बुधवार, 29 मई 2019

तालाब हैं-तो हम हैं....तालाबों के संघर्ष में हमारा क्या योगदान....जो दिखता है वही सच है.....( त्रिलोकीनाथ )

तालाब हैं-तो हम हैं....
 10 वर्ष में क्या खोया क्या पाया ....
क्या होगी समीक्षा...
 तालाबों के संघर्ष में हमारा क्या योगदान....
 जो दिखता है वही सच है.....

  (  त्रिलोकीनाथ  )
महात्मा गांधी के संदेश में तीन बंदरों का अहम रोल था ,भारत में तीन बंदरों का संदेश; बुरा मत सुनो, बुरा मत देखो और बुरा मत कहो। 21वीं सदी में कम से कम शहडोल में तालाबों के मामले में खासतौर से शासकीय और अशासकीय तालाबों के मामले में इस संदेश को हमेशा याद रखना चाहिए।
 हो सके तो भाजपा नगरपालिका को इन तीन बंदरों का भी एक चौराहा बना देना चाहिए...... जो यह संदेश दे ,किंतु संदेश बदल देना चाहिए......
 तालाबों के संदर्भ में; अच्छा मत सुनो, अच्छा मत देखो और अच्छा मत कहो........ 
ससे फायदा यह होगा कि लोगों की धारणा में हृदय परिवर्तन होगा। क्योंकि जो व्यक्ति तालाब संरक्षण के मामले में जरा भी चिंतन-मनन करते हैं, उन्हें दुख होता है.... क्योंकि पालिका परिषद अथवा जिला प्रशासन इसे विषय ही नहीं मानता ....और कभी, कम से कम 10 साल पूर्व में तत्कालीन शहडोल कमिश्नर अरुण तिवारी जी के साथ जो बैठक हुई और जो निष्कर्ष निकले उसका अनुपालन के बाद कई तालाब कुछ तो लुकाछिपी करके, मिलजुल कर तो कुछ न्यायालय के आदेशों से मरने की कगार पर आ गए..... 
क्योंकि न्यायलीन आदेश तो सिर्फ कानून की त्रुटियों को तकनीकी रूप से ठीक करने का काम करते हैं..... उन्हें तालाब संरक्षण अथवा संरक्षण न देने की तकनीकी भाषा जब तक बताई ना जाए तब तक वह उस पर टिप्पणी नहीं करते.... क्योंकि उनकी आंख में पट्टी बंधी होती है वहां पर खुला संदेश है। एक महिला न्याय का तराजू पट्टी बांधकर आंख में अपना कर्तव्य करती दिखाई देती है .............. ।
विषय भटक ना जाए इसलिए हम सीमित रहेंगे.... विगत 10 वर्षों में तत्कालीन कमिश्नर के बाद उनके संभाग में कम से कम शहडोल जिले में और बहुत कम माने तो शहडोल नगर में प्रायोगिक तौर पर इस बैठक में शहडोल से तालाब संरक्षण यह समीक्षा 10 वर्षों बाद अवश्य करनी चाहिए...... कि 10 वर्ष पूर्व कितने तालाब चिन्हित हुए और उसमें सकारात्मक तरीके से बचाने के क्या प्रयास हुए.....,?
 "जब हम सकारात्मक तरीके की बात करते हैं तो तालाब के पास पड़ोसियों उन अतिक्रमणकारियों को भी जो मेड पर बंदरों की तरह बैठ गए हैं उनका हित भी तालाब हित में कैसे जुड़ सकता है...? उनका नहीं, जो तालाब के अंदर घुस गए हैं ....क्योंकि तालाब की अवधारणा में तालाब जल ग्रहण क्षेत्र तालाब का मेड़ और तालाब में आने वाला पानी का रास्ता भी, तालाब की मेड पर लगने वाले वृक्षों के संरक्षण से होता है। अब तालाब के मेड़ पर खासतौर से शहरी तालाबों में वृक्षों की जगह अतिक्रमणकारी बंदरों ने ले लिया है, जो मनुष्य के रूप में सभ्य नागरिक की तरह रहना चाहते हैं। तो इनका हित भी सुनिश्चित करना तालाब विशेषज्ञ को देखना चाहिए...... ऐसी अपनी आदिवासी अवधारणा है....., किंतु किसी भी कीमत में तालाब जल क्षेत्र का रकबा, अतिक्रमण करने वाले लोगों को बख्शा नहीं जाना चाहिए .......।अथवा उनसे मिलकर कोई भ्रष्टाचार नहीं करना चाहिए.... कम से कम भू अभिलेखों में तो बिल्कुल नहीं.......?
 यह भाषण बाजी इसलिए जरूरी है क्योंकि कल ही हमने शहर के खाली होते तालाबों के बीच में एक भरे तालाब को भी दिखाया जो अपना जल क्षेत्र का रकबा इन अतिक्रमण कारी बंदरों के साथ लड़ता हुआ दिखता है .....और सभ्य नागरिक /सभ्य समाज का नकाब पहनकर  सब तालाब के जल क्षेत्र के रकबे पर उसे नष्ट करने का काम कर रहे होते हैं...........?
 तो जहां यह तालाब संघर्षरत हैं कम से कम जिला प्रशासन को या पालिका प्रशासन को उनके संघर्ष में साथ देना चाहिए... जो कमिश्नर की बैठक के 10 साल बाद भी होता नहीं दिखता ...? 
चलिए कुछ फोटो और डालते हैं.... इसी तालाब पर साथ ही. यह भी बताते हैं कि कैसे सुहागपुर के तालाब को बचाने के लिए जो करीब 25 एकड़ की जमीन पर अपना विस्तार चार-पांच तालाब समूहों ंंमग्रोहिहा तालाब , देवतरा , देवतरी , बड़ा तालाब , गुरु तालाब रूप में किए हुए हैं उन्हें नष्ट करने का काम हो रहा है, यह प्रशंसनीय है कि एक व्यक्ति लगातार इस लड़ाई को लड़ रहा है.... ऐसे संघर्षरत उस ब्राह्मण व डेली वेजेस पर अपनी आजीविका चलाने वाले व्यक्ति को हमारा नमन है..... यह भी एक तपस्या है, जो ब्राह्मण होने के कर्तव्य को करता दिखाई देता है।
 एक लड़ाई तो कम से कम जीत ली गई है.... ? 
कलेक्ट्रेट के ठीक सामने, आईजी हेड क्वार्टर के ठीक पीछे, और कमिश्नर ऑफिस के बगल में कहा जा सकता है..... जहां 2 तालाबों को निजी रखने में अभिलेखों में बदल दिया गया था ,वहां पर रखे पुरातत्व अवशेषों को नष्ट करने का काम हुआ .....माननीय न्यायालय मे जब याचिकाकर्ता ने बताया कि यह तालाब हैं.... तो पुनः शासकीय अभिलेख के रूप में तालाब संरक्षित करने का काम हुआ.... किंतु सिर्फ भू अभिलेखों में....?   बेहतर होता इस पर तत्काल अद्यतन स्थिति की तालाब-संरक्षण का काम होता है..... ताकि तालाब भी सुरक्षित रहें और उसके मेड पर बस चुके वृक्षों की जगह अतिक्रमण कारी बंदरों को भी कैसे सुरक्षित रखा जाए.....? यह भी देखना चाहिए। जो व्यावहारिक होगा ....और यह कैसे होगा.... मंथन करना चाहिए ....?  
सिर्फ कलाकार कलम चला कर, पिंड छुड़ा लेना कि यह तालाब हैं..., तालाब को, "पुनः मुसक: भव" के अंदाज पर श्राप देना, प्रशासन मे भी उस मूर्ति के प्रति प्रतिबद्धता दिखाता है... जो हमारी न्यायपालिका में "तराजू लेकर आंख में पट्टी बांध दी दिखती है"..,?
 इससे बचना चाहिए प्रशासन को व्यावहारिक पक्ष के साथ लोकहित सुनिश्चित करने का दायित्व निभाने का तरीका क्या आ सकता है.... यह हमारे लिए वर्तमान का बड़ा संघर्ष है.... फिर भी आशा पर आकाश टिका है की स्वास तंत्र कब टूटे.... जब तक तालाब की अंतिम सांस बची है तब तक प्रयास करने में कोई नुकसान नहीं है.....
 कम से कम हमारी आदमीयत..., हमारी इंसानियत और हमारी शैक्षणिक-दक्षता... अगर भ्रष्टाचार से पूरी तरह से नष्ट-भ्रष्ट नहीं हो गई है....? अथवा हमने अपना ईमान पर्यावरण संरक्षण के संदर्भ में पूरी तरह से  बेच नहीं दिया है तो.... हमें जरूर थोड़ा सा ही सही, मंथन करना चाहिए..........?
 आखिर हम है तो आदमी ही, तालाब हैं-तो हम हैं.............. हो सकता है हमारा ट्रांसफर हो जाए ...,किंतु जहां भी जाएंगे हम हैं तो आदमी ही..... वहां हमारे जैसे ही लोग बसते हैं यह सोचना चाहिए............?
 फिलहाल तो हम अपनी आदिवासी स्तर की समझ में यही सोचते हैं ........।शुभम भवेत्....

