आदी हो जाता है।
 फिर चाहे वह जंगल का राजा बाघ हो यह जंगल की रानी बाघिन और उनकी चाहे संतानें हो। पूरा का पूरा वंश सिर्फ पल्लू पकड़ कर जीवन व्यतीत कर देता है। 
उमरिया रेलवे स्टेशन से गुजरते हुए मुझे सहसा बांधवगढ़ दो बाघों की वीडियो की याद आ गई वास्तव में यह दोनों बाघों के मां बाघ की हत्या कर दी गई थी और यह शावक वहां मिले। फिर इन शावकों का पालन पोषण बांधवगढ़ राष्ट्रीय उद्यान के एक कर्मचारी द्वारा समर्पण के साथ उसका संबंध है इन बाघों के संपर्क में कुछ ऐसा रहा कि जैसे वे घरेलू परिवार के हिस्सा, यह बाग एक का नाम कान्हा और दूसरे का नाम बिजली था। संभवतः यह दोनों आदी हो चुके थे मानवीय  चित्त वृत्तियों के और उनके जैसी रहन-सहन के।
 कहना उचित होगा कि वे जंगल की प्रकृति जो उनकी अपनी प्रकृति थी जिसके लिए उन्हें हमारे संविधान  में नियम कानून बनाकर संरक्षण देने का काम किया गया था उसे भी भूल गए थे.... क्योंकि इनका पालन-पोषण मनुष्य ने किया था। जब भी बड़े हो गए करीब 3 साल के तो उन्हें जंगल में  स्वयं अपने पैरों में खड़े होने के लिए बांधवगढ़ के जंगल में छोड़ा गया किंतु उन्हें जंगल का संघर्ष और अपने निजी जीवन शैली स्वतंत्रता और स्वच्छंदता रास नहीं आ रही थी। वह स्वयं अपने के पैरों पर खड़े होने के काबिल नहीं रह गए थे। जिससे उन्हें खतरा भी महसूस हो रहा था।
इस स्टोरी के साथ जो वीडियो दिखाया गया है स्पष्ट करता है की जीप में एक पर्दे  को पाकर 3 वर्ष का बाग कान्हा पल्लू पकड़ लेता और वे उसे छोड़ना भी नहीं चाहता। जैसे वह कहता हो, मैं मनुष्य की ग़ुलामी का गुलाम हो चुका हूं मुझे मत छोड़ो...... जंगल में ।
जबकि जंगल के कर्मचारी उसे उसके नाम कान्हा से संबोधित कर पारिवारिक सदस्य की तरह संरक्षित कर रहे होते हैं। कि कहीं उन्हें हमारी मानवीय सभ्यता से उसके दबाव में क्षति न पहुंच जाए, उसके दांत ना खराब हो जाएं और वह अन्य वनकर्मी  से संपर्क भी करते हैं यह एक समस्या है। फिर जब बाघिन बिजली वहां आती है तो कान्हा नामक बाघ उससे उलझ पड़ता है तभी, जीप में लगा पर्दे का वह पल्लू छूट जाता है और मनुष्य अपना दामन छुड़ा कर बाघ से भागता है क्योंकि ऐसी हरकत से मनुष्य को भी खतरा है और बाघ को भी।
 यही हालात जंगल की निवासी पांचवी अनुसूची क्षेत्र के आदिवासियों के साथ हो गया है वे अपनी स्वच्छंदता स्वतंत्रता और संपूर्ण बलिसालिता खो रहे हैं। उन्हें उनकी प्रकृति से दूर हटाने का पूरा षड्यंत्र अपने लाभ के लिए तथाकथित विकसित मनुष्य ने कर रखा है। वे अब विकास सील व विकसित मनुष्यों के पल्लू के गुलाम हैं..., यह होते जा रहे हैं। क्या प्रकृति की बनावट में आदिवासी क्षेत्रों के आदिवासियों की शक्ति को विकसित मनुष्य समाज विकास के नाम पर कायर बना रहा है ...इस घटना से सोचना चाहिए कि जब बाघ, जंगल का राजा अपनी मूल प्रकृति छोड़कर पल्लू पकड़ लेता है तो छोड़ना नहीं चाहता तो हम पांचवी अनुसूची का संरक्षण देकर के उन्हें उनकी प्रकृति में नहीं रहने की सभी कारणों को खत्म कर रहे हैं तब क्या होगा ....जब आदिवासी समाज कथित विकास का पल्लू  के लिए बना रह जाएगा

 ...? क्योंकि वह अपनी प्रकृति भी छोड़ चुका होगा और उसके संसाधन विकसित समाज मनुष्यों का गिरोह बनाकर खत्म कर चुका होगा.., तो बेहतर है इस बाघ कान्हा व बाघिन बिजली के पतन की कहानी से कुछ सबक ले । मध्यप्रदेश के वन विभाग मेंअन्ततः यह निर्णय लिया की कान्हा व बिजली को भोपाल मे संरक्षण देगी। और बांधवगढ़ राष्ट्रीय उद्यान से भोपाल ले आयी है। जहां जंगल के राजा-रानी, गुलामी  का जीवन व्यतीत करेंगे। 


मंगलवार, 25 फ़रवरी 2020

"लगे रहो मुन्ना भाई..... " साबरमती का गांधी... (त्रिलोकीनाथ)


लगे रहो मुन्ना भाई..... 
साबरमती का गांधी दर्शन


"मेरे अच्छे मित्र प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, आपको इस  शानदार यात्रा के लिए धन्यवाद" : ट्रंप







नागरिकता कानून पर दिल्ली: अब तक 13 की मौत, आधे से अधिक घायलों को लगी है गोली
पांचवी अनुसूची क्षेत्र शहडोल आदिवासी विशेष क्षेत्र में भ्रष्टाचार में गांधीवाद के एक नए संज्ञा का जन्म हुआ है ।
देखिए काम कराना है तो "गांधी-दर्शन" कराना होगा बिना "गांधी-दर्शन" के यह समाज नहीं चलता है। पूरा प्रशासन "गांधी-दर्शन" से चल रहा है ....आदि-आदि।
 और तब नरेंद्र मोदी के 500 के नोट में कई गांधी उतर आते हैं..  कुछ गड्डीओं में, लिफाफा में भरकर..... मुंह दिखाई ,"गांधी-दर्शन" के साथ होता है ।
कुछ इसी अंदाज में  बहुचर्चित फिल्म "लगे रहो मुन्ना भाई" के  मुन्ना भाई व सर्किट का संवाद अमेरिका में कुछ इस प्रकार होता है।
 "सर्किट, यह गांधी कौन है ?
सर्किट- "सुना है भाई गुजरात में साबरमती आश्रम में रहता है, देखोगे क्या...?"
" हां सर्किट देखेंगे..."
 मुन्ना अहमदाबाद आता है एक स्टेडियम में शो करता है फिर बताता है यह दुनिया का सबसे बड़ा शो है। इसके पहले सर्किट, मुन्ना को साबरमती ले जाता है ।
मुन्ना- "सर्किट,ये तीन बंदर कौन है ?"
"मुन्ना यह अपने गांधी के बंदर है भाई।
 "यह यहां क्या कर रहे हैं", सर्किट?
 "भाई... यह कहते हैं,
 अच्छा मत देखो.,
 अच्छा मत सुनो..,
 अच्छा मत करो...।"
 "वाह, शानदार ..और यह गांधी कौन है..? सर्किट
 सर्किट -
"भाई... गांधी अपन का "एंटीक-आइटम" है, लोग कहते हैं इसी ने आजादी दिलाई...।
 मुन्ना- "अच्छा, यह आजादी क्या है"                       सर्किट?
"अरे वही जिसके कारण "गांधी-दर्शन" निकला। आज अख्खा देश "गांधी-दर्शन" से चल रहा है। बिना "गांधी-दर्शन" के विकास नहीं होता भाई।
 मुन्ना- वाह, गांधी कहां मिलेंगे भाई, सर्किट?
 वह तो गुलाबी नोट में मिलेंगे। वह नोट कहां है भाई पता नहीं, कहां गए। लेकिन हरे हरे नोटों में तो दिख ही रहे।
 अच्छा भाई साबरमती आने के बाद, इन बंदरों की चौकीदारी में कुछ लिखना होता है...
 "अरे वाह अपन भी लिखे क्या...?
 " हां हां मुन्ना भाई लिखो...."
 और मुन्ना लिखने बैठ जाते हैं। सर्किट भी खड़ा होकर देखता है मुन्ना एक गवाह के साथ कुछ लिखता है। सर्किट खुश हो जाता है......

