"सिंहासन बत्तीसी"
आचार संहिता और
उनकी उड़ती धज्जियां.....?,

( त्रिलोकीनाथ )
कमिश्नर शोभित जैन का स्थानांतरण हो गया ...। कहते हैं आईएएस अधिकारी के लिए एक नीति का निर्धारण हुआ है इसमें कम से कम 2 वर्ष तक वह अपने स्थान पर बने रह सकते हैं, इसके पहले उन्हें नहीं हटाया जाएगा। यह विवाद-निष्कर्ष कब आया था, जब आए दिन आईएएस अधिकारियों को नेता-लोग कठपुतली की तरह इस्तेमाल करने लगे थे| किंतु कोई कठपुतली स्वप्रेरणा से विक्रमादित्य की कुर्सी के सिंहासन की तरह जब बोलने लगती व उसे जाना ही पड़ता था । यह कथा अपने आप में कम से कम वर्तमान लोकतंत्र में होती दिख रही है ।




सच पूछा जाए तो भारत की यह संवैधानिक व्यवस्था का चमत्कार ही है कि कोई अनपढ़ आदमी मंत्री या उच्च स्तर के मंत्री अथवा नियंत्रण करता मंत्री बन जाता है और उसके अधीन में कोई उच्च स्तर का आईएएस अधिकारी, आईपीएस अधिकारी उसके निर्देश को फॉलो करता है किंतु इस व्यवस्था में लोकहित और लोकतंत्र की पवित्र मनसा की भावना हमेशा काम करती रही। अब लोकहित और लोक मनसा की जगह है माफिया सर्किल ने अपना कब्जा कर लिया है और वह सिस्टम को प्रभावित करने का काम करता है.... यह अक्सर देखा गया है ।जिसके कारण प्रशासनिक व्यवस्था में अराजकता हमेशा विद्यमान रहती है ।कहीं दिखती है .......तो कहीं नहीं दिखती। और जहां नहीं दिखती वहां पर ज्यादा खतरनाक होती है। बहरहाल मिस्टर शोभित जैन के सभी सकारात्मक कार्यों से यह तो तय हो गया है की दिशा क्या होनी चाहिए... क्योंकि वे उच्च अधिकारी थे इसलिए मार्गदर्शक भी थे अब इस दिशा को जिस को तोड़ना है, छोड़ना है ...,नष्ट करना है.. या लूटना है ,वह अपना काम करें और प्रमाण पत्र ले ?
एक बात और साफ होनी चाहिए जो कि हमारे प्रधानमंत्री ने आज ही कहा की पारदर्शिता सबसे ज्यादा अहम चीज है ,शासन को अचानक इस प्रकार से कमिश्नर को हटाए जाने के मामले में कोई दिखाने का काम करना चाहिए या फिर कोई बड़ा आरोप लगाना चाहिए ताकि दिखने वाला सत्य और उसकी परछाई शासन की कार्यप्रणाली को प्रमाणित करें..., एक आरोप हमने भी सुना था की चूकी इलेक्शन कमिशन को सच बताया गया इसलिए शासन ने घर वापसी का फरमान सुनाया ....इतना तो तय है कि शहडोल में आचार संहिता उल्लंघन के मामले में मंत्री जी तो पहुंचे ही थे.... बाकी जो तकनीकी कमियां थी उसने भ्रामक परिस्थितियां बनाएं.... और उन सब परिस्थितियों को ठीक उसी प्रकार से बताना ,जैसा कि था बताना जरूरी था, ना तो उससे कम और ना ही ज्यादा........ क्यों की बात मीडिया में आधीअधूरी ही सही फैल चुकी थी। निर्णय इलेक्शन कमिशन को लेना था, ऊपर जो भी दबाब बना यह तो कमीशन ही जाने ...? बहरहाल जब तक वैज्ञानिक रूप से पुष्ट ना हो जाए कलेक्टर का स्थानांतरण अनिर्णय का प्रतीक था। और यह बात उतनी ही सही है या दिखने वाला सच है जितना की वर्तमान कमिश्नर शोभित जैन का स्थानांतरण का निर्णय!
हमारा लोकतंत्र इसीलिए कहीं ना कहीं फेल हो रहा है ...क्योंकि हम अपनी आचार संहिताओं का पालन नहीं करते हैं...।अब चुनाव के दौरान आए कलेक्टर शेखर वर्मा को ही लीजिए ,कहते हैं इनका रिटायरमेंट भी करीब है तो क्या हम इतने " इनटॉलेरेंस-प्रकृति" के हो चुके हैं...?, हो सकता है शेखर वर्मा साहब की अपनी सहमति रही है.... बावजूद इनके हमारी आदिवासी स्तर की समझ तो यही कहती है कि अगर वे कलेक्टर से रिटायर हुए होते तो बात कुछ और होती..., बहरहाल "हुआ सो हुआ" उनके भविष्य के लिए बहुत-बहुत शुभकामनाएं|..
यदि कोई आचार संहिता आईएएस अधिकारियों के मामले में कि 2 वर्ष तक उन्हें नहीं हटाया जाएगा बन गई है तो उसका पालन करना चाहिए ।अपनी तो ऐसी ही आदिवासी स्तर की समझ है.....। बाकी बुद्धिमानों की तो पूरी फौज है , क्या कहा जा सकता है ....?
कोई बड़ा बुद्धिमान अपनी छोटी बुद्धि का बड़ा इस्तेमाल कर बैठा...?
बहरहाल यदि निर्णय गलत हुआ है किंतु इसकी भरपाई इसमें नहीं की जा सकती की स्थानांतरण रद्द कर दिया जाए... जैसा कि अक्सर देखा जाता है.... बल्कि तत्कालीन कमिश्नर के लोकहित और प्रशासनिक दायित्व कर्तव्य पूर्ति में किए गए सर्वोच्च प्राथमिकता वाले कार्यों का अनवरत चलते रहना..... बजाय किसी माफिया को पालने के, उस के निर्देश पर अथवा उसके हित में लोक हित के कार्यों को रोक देना गलत होगा और इस प्रकार के स्थानांतरण का पाप का प्रायश्चित किया जा सकता है ।
किंतु सवाल यह है कि क्या हम अपने गंगा को साफ करने के प्रति कोई सोच रखते भी हैं अगर है तो निश्चित तौर पर वह आगे दिखेगा और नहीं तो " राम तेरी गंगा मैली हो गई " राज कपूर की बनाई गई फिल्म वर्तमान लोकतंत्र पर परफेक्ट फिट होती है| शुभम.....
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