मंगलवार, 28 मई 2019

प्रदूषण मुक्त होने को तड़पता एक तालाब .....बन सकता है नया प्रयोगशाला.... ( त्रिलोकीनाथ )


प्रदूषण मुक्त होने को तड़पता एक तालाब .....
क्या विशेषज्ञ होने का वेतन पाने वालोंकी जमीर जागेगी
तालाब .....बन सकता है नया प्रयोगशाला....

 ( त्रिलोकीनाथ )
आज हम आपको सिर्फ तालाब के छायाचित्र दिखाएंगे ताकि आप यह महसूस कर सकें कि शहडोल नगर में एक ऐसा भी तालाब है जो पानी से भरा हुआ है..... यदि इस पानी का सदुपयोग करने की क्षमता शहडोल नगर पालिका या जिला प्रशासन के लोगों में है अथवा जल को शुद्धीकरण करते हुए फिल्टर कर सदुपयोग किया जाए ...., ऐसी कोई विशेषज्ञता में दक्षता रखने वाला विभाग शहडोल जिला प्रशासन के पास है, तो उसे इस तालाब को ढूंढ कर..... और इसके पानी को प्रदूषण मुक्त करते हुए सदुपयोग हेतु प्रयास करना चाहिए और स्वयं को इस बात के लिए प्रमाणिक भी करना चाहिए।जहां प्रशासन ,पालिका-प्रशासन मैं बैठे हुए लोग जो कि उच्च स्तर की शिक्षा और गुणवत्ता पूर्ण ज्ञान की डिग्री लेकर उच्च प्रशासनिक पदों पर बैठे हैं .....वह इस तालाब के प्रदूषित जल को




प्रदूषण मुक्त करते हुए स्वयं को यह प्रमाणित भी कर सकते हैं .....या इस तालाब को प्रयोगशाला के रूप में प्रशिक्षित करने के दृष्टिकोण से भी विशेषज्ञ लोगों को सिद्ध करने का काम कर सकते हैं..., कि वास्तव में वह किस बात का तनख्वाह ले रहे हैं वे ऐसी कोई योग्यता या दक्षता रखते भी हैं...?, कि हां यदि प्रदूषण युक्त जल संग्रहण है तो उसे प्रदूषण मुक्त कर उपयोग किया जा सकता है...... हालांकि देश दुनिया में अलग-अलग जगह है, ऐसे दावा होते हैं किंतु शहडोल आदिवासि क्षेत्र मुख्यालय में क्या ऐसे दावों को प्रमाणित करने की कोई सोच ....., किसी प्रशासनिक अधिकारी  में स्व प्रेरणा से जागृत भी होती है .......?यह इस तालाब से प्रमाणित होगा ।

अन्यथा शहडोल का लोकतंत्र नगर पालिका प्रशासन अथवा जिम्मेदार प्रशासनिक अमला सिर्फ ढोल की पोल और भ्रष्टाचार अनुसंधान के लिए तालाबों को नगाड़े के रूप में उपयोग कर रहे हैं.... ऐसा ही प्रमाणित प्रतीत होगा? ऐसी अपनी आदिवासी स्तर की छोटी सी समझ है.......।
 देखते हैं अपनी समझ में क्या प्रशासन की समझ का समावेश हो सकता है......? अथवा हमारे आदिवासी सोच का समन्वय क्या प्रशासनिक सोच से संभव है......?
 तो देखिए तालाब के चित्रों का चित्रहार..... हां हम यह बता सकते थे कि यह चित्र कहां के हैं ,किंतु सिर्फ हमारी जिम्मेदारी हो.... यह उचित नहीं है, अन्य को भी लगना चाहिए कि यह उनका भी दायित्व है....।

गाँधी , सावरकर के आलावा इनकी लगी है संसद में फोटो....

 सांसद भवन के केंद्रीय कक्ष में लगी छायाचित्र और उनका विवरण 



महात्मा गांधी (1869-1948)
ओस्वाल्ड बिर्ले द्वारा बनाए गए महात्मा गांधी के चित्र का अनावरण 28 अगस्त 1947 को भारत की संविधान सभा के अध्यक्ष डॉ. राजेन्द्र प्रसाद द्वारा किया गया था , यह चित्र भावनगर, गुजरात के ए.पी. पट्टानी द्वारा प्रदान किया गया।

रवीन्द्रनाथ टैगोर (1861-1941)
 श्री अतुल बोस द्वारा बनाए गए गुरूदेव के इस चित्र का अनावरण भारत के तत्‍कालीन राष्‍ट्रपति, डॉ राजेन्‍द्र प्रसाद द्वारा 12 सितम्‍बर 1958 को किया गया था। यह चित्र भारत की जनता की ओर से डॉ बी.सी. राय द्वारा भेंट किया गया।
श्रीमती सरोजिनी नायडू (1879-1949)
श्री चिंतामणि कार द्वारा बनाए गए श्रीमती सरोजिनी  नायडू के इस चित्र का अनावरण भारत के तत्‍कालीन राष्‍ट्रपति,डॉ राजेन्‍द्र प्रसाद  द्वारा 16 दिसम्‍बर 1959 को किया गया था।यह चित्र लोक सभा सचिवालय द्वारा भेंट किया गया।

डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी (1901-1953)
श्री एन.एस.शुभकृष्‍ण द्वारा बनाए गए डॉ. श्‍यामा प्रसाद मुखर्जी के इस चित्र का अनावरण भारत के तत्‍कालीन राष्‍ट्रपति श्री आर. वेंकटरमन द्वारा 31 मई 1991  को किया गया था। यह  चित्र भारतीय जनता पार्टी द्वारा भेंट किया गया।


लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक (1856-1920)
यह  चित्र तिलक शताब्‍दी-महोत्‍सव समिति द्वारा भेंट किया  गया।
स्वातंत्र्यवीर विनायक दामोदर सावरकर (1883-1966)
स्‍वातंत्र्यवीर विनायक दामोदर सावरकर का व्‍यक्‍तित्‍व बहुआयामी था। यह  चित्र स्‍वातंत्र्यवीर  सावरकर राष्‍ट्रीय स्‍मारक, मुम्‍बई और स्‍वातंत्र्यवीर  सावरकर सेवा केन्‍द्र, मुम्‍बई  द्वारा भेंट किया गया
लाला लाजपत राय (1865-1928) 
श्री सतीश गुजराल द्वारा बनाए गए लाला लाजपत राय के  इस चित्र का अनावरण भारत के तत्‍कालीन प्रधानमंत्री,पंडित जवाहरलाल नेहरू द्वारा 17 नवम्‍बर,1956 को किया गया था। यह चित्र 'द सर्वेन्‍ट्स ऑफ दि पीपल सोसाइटी' द्वारा भेंट किया गया।