"मेरे अच्छे मित्र प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आपको इस  शानदार यात्रा के लिए धन्यवाद" : ट्रंप

रविवार, 23 फ़रवरी 2020

कटपेस्ट ; काम का कलेक्शन
मोदी का ट्रंप-कार्ड
सियासत के शतरंज में हो या ताश के पत्तों में राजनीति एक जुआ होती है किंतु सिर्फ ताश के पत्तों में ही एक पत्ता जोकर का होता है किंतु वह ट्रंप कहलाता है और ट्रंप कार्ड जीत का दावा भी करता है बहराल अंततः भारत में अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप की यात्रा तय हो गई कहते हैं हाउडी मोदी के नाम पर ट्रंप के पक्ष पर मोदी अमेरिकी धरती पर ट्रंप कार्ड बनकर गए थे आइए जानिए कि सियासत के जुएमें 21वीं सदी  मैं भारत के प्रधानमंत्री मोदी की नजर में राजनीति की राजधानी बन चुकी अहमदाबाद से शुरुआत होने वाली ट्रंप की यात्रा को एनडीटीवी ग्रुप ने उनकी यात्रा के  टॉप टेन में किस प्रकार से शुमार किया है
 


 




शनिवार, 22 फ़रवरी 2020

सबसे ज्यादा सोना, सबसे जहरीले सांप सोनभद्र के पास

सबसे ज्यादा सोना, सबसे जहरीले सांप
 सोनभद्र के पास





सोनभद्र, (एजेंसी) उत्तर प्रदेश के सोनभद्र जिले में लगभग 3,000 टन सोना मिला है, जो भारत के पास मौजूदा सोने के भंडार का करीब पांच गुणा है। भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण में जिले की इन पहाड़ियों में तीन हजार टन से ज्यादा सोना दबे होने का दावा किया है। सोनभद्र की सोन पहाड़ी में बड़ी मात्रा में सोना पूरे विश्व की निगाहों में चमक उठा है।
सोशल मीडिया पर सोनभद्र ट्रेंड कर रहा है। हर कोई खुश भी है और अचंभित भी।

बता दें कि शुक्रवार को जिला खनन अधिकारी के के राय ने बताया कि सोन पहाड़ी और हरदी इलाकों में सोने के भंडार मिले है।उन्होंने बताया कि सोने के भंडार का पता लगाने का काम पिछले दो दशक से चल रहा था। उन्होंने बताया कि इन ब्लॉक की ई-टेंडरिंग के माध्यम से नीलामी की प्रक्रिया जल्द ही शुरू होगी। जानकारी के मुताबिक, सोन पहाड़ी में करीब 2943.26 टन और हरदी ब्लॉक में 646.16 टन सोना मिला है। राय ने बताया कि सोने के अलावा इलाके में अन्य खनिज पदार्थ भी मिले हैं।

विश्व स्वर्ण परिषद के अनुसार, भारत के पास इस समय 626 टन सोने का भंडार है। जबकि सोनभद्र में पाया गया सोने का नया भंडार इसका करीब पांच गुणा है। इसकी अनुमानित कीमत करीब 12 लाख करोड़ रुपए है।

आपको शायद ये जानकर हैरानी होगी कि इनका संबंध रामायण काल से है। सोनभद्र में जिन दो पहाड़ियों पर सोने का भंडार मिला है, वहां इसकी मौजदूगी को लेकर सालों से चर्चाएं चल रही थीं। हरदी ब्लॉक में पिछले चार सालों से सोना पाए जाने की खबर राष्ट्रीय स्तर पर सुर्खियां बटोरे हुए थी, जबकि आस्था का केंद्र रहे सोन पहाड़ी के इलाके में उम्मीद से ज्यादा सोने का भंडार मिलने की बात सामने आई है।

बता दें कि सोन पहाड़ी को शिव पहाड़ी के नाम से भी जाना जाता है। इस पहाड़ी पर सैकड़ों टन खजाना छिपे होने की बात पर वर्षों से कहानी-किस्से सुनाए जाते आए हैं। खनिज स्थलों की जियो टैगिंग के लिए सात सदस्यीय टीम गठित की गई, जिसकी रिपोर्ट 22 फरवरी यानी आज लखनऊ को सौंपी जाएगी।

सोनभद्र जिले में करीब 3,350 टन (अनुमानित मात्रा) सोना मिलने की बात सामने आई है, जो मात्रा भारत के स्वर्ण भंडार का करीब पांच गुणा ज्यादा है। विश्व स्वर्ण काउंसिल की रिपोर्ट के मुताबिक, भारत के पास अभी 618.2 टन सोने का भंडार है। जो कुल विदेशी भंडार में सोने का 6.6 फीसदी हिस्सा है। इसके लिहाज से स्वर्ण भंडारण के मामले में भारत विश्व में 9वें नंबर पर है। अब सोनभद्र में इतनी मात्रा में सोना मिलने से भारत की स्थिति और ज्यादा मजबूत होने की उम्मीद जताई जा रही है।

गौरतलब है कि पिछले पंद्रह साल से  जियोलॉजिकल सर्वे ऑफ़ इंडिया यानी जीएसआई की टीम  इस मामले में सोनभद्र में काम कर रही थी। आठ साल पहले ही टीम ने सोनभद्र की इस ज़मीन के अंदर सोने के ख़जाने की पुष्‍टि कर दी थी। अब इसकी सूचना सामने आने के बाद यूपी सरकार ने  इस टीले को बेचने के लिए ई-नीलामी प्रक्रिया शुरू कर दी है।  ई-टेंडरिंग को हरी झंडी मिलने के बाद खनन की अनुमति मिलेगी।

सोनभद्र के ज़िलाधिकारी एन. राजलिंगम ने बताया, ' जिले की जिस पहाड़ी में सोना मिला है, वो  क़रीब 108 हेक्टेयर  क्षेत्रफल का इलाका है। सोन की पहाड़ियों में मौजूद तमाम क़ीमती खनिज संपदा होने की वजह से पिछले 15 दिनों से इस इलाक़े का हेलिकॉप्टर सर्वेक्षण किया जा रहा है।' डीएम ने ये भी बताया कि भारत सरकार  सोनभद्र के अलावा मध्य प्रदेश के सिंगरौली ज़िले, यूपी के ही बलरामपुर और झारखंड के गढ़वा ज़िले के आंशिक भू-भागों में हेलिकॉप्टर के ज़रिए सर्वेक्षण  कर रही है।
उत्तर प्रदेश के सोनभद्र की पहाड़ियों में 3500 टन सोने का भंडार मिला है. सोनभद्र जिले में भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण और उत्तर प्रदेश भूविज्ञान और खनन निदेशालय द्वारा स्वर्ण भंडार पाये गए हैं. यह उत्तर प्रदेश सरकार के लिए किसी बड़ी लॉटरी से कम नहीं. जिला खनन अधिकारी केके राय के मुताबिक, सरकार खनन की खातिर सोने के भंडार की खुदाई के लिए पट्टे पर देने के बारे में सोच रही है. सर्वे किया जा रहा है. सोने का भंडार दो स्थानों पर पाया गया है. सोनापहाड़ी और हरदी इलाके में. जीएसआई ने सोनापहाड़ी में 2700 टन सोना पाये जाने का अनुमान लगाया है जबकि 650 टन हरदी इलाके में होने का अनुमान है. प्रशासन ने ई-टेंडरिंग के जरिये ब्लॉकों की नीलामी के लिए 7 सदस्यीय टीम बनायी है.

