बुधवार, 19 फ़रवरी 2020

अयोध्या का राम मंदिर ट्रस्ट.. अध्यक्ष नृत्य गोपाल महासचिव चंपत "खोदा पहाड़.., निकली चुहिया"

अयोध्या का राम मंदिर  ट्रस्ट.. 
अध्यक्ष नृत्य गोपाल महासचिव चंपत
"खोदा पहाड़.., निकली चुहिया" 
"हिंदुत्व" का प्रोडक्टमें  विराट सनातन धर्म का संपूर्ण समावेश का अभाव ...?

लालच की पोटली बना,
शेष बचे ट्रस्टी की नियुक्ति.....

(त्रिलोकीनाथ)

 दुनिया-जहां में भारत की आध्यात्मिक सनातन धर्म का आक्रामक रूप लेकर आने वाला राम मंदिर आंदोलन, अन्ना हजारे के लोकपाल आंदोलन की तरह दिखने में बड़ा आंदोलन के रूप में जरूर नहीं बना था क्योंकि लोकपाल आंदोलन भारत की आजादी के मूल्यों से जुड़ा आंदोलन था। किंतु आध्यात्मिक धरातल से और उसकी मानव मस्तिष्क को जोड़कर आक्रामक तरीके से सनातन धर्म के साक्षात ब्रह्म के अवतार भगवान राम की मनुष्य के रूप में जन्म स्थल की प्रतीक अयोध्या नगरी जहां हजारों मंदिर अपनी दुर्दशा के लिए आज भी आशा भरी नजरों से किसी चमत्कार की आशा करते हैं....
भगवान राम का जन्म स्थल बता, उस पर आस्था जगाया
वहां पर एक स्थान को भगवान राम का जन्म स्थल बताकर, उस पर आस्था जगा कर तथाकथित  गैर राजनीतिक  समूह राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के काल्पनिक स्वरूप की चाहत में अयोध्या में राम मंदिर जन्मभूमि मुक्ति के लिए इस्लाम धर्म के बाबरी मस्जिद को आतताई के रूप में दिखाकर जो आंदोलन खड़ा किया गया, उसमें हजारों लोग हिंसा के शिकार हो गए...., पूरे देश भर में नफरत का भी आंदोलन खड़ा हो गया .।सनातन धर्मी भारत के विभिन्न प्रांतों में बल्कि  संपूर्ण विश्व में रहने वाले लोगों के मन में उनके अपने भगवान के साथ जैसे गुलामी की जंजीरों को तोड़ने का मन बन गया। और चाहे अनचाहे अयोध्या में अगर भगवान राम नहीं हैं तो कहां होंगे....? आदि आदि उस व्यापक ब्रह्म के स्थापना के लिए "गर्व से कहो, हम हिंदू हैं।", "मंदिर वहीं बनाएंगे...." सैकड़ों प्रकार के ऐसे रास्ते तय किए गए जिससे आर एस एस का राजनीतिक संगठन भारतीय जनता पार्टी अंततः सत्ता पर आ गई....। हिंदू वोट बैंक को ध्रुवीकरण करने में काफी हद तक सफल रही।
ना राम का हुआ, ना रहीम का...

 यह अलग बात है जैसा कि विश्व हिंदू परिषद के डॉ तोगड़िया कहते हैं कि जिस स्वाभिमान के साथ अयोध्या के राम मंदिर को संसद में प्रस्ताव पारित करके बिल के तहत मंदिर का निर्माण होना चाहिए था, वह नहीं हो सका और माननीय उच्चतम न्यायालय के निर्देश पर हजारों  भारतीयों लोगों की खून बहाने वाला यह आंदोलन से एक ट्रस्ट निर्माण का निर्देश हुआ। किंतु जिस भारत में संपूर्ण सनातन धर्म के समावेश के रूप में मनो मस्तिष्क को जोड़कर एकत्र करने का काम संवेदनशील मुद्दे भगवान राम की जन्म स्थल को लेकर जगाया गया, उस प्रकार का नरेंद्र मोदी एवं अमित शाह के नेतृत्व में मंदिर निर्माण के लिए ट्रस्ट का समावेशी स्वरूप नहीं दिखा..... बल्कि महज एक न्यायालयीन फैसले से निर्मित किसी छोटे ट्रस्ट के लिए काम होता दिख रहा है.... एक छोटे से कमरे पर सरकार के रहम पर निर्देशित, ट्रस्टी सदस्यों का समूह और कुछ रिक्त पदों पर ट्रस्टी के निर्माण पर कोई 70 एकड़ जमीन पर ट्रस्ट का निर्माण होना सुनिश्चित हुआ है। किंतु यह ट्रस्ट से निर्मित तथाकथित भव्य राम मंदिर का निर्माण सनातन धर्म की व्यापक और भव्य समावेशी आस्था के लिए कितने लोगों को प्रवेश कर, उन्हें स्वतंत्रता से मंदिर में आस्था की जगह दे पाएगा..., कुछ कह पाना बहुत मुश्किल है..?

