"लोकतंत्र बनाम माफियातंत्र - भाग 6"
क्योंकि अराजकता ही आतंकवाद है.....
बाजारवाद का आस्था पर हमला कितना जायज......?
मामला अमरकंटक और शहडोल के मंदिरों का....
.......( त्रिलोकीनाथ)........
नरेंद्र मोदी की राजनीति कि शैली में यह सिखाया है कि जो चीज बिकती है वह अपनी विचारधारा से बिल्कुल भी ना मिले , लेकिन बाजार में उसकी मांग है तो उसको जमकर बेचो...., महात्मा गांधी को गुजरात के नाम पर और वल्लभ भाई पटेल को ओबीसी के नाम पर वोट बैंक के बाजार पर अपना कब्जा बनाए रखने के लिए जरूरी है, इन दोनों नेताओं का महिमामंडन करना । यह एक अलग बात है कि देश की आजादी के पक्षधर यह दोनों कांग्रेस के नेता राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और उनके नेताओं के कभी लोकप्रिय नहीं रहे ।और विचारधारा तो विपरीत थी ही।
इसके बावजूद भी यदा-कदा फुलझड़ी की तरह जब मोदी के कार्यकर्ता महात्मा गांधी को या और मोदी स्वयं भी जब चाहे वह नेहरू हो अपमानित करते हैं...। तब उन्हें कोई मना नहीं करता बल्कि योजनाबद्ध तरीके से प्रोत्साहित किया जाता है ।वह कहीं भी कुछ भी गांधी अथवा नेहरू के प्रति लोक आस्था को चोट पहुंचाते रहते हैं ।
जहां नैतिकता का, भारतीय मूल्यों का अवमूल्यन होता है। किस्सा, दिल्ली के चुनाव के वक्त अपने वोट-बैंक को साधने के चक्कर में कि अरविंद केजरीवाल आतंकवादी बताने का है...
तो राजनीतिक बाजारी उसे ठीक बताने में जुट गए हैं। और नई नई परिभाषाएं गढ़ रहे हैं। जो दूसरे मायने में तो सही है, आंशिक ही सही... किंतु जिस वक्त बात कही जा रही है, जिस स्थान पर बात कही जा रही है यानी दिल्ली के चुनाव के वक्त दिल्ली में तो गलत है.....
यही बात मेरे शहडोल के लिए कही गई होती, तो सही होती.... इसे परिस्थितिकी भी बोलते हैं। तो चलिए बताते हैं प्रकाश जावेडकर कि वह अभिव्यक्ति जिसमें उन्होंने कहा अराजकता ही आतंकवाद है.....
और दैनिक जनसत्ता ने उसे अपना लीड न्यूज़ बनाया.... दिल्ली में वोट पाने के चक्कर में अपने अनुयायियों की मूर्खता को सही प्रमाणित करना भी एक प्रकार की मूर्खता है.... किंतु जब हम शहडोल में इस भाषा को देखते हैं, यही मूर्खता हमें अभिव्यक्ति दिखाई देती है..... जैसे 2013 से मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय के निर्देश के बावजूद भी, चाहे भाजपा का शासन रहो या कांग्रेस का शासन, दोनों में ही "मोहन राम मंदिर ट्रस्ट"
के मामले में नैतिक मूल्यों के मामले में हो या प्रबंधन के मामले में अथवा उच्च न्यायालय ने जो आदेश पारित किया है इस मामले में भी.... शहडोल का प्रशासन, प्रशासनिक दक्षता दिखा पाने में असफल रहा है.... वह शहडोल नगर के संपूर्ण तथाकथित 365 तालाबों की संरचना का आदर्श मॉडल मोहनराम तालाब के उसके वास्तविक स्वरूप में हाईकोर्ट के निर्देशों के बावजूद भी प्रबंधन देने में असफल रहा है....,
"धार्मिक-माफिया" का अराजकता