विश्व के सबसे जहरीले सांप 
सोनभद्र के पास
सोनभद्र में मिले सोने की खदान के पास दुनिया के सबसे जहरीले सांपों का बसेरा है। विंध्य पर्वत शृंखलाओं के बीच स्थित सोनभद्र की पहाड़ियों में विश्व के सबसे जहरीले सांपों की प्रजातियों में से तीन प्रजाति रसेल वाइपर, कोबरा व करैत का डेरा है।
वैज्ञानिकों के अनुसार सोनभद्र के सोन पहाड़ी क्षेत्र में पाए जाने वाली सांप की तीनों प्रजातियां इतने जहरीले हैं कि किसी को काट ले तो उसे बचाना संभव नहीं है। सोनभद्र जिले के जुगल थाना क्षेत्र के सोन पहाड़ी के साथी दक्षिणांचल के दुद्धी तहसील के महोली विंढमगंज चोपन ब्लाक के कोन क्षेत्र में काफी संख्या में सांप मौजद हैं। 
सिर्फ सोनभद्र में है रसेल वाइपर
विश्व के सबसे जहरीले सांपों में जाने जाने वाले रसेल वाइपर की प्रजाति उत्तर प्रदेश के एकमात्र सोनभद्र जिले में ही पाई जाती है। पिछले दिनों सोनभद्र के पकरी गांव में हवाई पट्टी पर रसेल वाइपर को देखा गया था।  रसेल वाइपर जिले के बभनी म्योरपुर व राबर्ट्सगंज में देखा गया है। इसके अलावा दक्षिणांचल में भी यह नजर आया था। 
सांपों के बसेरे पर संकट
सोनभद्र के  चोपन ब्लाक के सोन पहाड़ी में सोने के भंडार मिलने के बाद इसकी जियो टैगिंग कराकर ई टेंडरिंग की प्रक्रिया शुरू की तैयारी है। ऐसे में विश्व के सबसे जहरीले सांपों की प्रजातियों के बसेरे पर संकट मंडराना तय है। 
खून जमा देता है रसेल वाइपर
सांपों पर अध्ययन कर चुके विज्ञान डॉक्टर अरविंद मिश्रा ने बताया कि रसेल वाइपर विश्व के सबसे जहरीले सांपों में से एक है। इसका जहर हीमोटॉक्सिन होता है, जो खून को जमा देता है। काटने के दौरान यदि यह अपना पूरा जहर शरीर में डाल देता है तो मनुष्य की घंटे भर से भी कम समय में मौत हो सकती है। यही नहीं यदि जहर कम जाता है तो काटे स्थान पर घाव हो जाता है, जो खतरनाक साबित होता है।
स्नायु तंत्र प्रभावित करता है कोबरा
कोबरा और करैत के जहर न्यूरोटॉक्सिन होते हैं, स्नायु तंत्र को शून्य कर देते हैं और मनुष्य की मौत हो जाती है। कोबरा के काटे स्थान पर सूजन हो जाती है और करैत का दंश देखने से पता नहीं चलता है।
आस्ट्रेलिया में निरस्त की जा चुकी है खनन प्रक्रिया
विश्व के सबसे जहरीले सांपों की कई प्रजातियां आस्ट्रेलिया के जंगलों में भी पाई जाती हैं। वन्य जीव प्रतिपालक संजीव कुमार के मुताबिक दुर्लभ प्राजति के सांपों के अस्तित्व को देखते हुए आस्टे्रलियां में भी कोयले की खदान खनन प्रक्रिया पर रोक लगा दी गई थी। माना गया कि यदि खनन पर रोक नहीं लगाई तो यहां मौजूद दुर्लभ प्रजति के सापों का अस्तित्व खतरे में पड़ जाएगा।
वन्य जीव विहार क्षेत्र में खनन की अनुमति देने का निर्णय केन्द्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय लेता है। सोनभद्र के चोपन ब्लाक के सोन पहाड़ी और हरदी में सोने के भंडार की ई टेंडरिंग को लेकर रिपोर्ट केन्द्र को भेजी जाएगी। केन्द्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय ही इस पर निर्णय लेगा। -
(संजीव कुमार, डीएफओ वाइल्ड लाइफ, सोनभद्र))
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23.02.2020
*न्यू अपडेट खबर है यह बात झूठी है कि 3:30 हजार टन सोना का भंडार होना है एक अधिकृत पत्र से यह जानकारी दी गई है कि करीब 160 किलो सोना ही वहां पाया जाएगा अनुमान लगाया जा रहा है

बुधवार, 19 फ़रवरी 2020

अयोध्या का राम मंदिर ट्रस्ट.. अध्यक्ष नृत्य गोपाल महासचिव चंपत "खोदा पहाड़.., निकली चुहिया"

अयोध्या का राम मंदिर  ट्रस्ट.. 
अध्यक्ष नृत्य गोपाल महासचिव चंपत
"खोदा पहाड़.., निकली चुहिया" 
"हिंदुत्व" का प्रोडक्टमें  विराट सनातन धर्म का संपूर्ण समावेश का अभाव ...?

लालच की पोटली बना,
शेष बचे ट्रस्टी की नियुक्ति.....

(त्रिलोकीनाथ)

 दुनिया-जहां में भारत की आध्यात्मिक सनातन धर्म का आक्रामक रूप लेकर आने वाला राम मंदिर आंदोलन, अन्ना हजारे के लोकपाल आंदोलन की तरह दिखने में बड़ा आंदोलन के रूप में जरूर नहीं बना था क्योंकि लोकपाल आंदोलन भारत की आजादी के मूल्यों से जुड़ा आंदोलन था। किंतु आध्यात्मिक धरातल से और उसकी मानव मस्तिष्क को जोड़कर आक्रामक तरीके से सनातन धर्म के साक्षात ब्रह्म के अवतार भगवान राम की मनुष्य के रूप में जन्म स्थल की प्रतीक अयोध्या नगरी जहां हजारों मंदिर अपनी दुर्दशा के लिए आज भी आशा भरी नजरों से किसी चमत्कार की आशा करते हैं....
भगवान राम का जन्म स्थल बता, उस पर आस्था जगाया
वहां पर एक स्थान को भगवान राम का जन्म स्थल बताकर, उस पर आस्था जगा कर तथाकथित  गैर राजनीतिक  समूह राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के काल्पनिक स्वरूप की चाहत में अयोध्या में राम मंदिर जन्मभूमि मुक्ति के लिए इस्लाम धर्म के बाबरी मस्जिद को आतताई के रूप में दिखाकर जो आंदोलन खड़ा किया गया, उसमें हजारों लोग हिंसा के शिकार हो गए...., पूरे देश भर में नफरत का भी आंदोलन खड़ा हो गया .।सनातन धर्मी भारत के विभिन्न प्रांतों में बल्कि  संपूर्ण विश्व में रहने वाले लोगों के मन में उनके अपने भगवान के साथ जैसे गुलामी की जंजीरों को तोड़ने का मन बन गया। और चाहे अनचाहे अयोध्या में अगर भगवान राम नहीं हैं तो कहां होंगे....? आदि आदि उस व्यापक ब्रह्म के स्थापना के लिए "गर्व से कहो, हम हिंदू हैं।", "मंदिर वहीं बनाएंगे...." सैकड़ों प्रकार के ऐसे रास्ते तय किए गए जिससे आर एस एस का राजनीतिक संगठन भारतीय जनता पार्टी अंततः सत्ता पर आ गई....। हिंदू वोट बैंक को ध्रुवीकरण करने में काफी हद तक सफल रही।
ना राम का हुआ, ना रहीम का...