चारों तीर्थ के शंकराचार्य को
 स-सम्मान न्यासी भी नहीं बनाया 
 इसलिए भी क्योंकि सरकार द्वारा गठित इस ट्रस्ट में हिंदुत्व-ब्रांड के प्रोडक्ट पर यानी "श्री राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट" की प्रक्रिया पर भारत के सनातन धर्म के परंपरागत चारों तीर्थ के शंकराचार्य को स-सम्मान न्यासी भी नहीं बनाया गया है। द्वारकापुरी के शंकराचार्य स्वरूपानंद जी, जिन्हें कांग्रेस समर्थक मानकर शायद अलग रखा गया है। उन्होंने तो वकायदे लोकतंत्र के न्यायालय में इस बाबत दरवाजा खटखटाने की बात भी कर दी है। शंकराचार्य मैं सिर्फ बद्रिकाश्रम के शंकराचार्य ही प्रतीक के रूप में रखे गए हैं। जबकि पुरी और रामेश्वरम तथा द्वारिका पूरी के शंकराचार्य को अछूत बना कर दिखाया गया है। सनातन धर्म की भावनाओं का अपहरण कर राम मंदिर जन्मभूमि स्थल पर बहुचर्चित आंदोलन से निर्मित बनने वाले मंदिर निर्माण में कम से कम प्रमुख चार सनातन धर्म के शंकराचार्य का शामिल होना अत्यावश्यक इसलिए भी था ताकि दिखाने के लिए ही सही इस सत्य को स्थापित किया जा सकता है कि जो शंकराचार्य सनातन धर्म का प्रतिपादन करते थे उन्हीं की लोकतंत्र की प्रस्तुति के रूप में ब्रह्म के अवतार का यह मंदिर निर्मित किया जा रहा है।
नीव की ईट बन     दफन लौह पुरुष,जोशी, भारती तोगड़िया..
 किंतु सत्य बात यह है कि यह भगवान राम के जो ब्रह्म के अवतार थे उनसे ज्यादा 1947 के बाद सत्ता पाने के हेतु जिस उद्देश्य राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के उत्तर भारत "मात्र शाखा" के रूप में निर्माण किया जा रहा है। उसमें भी इमानदारी का अभाव झलकता है क्योंकि इस आंदोलन की बुनियाद पर जिन प्रमुख लोगों का बलिदान था चाहे वे तक्षशिला तक सनातन हिंदू धर्म की प्रतीक के रूप में आंदोलन के प्रणेता रहे लालकृष्ण आडवाणी हो या विश्व हिंदू परिषद के डॉ तोगड़िया जोकि बीएचपी प्रमुख स्वर्गीय सिंघल के उत्तराधिकारी के रूप में प्रस्तुत हुए थे अथवा लोक ज्ञान से निकली उमा भारती जैसी आंदोलनकारी आदि-आदि लोगों का समावेश भी नहीं किया गया है।
 सबसे ज्यादा समावेश के दृष्टिकोण से कभी हिंदुत्व ब्रांड के लौह पुरुष बताए जाने वाले लालकृष्ण आडवाणी का समावेश नहीं होना उनके पतन और अपमान की चरम परिणीति के रूप में देखा जा सकता है। जिसमें नरेंद्र मोदी के तथाकथित मार्गदर्शक मंडल उसमें चाहे आडवाणी हो या डॉ मुरली मनोहर जोशी अथवा अन्य कई हिंदुत्व के फायरब्रांड नेता उन्हें भी मार्गदर्शन के लिए पूछा भी नहीं गया....? क्या "मंदिर वहीं बनाएंगे ..." कल्पनाकारों को राम मंदिर की मात्र "नींव का ईट" बना कर उन्हें इतिहास में दफन कर दिया गया है....?
 इन आशंकाओं मैं जहां ना तो सनातन धर्म के व्यापक आकांक्षाओं के प्रतीक शंकराचार्य का समावेश है,  जहां हिंदुत्व ब्रांड के ब्लू नेताओं को "नींव का ईट" बना कर छोड़ दिया गया, क्या इस मंदिर को मात्र अपनी गतिविधियों को संचालित करने वाले कार्यालय की तरह 70 एकड़ का केंद्र बना कर छोड़ दिया जाएगा....? आदि आदि प्रश्न इसलिए भी खड़े होते रहेंगे, क्योंकि मल्टीनेशनल ऑर्गेनाइजेशन के भरोसे खड़ी केंद्र सरकार ने करोड़ों-करोड़ लोगों की सनातन धर्म की भावनाओं आस्थाओं का अपमान  और  राम मंदिर जन्मभूमि आंदोलन से जुड़े हजारों लोगों के खूनी बलिदान तथा तथाकथित 500 वर्षों के बाद निर्मित इस भारत भाग्य विधाता भगवान राम के अवतार के नाम पर बनने वाले मंदिर का अंत की शुरुआत कुछ इस तरह से कर दी गई है जैसे "खोदा पहाड़-निकली चुहिया..."
 "खोदा पहाड़-निकली चुहिया..."
 अभी भी वक्त है कि किसी छोटे से कमरे में राम जन्मभूमि न्यास के निर्माण की बैठक की बजाए किन्हीं शंकराचार्यओं के मठों पर इनकी बैठकों का समावेशी कार्यक्रम होने चाहिए..., चिंतन और मंथन के बाद सनातन धर्म के प्रतीक के रूप में इन्हें स्थापित करना चाहिए ।
अन्यथा

