गुरुवार, 12 दिसंबर 2024

समुद्री आनंद से साराबोर होंगे बिंन्ध्य के लोग..;आईलैंड (व्योहारी) के बाद अमरकंटक में सबसे बड़े रोप-वे पर्यटन में सपनों को साकार होने के लिए खुलेंगे रास्ते....?( त्रिलोकी नाथ)

 मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव 14 दिसंबर को करेंगे सरसी आइलैंड रिसोर्ट का उद्घाटन 



देश की आजादी मिले कई दशक बीत गए थे तो भी कभी विंध्य प्रदेश की राजधानी रही रीवा को छुक-छुक रेलगाड़ी का आनंद नहीं मिला था ; रीवा में रेलवे स्टेशन हुआ और रेल आई..... अब समंदर तो नहीं है इस पहाड़ी क्षेत्र में इसके बावजूद इस क्षेत्र में सी-साइट, समुद्री किनारा का आनंद अगर किसी व्यक्ति के कारण मिलने जा रहा है तो उनका नाम राजेंद्र शुक्ला है जो मध्य प्रदेश के  उपमुख्यमंत्री हैं क्योंकि उन्होंने ही यह सपना देखा था....शहडोल 1 मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव 14 दिसंबर को पर्यटन विभाग द्वारा नवनिर्मित सरसी आइलैंड रिसॉर्ट का उद्घाटन करेंगे। शहडोल जिले में बाणसागर डैम के बैकवाटर पर निर्मित यह रिसॉर्ट प्रमुख पर्यटन स्थल बांधवगढ़ नेशनल पार्क और मैहर के समीप स्थित है। यहां पहुंचने वाले पर्यटकों के लिए यह एक अनूठा अनुभव होगा। इको-सर्किट परियोजना के तहत विकसित यह स्थल क्षेत्रीय पर्यटन को बढ़ावा देने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है

प्रमुख सचिव, पर्यटन और संस्कृति विभाग एवं प्रबंध संचालक, म.प्र. टूरिज्म बोर्ड  शिव शेखर शुक्ला ने बताया कि, सरसी आइलैंड रिसॉर्ट में पर्यटकों के लिए आधुनिक सुविधाओं का ध्यान रखा गया है। यहां तीन बोट क्लब बनाए गए हैं, जो वाटर स्पोर्ट्स के रोमांचक अनुभव का अवसर देंगे। पर्यटकों के ठहरने के लिए 10 इको हट्स तैयार किए गए हैं, जहां से प्राकृतिक सुंदरता का आनंद लिया जा सकता है। खाने-पीने के शौकीनों के लिए एक आकर्षक रेस्टोरेंट की व्यवस्था की गई है। इसके साथ ही, कॉर्पोरेट और अन्य आयोजनों के लिए प्रकृति के बीच एक आधुनिक कॉन्फ्रेंस रूम भी उपलब्ध होगा। पर्यटकों की सेहत और मनोरंजन का भी ध्यान रखते हुए रिसॉर्ट में जिम, लाइब्रेरी और बच्चों के लिए प्ले एरिया बनाए गए हैं। 14 दिसंबर को होने वाले इस भव्य उद्घाटन के साथ शहडोल और इसके आसपास का क्षेत्र देशभर के पर्यटकों के लिए एक नया आकर्षण बन जाएगा।

वैसे तो पूरा बिंध्य प्रक्षेत्र ही पर्यटन की दृष्टिकोण से बहुत महत्वपूर्ण है। इसके लिए जो दृष्टि चाहिए वह वर्तमान में सरकार के पास शायद संभव हो सकी है इसीलिए जो क्षेत्र आज वीरान पड़े थे उसमें पर्यटन की संभावना विकसित की जा रही है । निश्चित रूप से यह राज्य सरकार के लिए राजस्व आय का जरिया तो बनेगी किंतु इसका एक वैश्विक नजरिया भी विकसित होगा। इसमें कोई शक नहीं है लेकिन सवाल यह है कि इस दौर में विकसित वैश्विक नजरिया और आदिवासी विशेष क्षेत्र संविधान की पांचवी अनुसूची में चिन्हित क्षेत्र में में रह रहे पिछड़े और पिछड़े भी निवासी जनों के बीच में इसका तालमेल किस प्रकार से होगा। उसे किस प्रकार से सरकार समन्वय कर आम आदिवासी को यह आभास कर सकेगी की आभासी दुनिया में ही सही आदिवासी समुदाय द्वारा अब तक संरक्षित आदिवासी विशेष क्षेत्र शहडोल अथवा सीधी क्षेत्र की विरासत आज कितनी महत्वपूर्ण उपलब्धि है । इसका लाभ इस क्षेत्र को भी किस प्रकार से मिलेगा, अगर इस सरकार विकसित कर सकेगी तो शायद पर्यटन की अन्य संभावनाओं को विकास का बड़ा केंद्र आदिवासी क्षेत्र को बनाया जा सकता है। व्योहारी क्षेत्र में इस आईलैंड को डेवलप करने की सोच उपमुख्यमंत्री राजेंद्र शुक्ला के कारण ही संभव हो सकी है।