 यह अलग बात है जैसा कि विश्व हिंदू परिषद के डॉ तोगड़िया कहते हैं कि जिस स्वाभिमान के साथ अयोध्या के राम मंदिर को संसद में प्रस्ताव पारित करके बिल के तहत मंदिर का निर्माण होना चाहिए था, वह नहीं हो सका और माननीय उच्चतम न्यायालय के निर्देश पर हजारों  भारतीयों लोगों की खून बहाने वाला यह आंदोलन से एक ट्रस्ट निर्माण का निर्देश हुआ। किंतु जिस भारत में संपूर्ण सनातन धर्म के समावेश के रूप में मनो मस्तिष्क को जोड़कर एकत्र करने का काम संवेदनशील मुद्दे भगवान राम की जन्म स्थल को लेकर जगाया गया, उस प्रकार का नरेंद्र मोदी एवं अमित शाह के नेतृत्व में मंदिर निर्माण के लिए ट्रस्ट का समावेशी स्वरूप नहीं दिखा..... बल्कि महज एक न्यायालयीन फैसले से निर्मित किसी छोटे ट्रस्ट के लिए काम होता दिख रहा है.... एक छोटे से कमरे पर सरकार के रहम पर निर्देशित, ट्रस्टी सदस्यों का समूह और कुछ रिक्त पदों पर ट्रस्टी के निर्माण पर कोई 70 एकड़ जमीन पर ट्रस्ट का निर्माण होना सुनिश्चित हुआ है। किंतु यह ट्रस्ट से निर्मित तथाकथित भव्य राम मंदिर का निर्माण सनातन धर्म की व्यापक और भव्य समावेशी आस्था के लिए कितने लोगों को प्रवेश कर, उन्हें स्वतंत्रता से मंदिर में आस्था की जगह दे पाएगा..., कुछ कह पाना बहुत मुश्किल है..?

चारों तीर्थ के शंकराचार्य को
 स-सम्मान न्यासी भी नहीं बनाया 
 इसलिए भी क्योंकि सरकार द्वारा गठित इस ट्रस्ट में हिंदुत्व-ब्रांड के प्रोडक्ट पर यानी "श्री राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट" की प्रक्रिया पर भारत के सनातन धर्म के परंपरागत चारों तीर्थ के शंकराचार्य को स-सम्मान न्यासी भी नहीं बनाया गया है। द्वारकापुरी के शंकराचार्य स्वरूपानंद जी, जिन्हें कांग्रेस समर्थक मानकर शायद अलग रखा गया है। उन्होंने तो वकायदे लोकतंत्र के न्यायालय में इस बाबत दरवाजा खटखटाने की बात भी कर दी है। शंकराचार्य मैं सिर्फ बद्रिकाश्रम के शंकराचार्य ही प्रतीक के रूप में रखे गए हैं। जबकि पुरी और रामेश्वरम तथा द्वारिका पूरी के शंकराचार्य को अछूत बना कर दिखाया गया है। सनातन धर्म की भावनाओं का अपहरण कर राम मंदिर जन्मभूमि स्थल पर बहुचर्चित आंदोलन से निर्मित बनने वाले मंदिर निर्माण में कम से कम प्रमुख चार सनातन धर्म के शंकराचार्य का शामिल होना अत्यावश्यक इसलिए भी था ताकि दिखाने के लिए ही सही इस सत्य को स्थापित किया जा सकता है कि जो शंकराचार्य सनातन धर्म का प्रतिपादन करते थे उन्हीं की लोकतंत्र की प्रस्तुति के रूप में ब्रह्म के अवतार का यह मंदिर निर्मित किया जा रहा है।
नीव की ईट बन     दफन लौह पुरुष,जोशी, भारती तोगड़िया..
 किंतु सत्य बात यह है कि यह भगवान राम के जो ब्रह्म के अवतार थे उनसे ज्यादा 1947 के बाद सत्ता पाने के हेतु जिस उद्देश्य राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के उत्तर भारत "मात्र शाखा" के रूप में निर्माण किया जा रहा है। उसमें भी इमानदारी का अभाव झलकता है क्योंकि इस आंदोलन की बुनियाद पर जिन प्रमुख लोगों का बलिदान था चाहे वे तक्षशिला तक सनातन हिंदू धर्म की प्रतीक के रूप में आंदोलन के प्रणेता रहे लालकृष्ण आडवाणी हो या विश्व हिंदू परिषद के डॉ तोगड़िया जोकि बीएचपी प्रमुख स्वर्गीय सिंघल के उत्तराधिकारी के रूप में प्रस्तुत हुए थे अथवा लोक ज्ञान से निकली उमा भारती जैसी आंदोलनकारी आदि-आदि लोगों का समावेश भी नहीं किया गया है।
 सबसे ज्यादा समावेश के दृष्टिकोण से कभी हिंदुत्व ब्रांड के लौह पुरुष बताए जाने वाले लालकृष्ण आडवाणी का समावेश नहीं होना उनके पतन और अपमान की चरम परिणीति के रूप में देखा जा सकता है। जिसमें नरेंद्र मोदी के तथाकथित मार्गदर्शक मंडल उसमें चाहे आडवाणी हो या डॉ मुरली मनोहर जोशी अथवा अन्य कई हिंदुत्व के फायरब्रांड नेता उन्हें भी मार्गदर्शन के लिए पूछा भी नहीं गया....? क्या "मंदिर वहीं बनाएंगे ..." कल्पनाकारों को राम मंदिर की मात्र "नींव का ईट" बना कर उन्हें इतिहास में दफन कर दिया गया है....?
 इन आशंकाओं मैं जहां ना तो सनातन धर्म के व्यापक आकांक्षाओं के प्रतीक शंकराचार्य का समावेश है,  जहां हिंदुत्व ब्रांड के ब्लू नेताओं को "नींव का ईट" बना कर छोड़ दिया गया, क्या इस मंदिर को मात्र अपनी गतिविधियों को संचालित करने वाले कार्यालय की तरह 70 एकड़ का केंद्र बना कर छोड़ दिया जाएगा....? आदि आदि प्रश्न इसलिए भी खड़े होते रहेंगे, क्योंकि मल्टीनेशनल ऑर्गेनाइजेशन के भरोसे खड़ी केंद्र सरकार ने करोड़ों-करोड़ लोगों की सनातन धर्म की भावनाओं आस्थाओं का अपमान  और  राम मंदिर जन्मभूमि आंदोलन से जुड़े हजारों लोगों के खूनी बलिदान तथा तथाकथित 500 वर्षों के बाद निर्मित इस भारत भाग्य विधाता भगवान राम के अवतार के नाम पर बनने वाले मंदिर का अंत की शुरुआत कुछ इस तरह से कर दी गई है जैसे "खोदा पहाड़-निकली चुहिया..."
 "खोदा पहाड़-निकली चुहिया..."
 अभी भी वक्त है कि किसी छोटे से कमरे में राम जन्मभूमि न्यास के निर्माण की बैठक की बजाए किन्हीं शंकराचार्यओं के मठों पर इनकी बैठकों का समावेशी कार्यक्रम होने चाहिए..., चिंतन और मंथन के बाद सनातन धर्म के प्रतीक के रूप में इन्हें स्थापित करना चाहिए ।
अन्यथा

 जैसे सरदार पटेल की 3000 करोड़ की मूर्ति या फिर दीनदयाल उपाध्याय की करोड़ों की मूर्ति के चप्पल के नीचे हम गुलामी की लिए सिर झुकाते हैं

 कुछ उसी अंदाज में राम मंदिर बरसों बरस शंकराचार्य के आशा के विपरीत विवाद में नफरत की संभावनाओं को बढ़ाता रहेगा...। और अंततः इन मूर्तियों की तरह एक छोटा सा स्मारक अथवा किसी दिखने वाले आर एस एस का ब्रांच मात्र बनकर रह जाएगा ।
और वास्तव में अयोध्या के हजारों मंदिरों में एक ऐसे मंदिर नुमा केंद्र में बन जाएगा। जहां स्वतंत्रता के साथ आम सनातन धर्म के आस्था वालों का प्रवेश "सीसीटीवी" के जरिए नियंत्रित होता रहेगा...  जिसका नियंत्रण, किसी "रिमोट-कंट्रोल" के जरिए कोई अज्ञात शक्ति करती रहेगी....।
 यदि इतने लंबे चले राम जन्मभूमि आंदोलन की परिणीति पर ऐसे हस्ताक्षर होते हैं तो यह भारत के लिए सुखद तो कतई नहीं हो सकता... ।
 और जिसमें "हिंदुत्व-ब्रांड" की कंपनी के स्वयंसेवी कर्मचारियों का अपना सुख मात्र निहित हो..., जिसका एक स्वरूप बाबा रामदेव के "पतंजलि-ब्रांड" में हम देख ही रहे हैं।
 आशा करना चाहिए कि राम जन्मभूमि अयोध्या में सनातन धर्म का प्रकाश लायेगा व तथाकथित सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के लिए प्रणेता बनेगा...। 
शुभम, मंगलम..।

सोमवार, 17 फ़रवरी 2020

मुद्दा भाजपा संगठन में अध्यक्ष पद का ....... (त्रिलोकीनाथ)

😶सिर्फ आलोचना; 
समालोचना भी नहीं..?
मुद्दा भाजपा संगठन में
 अध्यक्ष पद का .......