याने धार्मिक आतंक
क्योंकि वहां बीते साल 8 साल से "धार्मिक-माफिया" का अराजकता का वातावरण बना हुआ है..., जिसे अक्सर मेरी समझ में धार्मिक आतंक के रूप में देखा जा सकता है.... और मंदिर में धर्म के नकाब पहनकर जो लोग गैर कानूनी तरीके से घुसकर कब्जा करे हुए हैं, मंदिर ट्रस्ट की आराजी को नष्ट-भ्रष्ट कर रहे हैं, वे अमृतसर के भिंडरावाले धार्मिक व्यक्ति की तरह ही आतंकवादी है, यह अलग बात है कि यह लोग छुपकर, लुककर अनैतिकता, भ्रष्टाचार और लूटपाट पर विश्वास करते हैं..... क्योंकि इनकी संख्या कम है। किंतु चित्रकूट की जिस पुरानी लंका की गद्दी से यह संबंध है उनके अनुयाई पर जाता है। इसलिए अपने अनुयायियों की ताकत से यह सब खुली डकैती डाल रहे हैं... यह भी धर्म की अराजकता का आतंक है। जिसका परिणाम है कि उच्च न्यायालय जबलपुर के निर्देश के बाद भी प्रशासन, "अराजकता" को संरक्षण देने को विवश है.... आदेश का पालन करा पाने पर वह लाचार है..... प्रशासन को लगता है जब उच्च न्यायालय विशेष आदेश करके, सेना को भेजकर ट्रस्ट के प्रबंधन में परिवर्तन का आदेश देगी, तब जिला प्रशासन शायद उस पर कुछ करता दिखेगा....?., अन्यथा वह लाचार है।
इसलिए यहां पर भाजपा के मंत्री प्रकाश जावेडकर कि कहीं बात ठीक बैठती है....,
किंतु दिल्ली में यह गलत है, क्योंकि यही बात वहां पर अराजकता को पैदा करने के लिए कही गई बात की तरह है। जो उनके ही कथन को प्रमाणित भी करती है की, "अराजकता ही आतंकवाद है..."
तो क्या केंद्र शासन के लोग आतंकवाद के सहारे दिल्ली के चुनाव को जीतना चाहते हैं... यह एक बड़ा विचारणीय प्रश्न है?,
शहडोल में कोई चुनाव नहीं हो रहे इसलिए हम यहां अराजकता के आतंक को बाजारवाद की अराजकता का आतंक में देखते हैं...
पारिवारिक शोक कार्यक्रम में मैं व्यस्त था उसी दौरान अमरकंटक महोत्सव चल रहा था, प्रेस के एक मित्र की टेलीफोन पर कोई संदेश दे रहा था कि किस प्रकार से नर्मदा कुंड में टीका-चंदन अथवा दीपदान की प्रक्रिया एक बड़ा प्रदूषण का कारण है....
( सभार : पत्रिका)
कुछ लोगों ने व्हाट्सएप में भी दीपदान और नर्मदा पूजन के लिए प्रायोजन किए गए टीका चंदन इत्यादी की आलोचना कर रहे है... वास्तव में यह बाजारवाद का प्रदूषण है... हमारी आस्थाओं पर ग्रहण नहीं लगाना चाहिए.... बल्कि गुणवत्ता के लिए काम होना चाहिए... हमें नहीं लगता कि नर्मदा के पूजन से नर्मदा जल को कोई अहित होना चाहिये ...? जब प्रकृति तत्व सिंदूर अथवा चंदन के औषधि वाले पौधे हमें उपलब्ध हैं तो क्यों बाजारवाद केमिकल युक्त सामग्री पूजन सामग्री कम से कम तीर्थ नगरी अमरकंटक के बाजार में एकाधिकार बनाए रखें इस पर किसी का चिंतन क्यों नहीं है...,
हमारी जितनी आस्था है उसका पूर्ण सम्मान होना चाहिए।