और ऐसी ही संभावना पूर्व केंद्रीय मंत्री स्वर्गीय दलवीर सिंह कि दृष्टिकोण में अमरकंटक में भी चिन्हित की गई थी लेकिन उन्होंने तब बॉक्साइट निकलने वाले उद्योगपति के सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद इस क्षेत्र से की विदाई के वक्त हमसे कहा था कि अगर उद्योगपति अपना इंफ्रास्ट्रक्चर रोप-वे इस क्षेत्र की हित के लिए छोड़ देते हैं तो यह  संभव होता है तो पेंड्रा रोड स्टेशन से लेकर अमरकंटक का सबसे बड़ा रोपवे सेंटर होता। जिसमें पर्यटकों को प्राकृतिक वन क्षेत्र अमरकंटक क्षेत्र में आने जाने का एक बड़ा मार्ग सुलभ होता जो प्रदूषण रहित होता जो पर्यावरण और पारिस्थितिकी  के लिए वरदान होता। और विकास की संभावनाएं अगर इसे सुनिश्चित होती हैं तो यह रोमांच छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश के केंद्र में रोपवे के जरिए स्थापित सबसे बड़ा पर्यटन का केंद्र अब तक घोषित हो गया होता।

 किंतु दुर्भाग्य से आदिवासी नेता दलवीर सिंह को उनके आदिवासी समझ के साथ पिछड़ा मान लिया गया... और वक्त गुजर गया। अब वहां तरह-तरह से सड़क 2 लाइन, 4 लाइन अलग-अलग रास्तों में विकसित करके पर्यावरण और परिश्चित की को नष्ट करने के लिए जंगल काटे जा रहे हैं । जो सिर्फ अमीर आदमियों की विलासिता का परिचायक है इसका स्थानीय विकास से कोई संबंध नहीं है और आखिर वन क्षेत्र में ऐसा गैर जरूरी विकास होना क्यों चाहिए..?

और यदि अमीर आदमियों के हित के लिए भी यह हो रहा है तो हम यही चाहते हैं की अमीर आदमियों की विलासिता रोप-वे के जरिए यदि अमरकंटक पहुंचती तो इससे स्थानीय अमरकंटक की प्राकृतिक विरासत को विनाश करने से बचाया जा सकता था। ।


अभी भी संभावना जिंदा इसलिए है क्योंकि बहुत दिनों बाद एक ऐसे उपमुख्यमंत्री राजेंद्र शुक्ल को अपने भरोसेमंद नेतृत्व मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव  का विकास पूर्ण कार्यों के लिए आधार मिला हुआ है। राजेंद्र शुक्ला सबसे पहले पर्यावरण मंत्री हुआ करते थे उन्हें पर्यावरण का जो समझ है शायद उसी से आईलैंड का निर्माण भी हुआ है। बहरहाल अब  इस  प्रदेश की सबसे बड़े रूप में सेंटर पेंड्रा रोड से अमरकंटक तक का सपना जिसे कभी दलवीर सिंह ने देखा था पूरा किया जा सकता है.. पूर्व केंद्रीय मंत्री दलबीर सिंह जी एवं पूर्व सांसद श्रीमती राजेश नंदिनी की पुत्री श्रीमती हिमाद्री सिंह दोबारा सांसद बनी हुई है तो इसे अंजाम देने में केंद्र से भी कोई समस्या नहीं आने वाली है.... इस समय जो मां नर्मदा, सोन व जोहिला जैसे नदियों के लिए भी प्रकृति के साथ जीने के आदमियों के समाज का बड़ा उदाहरण बनेगा... व्योहारी क्षेत्र में आईलैंड बनने के बाद जब मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव इसका उद्घाटन कर रहे होंगे निश्चित तौर पर हमारे सपनों का संसार पर्यटन की दुनिया में कई रास्ते खुल जाएंगे... इसमें कोई शक नहीं है। देखना होगा कि हम कितनी दूर तक देख पाते हैं।

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मंगलवार, 10 दिसंबर 2024

एक ईमानदार थे अधिवक्ता राकेश चतुर्वेदी ... (त्रिलोकी नाथ)

     


  डॉ राकेश चतुर्वेदी, एडवोकेट से मेरी मुलाकात मोहन राम मंदिर ट्रस्ट विवाद के मुकदमे के संबंध में स्वर्गीय पंडित मोहन राम पांडे के वंशज स्व. हर प्रसाद जी पांडे ने  1997- 98 में न्यायालय मुकदमा के दौर पर अपने पारिवारिक अधिवक्ता के रूप में मुझे परिचय कराया था। हर प्रसाद जी पांडे, पंडित मोहन राम पांडे के परिवार की ओर से अधिकृत प्रतिनिधि थे जो मोहन मंदिर ट्रस्ट के मुकदमों को देख रहे थे। उस दौर में उनको अक्सर अपने जमुना ,अनूपपुर जिला स्थित आवास से आना जाना पड़ता था। हालांकि डॉक्टर चतुर्वेदी शहडोल राजस्व बार में तब अपने सीनियर इंद्रजीत मिश्र के साथ प्रैक्टिस भी करते थे। राकेश चतुर्वेदी के बड़े भाई साहब प्रो. राजेंद्र प्रसाद चतुर्वेदी शहडोल कॉलेज में प्रोफेसर थे वर्तमान में वह वे अवधेश प्रताप सिंह विश्वविद्यालय में प्रोफेसर हैं। उनके छोटे भाई इंद्रेश चतुर्वेदी रीवा न्यायालय में अधिवक्ता है. डॉ राकेश धर्मपत्नी अनूपपुर जिले के जमुना में शिक्षक पद पर कार्यरत हैं। उनके दो पुत्री व एक पुत्र हैं। डॉ राकेश चतुर्वेदी अपने भाइयों के प्रति बहुत समर्पित थे और अपने बड़े भाई प्रोफेसर चतुर्वेदी को आदर्श मानकर उनकी हर बात को धार्मिक आदेश के रूप में देखे थे और उसका पालन करते थे उनका इस परिवारिक समझ व समरसता से भी मैं बहुत प्रभावित था जो आज के दौर में अक्सर कम परिवारों में देखने को मिलता है।