पंडित मोतीलाल नेहरु (1861-1931)
श्री के.एस. कुलकर्णी द्वारा बनाए गए पंडित मोतीलाल नेहरू के इस चित्र का अनावरण भारत के तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्र प्रसाद द्वारा 30 मार्च 1957 को किया गया था।  यह चित्र आगरा की पंडित मोतीलाल नेहरू पोर्ट्रेट प्रेजेन्टेशन कमेटी द्वारा भेंट किया गया। 

राजीव गांधी (1944-1991)
श्री बी. भट्टाचार्य  द्वारा बनाए गए श्री राजीव गांधी के इस चित्र का अनावरण भारत के तत्कालीन राष्ट्रपति, डॉ शंकर दयाल शर्मा द्वारा 20 अगस्त 1993 को किया गया था। यह चित्र प्रियदर्शनी अकादमी, मुम्बई द्वारा भेंट किया गया।


सरदार वल्लभभाई पटेल (1875-1950)
 श्री एन. एस. शुभकृष्ण  द्वारा बनाए गए सरदार वल्लभभाई पटेल के इस चित्र का अनावरण भारत के तत्कालीन राष्ट्रपति, डाॅ. राजेन्द्र प्रसाद द्वारा 23 अप्रैल 1958 को किया गया था। यह चित्र ग्वालियर के महाराजा द्वारा भेंट किया गया।
देशबंधु चित्तरंजन दास (1870-1925)
 श्री अतुल बोस द्वारा बनाए गए देशबन्धु चित्तरंजन दास के इस चित्र का अनावरण भारत के तत्कालीन राष्ट्रपति, डॉ. राजेन्द्र प्रसाद द्वारा 12 सितम्बर 1958 को किया गया था।यह चित्र डा. बी. सी. राय द्वारा भेंट किया गया।
मोरारजी देसाई (1896-1995)
 श्री आ.डी. पारीक द्वारा बनाए गए श्री मोरारजी देसाई के इस चित्र  का अनावरण भारत के तत्कालीन राष्ट्रपति, डॉ. शंकर दयाल शर्मा  द्वारा 15 दिसम्बर 1995 को किया गया था।यह चित्र भारतीय विद्या भवन द्वारा भेंट किया गया।
चौधरी चरण सिंह (1902-1987)
 श्रीमती ज़ेबा अमरोही द्वारा बनाए गए चौधरी चरण सिंह के इस चित्र का अनावरण भारत के तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ. शंकर दयाल शर्मा द्वारा 23 दिसम्बर 1993 को किया गया था।यह चित्र चौधरी चरण सिंह स्मारक समिति द्वारा भेंट किया गया।
मौलाना अबुल कलाम आज़ाद (1888-1958)
श्री के. के. हैबर  द्वारा बनाए गए मौलाना अबुल कलाम आज़ाद के इस चित्र का अनावरण भारत के तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्र प्रसाद द्वारा 16 दिसम्बर 1959 को किया गया था।यह चित्र सांसदाें की आज़ाद चित्र समिति द्वारा भेंट किया गया।
लाल बहादुर शास्त्री (1904-1966)
श्री विद्या भूषण  द्वारा बनाए गए श्री लाल बहादुर शास्त्री   के इस चित्र का अनावरण भारत के तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ. शंकर दयाल शर्मा द्वारा 2 अक्तूबर 1993 को किया गया था।यह चित्र लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय न्यास द्वारा भेंट किया गया |
पंडित जवाहरलाल नेहरु (1889-1964)
 श्री एस. रोरिख द्वारा बनाए गए  पंडित जवाहरलाल नेहरू के इस चित्र का अनावरण भारत के तत्कालीन राष्ट्रपति, डा. एस. राधाकृष्णन द्वारा 5 मई 1966 को किया गया था।यह चित्र सांसद श्री रघुनाथ सिंह द्वारा संसद सदस्यों की ओर से भेंट किया गया।
पंडित मदन मोहन मालवीय (1861-1946)
 श्री एस. एल. हलदंकर द्वारा बनाए गए पंडित मदन मोहन मालवीय के चित्र का अनावरण भारत  के तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्र प्रसाद द्वारा 19 दिसम्बर 1957 को किया गया था।यह चित्र महामना मालवीय स्मारक समिति द्वारा भेंट किया गया
नेताजी सुभाष चंद्र बोस (1897-1945)
श्री चिंतामणि कार  द्वारा बनाए गए नेताजी सुभाष चंद्र बोस के इस चित्र का अनावरण भारत के तत्कालीन राष्ट्रपति, डॉ नीलम संजीव रेड्डी द्वारा 23 जनवरी 1978 को किया गया था।
यह चित्र श्री समर गुहा, संसद सदस्य  द्वारा भारत की जनता की ओर से भेंट किया गया।
दादाभाई नौरोजी (1825-1917)
 श्री जे. ए. लालकाका  द्वारा बनाए गए दादाभाई नौरोजी  के इस चित्र का अनावरण भारत के तत्कालीन लोक सभा अध्यक्ष, श्री जी.वी. मावलंकर  द्वारा 13 मार्च1954 को किया गया था।
यह चित्र मुम्बई के पारसी समुदाय द्वारा भेंट किया गया।

बी.आर. अंबेडकर (14.04.1891-06.12.1956)
श्रीमती ज़ेबा अमरोही द्वारा बनाए गए डॉ. भीम राव अम्‍बेडकर के इस चित्र का  अनावरण भारत के तत्‍कालीन प्रधान मंत्री, श्री विश्‍वनाथ प्रताप सिंह द्वारा 12 अप्रैल 1990  को किया गया था। यह चित्र डॉ. भीम राव अम्‍बेडकर विचार मंच, दिल्‍ली द्वारा भेंट किया गया।
सी. राजगोपालाचारी (10.12.1878-25.12.1972)
श्री एन.एस. शुभकृष्ण द्वारा बनाए गए श्री सी. राजगोपालाचारी के इस चित्र का अनावरण भारत के तत्कालीन राष्ट्रपति, डॉ. नीलम संजीव रेड्डी द्वारा 21 अगस्त 1978 को किया गया था। यह चित्र राजाजी शताब्दी-महोत्सव समिति द्वारा भेंट किया गया। 
श्रीमती इंदिरा गांधी (19.11.1917-31.10.1984)
 श्री एस. रोरिख द्वारा बनाए गए श्रीमती इंदिरा गांधी के इस चित्र का अनावरण भारत के तत्कालीन राष्ट्रपति, श्री आर. वेंकटरमन द्वारा 19 नवंबर 1987 को किया गया था। यह चित्र इंदिरा गांधी स्मारक न्यास द्वारा भेंट किया गया। 
डॉ. राजेन्द्र प्रसाद (03.12.1884-28.02.1963)
 श्री एच.एस. त्रिवेदी द्वारा बनाए गए डॉ. राजेन्द्र प्रसाद के इस चित्र का अनावरण भारत के तत्कालीन राष्ट्रपति, डॉ. एस. राधाकृष्णन द्वारा 5 मई को किया गया था। यह चित्र, इसके चित्रकार और कांग्रेस पार्टी द्वारा भेंट किया गया।
डॉ. राममनोहर लोहिया (23.03.1910-12.10.1967)
श्री जी. आर. संतोष द्वारा बनाए गए डॉ. राममनोहर लोहिया के इस चित्र का अनावरण भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री स्व. श्री चंद्रशेखर द्वारा 30 मई 1991 को किया गया था। यह चित्र खोज परिषद द्वारा भेंट किया गया। 













सोमवार, 27 मई 2019

आचार संहिता और उनकी उड़ती धज्जियां.....?, कमिश्नर जैन की घर वापसी.."सिंहासन बत्तीसी".( त्रिलोकीनाथ )



"सिंहासन बत्तीसी"
आचार संहिता और
उनकी उड़ती धज्जियां.....?,
 कमिश्नर जैन की घर वापसी...
   