चूंकि हमारी आस्था ही परामनोविज्ञान से संपर्क रखने का एकमात्र माध्यम है।जिसे अलग-अलग व्यक्तियों में, अलग-अलग प्रवृत्तियों में उससे अलग-अलग तरीके से परिभाषित करके देखा गया है वह स्थानीय लोक-ज्ञान का एक प्रकार है। हमें उसका सम्मान करना चाहिए। कोई व्यक्ति हजार किलोमीटर दूर से अगर दीप-दान देने के लिए नर्मदा कुंड पर आता है तो उसका अपमान करके जब आप नर्मदा कुण्ड मैं पूजन पर प्रतिबंध लगाकर बाद के नर्मदा प्रवाह क्षेत्र पर उन्हें भेजते हैं तो वास्तव में नर्मदा के साथ विलय हो जाने की उनकी चित्त्त्त वृत्ति को आप काट रहे होते हैं.... जो स्वतंत्र भारत में संविधान पर दी गई उसकेे व्यक्ति के मौलिक अधिकार की खुली अवमानना है।
क्योंकि कड़वा सच तो यह है कि जैसे ही नर्मदा कुंड से कुछ दूर नर्मदा जी जाती हैं उन पर विशेष तौर पर "कल्याणिका स्कूल के मल मूत्र" का प्रवाह प्रारंभ हो जाता है और चूंकि, कल्याणिका का केंद्रीय स्कूल इसलिए नहीं तोड़ा जा सकता क्योंकि धार्मिक आतंकवाद का वह एक बड़ा चेहरा है.... उससे हमारे लोकतंत्र के सभी स्तंभ अपने-अपने कारणों से और अपने-अपने स्वार्थों से डरते हैं.... क्योंकि इंदौर के जीतू सोनी तथाकथित पत्रकार से नहीं डरते थे, इसलिए वह तोड़ दिया गया .....एक माफिया के नाम पर, किंतु धर्म का माफिया अमरकंटक में ठीक नर्मदा के जल प्रवाह पर अवैध कल्याणिका स्कूल बनाकर लगातार मल मूत्र प्रवाहित कर रहा है पूरा सिस्टम इस धार्मिक-आतंकवाद के सामने नतमस्तक है...! कहते हैं
नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने अपना काम किया है, किंतु "एनजीटी" को भजता कौन है..., क्या श्री श्री रविशंकर ने दिल्ली में यमुना नदी के मामले में एनजीटी को भजा..., नहीं भजा..... शायद यही कारण है नर्मदा को नष्ट करने वाले, उसे प्रदूषित करने वाले सभी कारण बरकरार हैं.... और इसके जिम्मेदार कहे जाने वाले लोकतंत्र के सभी तंत्र वहां गुलाम है...... जब कभी कथानको में सुना जाता था कि रावण के दरबार में सभी गुलाम थे...., महिषासुर ने सभी ग्रह नक्षत्रों को गुलाम बना रखा था, तो सुनी बात लगती थी.... विश्वास नहीं होता था कि कभी ऐसा होता है....?
किंतु चिर कुमारी नर्मदा के बाल स्वरूप उसके जन्म-स्थल पर ही उसकी दुर्दशा हो रही है .. उसे प्रौढ़ता भी नहीं प्रदान की जाए... उसी स्थान पर उसके साथ अत्याचार हो... और हमारा लोकतंत्र , नपुंसक की भांति खड़ा रहकर किसी "धार्मिक माफिया" की "अराजकता" को सम्मानित करें... इससे ज्यादा दुखद हालात क्या होंगे....?
क्योंकि केंद्रीय मंत्री जावेडकर की माने तो, अमरकंटक में अराजकता, आतंकवाद नहीं है....,और दिल्ली में यही अराजकता को आतंकवाद का चेहरा मानते हैं..... यह राजनीति का "वैचारिक दोगलापन" है।
हम बात कर रहे थे आस्था के साथ लगातार हो रहे बलात्कार को रोकने की। बजाय बाजारवाद की अराजकता को खत्म कैसे किया जाए जो अब आतंक बन चुकी है, और अब इस आतंक के साए में हमें यह परोसा जा रहा है की आस्था का दीपदान नर्मदा में ना करें.... तो कहां करें...