(त्रिलोकीनाथ)
सी ए ए , एनआरसी  का जब बाजार गर्म हो, तब यह बात विचार में इसलिए आई क्योंकि मैंने बहुत ताकत लगाया अपने दिमाग पर तो जितना मुझे याद रहा उसमें मैं याद नहीं कर पा रहा हूं कि शहडोल में भारत के आजादी के बाद कितनी पार्टियों के संगठन में आदिवासी अध्यक्ष नियुक्त किए गए हैं......, जितनी मेरी सीमित जागरूकता की जानकारी है तो कांग्रेस पार्टी मैं बिसाहू लाल सिंह जो वर्तमान में विधायक हैं, उनको छोड़कर संगठन में अध्यक्ष किसी राजनीतिक दल ने, किसी पार्टी में बनाया हो मुझे याद नहीं आता। मैं बड़ी पार्टियों की बात कर रहा हूं ।यह इसलिए कि कांग्रेस पार्टी के अंदर भी यह कमी बरकरार है..(. कहते हैं कभी कांग्रेस का उपाध्यक्ष अनुसूचित जनजाति का होता था... कहते हैं।) जो आज एक अखबार में भाजपा के अध्यक्ष पद के दावेदार के रूप में जो चेहरे दिखाए गए उनकी आलोचना करते वक्त मुझे याद आया कि क्या हम भारत के संविधान की पांचवी अनुसूची में शामिल विशेष आदिवासी क्षेत्र शहडोल जिले या शहडोल संभाग के निवासी हैं। जहां हमारे मताधिकार भारतीय कानून की व्यवस्था ने आदिवासी प्रतिनिधियों को देने के लिए विवश कर रखा है, कुछ ना कुछ संविधान निर्माताओं ने अगर बुद्धिमान रहे होंगे... तो जरूर सोचा रहा होगा की आदिवासी विशेष क्षेत्रों में आदिवासियों के नेतृत्व आ जाने से आदिवासी क्षेत्र उनकी सांस्कृतिक राष्ट्रवादीता और उन्हें मुख्यधारा में लाने का यही एकमात्र उपाय है.., तब मुख्य पदों पर आदिवासी नेतृत्व की अवहेलना क्या संविधान की अवमानना के दायरे में नहीं आता है....? या फिर संविधान की आड़ में सक्षम नेतृत्व को कमजोर करने के लिए गुलामों की फौज अथवा माफियाओं की फौज खड़ी कर के आदिवासी क्षेत्रों को लूटने और डाका डालने का अड्डा बना दिया गया है....? जहां संपूर्ण राजनीतिक चेतना बहुसंख्यक नागरिकों के अधिकार में ना देकर उन्हें देश की आर्थिक, सामाजिक, राजनीतिक और न्यायिक मुख्यधारा से हमेशा दूर रखकर गुलामी के कटघरे में खड़ा कर रखने कि माफिया गिरी ही राजनीति का उद्देश्य रह गया है..... यह बात इसलिए विचार में आती है क्योंकि जब हाल में हम देखते हैं कि शहडोल जैसे विशाल पुरातात्विक, आध्यात्मिक और प्राकृतिक संपदा से भरपूर संसाधनों को नष्ट करने की जब माफियाओं ने होड़ कर रखी है तब भी विधायिका के अधीन काम कर रहे लोक ज्ञान वाले आदिवासी जनप्रतिनिधियों के हाथों में नेतृत्व नहीं देकर, उन्हें अभिव्यक्ति की आजादी से महरूम रखा जा रहा है.... हो सकता है उनकी अभिव्यक्ति दबी हो.., कुचली हो.. गलत हो या फिर बैकवर्ड हो....., या फिर विशेष बैकवर्ड हो, जैसे बैगा, भरिया जनजातियों की..... तो इन्हें ही अभिव्यक्त करने के लिए संविधान में संविधान-निर्माताओं ने आरक्षण का प्रावधान किया था और इन्हें समुचित विकास के लिए सुरक्षित, सुशिक्षित, बौद्धिक समाज के तालमेल का आश्वासन भी दिया था..... क्या उस आश्वासन में गैर आदिवासी समाज आदिवासियों के साथ गद्दारी करता नजर नहीं आता.......?
 जब वह पार्टी संगठनों में उसे अध्यक्ष के रूप में अथवा महत्वपूर्ण निर्णयों में भागीदारी नहीं देता है... कम से कम पांचवी अनुसूची क्षेत्रों में यह नैतिक जिम्मेदारी लगभग नहीं के बराबर दिखाई देती है। कांग्रेस पार्टी के कभी अध्यक्ष रहे बिसाहू लाल को अगर छोड़ दे तो।
 यह बात इसलिए उठ कर भी आ रही है क्योंकि आज एक अखबार में जो चेहरे सामने आए उनकी आलोचना के पीछे यह भूमिका देना जरूरी था।