 ( त्रिलोकीनाथ )

कमिश्नर शोभित जैन का स्थानांतरण हो गया ...। कहते हैं आईएएस अधिकारी के लिए एक नीति का निर्धारण हुआ है इसमें कम से कम 2 वर्ष तक वह अपने स्थान पर बने रह सकते हैं, इसके पहले उन्हें नहीं हटाया जाएगा। यह विवाद-निष्कर्ष कब आया था, जब आए दिन आईएएस अधिकारियों को नेता-लोग कठपुतली की तरह इस्तेमाल करने लगे थे| किंतु कोई कठपुतली स्वप्रेरणा से विक्रमादित्य की कुर्सी के सिंहासन की तरह जब बोलने लगती व  उसे जाना ही पड़ता था । यह कथा अपने आप में कम से कम वर्तमान लोकतंत्र में होती दिख रही है ।
"सिंहासन बत्तीसी" नाम की कहानी का दृष्टांत इन दिनों शहडोल में लगातार घट रहा है ......। लेकिन यह अच्छी चीज है लोकतंत्र के लिए  सिंहासन की कठपुतली अपनी बात कहती तो है ....आना-जाना तो लगा ही रहता है ।कोई भी आईएएस अधिकारी जहां भी जाएगा अगर उसमें जमीर है और कर्तव्य निर्वहन की निष्ठा , तो वे अपने दृष्टिकोण से ही काम करेगें। बहुत कम अधिकारी या कठपुतलियां ऐसी होती होंगी जो काम तो स्वयं करती हैं लेकिन इतनी भयभीत होती हैं कि वे आरोप या बहाना दूसरे का लेती हैं..... स्वयं का जज्बा या साहस उनका मर चुका होता है ...बहरहाल टिप्पणी इसलिए ज्यादा जरूरी थी क्योंकि शहडोल के कमिश्नर शोभित जैन को अचानक शहडोल छोड़ने का आदेश आ गया। उन्होंने उन संभावनाओं पर अपना प्रभाव डाला और यह दिखाया कि यदि कलेक्टर वो काम नहीं कर सकता ...,जो उसे करना चाहिए और अगर कमिश्नर कर्तव्यनिष्ठ है ....,उसमें कोई सोचने की ताकत है तो वह सब कुछ कर सकता है जो उसे संवैधानिक अधिकार हैं.....
 यह पहला अवसर था की अभूतपूर्व तरीके से उन कार्यों को उच्च अधिकारी कर रहे थे जो कार्य कभी भाजपा के तानाशाही प्रशासन में सोहागपुर के एसडीएम आईएएस अधिकारी लोकेश कुमार जांगिड़ कर रहे थे... अवैध काम करने वालों के लिए ऐसे अधिकारी एक दहशत थे ...शासन को शायद यह दहशत पसंद नहीं थी ......?नाजायज लगती थी, इसलिए लोकेश कुमार जांगिड़ का स्थानांतरण किसी टुटपूंजियों , कभी सट्टा पट्टी खिलाने वाले किंतु भारतीय जनता पार्टी का पट्टा पहनकर उसके इशारे पर काम करने वाले व्यक्ति के बहाने कर दिया गया...? लोकेश कुमार जांगिड़ ने खनिज माफिया के खिलाफ जिस प्रकार की आक्रामक कार्यवाही को शुरुआत की थी उसी धारदार हथियार से अवैध काम करने वाले माफिया बन चुके लोगों की कमर तोड़ने का काम शोभित जैन के कार्यकाल कि यह यादगार मिसाल रहेगी....। यह एक अलग बात है नए कमिश्नर आईएएस अधिकारी ऐसे कार्यों को आगे बढ़ाते हैं या फिर अपने नेता की उंगली के इशारे पर कठपुतली डांस करते हैं ....?
सच पूछा जाए तो भारत की यह संवैधानिक व्यवस्था का चमत्कार ही है कि कोई अनपढ़ आदमी मंत्री या उच्च स्तर के मंत्री अथवा नियंत्रण करता मंत्री बन जाता है और उसके अधीन में कोई उच्च स्तर का आईएएस अधिकारी, आईपीएस अधिकारी उसके निर्देश को फॉलो करता है किंतु इस व्यवस्था में लोकहित और लोकतंत्र की पवित्र मनसा की भावना हमेशा काम करती रही। अब लोकहित और लोक मनसा की जगह है माफिया सर्किल ने अपना कब्जा कर लिया है और वह सिस्टम को प्रभावित करने का काम करता है.... यह अक्सर देखा गया है ।जिसके कारण प्रशासनिक व्यवस्था में अराजकता हमेशा विद्यमान रहती है ।कहीं दिखती है .......तो कहीं नहीं दिखती। और जहां नहीं दिखती वहां पर ज्यादा खतरनाक होती है। बहरहाल मिस्टर शोभित जैन के सभी सकारात्मक कार्यों से यह तो तय हो गया है की दिशा क्या होनी चाहिए... क्योंकि वे उच्च अधिकारी थे इसलिए मार्गदर्शक भी थे अब इस दिशा को जिस को तोड़ना है, छोड़ना है ...,नष्ट करना है.. या लूटना है ,वह अपना काम करें और प्रमाण पत्र ले ?
एक बात और साफ होनी चाहिए जो कि हमारे प्रधानमंत्री ने आज ही कहा की पारदर्शिता सबसे ज्यादा अहम चीज है ,शासन को अचानक इस प्रकार से कमिश्नर को हटाए जाने के मामले में कोई दिखाने का काम करना चाहिए या फिर कोई बड़ा आरोप लगाना चाहिए ताकि दिखने वाला सत्य और उसकी परछाई शासन की कार्यप्रणाली को प्रमाणित करें..., एक आरोप हमने भी सुना था की चूकी इलेक्शन कमिशन को सच बताया गया इसलिए शासन ने घर वापसी का फरमान सुनाया ....इतना तो तय है कि शहडोल में आचार संहिता उल्लंघन के मामले में मंत्री जी तो पहुंचे ही थे.... बाकी जो तकनीकी कमियां थी उसने भ्रामक परिस्थितियां बनाएं.... और उन सब परिस्थितियों को ठीक  उसी प्रकार से बताना ,जैसा कि था बताना जरूरी था, ना तो उससे कम और ना ही ज्यादा........ क्यों की बात मीडिया में आधीअधूरी  ही सही फैल चुकी थी। निर्णय  इलेक्शन कमिशन को लेना था,  ऊपर जो भी दबाब बना यह तो कमीशन ही जाने ...? बहरहाल जब तक वैज्ञानिक रूप से पुष्ट ना हो जाए कलेक्टर का स्थानांतरण अनिर्णय का प्रतीक था। और यह बात उतनी ही सही है या दिखने वाला सच है जितना की वर्तमान  कमिश्नर शोभित जैन का स्थानांतरण का निर्णय!
 हमारा लोकतंत्र इसीलिए कहीं ना कहीं फेल हो रहा है ...क्योंकि हम अपनी आचार संहिताओं का पालन नहीं करते हैं...।अब चुनाव के दौरान आए  कलेक्टर शेखर वर्मा को ही  लीजिए ,कहते हैं इनका रिटायरमेंट भी करीब है तो क्या हम इतने " इनटॉलेरेंस-प्रकृति" के हो चुके हैं...?, हो सकता है शेखर वर्मा साहब की अपनी सहमति रही है....  बावजूद इनके हमारी आदिवासी स्तर की समझ तो यही कहती है कि अगर वे कलेक्टर से रिटायर हुए होते तो बात कुछ और होती..., बहरहाल  "हुआ सो हुआ" उनके भविष्य के लिए बहुत-बहुत शुभकामनाएं|..
 यदि कोई आचार संहिता आईएएस अधिकारियों के मामले में कि 2 वर्ष तक उन्हें नहीं हटाया जाएगा बन गई है तो उसका पालन करना चाहिए ।अपनी तो ऐसी ही आदिवासी स्तर की समझ है.....। बाकी बुद्धिमानों की तो पूरी फौज है , क्या कहा जा सकता है ....?
कोई बड़ा बुद्धिमान अपनी छोटी बुद्धि का बड़ा  इस्तेमाल कर बैठा...?
 बहरहाल यदि निर्णय गलत हुआ है किंतु इसकी भरपाई इसमें नहीं की जा सकती की स्थानांतरण रद्द कर दिया जाए... जैसा कि अक्सर देखा जाता है.... बल्कि तत्कालीन कमिश्नर के लोकहित और प्रशासनिक दायित्व कर्तव्य पूर्ति में किए गए सर्वोच्च प्राथमिकता वाले कार्यों का अनवरत चलते रहना..... बजाय किसी माफिया को पालने के,   उस के निर्देश पर अथवा उसके हित में लोक हित के कार्यों को रोक देना गलत होगा और इस प्रकार के स्थानांतरण का पाप का प्रायश्चित किया जा सकता है ।
किंतु सवाल यह है कि क्या हम अपने गंगा को साफ करने के प्रति कोई सोच रखते भी हैं अगर है तो निश्चित तौर पर वह आगे दिखेगा और नहीं तो  " राम तेरी गंगा मैली हो गई " राज कपूर की बनाई गई फिल्म वर्तमान लोकतंत्र पर परफेक्ट फिट होती है|   शुभम.....