गत शुक्रवार को 59 वर्षीय राकेश बुढ़ार शहडोल मार्ग में सड़क दुर्घटना में घायल हो गए थे उन्हें बचाने के प्रयास में जबलपुर नागपुर हर संभव प्रयास किया गया किंतु गंभीर दुर्घटना के कारण डॉक्टर के दल ने जवाब दे दिया जिस कारण उन्हें रीवा मेडिकल कॉलेज में लाकर इलाज किया जा रहा था ।कल 10 दिसंबर को 10:15 में उन्होंने अंतिम सांस ली उनका अंतिम संस्कार उनके निज निवास गांव गोबरी (अमरपाटन) जिला सतना में किया गया।  

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राकेश चतुर्वेदी के निधन से मुझे एक विश्वसनीय विधिक सलाहकार का साथ छूट जाना का हमेशा कमी बनी रहेगी । उन्होंने शहडोल के मोहन राम मंदिर ट्रस्ट के विवादों को गंभीरता से जान लिया था इस कारण भी कि उनके परिजन पुरानी लंका चित्रकूट से दीक्षित थे। वे स्वयं पुरानी लंका चित्रकूट के पीठाधीश महंत बलराम प्रपन्नाचार्य जी से दीक्षित थे। इसलिए भी वह मोहन राम मंदिर ट्रस्ट के हर विवादों को गंभीरता से समझते थे। अगर मोहन राम मंदिर ट्रस्ट के न्यायालीन  विवादों में अधिवक्ता के रूप में शहडोल के स्व. बैजनाथजी शर्मा एडवोकेट की भूमिका को जब भी याद किया जाएगा डॉक्टर राकेश चतुर्वेदी के बिना वह हमेशा अधूरा रहेगा। क्योंकि पूरी पृष्ठभूमि में राकेश चतुर्वेदी ने हर जानकारी को समझने में हमें मदद की थी। मैं व्यक्तिगत तौर पर तुलनात्मक रूप में डॉक्टर राकेश चतुर्वेदी को हमेशा मंदिर विवाद की निर्णायक भूमिका में उनके निर्णय के साथ खड़ा रहा। 

उनके रोज (जमुना) अनूपपुर  में आने-जाने के कारण हर प्रसाद पांडे जी की सलाह पर तब मोहन राम मंदिर के अंदर पीछे में दो कमरे में उनके अस्थाई आवास भी बनाया। जहां उनका पूरा फर्नीचर और विधिक फाइलें रहा करती थीं ।जब भी कभी वह रुक जाते थे हमारी वहीं पर विस्तार से चर्चा होती थी। हर प्रसाद पांडे जी के सलाह पर वे मंदिर प्रांगण में अपना अस्थाई किराए का आवास बना लिए थे। उससे हर प्रसाद पांडे जी को भी बहुत मदद मिलती थी। आज भी उनका बहुत सारा पलंग फर्नीचर और फाइलें वहीं पर हैं क्योंकि समय-काल बदलने के बाद 2008 में पुरानी लंका चित्रकूट के पावर ऑफ अटॉर्नी लवकुश शास्त्री से मतातंर होने के बाद उन्होंने मंदिर प्रांगण में आना-जाना लगभग बंद कर दिया... किंतु उनका पूरा आवासीय सामान अन्य फाइलें मंदिर परिसर में ही रखा रह गया जो आज भी वहां पर रखा हुआ है.. कितना लवकुश शास्त्री ने गायब कर दिया है यह तो जब कभी मंदिर ट्रस्ट का प्रभार अगर स्वतंत्र कमेटी ले पाती है उसे स्पष्ट होगा ... बहरहाल आज यह विषय वस्तु नहीं है। 


आज का दिन डॉ राकेश चतुर्वेदी के न होने से उनकी स्मृतियों में उनके सहज व सरल स्वभाव के साथ एक ईमानदारी पूर्ण तरीके से वकालत कैसे की जाती है उसको याद करने का है। ऐसे  कम अधिवक्ता होंगे जिन्होंने नैतिकता को प्राथमिकता का तकाजा देकर अधिवक्ता के अपने पेसे को जीने का प्रयास किया है। उनके आदर्श में जिला न्यायालय में वर्तमान में नोटरी के पद पर पदस्थ अनिल मिश्रा कि वह हमेशा चर्चा करते थे। दरअसल राकेश चतुर्वेदी मूल रूप से अधिवक्ता के पेसे की बजाय शिक्षाविद के रूप में अपने को स्थापित करना चाहते थे ।उन्होंने "बैगा आदिवासी जनजाति" से आदेश प्रताप सिंह विश्वविद्यालय से पीएचडी की थी। उन्हें अक्सर सुना गया कि वह अवधेश प्रताप सिंह विश्वविद्यालय के परीक्षा कॉपियों को जांच भी करते थे। जिसमें उन्हें पारिश्रमिक मिल जाता था। उनकी सहजता और सरलता का यह प्रमाण था की शहडोल स्थित शिवम कॉलोनी के पास उनकी व उनके परिवार की करीब 45 डिसमिल जमीन में अतिक्रमणकारियों / भू माफिया ने अपनी निगाहें गड़ा दी थी। हम लोगों ने बड़ी मुश्किल से काफी जमीन पर उनका कब्जा कराया था। वह जमीन सुरक्षित कराई थी। तब भी भू माफियाओं से उनका अनबन चलता रहता था। वह न्यायालय प्रक्रिया पर बहुत विश्वास रखते थे‌ वह उसी से हर लड़ाई को जीतना चाहते थे। यह दुर्भाग्य है कि हमारी न्याय प्रक्रिया बहुत दूषित होने के साथ बेहद धीमी गति से चलने वाली एक प्रक्रिया है जिसके कारण न्याय नहीं हो पता है।