 तो चलिए भाजपा संगठन जो 15 साल से शहडोल में सत्ता पर रहा और जिसने शहडोल के प्राकृतिक संसाधन में खुला डाका डालने का व्यवस्था बना दिया.... जिसे कांग्रेस पार्टी भी नहीं रोक पा रही है। यदि इस झूठी खबर पर विश्वास करें कि शहडोल कलेक्टर के पुलिस सुरक्षा व्यवस्था को पुलिस विभाग ने रेत माफिया के इशारे पर हटा दिया तो, प्रतियोगिता में पांचवी अनुसूची में आदिवासियों की सुरक्षा कितनी सुरक्षित है....? यह आज एक गर्म मुद्दा है, काश ऐसा ही हो कि यह खबर पूरी तरह से निराधार और झूठी बन जाए......?
 अन्यथा शहडोल क्षेत्र में भारतीय जनता पार्टी के 15 साल की "फसल के पक" जाने का यह घटना सबसे बड़ा प्रमाण होगा ...क्योंकि 15 साल जिस माफिया राज ने भ्रष्टाचार की फसल बोई आदिवासी क्षेत्र के प्राकृतिक संसाधनों की खुली लूट की, उसमें यदि प्रशासनिक अमला ही सुरक्षित नहीं है... तो संविधान में प्रदत्त पांचवी अनुसूचित क्षेत्र में "अंतिम पंक्ति के अंतिम व्यक्तियों" की सुरक्षा की गारंटी कहीं टिकती ही नहीं है......
 क्योंकि प्रतियोगिता माफियाओं की है .. वन माफिया  कोल माफिया  रेत माफिया  गैस माफिया  उद्योगपति माफिया  आदि आदि और राजनीतिक दल प्रमुख माफिया के रूप में स्थापित है। क्योंकि वह मूल निवासियों की यानी सुरक्षा वनवासियों की, सम्मान कर पाने में उनसे सुरक्षा की भावना सीख पाने में असफल रहा है।
 सेना का एक अधिकारी जो एक फर्जी मुठभेड़ सिर्फ इसलिए करा कर सफल होता है क्योंकि उसे प्रमोशन पाना होता है तो आदिवासी क्षेत्रों में जहां करोड़ों अरबों रुपए के प्राकृतिक संसाधन लूट के लिए छोड़ दिए गए हो...
 "माफियातंत्र बनाम लोकतंत्र" का यह युद्ध भी "शुद्ध के लिए युद्ध" जैसा ही है....। तो भूमिका छोड़ें भाजपा  प्रेरक पार्टी संगठनात्मक स्वरूप में  सिर्फ आलोचना के पहलू को क्यों ना देखा जाए। 
 जिन पांच चेहरों के भरोसे आदिवासी क्षेत्र का उद्धार होना है उनमें एक पाकिस्तानमूल से आए भारतीय नागरिक हैं। दो बिहार मूल के हैं और दो स्थानी हैं जो आजादी के पहले शहडोल में बस गए थे। उसमें भी एक ठाकुर हैं, और एक ब्राह्मण..., खुलकर बात करें तो प्रकाश जगवानी जो पाकिस्तान मूल के हैं और डोली शर्मा जो बिहार मूल के हैं दोनों ही उस मोहनराम तालाब के भ्रष्टाचार में डुबकी लगा चुके हैं या फिर तत्कालीन व्यवस्था की गुलामी में ओतप्रोत चुके हैं और जिसका प्रमाण भी भ्रष्टाचार के प्रमाण पत्र के रूप में पीपल के पेड़ के नीचे स्थापित है.... यह इनके संपूर्ण भ्रष्टाचार और प्रशासनिक योग्यता की दक्षता का बहुत छोटा सा प्रमाण है। विस्तार इनके आर्थिक संसाधन के आधुनिक स्वरूप को देखकर किया जा सकता है। तो दूसरी तरफ कमल प्रताप सिंह भी बिहार मूल के हैं और सरस्वती शिशु मंदिर शहडोल में पूरी सफलता के साथ स्थापित भी हैं। रही बात शहडोल के आजादी के पहले बसे गिरधर प्रताप सिंह जो कि ठाकुर हैं, आदिवासी नहीं और ब्राह्मण पंडित जी अनिल द्विवेदी तो है ही। इस प्रकार से इसमें ढूंढने पर भी मुझे इनकी प्रकृति में भी पांचवी अनुसूची के आदिवासियों की महक नहीं दिखाई देती.... आदिवासियों का दर्द, उनकी संवेदना और उनका नैसर्गिक विकास उनके प्राकृतिक संसाधनों पर आधारित उत्थान का समर्पण क्या इन गैर आदिवासी व्यक्तियों के सोच में इनके द्वारा संभव है....शायद नहीं ...?
 अध्यक्ष पद पर इनकी दावेदारी किस हेतु की जा रही है क्या सत्ता पर नियंत्रण बनाए रखने के लिए, संगठन की मजबूती के लिए..? भारतीय जनता पार्टी के अंदर इसका कोई बात नहीं... कम से कम अध्यक्ष पद का तो बहुत महत्व नहीं है ।

क्योंकि हमने अनुभव में पाया है कि क्या अध्यक्ष, क्या पदाधिकारी ,क्या विधायक या सांसद और मंत्री भी कोई हैसियत नहीं रखते क्योंकि भाजपा के अंदर "संगठन मंत्री" जैसा रिमोट कंट्रोल इसे संचालित करता है ।अध्यक्ष पद को भी संचालित कर सकता है.... तो दिखाने के लिए ही सही..? पांचवी अनुसूची की मंशा के अनुरूप आदिवासी वर्ग के अध्यक्ष का निर्माण भारतीय जनता पार्टी क्यों नहीं कर सकती, उसके लिए तो सहज भी है.... क्योंकि संगठन मंत्री अंततः उसे नियंत्रित ही करता है । जिसके इच्छा के बिना पार्टी संगठन में "चिड़िया पर भी नहीं मार सकती" यह बात कांग्रेस पार्टी में इसलिए सहज नहीं है क्योंकि कांग्रेस पार्टी भाजपा जैसी अनुशासनिक संगठन नहीं है। वहां अध्यक्ष जी चाहे एकमात्र व्यक्ति हो... वहीं स्वत्ताअधिकारी होता है बाकी पदाधिकारी संघर्ष साली प्रतियोगिता धारी होते हैं.....
 इसके बावजूद भी यह कांग्रेस पार्टी की उदारता रही कि वह बिसाहू लाल सिंह जैसे आदिवासी व्यक्तियों को कभी अध्यक्ष बनाया था। क्योंकि संविधान के पांचवी अनुसूची में आदिवासियों को राष्ट्रीय मुख्यधारा में लाना एक सपना है, क्योंकि पांचवी अनुसूची में शामिल क्षेत्रों में आदिवासी मूल निवासियों को उनकी सोच, सहज विकास को उनके साथ चल कर आगे बढ़ना एक सपना था....
 यह अलग बात है कि सपने अक्सर टूट भी जाते हैं.. किंतु किसी दार्शनिक ने कहा है कि अगर बड़े सपने नहीं देखेंगे तो बड़ा काम नहीं करेंगे... इसलिए भी कम से कम भाजपा की संगठन में किसी आदिवासी प्रवर्ग के व्यक्ति को अध्यक्ष बनाया जाना एक अच्छा सपना हो सकता है.....
 और यह सपना तब देखा जाना चाहिए जब गुलाम पालने की प्रवृत्ति अथवा माफिया राज से मुक्ति दिलाना खासतौर से आदिवासी क्षेत्रों में जहां कि भारत का संविधान संभावना देखता हो.....
 आरक्षण के अवसरों पर भाजपा यह सपना क्या देख सकती है.... हां, वह देख सकती है..., क्योंकि उसका रिमोट कंट्रोल "संगठन मंत्री" हर जिले में उसे नियंत्रित करता है.. अगर सपना भयभीत होगा तो रिमोट कंट्रोल, "चैनल" बदल सकता है... अन्यथा आदिवासियों के साथ सहज संवाद और  अध्यक्ष पद मूल निवासियों के साथ होना चाहिए..।
 किसी पाकिस्तान मूलनिवासी, किसी बिहार मूलनिवासी अथवा गैर आदिवासी वर्ग के व्यक्ति के हाथों ही अध्यक्ष पद क्यों आरक्षित रहे...? यही आज की आलोचना का विषय है। सिर्फ आलोचना, कोई समालोचना नहीं..... क्योंकि इसमें गलती की संभावना नहीं रहती है और दृष्टिकोण साफ सुथरा, कि हमें आदिवासियों के, उनके सहज विकास में हम उनका कितना साथ दे सकते हैं..... 
उन्हें हमेशा गुलाम बनाए रखने की अपनी गुलामी सोच से, उन्हें मुक्त करके क्योंकि अंततः हमारी चाहे दिखाने वाली सोच ही क्यों ना हो आदिवासी समाज के साथ  सहज विकास की ,यहां हमेशा रही है।

  क्योंकि हमें याद है  कि जब "बैगा सम्मेलन लालपुर में हुआ था तो हमारे मुख्यमंत्री  तब वह बैगा के साथ  जमकर डांस किए थे....


  और भ्रष्टाचार का ही सही ढाई लाख  रुपए नकद बांटे थे रेत माफिया की कृपा से तब के खनिज अधिकारी ने यह राशि उपलब्ध कराई थी.... यह शिवराज की महिमा रही है। और 2017 के इस भ्रष्टाचार के कुंड में आज भी लोग नहा रहे हैं...., बैगा सम्मेलन में भी  अगर विकास होता है, तो पार्टी संगठन में भी होगा..... और बहुत विकास होगा... 100% परसेंट गारंटी है... माफिया तंत्र को भी भरोसा रखना चाहिए😊 ,तो बहुत शुभकामनाएं

शुक्रवार, 7 फ़रवरी 2020

क्योंकि अराजकता ही आतंकवाद है" केंद्रीय मंत्री "लोकतंत्र बनाम माफियातंत्र - भाग 6"( त्रिलोकीनाथ)

"लोकतंत्र बनाम माफियातंत्र - भाग  6" 
 क्योंकि अराजकता ही आतंकवाद है.....

बाजारवाद का आस्था पर हमला कितना जायज......?
मामला अमरकंटक और शहडोल के मंदिरों का....