यह होंगे शहडोल के नये कमिश्नर । कलेक्टर भी बदले गए

यह हुए बड़े फेरबदल 

शहडोल । चुनाव के बाद वापस से प्रशासनिक अमले में एक नई तब्दीली देखी गई जहां शहडोल में श्री ललित दाहिमा जी  की घर वापसी हुई वही छिंदवाड़ा श्री श्रीनिवास शर्मा  कलेक्टर की भी घर वापसी हुई ।
वर्तमान कमिश्नर श्री शोभित जैन जी को सचिव मध्यप्रदेश शाशन एवं शहडोल कमिश्नर के तौर पर श्री आर बी प्रजापति जी को बनाया गया है ।

शुक्रवार, 24 मई 2019

भरतीय चुनाव , उनके नतीजे और निष्कर्ष ।


                    भारतीय चुनाव 1920 से 2019 


1920  का चुनाव :
ब्रिटिशकालीन भारत में सन १९२० में इम्पीरियल लेजिस्लेटिव काउन्सिल तथा प्रान्तीय काउन्सिलों के लिए चुनाव हुए थे। भारत के आधुनिक युग के इतिहास में वह पहला चुनाव थे।

महात्मा गांधी ने इस चुनाव के बहिष्कार का आह्वान किया था किन्तु उसका बहुत कम प्रभाव दिखा।


Indian general election, 1920


19201923 →

104 seats contested
Hari Singh Gour.jpg
LeaderHari Singh Gour
PartyDemocratic Party
Seats won48
1923  के चुनाव : १९२३ के चुनाव  प्रमुख पार्टिया थी मोतीलाल नेहरू के नेतृत्व में स्वराज पार्टी और इंडियन लिबरल पार्टी जिसमे सराज पार्टी ने ३८ सीट में जीत हासिल की 
 1926  के चुनाव : मोती लाल नेहरू के नेतृत्व में लड़ा हुआ यह दूसरा चुनाव था जिसमे मोती लाल नेहरू द्वारा नेतृत्व की हुई स्वराज पार्टी ने दोबारा ३८ सीटों में   जीत हासिल की किन्तु इस बार उनके प्रतिद्वंदी मदन मोहन मालवीय जी रहे। 





1930 के चुनाव : १९३० में हुए इस चुनाव का बाहिष्कार कांग्रेस पार्टी ने किया था।
हरिसिंह गौर के नेतृत्व में नेशनलिस्ट पार्टी ने ४० सीट अर्जित कर प्रथम पायदान में रही।


1934  के आम चुनाव : १९३४ के चुनाव वो पहले चुनाव थे जिसमे कांग्रेस पार्टी सर्वाधिक सीट भूलाभाई देसाई के नेतृत्व में  प्राप्त की। इस चुनाव में कुल १४७ सीट पे चुनाव लड़ा गया था  से ४२ इंडियन नेशनल कांग्रेस ने जीती थी। 










1945 के आम चुनाव : भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस 102 निर्वाचित सीटों में से 59 सीटें जीतकर सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी। मुस्लिम लीग ने सभी मुस्लिम निर्वाचन क्षेत्रों को जीता, लेकिन किसी भी अन्य सीटों को जीतने में विफल रही। बची हुई 13 सीटों में से 8 यूरोपियन, 3 निर्दलीय, और 2 अकाली उम्मीदवारों के साथ पंजाब की सिख सीटों पर गई। 1946 में प्रांतीय एक के साथ हुआ यह चुनाव जिन्ना और विभाजनवादियों के लिए एक रणनीतिक जीत साबित हुआ। कांग्रेस के जीतने के बावजूद, लीग ने मुस्लिम वोट को एकजुट किया था और इस तरह से एक अलग मुस्लिम मातृभूमि की तलाश करने के लिए बातचीत करने की शक्ति प्राप्त हुई क्योंकि यह स्पष्ट हो गया कि एक अखंड भारत अत्यधिक अस्थिर साबित होगा। निर्वाचित सदस्यों ने बाद में भारत की संविधान सभा का गठन किया।


Indian general election, 1951


← 194525 October 1951 to 21 February 19521957 →

All 489 seats in the Lok Sabha
245 seats were needed for a majority
Jnehru.jpgBundesarchiv Bild 183-57000-0274, Berlin, V. SED-Parteitag, 3.Tag.jpg
LeaderJawaharlal NehruShripad Amrit Dange
PartyINCCPI
Leader's seatPhulpurBombay City North
Seats won36416
Popular vote47,665,8753,484,401
Percentage44.99%3.29%
1951 के आम चुनाव: अगस्त १९४७ में भारत के स्वतन्त्र होने के बाद, पहली लोक सभा का निर्वाचन किया।1950 में संविधान लागू होने के बाद 1951 में देश में पहली बार आम चुनाव हुए, जो 1952 तक चले. अक्टूबर 1951 में आम चुनाव की प्रक्रिया शुरू हुई जो पांच महीने तक चली और फरवरी 1952 में खत्म हुई. पहली बार जब चुनाव हुए तो कुल 4500 सीटों के लिए वोट डाले गए, इनमें से 489 लोकसभा की और बाकी विधानसभा सीटें थीं। 1951 के आम चुनाव में 14 राष्ट्रीय पार्टी, 39 राज्य स्तर की पार्टी और निर्दलीय उम्मीदवारों ने किस्मत आज माई. इन सभी दलों के कुल 1874 प्रत्याशी अपनी किस्मत आजमा रहे थे. राष्ट्रीय पार्टियों में मुख्य तौर पर कांग्रेस, सीपीआई, भारतीय जनसंघ और बाबा साहेब अंबेडकर की पार्टी शामिल थी. इसके अलावा भी अकाली दल, फॉरवर्ड ब्लॉक जैसी पार्टियां चुनाव(General Election) में शामिल हुई थीं.
लोकसभा की 489 सीटों में से 364 कांग्रेस के खाते में गई थीं, यानी जवाहर लाल नेहरू की अगुवाई में कांग्रेस को संपूर्ण बहुमत मिला था. कांग्रेस के बाद सीपीआई दूसरी सबसे बड़ी पार्टी बनी जिसे 16 सीटें मिलीं, सोशलिस्ट पार्टी को 12 और 37 सीटों पर निर्दलीयों ने जीत दर्ज की थी. भारतीय जनसंघ ने 94 सीटों पर चुनाव लड़ा और तीन ही सीटें जीतीं.
पहले चुनाव के दौरान कुल 17 करोड़ वोटर थे, लेकिन मतदान सिर्फ 44 फीसदी ही हुआ था. चुने गए 489 सांसदों में से 391 सामान्य, 72 एससी और 26 एसटी जाति से थे. तब मतदान करने की उम्र भी 18 साल नहीं थी, 21 साल से ऊपर के लोगों को ही वोट देने दिया जाता था.