 उनकी सहजता और सरलता इस प्रकार की थी कि वह इस पर विश्वास रखते थे कि अधिवक्ता को फील्ड में जाकर के वकालत नहीं करना चाहिए उसका कार्य क्षेत्र न्यायालय का क्षेत्र के सीमा में ही सुनिश्चित होना चाहिए। ताकि लोकतांत्रिक तरीके से नई प्रक्रिया को अपनाया जा सके और ऐसा उन्होंने अपने जीवन में किया भी। यह अलग बात है कि इस कारण व्यक्तिगत तौर पर उनकी जमीन पर उन्हें भारी मुश्किल से कब्जा मिल पाया।

किंतु जहां भी उन्हें संशय होता था वह अपने बुद्धि की बजाय अपने सीनियर्स से उसे समझाना चाहते थे। मुझे याद है की एक मामले में हम सीनियर एडवोकेट खूबचंद्र जी अग्रवाल के पास गए हुए थे और राकेश चतुर्वेदी से उन्होंने पूछा कि यह प्रकरण एक-पक्षी कैसे हो गया.. बात के दौरान उसमें अधिवक्ता की लापरवाही या क्लाइंट को लेकर उसकी नाराजगी प्रदर्शित हो रही थी. तब खूब चंद्र जी अग्रवाल ने कहा कि किसी भी हालत में क्लाइंट कैसा भी हो और उसे कितनी भी नाराजगी हो अपने क्लाइंट के प्रति वफादार होना चाहिए और एक पक्षीय कार्यवाही अगर अधिवक्ता के अभाव में होती है तो यह बेहद दुखद है... डॉक्टर राकेश चतुर्वेदी ने मुझे इस बारे में करीब एक घंटा विस्तार से चर्चा किया और अधिवक्ता पेसे में उनकी बात को गांठ बांध ली थी उनकी इस सहजता और सरलता से में हमेशा उनसे प्रभावित रहता था। 


उनके ना रहने से मुझे एक विश्वसनीय मित्र, ईमानदार अधिवक्ता का अभाव हमेशा होता रहेगा। हम लगभग 28 साल साथ-साथ जीवन यात्रा में उनके साथ रहे। मेडिकल कॉलेज में हमारी भाभी यानी उनकी धर्मपत्नी ने मुझे बताया की जमुना से निकलने ते वक्त उन्होंने कहा था की मोटरसाइकिल पर ना जाएं.. क्योंकि गाड़ी बहुत तेज चलती है और वह रो पड़ी थीं.. सच में वह उनकी आत्मा की आवाज थी की कुछ अनहोनी होने वाली है.. उन्होंने अर्धांगिनी होने के नाते चेतावनी भी दी थी किंतु डॉ राकेश चतुर्वेदी की जीवन यात्रा यही तक सुनिश्चित थी.. इसलिए वह शहडोल की ओर चल पड़े थे और दुर्भाग्य से हेलमेट भी नहीं लगाया था जबकि ड्राइवर मिश्रा जी हेलमेट लगाए हुए थे। शायद इसीलिए उन्हें रफ्तार का आभास नहीं था... कहते हैं रास्ते में कोई बैल आ गया था और यह दुर्घटना हो गई. मिश्रा जी का सर बच गया क्योंकि उन्होंने हेलमेट लगाया था पीछे बैठने के कारण राकेश चतुर्वेदी इस दुर्घटना की गंभीरता से सर पर ब्लड क्लॉटिंग के कारण इतने गंभीर रूप से घायल हुए यह उनके जीवन की अंतिम यात्रा साबित हुई।

 यह अलग बात है कि हम भी उनसे कई बार काहे की जब शहडोल में जमीन है तो एक कमरा बनाकर यही रहिए किंतु उन्होंने अपने आजीविका की परिस्थितियों के चलते इस जीवन संघर्ष में यह युद्ध हार गए।

 डॉ राकेश चतुर्वेदी की निधन से शहडोल जिला अधिवक्ता संघ राजस्व बार एसोसिएशन सोहागपुर और अनूपपुर बार एसोसिएशन में शोक की लहर फैल गई।

 हमारी भी परमपिता परमात्मा से प्रार्थना है कि वह जहां भी रहे उन्हें शांति प्रदान हो ईश्वर उनके भाइयों एवं परिवार को इस वज्रघात को सहन करने की क्षमता प्रदान करें यही हमारी श्रद्धांजलि है। ओम शांति:

रविवार, 8 दिसंबर 2024

वकीलों का संघर्ष: सड़क दुर्घटना में जीवन और मृत्यु के बीच संघर्ष अधिवक्ता राकेश चतुर्वेदी

     


  राकेश जी की हालत हमें इस कड़वी सच्चाई का सामना कराती है, उनके इलाज के लिए भारी खर्च की आवश्यकता है, लेकिन न तो बार एसोसिएशन और न ही राज्य अधिवक्ता परिषद से कोई तत्काल आर्थिक सहायता अब तक उपलब्ध हो सकी है, यह स्थिति न केवल दुर्भाग्यपूर्ण है, बल्कि इस बात की ओर भी इशारा करती है कि अधिवक्ताओं के कल्याण के लिए हमारी व्यवस्थाएं कितनी कमजोर हैं।

