शुक्रवार, 28 फ़रवरी 2020

ए रियल स्टोरी ÷ एक था राजा, एक थी रानी ..., ( त्रिलोकीनाथ)

÷ ÷  ए रियल स्टोरी ÷
एक था राजा, एक थी रानी ...,



एक था बाघ, एक थी बाघिन
कान्हा , बिजली की खतम कहानी,
एक था राजा, एक थी रानी।
( त्रिलोकी नाथ )
इसमें कुछ झूठी बनावट नहीं है सचमुच की मानवीय त्रासदी और उसके पतन का प्रमाण है। प्रत्येक जीव में चेतना है और उसकी अपनी चित्तवृत्ति भी। यह घटना यह दर्शाती है कि यदि जीव अपने परिवेश में नहीं रहता, अपनी प्रकृति में नहीं रहता तो वह गुलामी का आदी हो जाता है।
 फिर चाहे वह जंगल का राजा बाघ हो यह जंगल की रानी बाघिन और उनकी चाहे संतानें हो। पूरा का पूरा वंश सिर्फ पल्लू पकड़ कर जीवन व्यतीत कर देता है। 
उमरिया रेलवे स्टेशन से गुजरते हुए मुझे सहसा बांधवगढ़ दो बाघों की वीडियो की याद आ गई वास्तव में यह दोनों बाघों के मां बाघ की हत्या कर दी गई थी और यह शावक वहां मिले। फिर इन शावकों का पालन पोषण बांधवगढ़ राष्ट्रीय उद्यान के एक कर्मचारी द्वारा समर्पण के साथ उसका संबंध है इन बाघों के संपर्क में कुछ ऐसा रहा कि जैसे वे घरेलू परिवार के हिस्सा, यह बाग एक का नाम कान्हा और दूसरे का नाम बिजली था। संभवतः यह दोनों आदी हो चुके थे मानवीय  चित्त वृत्तियों के और उनके जैसी रहन-सहन के।
 कहना उचित होगा कि वे जंगल की प्रकृति जो उनकी अपनी प्रकृति थी जिसके लिए उन्हें हमारे संविधान  में नियम कानून बनाकर संरक्षण देने का काम किया गया था उसे भी भूल गए थे.... क्योंकि इनका पालन-पोषण मनुष्य ने किया था। जब भी बड़े हो गए करीब 3 साल के तो उन्हें जंगल में  स्वयं अपने पैरों में खड़े होने के लिए बांधवगढ़ के जंगल में छोड़ा गया किंतु उन्हें जंगल का संघर्ष और अपने निजी जीवन शैली स्वतंत्रता और स्वच्छंदता रास नहीं आ रही थी। वह स्वयं अपने के पैरों पर खड़े होने के काबिल नहीं रह गए थे। जिससे उन्हें खतरा भी महसूस हो रहा था।
इस स्टोरी के साथ जो वीडियो दिखाया गया है स्पष्ट करता है की जीप में एक पर्दे  को पाकर 3 वर्ष का बाग कान्हा पल्लू पकड़ लेता और वे उसे छोड़ना भी नहीं चाहता। जैसे वह कहता हो, मैं मनुष्य की ग़ुलामी का गुलाम हो चुका हूं मुझे मत छोड़ो...... जंगल में ।
जबकि जंगल के कर्मचारी उसे उसके नाम कान्हा से संबोधित कर पारिवारिक सदस्य की तरह संरक्षित कर रहे होते हैं। कि कहीं उन्हें हमारी मानवीय सभ्यता से उसके दबाव में क्षति न पहुंच जाए, उसके दांत ना खराब हो जाएं और वह अन्य वनकर्मी  से संपर्क भी करते हैं यह एक समस्या है। फिर जब बाघिन बिजली वहां आती है तो कान्हा नामक बाघ उससे उलझ पड़ता है तभी, जीप में लगा पर्दे का वह पल्लू छूट जाता है और मनुष्य अपना दामन छुड़ा कर बाघ से भागता है क्योंकि ऐसी हरकत से मनुष्य को भी खतरा है और बाघ को भी।
 यही हालात जंगल की निवासी पांचवी अनुसूची क्षेत्र के आदिवासियों के साथ हो गया है वे अपनी स्वच्छंदता स्वतंत्रता और संपूर्ण बलिसालिता खो रहे हैं। उन्हें उनकी प्रकृति से दूर हटाने का पूरा षड्यंत्र अपने लाभ के लिए तथाकथित विकसित मनुष्य ने कर रखा है। वे अब विकास सील व विकसित मनुष्यों के पल्लू के गुलाम हैं..., यह होते जा रहे हैं। क्या प्रकृति की बनावट में आदिवासी क्षेत्रों के आदिवासियों की शक्ति को विकसित मनुष्य समाज विकास के नाम पर कायर बना रहा है ...इस घटना से सोचना चाहिए कि जब बाघ, जंगल का राजा अपनी मूल प्रकृति छोड़कर पल्लू पकड़ लेता है तो छोड़ना नहीं चाहता तो हम पांचवी अनुसूची का संरक्षण देकर के उन्हें उनकी प्रकृति में नहीं रहने की सभी कारणों को खत्म कर रहे हैं तब क्या होगा ....जब आदिवासी समाज कथित विकास का पल्लू  के लिए बना रह जाएगा

 ...? क्योंकि वह अपनी प्रकृति भी छोड़ चुका होगा और उसके संसाधन विकसित समाज मनुष्यों का गिरोह बनाकर खत्म कर चुका होगा.., तो बेहतर है इस बाघ कान्हा व बाघिन बिजली के पतन की कहानी से कुछ सबक ले । मध्यप्रदेश के वन विभाग मेंअन्ततः यह निर्णय लिया की कान्हा व बिजली को भोपाल मे संरक्षण देगी। और बांधवगढ़ राष्ट्रीय उद्यान से भोपाल ले आयी है। जहां जंगल के राजा-रानी, गुलामी  का जीवन व्यतीत करेंगे। 


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