1957  के आम चुनाव : जवाहरलाल नेहरू के नेतृत्व में, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने आसानी से सत्ता में दूसरा कार्यकाल जीता, 494 सीटों में से 371 सीटें लीं। उन्हें अतिरिक्त सात सीटें मिलीं (लोकसभा का आकार पांच से बढ़ा दिया गया था) और उनका वोट शेयर 45.0% से बढ़कर 47.8% हो गया। आईएनसी ने दूसरी सबसे बड़ी पार्टी कम्युनिस्ट पार्टी की तुलना में लगभग पांच गुना अधिक वोट जीते। इसके अलावा, 19.3% वोट और 42 सीटें निर्दलीय उम्मीदवारों के लिए गईं, जो किसी भी भारतीय आम चुनाव में सबसे ज्यादा हैं।

1962  के आम चुनाव :1962 के भारतीय आम चुनाव ने भारत की तीसरी लोकसभा का चुनाव किया और 19 से 25 फरवरी तक आयोजित किया गया। प्रत्येक निर्वाचन क्षेत्र ने एक सदस्य चुना।

जवाहरलाल नेहरू ने अपने तीसरे और अंतिम चुनाव अभियान में एक और शानदार जीत हासिल की। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने 44.7% वोट लिया और 494 सीटों में से 361 सीटें जीतीं। यह पिछले दो चुनावों की तुलना में थोड़ा कम था और वे अभी भी लोकसभा में 70% से अधिक सीटों पर थे।


1967 के आम चुनाव :इंदिरा गांधी के नेतृत्व में, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने लगातार चौथी बार सत्ता में और 54% से अधिक सीटों पर जीत हासिल की, जबकि किसी भी अन्य पार्टी ने 10% से अधिक वोट या सीटें नहीं जीतीं। हालांकि, जवाहरलाल नेहरू के नेतृत्व में पिछले तीन चुनावों में प्राप्त परिणामों की तुलना में आईएनसी की जीत काफी कम थी। 1967 तक, भारत में आर्थिक विकास धीमा हो गया था - 1961-1966 पंचवर्षीय योजना ने 5.6% वार्षिक वृद्धि का लक्ष्य दिया था, लेकिन वास्तविक विकास दर 2.4% थी। लाल बहादुर शास्त्री के तहत, 1965 के युद्ध में पाकिस्तान के साथ भारत के जीतने के बाद सरकार की लोकप्रियता बढ़ी थी, लेकिन इस युद्ध (चीन के साथ पिछले 1962 के युद्ध) ने अर्थव्यवस्था पर दबाव बनाने में मदद की थी। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में आंतरिक विभाजन उभर रहे थे और इसके दो लोकप्रिय नेता नेहरू और शास्त्री दोनों की मृत्यु हो गई थी। इंदिरा गांधी ने शास्त्री को नेता के रूप में सफल किया था, लेकिन उनके और उप प्रधान मंत्री मोरारजी देसाई के बीच दरार पैदा हो गई थी, जो 1966 के पार्टी नेतृत्व की प्रतियोगिता में उनकी प्रतिद्वंद्वी थीं।                                                                                              
 1971 के आम चुनाव :  मार्च 1971 में भारत में 5 वीं लोकसभा के लिए आम 
चुनाव हुए। 1947 में आज़ादी के बाद यह पांचवा चुनाव था। 27 भारतीय राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में 518 निर्वाचन क्षेत्रों का प्रतिनिधित्व किया गया था, जिनमें से प्रत्येक में एक ही सीट थी।  इंदिरा गांधी के नेतृत्व में, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (आर) ने एक अभियान का नेतृत्व किया, जिसने गरीबी को कम करने पर ध्यान केंद्रित किया और एक शानदार जीत हासिल की, जो पार्टी में एक विभाजन को पार कर गया और पिछले चुनाव में हारी हुई कई सीटों को फिर से हासिल कर लिया। 


1977  के आम चुनाव: सत्तारूढ़ कांग्रेस ने भारतीय आम चुनाव, 1977 में स्वतंत्र भारत में पहली बार भारत का नियंत्रण खो दिया। सत्तारूढ़ कांग्रेस पार्टी के विरोध में, जल्दबाजी में पार्टियों के जनता गठबंधन का गठन किया, जिसने 298 सीटें जीतीं। मोरारजी देसाई को नवगठित संसद में गठबंधन के नेता के रूप में चुना गया था और इस तरह 24 मार्च को भारत के पहले गैर-कांग्रेसी प्रधानमंत्री बने। कांग्रेस लगभग 200 सीटें हार गई। प्रधान मंत्री इंदिरा गांधी और उनके शक्तिशाली पुत्र संजय गांधी दोनों ने अपनी सीटें खो दीं।
प्रधान मंत्री इंदिरा गांधी ने 1975 में आपातकाल लागू करने के बाद चुनाव किया था; इसने प्रभावी रूप से लोकतंत्र को निलंबित कर दिया, विपक्ष को दबा दिया, और सत्तावादी उपायों के साथ मीडिया को नियंत्रित कर लिया। विपक्ष ने लोकतंत्र की बहाली का आह्वान किया और भारतीयों ने चुनाव परिणामों को आपातकाल के प्रतिकार के रूप में देखा।  
13. 1980  के आम चुनाव: भारत ने जनवरी 1980 में 7 वीं लोकसभा के लिए आम चुनाव आयोजित किए। जनता पार्टी गठबंधन 1977 में 6 वीं लोकसभा के चुनावों के बाद सत्ता में आया, जिसने कांग्रेस और आपातकाल के खिलाफ जनता के गुस्से की सवारी की, लेकिन इसकी स्थिति कमजोर थी। लोकसभा में केवल 295 सीटों के साथ ढीला गठबंधन बहुमत पर था और सत्ता में कभी भी मजबूत पकड़ नहीं थी।

भारतीय लोकदल के नेता चरण सिंह और जगजीवन राम, जिन्होंने कांग्रेस छोड़ दी थी, जनता गठबंधन के सदस्य थे, लेकिन वे प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई के साथ लकड़हारे थे। आपातकाल के दौरान मानवाधिकारों के हनन की जांच के लिए सरकार ने न्यायाधिकरणों की स्थापना की थी।