.......( त्रिलोकीनाथ)........
 रेंद्र मोदी की राजनीति कि शैली में यह सिखाया है कि जो चीज बिकती है वह अपनी विचारधारा से बिल्कुल भी ना मिले , लेकिन बाजार में उसकी मांग है तो उसको जमकर बेचो...., महात्मा गांधी  को गुजरात के नाम पर और वल्लभ भाई पटेल को ओबीसी के नाम पर वोट बैंक के बाजार पर अपना कब्जा बनाए रखने के लिए जरूरी है, इन दोनों नेताओं का महिमामंडन करना । यह एक अलग बात है कि देश की आजादी के पक्षधर यह दोनों कांग्रेस के नेता राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और उनके नेताओं के कभी लोकप्रिय नहीं रहे ।और विचारधारा तो विपरीत  थी ही।
 इसके बावजूद भी यदा-कदा फुलझड़ी की तरह जब मोदी के कार्यकर्ता महात्मा गांधी को या और मोदी स्वयं भी जब चाहे वह नेहरू हो अपमानित करते हैं...। तब उन्हें कोई मना नहीं करता बल्कि योजनाबद्ध तरीके से प्रोत्साहित किया जाता है ।वह कहीं भी कुछ भी गांधी अथवा नेहरू के प्रति लोक आस्था को चोट पहुंचाते रहते हैं ।



 जहां नैतिकता का, भारतीय मूल्यों का अवमूल्यन होता है। किस्सा, दिल्ली के चुनाव के वक्त अपने वोट-बैंक को साधने के चक्कर में कि अरविंद केजरीवाल आतंकवादी बताने का है...

 तो राजनीतिक बाजारी उसे ठीक बताने में जुट गए हैं। और नई नई परिभाषाएं गढ़ रहे हैं। जो दूसरे मायने में तो सही है, आंशिक ही सही... किंतु जिस वक्त बात कही जा रही है, जिस स्थान पर बात कही जा रही है यानी दिल्ली के चुनाव के वक्त दिल्ली में तो गलत है.....
यही बात मेरे शहडोल के लिए कही गई होती, तो सही होती.... इसे परिस्थितिकी भी बोलते हैं। तो चलिए बताते हैं प्रकाश जावेडकर कि वह अभिव्यक्ति जिसमें उन्होंने कहा अराजकता ही आतंकवाद है.....
     और दैनिक जनसत्ता ने उसे अपना लीड न्यूज़ बनाया.... दिल्ली में  वोट पाने के चक्कर में अपने अनुयायियों की मूर्खता को सही प्रमाणित करना भी एक प्रकार की मूर्खता है.... किंतु जब हम शहडोल में इस भाषा को देखते हैं, यही मूर्खता हमें अभिव्यक्ति दिखाई देती है..... जैसे 2013 से मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय के निर्देश के बावजूद भी, चाहे भाजपा का शासन रहो या कांग्रेस का शासन, दोनों में ही "मोहन राम मंदिर ट्रस्ट"
 के मामले में नैतिक मूल्यों के मामले में हो या प्रबंधन के मामले में अथवा उच्च न्यायालय ने जो आदेश पारित किया है इस मामले में भी.... शहडोल का प्रशासन, प्रशासनिक दक्षता दिखा पाने में असफल रहा है.... वह शहडोल  नगर के संपूर्ण तथाकथित 365 तालाबों की संरचना का आदर्श मॉडल मोहनराम तालाब के उसके वास्तविक स्वरूप में हाईकोर्ट के निर्देशों के बावजूद भी प्रबंधन देने में असफल रहा है...., 

"धार्मिक-माफिया" का अराजकता 
याने धार्मिक आतंक

क्योंकि वहां बीते साल 8 साल से "धार्मिक-माफिया" का अराजकता का वातावरण बना हुआ है..., जिसे अक्सर मेरी समझ में धार्मिक आतंक के रूप में देखा जा सकता है.... और मंदिर में धर्म के नकाब पहनकर जो लोग गैर कानूनी तरीके से घुसकर कब्जा करे हुए हैं, मंदिर ट्रस्ट की आराजी को नष्ट-भ्रष्ट कर रहे हैं, वे अमृतसर के भिंडरावाले धार्मिक व्यक्ति की तरह ही आतंकवादी है, यह अलग बात है कि यह लोग छुपकर, लुककर अनैतिकता, भ्रष्टाचार और लूटपाट पर विश्वास करते हैं..... क्योंकि इनकी संख्या कम है। किंतु चित्रकूट की जिस पुरानी लंका की गद्दी से यह संबंध है उनके अनुयाई पर जाता है। इसलिए अपने अनुयायियों की ताकत से यह सब खुली डकैती डाल रहे हैं... यह भी धर्म की अराजकता का आतंक है। जिसका परिणाम है कि उच्च न्यायालय जबलपुर के निर्देश के बाद भी प्रशासन, "अराजकता" को संरक्षण देने को विवश है.... आदेश का पालन करा पाने पर वह लाचार है..... प्रशासन को लगता है जब उच्च न्यायालय विशेष आदेश करके, सेना को भेजकर ट्रस्ट के प्रबंधन में परिवर्तन का आदेश देगी, तब जिला प्रशासन शायद उस पर कुछ करता दिखेगा....?., अन्यथा वह लाचार है।
 इसलिए यहां पर भाजपा के मंत्री प्रकाश जावेडकर कि कहीं बात ठीक बैठती है....,
 किंतु दिल्ली में यह गलत है, क्योंकि यही बात वहां पर अराजकता को पैदा करने के लिए कही गई बात की तरह है। जो उनके ही कथन को प्रमाणित भी करती है की, "अराजकता ही आतंकवाद है..."
 तो क्या केंद्र शासन के लोग आतंकवाद के सहारे दिल्ली के चुनाव को जीतना चाहते हैं... यह एक बड़ा विचारणीय प्रश्न है?, 
शहडोल में कोई चुनाव नहीं हो रहे इसलिए हम यहां अराजकता के आतंक को बाजारवाद की अराजकता का आतंक में  देखते हैं... 
 पारिवारिक शोक कार्यक्रम में मैं व्यस्त था उसी दौरान अमरकंटक महोत्सव चल रहा था, प्रेस के एक मित्र की टेलीफोन पर कोई संदेश दे रहा था कि किस प्रकार से नर्मदा कुंड में टीका-चंदन अथवा दीपदान की प्रक्रिया एक बड़ा प्रदूषण का कारण है....
                                 ( सभार : पत्रिका)
कुछ लोगों ने व्हाट्सएप में भी दीपदान और नर्मदा पूजन के लिए प्रायोजन किए गए टीका चंदन इत्यादी की आलोचना कर रहे है... वास्तव में यह बाजारवाद का प्रदूषण है... हमारी आस्थाओं पर ग्रहण नहीं लगाना चाहिए.... बल्कि गुणवत्ता के लिए काम होना चाहिए... हमें नहीं लगता कि नर्मदा  के पूजन से नर्मदा जल को कोई अहित होना चाहिये ...?  जब प्रकृति तत्व सिंदूर अथवा चंदन के औषधि वाले पौधे हमें उपलब्ध हैं तो क्यों बाजारवाद केमिकल युक्त सामग्री पूजन सामग्री कम से कम तीर्थ नगरी अमरकंटक के बाजार में एकाधिकार बनाए रखें इस पर किसी का चिंतन क्यों नहीं है...,
हमारी जितनी आस्था है उसका पूर्ण सम्मान होना चाहिए।
 चूंकि हमारी आस्था ही परामनोविज्ञान से संपर्क रखने का एकमात्र माध्यम है।जिसे अलग-अलग व्यक्तियों में, अलग-अलग प्रवृत्तियों में उससे अलग-अलग तरीके से परिभाषित करके देखा गया है वह स्थानीय लोक-ज्ञान का एक प्रकार है। हमें उसका सम्मान करना चाहिए। कोई व्यक्ति हजार किलोमीटर दूर से अगर दीप-दान देने के लिए नर्मदा कुंड पर आता है तो उसका अपमान करके जब आप नर्मदा कुण्ड मैं पूजन पर प्रतिबंध लगाकर बाद के नर्मदा प्रवाह क्षेत्र पर उन्हें भेजते हैं तो वास्तव में नर्मदा के साथ विलय हो जाने की उनकी चित्त्त्त वृत्ति को आप काट रहे होते हैं.... जो स्वतंत्र भारत में संविधान पर दी गई उसकेे व्यक्ति के मौलिक अधिकार की खुली अवमानना है।