---------------(संदीप तिवारी, एड.)---------------


राकेश चतुर्वेदी अधिवक्ता, आज नागपुर के एक अस्पताल में जीवन और मृत्यु के बीच संघर्ष कर रहे हैं,एक सड़क दुर्घटना ने न केवल उनके शारीरिक स्वास्थ्य को गंभीर चोट पहुंचाई है, बल्कि उनके परिवार और जीवन के सपनों पर भी संकट ला खड़ा किया है।हमारे समाज में वकीलों को प्रायः आर्थिक रूप से सक्षम और प्रतिष्ठित माना जाता है। लेकिन वास्तविकता इससे बिल्कुल भिन्न है, छोटे कस्बों और शहरों में काम करने वाले अधिकांश अधिवक्ता, विशेषकर युवा वकील, आर्थिक रूप से संघर्षरत होते हैं, हर केस उनकी आजीविका का साधन होता है, और ऐसे में किसी आकस्मिक घटना, जैसे दुर्घटना या बीमारी, से उबरने का कोई सुरक्षा कवच उनके पास नहीं होता।

हालांकि  तुच्छ रूप मे ही राज्य अधिवक्ता कल्याण निधि जैसी योजनाएं मौजूद हैं, लेकिन इनका लाभ उठाने की प्रक्रिया इतनी जटिल और धीमी है कि आपातकालीन स्थिति में यह बेअसर साबित है।राकेश जी जैसे अधिवक्ताओं की स्थिति पर ध्यान न देना, केवल एक व्यक्ति की पीड़ा नहीं है; यह पूरे वकालत समुदाय की असुरक्षा को दर्शाता है। हे राम, क्या होगा....?

राकेश चतुर्वेदी अधिवक्ता के साथ  घटी घटना हमारी संवेदनाओं को झकझोरती है,
सवाल यह है कि क्या हम, एक समाज और एक व्यवस्था के रूप में, उनके संघर्ष को अनदेखा करते रहेंगे, क्या "न्याय" के लिए लड़ने वाले योद्धाओं के लिए कोई न्याय होगा.............?यह घटना केवल एक हादसा नहीं है, यह हमें आत्ममंथन का मौका देती है, यदि अब भी हम नहीं जागे, तो आर्थिक रूप से कमजोर वकीलों के जीवन में कोई बदलाव नहीं आएगा।राकेश जी के जल्द स्वस्थ होने की कामना के साथ, (संदीप तिवारी एड.)

गुरुवार, 5 दिसंबर 2024

संभल से शहडोल तक..टाइगर अभी जिंदा है...? (त्रिलोकी नाथ)



 सोचा था विपक्ष के नेता हो जाने के बाद कुछ अंत्री-मंत्री जैसी संवैधानिक सुरक्षा मिल जाती होगी कि वह अपनी बात कहेगा तो उसको सुना भी जाएगा या फिर उसको कहीं भी आने-जाने की कुछ प्रधानमंत्री जैसी छूट होगी लेकिन मन बहुत दुखी हुआ क्योंकि नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी को पुलिस ने सड़क में रोक दिया कि आप संभल नहीं जा सकते, क्योंकि हम नहीं चाहते. कारण गिना  दिया.नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी फिर वही कागज का किताब वाला संविधान लेकर कुछ पत्रकारों को बताने लगे कि इसमें कुछ लिखा है जिसके कारण मैं वहां जा रहा हूं

लेकिन यह लोग मुझे नहीं जाने दे रहे हैं ..और इस प्रकार 2014 के बाद मिली आजादी में  नेता प्रतिपक्ष की हैसियत हमें उतनी ही दिखाई जितनी हमारी शहडोल में है. उससे ज्यादा कुछ नहीं... हम भी कागज लिए आदिवासी क्षेत्र में आदिवासियों की तरह भटकते रहते हैं कि यह संविधान है, यह कानून है.. इसको थोड़ा सा मानिए..

---------------- (त्रिलोकी नाथ)--------------

 लेकिन ऐसा दूर-दूर तक होता नहीं दिखता... और हो भी क्यों ना मध्यप्रदेश कोई उत्तरप्रदेश तो है नहीं की जहां दमदार मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का सूरज चमक रहा हो और जहां आदित्यनाथ नहीं है वहां पर मुझ त्रिलोकी नाथ  की क्या हैसियत.. यह बात मैं गर्व से सोच सकता हूं क्योंकि अगर मैं आदित्यनाथ के राज्य में होता तो जैसे संभल में एक मस्जिद में मंदिर होने का शक होने के कारण "चट-मंगनी पट-ब्याह" के तर्ज पर कोर्ट में याचिका गई.. कोर्ट ने सुनवाई किया... कोर्ट ने आर्डर पारित किया और पूरा प्रशासन कोर्ट के आदेश को पालन करने में शाम के ही लग गया... ऐसा कहा जाता है इतनी ईमानदारी से इतनी कर्तव्य निष्ठा जो कार्यवाही हो रही थी वह गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में योगी आदित्यनाथ जी का नाम दर्ज कर सकती थी... किंतु दुर्भाग्य..? 