आखिरकार, जनता पार्टी, समाजवादियों और राष्ट्रवादियों का एक समूह, 1979 में विभाजित हो गया जब कई गठबंधन सदस्य जैसे भारतीय लोक दल और तत्कालीन समाजवादी पार्टी के कई सदस्यों ने सरकार से समर्थन वापस ले लिया। इसके बाद, देसाई ने संसद में एक विश्वास मत खो दिया और इस्तीफा दे दिया। चरण सिंह, जिन्होंने जनता गठबंधन के कुछ सहयोगियों को बरकरार रखा था, को जून 1979 में प्रधानमंत्री के रूप में शपथ दिलाई गई। कांग्रेस ने संसद में सिंह का समर्थन करने का वादा किया, लेकिन बाद में सरकार के बहुमत साबित करने के लिए सरकार द्वारा निर्धारित किए जाने से दो दिन पहले ही वापस आ गए। लोकसभा। चरण सिंह ने इस्तीफा देने के लिए मजबूर किया, जनवरी 1980 में चुनावों के लिए बुलाया और भारत के एकमात्र प्रधान मंत्री थे जिन्होंने कभी संसद का सामना नहीं किया। आम चुनावों में, इंदिरा गांधी के नेतृत्व को क्षेत्रीय क्षत्रपों की आकाशगंगा से एक बड़ी राजनीतिक चुनौती का सामना करना पड़ा और प्रमुख जनता पार्टी के नेता जैसे सत्येंद्र नारायण सिन्हा और बिहार में कर्पूरी ठाकुर, कर्नाटक में रामकृष्ण हेगड़े, शरद पवार में महाराष्ट्र, हरियाणा में देवीलाल और उड़ीसा में बीजू पटनायक। हालांकि, जनता पार्टी के नेताओं और देश में राजनीतिक अस्थिरता के बीच आंतरिक झगड़े ने इंदिरा गांधी की कांग्रेस (आई) के पक्ष में काम किया, जिसने चुनाव प्रचार के दौरान इंदिरा गांधी की मजबूत सरकार के मतदाताओं को याद दिलाया।


आगामी चुनावों में, कांग्रेस (आई) ने जनवरी 1980 में 353 लोकसभा सीटें जीतीं और जनता पार्टी, या गठबंधन से बनी रही, केवल 31 सीटें जीतीं, जबकि चरण सिंह की जनता पार्टी (सेकुलर) ने 41 सीटें जीतीं। जनता पार्टी गठबंधन बाद के वर्षों में विभाजित होता रहा लेकिन उसने 1977 में भारत के राजनीतिक इतिहास में कुछ महत्वपूर्ण स्थलों को दर्ज किया: यह भारत पर शासन करने वाला पहला गठबंधन था।
1984 के आम चुनाव : पूर्व प्रधान मंत्री, इंदिरा गांधी की हत्या के तुरंत बाद 1984 में भारत में आम चुनाव हुए थे, हालांकि असम और पंजाब में वोट 1985 तक चल रहे थे।

चुनाव राजीव गांधी (इंदिरा गांधी के पुत्र) की भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के लिए एक शानदार जीत थी, जिसने 1984 में चुनी गई 514 सीटों में से 404 और विलंबित चुनावों में 10 आगे की जीत हासिल की। दक्षिणी राज्य आंध्र प्रदेश के एक क्षेत्रीय राजनीतिक दल एन टी रामाराव की तेलुगु देशम पार्टी, 30 सीटों पर जीत हासिल करने वाली दूसरी सबसे बड़ी पार्टी थी, इस प्रकार राष्ट्रीय विपक्षी पार्टी बनने वाली पहली क्षेत्रीय पार्टी का गौरव प्राप्त किया। नवंबर में इंदिरा गांधी की हत्या और 1984 के सिख विरोधी दंगों के तुरंत बाद मतदान हुआ और भारत के अधिकांश लोगों ने कांग्रेस का समर्थन किया।


1989 के  आम चुनाव : 9 वीं लोकसभा के सदस्यों का चुनाव करने के लिए 1989 में भारत में आम चुनाव हुए। वीपी सिंह ने क्षेत्रीय पार्टियों जैसे तेलुगु देशम पार्टी, द्रविड़ मुनेत्र कड़गम, और असोम गण परिषद सहित पार्टियों के पूरे असम्बद्ध स्पेक्ट्रम को एकजुट किया, राष्ट्रीय अध्यक्ष के रू
प में NTRama राव को अध्यक्ष और वीपी सिंह को अतिरिक्त बाहरी समर्थन से संयोजक के रूप में राष्ट्रीय मोर्चा बनाया। भारतीय जनता पार्टी और भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) ने वाम मोर्चे का नेतृत्व किया उन्होंने 1989 के संसदीय चुनावों में राजीव गांधी की कांग्रेस (आई) को हराया।



1991  के आम चुनाव : 1991 में भारत में 10 वीं लोकसभा के सदस्यों के चुनाव के लिए आम चुनाव हुए थे। चुनाव का परिणाम था कि किसी भी पार्टी को बहुमत नहीं मिला, इसलिए अल्पसंख्यक सरकार (वाम दलों की मदद से भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस) का गठन किया गया, जिसके परिणामस्वरूप अगले 5 वर्षों के लिए एक स्थिर सरकार बनी, नए प्रधानमंत्री पी.वी. नरसिम्हा राव।

1996 के  चुनाव: भारत में 1996 में कांग्रेस पार्टी और भारतीय जनता पार्टी द्वारा लड़ी गई 11 वीं लोकसभा के सदस्यों के चुनाव के लिए आम चुनाव हुए थे। चुनाव का नतीजा एक त्रिशंकु संसद थी जिसमें न तो शीर्ष दो जनादेश हासिल कर रहे थे। भारतीय जनता पार्टी ने अल्पकालिक सरकार बनाई। संयुक्त मोर्चा, गैर-कांग्रेस से मिलकर, गैर भाजपा को बनाया गया और लोकसभा की 545 सीटों में से 332 सदस्यों से समर्थन प्राप्त किया, जिसके परिणामस्वरूप एच.डी. जनता दल से देवेगौड़ा भारत के 11 वें प्रधानमंत्री हैं। 11 वीं लोकसभा ने दो वर्षों में तीन प्रधानमंत्रियों का निर्माण किया और 1998 में देश को वापस चुनाव के लिए मजबूर किया। 

1998 के आम चुनाव :भारत में 1998 में आम चुनाव हुए थे, 1996 में सरकार के निर्वाचित होने के बाद और 12 वीं लोकसभा बुलाई गई थी। नए चुनावों को तब बुलाया गया जब भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (आईएनसी) ने संयुक्त मोर्चा सरकार को छोड़कर आई। के। डीआरके द्वारा राजीव गांधी की हत्या के लिए दोषी ठहराए गए श्रीलंकाई अलगाववादियों के एक जांच पैनल द्वारा सरकार से क्षेत्रीय द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (डीएमके) पार्टी को छोड़ने से इनकार करने के बाद, गुजराल। नए चुनाव के नतीजे भी अनिर्णायक थे, जिसमें कोई भी पार्टी या गठबंधन मजबूत बहुमत बनाने में सक्षम नहीं था। यद्यपि भारतीय जनता पार्टी के अटल बिहारी वाजपेयी ने प्रधानमंत्री की अपनी स्थिति को 545 में से 286 सदस्यों का समर्थन हासिल कर लिया, लेकिन सरकार 17 अप्रैल 1999 को गिर गई जब अखिल भारतीय अन्ना द्रविड़ मुनेत्र कड़गम ने अपनी 18 सीटों के साथ अपना समर्थन वापस ले लिया। । इसके कारण संसद में एक मत-अविश्वास प्रस्ताव आया, जिसमें सरकार को 272-273 (एक मत से) हार गए, जिससे 1999 में एक ताजा आम चुनाव हुआ. इसने आजादी के बाद पहली बार यह भी चिह्नित किया कि भारत में लंबे समय तक शासन करने वाली पार्टी, कांग्रेस, लगातार दो चुनावों में बहुमत हासिल करने में विफल रही
1999 के  चुनाव : भारत में 5 सितंबर और 3 अक्टूबर 1999 के बीच लोकसभा चुनाव हुए थे, खूनी और कुछ महीनों के बाद कारगिल युद्ध को याद किया गया। पहली बार, राजनीतिक दलों का एक संयुक्त मोर्चा बहुमत हासिल करने और पांच साल तक चलने वाली राष्ट्रीय सरकार बनाने में कामयाब रहा, इस प्रकार देश में राष्ट्रीय स्तर पर राजनीतिक अस्थिरता की अवधि समाप्त हो गई, जिसकी विशेषता तीन थी कई वर्षों में आम चुनाव हुए।