 क्योंकि कड़वा सच तो यह है कि जैसे ही नर्मदा कुंड से कुछ दूर नर्मदा जी जाती हैं उन पर विशेष तौर पर "कल्याणिका स्कूल के मल मूत्र" का प्रवाह प्रारंभ हो जाता है और चूंकि, कल्याणिका का केंद्रीय स्कूल इसलिए नहीं तोड़ा जा सकता क्योंकि धार्मिक आतंकवाद का वह एक बड़ा चेहरा है.... उससे हमारे लोकतंत्र के सभी स्तंभ अपने-अपने कारणों से और अपने-अपने स्वार्थों से डरते हैं.... क्योंकि इंदौर के जीतू सोनी तथाकथित पत्रकार से नहीं डरते थे, इसलिए वह तोड़ दिया गया .....एक माफिया के नाम पर, किंतु धर्म का माफिया अमरकंटक में ठीक नर्मदा के जल प्रवाह पर अवैध कल्याणिका स्कूल बनाकर लगातार मल मूत्र प्रवाहित कर रहा है पूरा सिस्टम इस धार्मिक-आतंकवाद के सामने नतमस्तक है...! कहते हैं

 नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने अपना काम किया है, किंतु "एनजीटी" को भजता कौन है..., क्या श्री श्री रविशंकर ने दिल्ली में यमुना नदी के मामले में एनजीटी को भजा..., नहीं भजा..... शायद यही कारण है नर्मदा को नष्ट करने वाले, उसे प्रदूषित करने वाले सभी कारण बरकरार हैं.... और इसके जिम्मेदार कहे जाने वाले लोकतंत्र के सभी तंत्र वहां गुलाम है...... जब कभी कथानको में सुना जाता था कि रावण के दरबार में सभी गुलाम थे...., महिषासुर ने सभी ग्रह नक्षत्रों को गुलाम बना रखा था, तो सुनी बात लगती थी.... विश्वास नहीं होता था कि कभी ऐसा होता है....?



 किंतु चिर कुमारी नर्मदा के बाल स्वरूप उसके जन्म-स्थल पर ही उसकी दुर्दशा हो रही है .. उसे प्रौढ़ता भी नहीं प्रदान की जाए... उसी स्थान पर उसके साथ अत्याचार हो... और हमारा लोकतंत्र , नपुंसक की भांति खड़ा रहकर किसी "धार्मिक माफिया" की "अराजकता" को सम्मानित करें... इससे ज्यादा दुखद हालात क्या होंगे....?
 क्योंकि केंद्रीय मंत्री जावेडकर की माने तो, अमरकंटक में अराजकता, आतंकवाद नहीं है....,और दिल्ली में यही अराजकता को  आतंकवाद का चेहरा मानते हैं..... यह राजनीति का "वैचारिक दोगलापन" है।
 हम बात कर रहे थे आस्था के साथ लगातार हो रहे बलात्कार को रोकने की। बजाय बाजारवाद की अराजकता को खत्म कैसे किया जाए जो अब आतंक बन चुकी है, और अब इस आतंक के साए में हमें यह परोसा जा रहा है की आस्था का दीपदान नर्मदा में ना करें.... तो कहां करें...

. कल्याणिका की नाली, या धर्म का माफिया अथवा आतंकवादियों की नाली  में चलिए ........ दीपदान करें क्या यही है "सांस्कृतिक राष्ट्रवाद" का वास्तविक चेहरा.....?
यह एक तर्क हो गया, अब समाधान की ओर बढ़ते हैं। दो विषय हैं... एक ,शहडोल के संदर्भ में धार्मिक माफिया । एक तो शहडोल का मोहन राम मंदिर ट्रस्ट उसका भगवान मालिक है.. क्योंकि धार्मिक आतंकवाद यहां संरक्षित प्रशासन से यह एक छोटा पहलू है जिसे चुटकी बजाते ही कोई आईएएस पुरुषार्थ-धारी प्रशासक जब आएगा या कोई जब हाईकोर्ट में अवमानना की याचिका लगाएगा तो ठीक हो जाएगा.... बड़ी बात नहीं।
 किंतु दूसरा नर्मदा में दीपदान उसके पूजन का अधिकार की आस्था का सवाल बड़ा है... आप नर्मदा में दीपदान की बजाय कल्याणिका के नाली में दीपदान का जवाब कैसे करवा रहें  हैं, जो भी अपने आप को ठेकेदार मानते हैं कभी सोचा आपने नर्मदा पूजन के लिए दिया जाने वाला अथवा बिक्री किए जाने वाला सिंदूर अथवा चंदन केमिकल युक्त अमरकंटक के बाजार में ना बिकने पाए.....?  इस छोटे से बाजार में गुणवत्तापूर्ण सामग्री चाहे वह खाद्य सामग्री हो अथवा पूजन की सामग्री हो उसे बेचने के लिए प्रतिबंधित करने का कोई तरीका क्या कलेक्टर अनूपपुर या फिर कमिश्नर शहडोल अथवा वहां की नगर पालिका ने कोई ऐसा गुणवत्ता पूर्ण व्यवस्था बनाए रखने का प्रबंधन सुनिश्चित किया है....?

 शायद नहीं और वे करना भी नहीं चाहते, अमरकंटक के हित में संभवत मुख्यमंत्री के रूप में उमा भारती उसे तीर्थ नगरी घोषित करके एक अच्छा काम किया है। इसके बाद तो जैसे यह दुकान खुल गई हो राजनीति की, उसकी सुचिता, क्षेत्रीय पर्यावरण और पारिस्थितिकी की गुणवत्ता बनाए रखने में 15 साल का "हिंदुत्व के ठेकेदार" की भाजपा बुरी तरह से असफल रही है.... क्योंकि यह कभी हिंदुत्व के सनातन धर्म के लिए उसके पर्यावरण संरक्षण के लिए समर्पित ही नहीं रहे..... वे तो "हिंदुत्व ब्रांड" के आड़ में अपने स्वार्थ की और सत्ता की राजनीति के लिए काम कर रहे हैं  और यही कारण था कि गैर कानूनी तरीके से सब करोड़ो रुपए  से भी ज्यादा  मंदिर इंडस्ट्री के रूप में सर्वोदय जैन तीर्थ  के आड़ में  धर्मशाला का होटल बनाया गया  जिस अमरकंटक में  एयर कंडीशनर की जरूरत नहीं है   वहां  जगह-जगह एयर कंडीशनर इन धर्मशाला में  विलासिता के अड्डे बने हैं... !
त्याग और तपस्या  की भूमि अमरकंटक  स्वार्थ भ्रष्टाचार और अराजकता के आतंकवादियों को  की  शरण स्थली है... और  इन आतंकवादियों को संरक्षण देने वाले विधायिका और कार्यपालिका के लोग  इनके गुलाम है..... यह अलग बात है  कि यह "आई एस आई" की तरह संगठित नहीं है...,  फिर भी सफल हैं। दैनिक जनसत्ता ने  प्रकाश जावेडकर के कथन को लीड न्यूज़ बनाकर कोई गलत नहीं किया....
 क्योंकि.....
... अराजकता ही आतंकवाद है,
 और हम,
 धार्मिक आतंकवाद को भोग रहे हैं.......

भारतीय संसद महामारी कोविड और कैंसर का खतरे मे.....: उपराष्ट्रपति

  मुंबई उपराष्ट्रपति जगदीप धनकड की माने तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के  राम राज्य में और अमृतकाल के दौर में गुजर रही भारतीय लोकतंत्र का सं...