 


      लेकिन यह दुर्भाग्य मध्यप्रदेश में हमारे लिए सौभाग्य बन जाता.. अगर आदित्य योगीनाथ मुख्यमंत्री होते तो मध्य प्रदेश में न्यायपालिका ने जो 2012 में आदेश पारित किया था की शहडोल के मोहन राम मंदिर ट्रस्ट मामले में "स्वतंत्र कमेटी को समस्त प्रभार दे दिए जाएं.." पूजा पाठ छोड़कर, क्योंकि वह पंडित-पुजारी का धंधा है इसलिए रोजाना की पूजा पाठ का काम पंडित पुजारी को दिया जाए बाकी पूरा काम एक स्वतंत्र कमेटी बनाकर उसको दे दिया जाए... उसे आज तक यानी 12 साल बीतने के बाद भी न्यायपालिका का वह आदेश क्रियान्वयन हो पाने  में मोहताज हो रहा है ...

अगर यही आदेश जैसा कि योगी आदित्यनाथ के उत्तर प्रदेश के संभल में हुआ हुआ होता और अगर वह हाई कोर्ट का होता तो उसे तो 12 घंटे भी नहीं लगता और आदेश की क्रियान्वयनवित हो गया होता... क्योंकि मस्जिद के अंदर मंदिर दबे होने का का मामला था.. इसलिए 24 घंटे में क्रियान्वन का प्रयास किया जा रहा था...

 बहरहाल हमारे यहां करीब 21 साल से हिंदू राज्य क सपना


साकार हो रहा है.. हिंदू सनातन धर्म को ईमानदारी पूर्ण तरीके से लागू करने का युद्ध भी इन दिनों चल रहा है.. लेकिन शहडोल के संभाग मुख्यालय स्थित मोहन राम मंदिर में 12 साल बीत जाने के बाद भी न्यायपालिका, कार्यपालिका से यह अपेक्षा नहीं कर पा रही है कि उसके आदेश का पालन हो सके... ऐसा नहीं है कि कार्यपालिका आदेश का पालन नहीं करना चाहती किंतु कहा यह जाता है कि विधायिका, न्यायपालिका के आदेश को अप्रत्यक्ष तौर पर पालन नहीं करने दे रही है... यही कारण है की 2012 का आदेश अपने पालन के लिएदर-दर ठोकर  रहा है... और जब भी कार्यपालिका में कोई ईमानदार अधिकारी स्वयं को "जिंदा हूं.." रखने का प्रयास करता है तो उसके जमीर को नेस्तनाबूद करने के लिए हिंदुओं का तथाकथित समूह धर्म का नकाब पहनकर दीवार बनकर खड़ा हो जाता है...

 और अंततः अधिकारी हथियार डाल देता है. इस बार भी वही होता दिख रहा है.. 13 जून 2024 को अंतिम बार शहडोल के अनुविभागी अधिकारी अरविंद शाह (आईएएस) ने  फिर प्रयास किया की न्यायपालिका को गर्व कर सके की कार्यपालिका अपने जिम्मेदारी को कर्तव्य निष्ठा समझकर कार्रवाई कर रही है...; और कर सकती है.. किंतु कथित रूप से विधायिका ने उसके हाथ पैर बांध दिए और वे अंततः लगभग अपराधी हो चुके समूह के सामने हथियार डाल दिए.... और 2012 का आदेश फिर एक बार ठंडे बस्ती में डाल दिया गया...


 क्योंकि जैसे संभल के प्रशासन के सामने एक भीड का सामना करने में करीब 5 आदमी की मौत हो गई इस तरह प्रशासन भयभीत होकर शहडोल की भीड़-तंत्र को चुनौती नहीं देना चाहता... क्योंकि प्रशासन को मालूम है अगर मुसलमान का भीड़-तंत्र जो मुट्ठी भर हैं वह खतरनाक है तो जो हिंदुओं का भीड़ तंत्र सत्ता में है वह उसे कहीं का नहीं छोड़ेगा... और इसी भय से आज तक मध्य प्रदेश हाई कोर्ट न्यायपालिका का आदेश विधायिका के अप्रत्यक्ष दबाव में लगभग मृत अवस्था में पड़ा हुआ है... किंतु वह मरा नहीं है क्योंकि हाई कोर्ट आदेश को आशा है कि कोई तो होगा ..जो आएगा और उसे जिंदा करके उसके अधिकार सौंप कर आदेश का पालन कर न्यायपालिका को बता सकेगा की टाइगर अभी जिंदा है…..




बुधवार, 4 दिसंबर 2024

आसमान से गिरे, यह जमीन से उगे...; लेकिन आज होगी, महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री की शपथ- (त्रिलोकी नाथ)

 


आज 5 दिसंबर है डॉन का फरमान है बॉम्बे में मीटिंग रखो वहीं पर मुख्यमंत्री कि शपथ होगी... यह बात और है कीकुर्सी में बादशाह होगा या बेगम अथवा गुलाम या फिर जोकर.... यह ताश के पत्तों से सुनिश्चित होगा.. जब पत्ता खुलेगा, मुख्यमंत्री प्रगट  हो जाएगा, कोई चिंता की बात नहीं। कभी यह सब चलचित्र में चरित्र होते थे और सिनेमा घर से आम जनता का मनोरंजन हुआ करता था। अब यह सब भारत की आर्थिक राजधानी की कड़वी सच्चाई है।प्रसिद्ध आंदोलनकारी अन्ना हजारे का कहना है "राजनीति का मतलब, पैसे से सत्ता और सत्ता से पैसा... यही होकर रह गई है। मुंबई में आज इसका प्रमाणित अवतार होगा। 