2004  के आम चुनाव : 13 मई को, सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और उसके गठबंधन राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन ने हार मान ली। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस, जिसने 1996 तक स्वतंत्रता से पांच साल के लिए सभी को नियंत्रित किया था, कार्यालय से आठ साल बाद रिकॉर्ड में सत्ता में लौटी थी। यह अपने सहयोगियों की मदद से 543 में से 335 से अधिक सदस्यों के एक आरामदायक बहुमत को एक साथ रखने में सक्षम था। 335 सदस्यों में कांग्रेस के नेतृत्व वाले संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन, चुनाव के बाद गठित गवर्निंग गठबंधन, और बहुजन समाज पार्टी (बीएसपी), समाजवादी पार्टी (सपा), केरल कांग्रेस (केसी) और वाम मोर्चा दोनों को बाहरी समर्थन मिला। । (बाहरी समर्थन उन दलों से समर्थन है जो गवर्निंग गठबंधन का हिस्सा नहीं हैं)। कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने नए प्रधानमंत्री बनने के लिए पूर्व वित्त मंत्री मनमोहन सिंह, एक प्रतिष्ठित अर्थशास्त्री से पूछने के बजाय नए प्रधानमंत्री बनने की घोषणा करके पर्यवेक्षकों को आश्चर्यचकित कर दिया। सिंह ने इससे पहले 1990 के दशक की शुरुआत में प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव की कांग्रेस सरकार में काम किया था, जहाँ उन्हें भारत की पहली आर्थिक उदारीकरण योजना के वास्तुकारों में से एक के रूप में देखा गया था, जिसने आसन्न राष्ट्रीय मौद्रिक संकट को रोक दिया था। इस तथ्य के बावजूद कि सिंह ने कभी भी लोकसभा सीट नहीं जीती, उनकी काफी सद्भावना थी और सोनिया गांधी के नामांकन ने उन्हें संप्रग सहयोगियों और वाम मोर्चा का समर्थन हासिल किया।
2009 के आम चुनाव : भारत में 16 अप्रैल 2009 और 13 मई 2009 के बीच पांच चरणों में 15 वीं लोकसभा के लिए आम चुनाव हुए। 714 मिलियन (यूरोपीय संघ और संयुक्त राज्य अमेरिका के मतदाताओं से बड़ा) के साथ, यह 7 अप्रैल 2014 से आयोजित भारतीय आम चुनाव 2014 तक दुनिया का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक चुनाव था। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के नेतृत्व वाले संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (UPA) ने आंध्र प्रदेश, केरल, महाराष्ट्र, राजस्थान, तमिलनाडु, उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल में मजबूत परिणामों के आधार पर बहुमत प्राप्त करने के बाद सरकार बनाई। मनमोहन सिंह 1962 में जवाहरलाल नेहरू के बाद पहले प्रधानमंत्री बने, जो एक साल का कार्यकाल पूरा करने के बाद फिर से चुने गए।यूपीए सदन के 543 सदस्यों में से 322 सदस्यों के समर्थन के साथ एक आरामदायक बहुमत लाने में सक्षम था। हालांकि यह उन 335 सदस्यों से कम है जिन्होंने पिछली संसद में यूपीए का समर्थन किया था, यूपीए की अकेले 260 सीटों की बहुलता थी, जो 14 वीं लोकसभा की 218 सीटों के विपरीत थी। बाहरी समर्थन बहुजन समाज पार्टी (बसपा), समाजवादी पार्टी (सपा), जनता दल (सेक्युलर) (जद (एस)), राष्ट्रीय जनता दल (राजद) और अन्य छोटी पार्टियों से आया है।  
2014  के आम चुनाव :परिणाम १५ मई २०१४ को घोषित किए गए, १५ मई १५ मई को १५ मई को संवैधानिक जनादेश पूरा करने से १५ दिन पहले।  मतगणना अभ्यास 989 मतगणना केंद्रों में आयोजित किया गया था।  राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन ने व्यापक जीत हासिल की, जिसमें 336 सीटें मिलीं। भाजपा ने 31.0% वोट जीते, जो आजादी के बाद से भारत में बहुमत की सरकार बनाने के लिए एक पार्टी के लिए सबसे कम हिस्सा है, जबकि एनडीए का संयुक्त वोट शेयर 38.5% था। भाजपा और उसके सहयोगियों ने 1984 के आम चुनाव के बाद सबसे बड़ी बहुमत की सरकार बनाने का अधिकार जीता और उस चुनाव के बाद यह पहली बार था कि किसी पार्टी ने अन्य दलों के समर्थन के बिना शासन करने के लिए पर्याप्त सीटें जीतीं।  भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के नेतृत्व में संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन ने 59 सीटें जीतीं,  44 (8.1%), जो कांग्रेस ने जीतीं, उसने सभी मतों का 19.3% जीता। यह एक आम चुनाव में कांग्रेस पार्टी की सबसे बुरी हार थी। भारत में आधिकारिक विपक्षी पार्टी बनने के लिए, एक पार्टी को लोकसभा में 10% सीटें (55 सीटें) हासिल करनी चाहिए; हालाँकि, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस इस संख्या को प्राप्त करने में असमर्थ थी। इस तथ्य के कारण, भारत एक आधिकारिक विपक्षी पार्टी के बिना बना हुआ है।

2019  के आम चुनाव:   इस चुनाव में प्रथम बार किसी गैर कांग्रेसी दल ने इतना बड़ा बहुमत हासिल किया।  यह दूसरा मौका होगा जब लगातार दूसरे  चुनाव में कांग्रेस बहुमत हासिल नहीं कर पायी।  
2019 Indian general election

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← members

542[note 1] (of the 545) seats in the Lok Sabha
272 seats needed for a majority
Opinion polls
Turnout67.1% (Increase0.7%)
 PM Modi Portrait(cropped).jpgRahul Gandhi (cropped).jpg
LeaderNarendra ModiRahul Gandhi
PartyBJPINC
AllianceNDAUPA
Leader since13 September 201311 December 2017
Leader's seatVaranasiAmethi (lost)
Wayanad
Last election282 seats, 31.34% (BJP)
336 seats, 38.5% (NDA)
44 seats, 19.52% (INC)
60 seats, 23% (UPA)
Seats won303 (BJP)
352 (NDA)
52 (INC)
87 (UPA)
Seat changeIncrease21 (BJP)
Increase16 (NDA)
Increase8 (INC)
Increase27 (UPA)



REFERENCE : WIKIPEDIA 




"गर्व से कहो हम भ्रष्टाचारी हैं- 3 " केन्या में अदाणी के 6000 करोड़ रुपए के अनुबंध रद्द, भारत में अंबानी, 15 साल से कहते हैं कौन सा अनुबंध...? ( त्रिलोकीनाथ )

    मैंने अदाणी को पहली बार गंभीरता से देखा था जब हमारे प्रधानमंत्री नारेंद्र मोदी बड़े याराना अंदाज में एक व्यक्ति के साथ कथित तौर पर उसके ...