 जैसे सरदार पटेल की 3000 करोड़ की मूर्ति या फिर दीनदयाल उपाध्याय की करोड़ों की मूर्ति के चप्पल के नीचे हम गुलामी की लिए सिर झुकाते हैं

 कुछ उसी अंदाज में राम मंदिर बरसों बरस शंकराचार्य के आशा के विपरीत विवाद में नफरत की संभावनाओं को बढ़ाता रहेगा...। और अंततः इन मूर्तियों की तरह एक छोटा सा स्मारक अथवा किसी दिखने वाले आर एस एस का ब्रांच मात्र बनकर रह जाएगा ।
और वास्तव में अयोध्या के हजारों मंदिरों में एक ऐसे मंदिर नुमा केंद्र में बन जाएगा। जहां स्वतंत्रता के साथ आम सनातन धर्म के आस्था वालों का प्रवेश "सीसीटीवी" के जरिए नियंत्रित होता रहेगा...  जिसका नियंत्रण, किसी "रिमोट-कंट्रोल" के जरिए कोई अज्ञात शक्ति करती रहेगी....।
 यदि इतने लंबे चले राम जन्मभूमि आंदोलन की परिणीति पर ऐसे हस्ताक्षर होते हैं तो यह भारत के लिए सुखद तो कतई नहीं हो सकता... ।
 और जिसमें "हिंदुत्व-ब्रांड" की कंपनी के स्वयंसेवी कर्मचारियों का अपना सुख मात्र निहित हो..., जिसका एक स्वरूप बाबा रामदेव के "पतंजलि-ब्रांड" में हम देख ही रहे हैं।
 आशा करना चाहिए कि राम जन्मभूमि अयोध्या में सनातन धर्म का प्रकाश लायेगा व तथाकथित सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के लिए प्रणेता बनेगा...। 
शुभम, मंगलम..।

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