. कल्याणिका की नाली, या धर्म का माफिया अथवा आतंकवादियों की नाली में चलिए ........ दीपदान करें क्या यही है "सांस्कृतिक राष्ट्रवाद" का वास्तविक चेहरा.....?
यह एक तर्क हो गया, अब समाधान की ओर बढ़ते हैं। दो विषय हैं... एक ,शहडोल के संदर्भ में धार्मिक माफिया । एक तो शहडोल का मोहन राम मंदिर ट्रस्ट उसका भगवान मालिक है.. क्योंकि धार्मिक आतंकवाद यहां संरक्षित प्रशासन से यह एक छोटा पहलू है जिसे चुटकी बजाते ही कोई आईएएस पुरुषार्थ-धारी प्रशासक जब आएगा या कोई जब हाईकोर्ट में अवमानना की याचिका लगाएगा तो ठीक हो जाएगा.... बड़ी बात नहीं।
किंतु दूसरा नर्मदा में दीपदान उसके पूजन का अधिकार की आस्था का सवाल बड़ा है... आप नर्मदा में दीपदान की बजाय कल्याणिका के नाली में दीपदान का जवाब कैसे करवा रहें हैं, जो भी अपने आप को ठेकेदार मानते हैं कभी सोचा आपने नर्मदा पूजन के लिए दिया जाने वाला अथवा बिक्री किए जाने वाला सिंदूर अथवा चंदन केमिकल युक्त अमरकंटक के बाजार में ना बिकने पाए.....? इस छोटे से बाजार में गुणवत्तापूर्ण सामग्री चाहे वह खाद्य सामग्री हो अथवा पूजन की सामग्री हो उसे बेचने के लिए प्रतिबंधित करने का कोई तरीका क्या कलेक्टर अनूपपुर या फिर कमिश्नर शहडोल अथवा वहां की नगर पालिका ने कोई ऐसा गुणवत्ता पूर्ण व्यवस्था बनाए रखने का प्रबंधन सुनिश्चित किया है....?
शायद नहीं और वे करना भी नहीं चाहते, अमरकंटक के हित में संभवत मुख्यमंत्री के रूप में उमा भारती उसे तीर्थ नगरी घोषित करके एक अच्छा काम किया है। इसके बाद तो जैसे यह दुकान खुल गई हो राजनीति की, उसकी सुचिता, क्षेत्रीय पर्यावरण और पारिस्थितिकी की गुणवत्ता बनाए रखने में 15 साल का "हिंदुत्व के ठेकेदार" की भाजपा बुरी तरह से असफल रही है.... क्योंकि यह कभी हिंदुत्व के सनातन धर्म के लिए उसके पर्यावरण संरक्षण के लिए समर्पित ही नहीं रहे..... वे तो "हिंदुत्व ब्रांड" के आड़ में अपने स्वार्थ की और सत्ता की राजनीति के लिए काम कर रहे हैं और यही कारण था कि गैर कानूनी तरीके से सब करोड़ो रुपए से भी ज्यादा मंदिर इंडस्ट्री के रूप में सर्वोदय जैन तीर्थ के आड़ में धर्मशाला का होटल बनाया गया जिस अमरकंटक में एयर कंडीशनर की जरूरत नहीं है वहां जगह-जगह एयर कंडीशनर इन धर्मशाला में विलासिता के अड्डे बने हैं... !
त्याग और तपस्या की भूमि अमरकंटक स्वार्थ भ्रष्टाचार और अराजकता के आतंकवादियों को की शरण स्थली है... और इन आतंकवादियों को संरक्षण देने वाले विधायिका और कार्यपालिका के लोग इनके गुलाम है..... यह अलग बात है कि यह "आई एस आई" की तरह संगठित नहीं है..., फिर भी सफल हैं। दैनिक जनसत्ता ने प्रकाश जावेडकर के कथन को लीड न्यूज़ बनाकर कोई गलत नहीं किया....
क्योंकि.....
... अराजकता ही आतंकवाद है,
और हम,
धार्मिक आतंकवाद को भोग रहे हैं.......