-----------(त्रिलोकी नाथ)--------------


क्योंकि उसे मालूम है की चुनाव किस नीति से जीता गया है तो जीत का सहारा उसकी कृपा से तय होना चाहिए था। लेकिन बाल ठाकरे की विचारों से निर्मित भाजपा में समर्थन दे रही पूर्व मुख्यमंत्री शिंदे की शिवसेना अभी भी ठाकरे की भाषा में विश्वास रखते हैं... अब तो खुलकर बात आ गई कि अगर गृह मंत्री का पद उन्हें मिलता है तो वह उपमुख्यमंत्री बनने को तैयार हैं जबकि मुख्यमंत्री के दावेदार देवेंद्र फडणवीस गृह मंत्रालय यानी डान की ताकत को जानते हैं.. इसलिए वह गृह मंत्रालय शिवसेना को नहीं देना चाहते; नाराज मुख्यमंत्री शिंदे बीमार हो जाते हैं और अपने गांव चले जाते हैं। एक बात और आई थी कि वित्त मंत्रालय भी शिवसेना को चाहिए लेकिन वहां तो हजारों करोड़ों रुपए के आरोपी होकर मुक्त होने वाले शरद पवार के भतीजे भाजपा को समर्थन दे रहे ।अजित पवार ने कब्जा कर रखा है कुछ तो उन्हें भी देना पड़ेगा अन्यथा महायुति का क्या मतलब.... बात भ्रष्टाचार की नैतिकता की भी है आखिर इसका भी अपना एक धर्म है. इसलिए मुख्यमंत्री पद से त्याग एकनाथ शिंदे को निर्णय नहीं करने दे पा रहा है...

बहरहाल इस तरह सब की हालत "कनक कनक ते सौ गुनी मादकता अधिकाय; या पाये बौराये नर, व पाये बौराये "की हालत में पहुंच गई है। पूरी महाराष्ट्र की सत्ताधारी राजनीति कुछ इसी चरित्र में अभिनय कर रही है और इसीलिए अकल्पनीय बहुमत सिद्ध होने के बाद भी भाजपा में मुख्यमंत्री नहीं बन पा रहा था।

 अंततः डॉन को निर्णय लेना पड़ा की पांच दिसंबर को शपथ होगा याने मुख्यमंत्री तय नहीं हुआ था और शपथ सुनिश्चित हो गया । तो चुपचाप मान जाएं नहीं तो जोकर का मुख्यमंत्री बनना तय है। अब थोड़ा सा बात इस बात की है की महाराष्ट्र भारत की आर्थिक राजधानी है तो थोड़ा वजनदार मुख्यमंत्री होना ही चाहिए... जो अपने विवेक से भी निर्णय कर सके अन्यथा मुख्यमंत्री किसी को भी बनाया जा सकता है। जैसा की अन्य राज्यों में बीजेपी करती चली आई है। उसका राजनीतिक धरातल वोट राजनीति से कोई लेना-देना नहीं है। जीतना, चुनाव का सुनिश्चित परिणाम है और जीत की गारंटी का ज्ञान "महामंत्र" भाजपा की रणनीत कारों को मालूम हो चुका है। क्योंकि लोकतंत्र सत्ता में बने रहने की जीत पर सुनिश्चित है और इस महामंत्र के बाद किसी को क्यों भ्रम होना चाहिए कि उसे क्या मांगना है। जो दिया जा रहा है उसे पर आनंद और परमानंद खोजना चाहिए। यह बात ढाई साल में भी अगर सत्ता के सहयोगी रहे शिवसेना और एनसीपी के लोग नहीं समझ पाए हैं तो उनकी गलती है।
 आज उसका भ्रम टूट जाएगा और यह सुनिश्चित हो जाएगा ताश के पत्तों की बाजीगरी का बाजीगर महाराष्ट्र से नहीं आता है, वह "संयुक्त-महाराष्ट्र" से तय होता है क्योंकि संयुक्त महाराष्ट्र में गुजरात शामिल था अगर महाराष्ट्र टूटकर अलग हो गया तो यह उसका अपराध था, इसलिए डॉन 5 दिसंबर का तारीख मुकर्रर कर दिया है... बस ताली बजाने की जरूरत है और मुख्यमंत्री प्रकट हो जाएगा यही भारतीय राजनीति का बदलाव है और कुछ नहीं....









रविवार, 1 दिसंबर 2024

"गर्व से कहो कि हम भ्रष्टाचारी हैं...?- 6" भ्रष्टाचार के लिये महायज्ञ...? ( त्रिलोकीनाथ )

        महायज्ञ 1997-1998 में सोनी टीवी पर प्रसारित एक भारतीय टेलीविजन शो यादगार टीवी सीरियल है। अनिल चौधरी द्वारा लिखित, निर्मित और निर्देशित, इस राजनीतिक नाटक में मनोहर सिंह, रोहिणी हट्टंगड़ी, गोविंद नामदेव ने अभिनय किया, जबकि अनन्या खरे, मुरली शर्मा, कुमुद मिश्रा और अन्य ने अपने लोकप्रिय भूमिका अदा की।राजनीति में भ्रष्टाचार को आम जीवन में उतरने का यह पारदर्शी चित्रण रहा करीब  25 साल बाद अब यह सांकेतिक महायज्ञ, धार्मिक महायज्ञ के रूप में भी भ्रष्टाचार को आत्मसात करने लगा है। महायज्ञ अब लोकहित के लिए ही हो यह जरूरी नहीं है यह भ्रष्टाचार के संरक्षण के लिए आतंक और भय दिखाने के लिए भी अब होने लगे हैं, इसमें कोई शक नहीं है। क्योंकि इससे प्रशासनिक अधिकारी अपने कर्तव्य को भूलकर विवाद नहीं पालना चाहते। यह सब पारदर्शी है।

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  तो बात कर रहे थे महायज्ञ टीवी सीरियल की उस "महायज्ञ " के नायक राष्ट्रीय नाटक ड्रामा के प्राध्यापक रहे मनोहर सिंह शहडोल में महिला मंडल में जब हमारे "राजा की रसोई" का मंचन किया था उसे समय के चीफगेस्ट रहे.. हालांकि तब हमें नहीं मालूम था कि यह मनोहर सिंह यादगार सीरियल में बड़े-ठाकुर की भूमिका अदा करेंगे. उसे समय यह जरूर चर्चा रही कि अनूपपुर के पास सीतापुर गांव में उपसंहार नामक एक फिल्म की शूटिंग के संदर्भ में शहडोल आए थे. बाद में यह किन्हीं कारणो से रिलीज नहीं हो पाई। किंतु मनोहर सिंह से जो संक्षिप्त मेरी मुलाकात रही उस कारण भी उनके व्यक्तित्व को  महायज्ञ में अन्य फिल्मों में चरित्र चित्रण को जीवंत रूप में देखा।

 इसलिए भी तब पतित हो रही राजनीति का सांकेतिक "महायज्ञ" यादगार टीवी सीरियल रहा।  महायज्ञ यह दिखाया था कि किस प्रकार से स्थानीय नेता पूरे गौरव के साथ भ्रष्टाचार को आत्मसात करते हैं.. और शीर्षस्थ  राजनीति, जमीन राजनीति को भ्रष्ट बनाए रखने के लिए काम करती है.. उस पर एक पूरा चित्रण रहा। जिन भी लोगों ने महायज्ञ को देखा है वह उनके मानस से कम ही बाहर जाता होगा।


आज से 45 वर्ष पहले तब रविंद्र नाथ टैगोर पार्क में गांधी चौक के पास विष्णु महायज्ञ हुआ था उसे समय समाज का हर वर्ग मिलजुलकर इस यज्ञ का संपादन किया था ओरिएंट पेपर मिल सके वाइस प्रेसिडेंट आई एम भंडारी स्वयं इस यज्ञ की पूजन कार्य किए थे संभवतः में आजादी के बाद पहला महायज्ञ शहडोल में हुआ था।

 यह भी एक संयोग था कि तब मोहन राम मंदिर शहडोल में एक लक्ष्मी नारायण महायज्ञ.. हमने लोकहित के उद्देश्य से और मंदिर को आम लोगों के बीच में लोकप्रिय  बनाने तथा लगभग पृष्ठभूमि में जा रही मोहन राम मंदिर को सामने लाने के लिए यह यज्ञ किया था.. उस समय जो यज्ञ के कर्ताधर्ता प्रमुख थे  मुझे सचिव का काम सौंपा गया था। उस लक्ष्मी नारायण महायज्ञ से निश्चित रूप से हमने मोहन राम मंदिर में तत्कालीन भ्रष्टाचार वह अराजकता को खत्म करने में सफलतापूर्वक कदम आगे बढ़ा पाए थे. कुछ आध्यात्मिक लाभ भी मिला लेकिन जल्द ही वह भ्रम टूट गया। क्योंकि महायज्ञ के आड़ में धर्म का नकाब पहन कर लोग क्या-क्या कैसा-कैसा अपने लक्ष्य पूर्ति को करते हैं हमने उसकी शुरुआत भी देखी थी। फिर भी उस समय कुछ अच्छे संत, महंत, विद्वान लोगों का शहडोल में आगमन हुआ था।

तब उस लक्ष्मी नारायण महायज्ञ में एक पवित्र उद्देश्य निहित था। तब हम लोगों ने भ्रष्टाचार को मोहन राम मंदिर से हटाने का प्रण लिया था। इसके बाद 2000 के पहले दशक में मुझे भी मोहन राम मंदिर ट्रस्ट में सदस्य के रूप में यानी ट्रस्टी के रूप में एसडीएम कोर्ट में प्रस्तावित किया गया। तब श्री भास्कर राव जो कटनी के बयो वृद्ध नागरिक थे मोहन राम मंदिर की स्थिति से नाराज होने के कारण हमारे साथ न्यायालय मैं न्याय की लड़ाई के लिए के लिए सहमत हो गए थे ।हमने उनके कटनी स्थित आवास में  एक बैठक की थी जिसमें चित्रकूट के पीठाधीश महंत रोहिणीश्वर प्रपन्नाचार्य जो वर्तमान में भी हैं उस बैठक में शामिल हुए। बहरहाल मोहन राम मंदिर में भ्रष्टाचार मुक्ति के लिए जो महायज्ञ पूर्व में किया गया वह अपने लक्ष्य को प्राप्त कर रहा था। अब समय बीत गया है कम से कम शहडोल के मंदिर ट्रस्ट से जुड़ा हुआ संदर्भ में कह सकते हैं पूरा का पूरा धर्म राजनीति का गुलाम है और राजनीतिक उद्देश्य पूर्ति के लिए काम करता है उसका आध्यात्मिक पक्ष लगभग नगण्य हो चुका है।

लेकिन जल्दी ही हमको समझ में आ गया हम एक बड़े भ्रष्टाचार के खिलाफ जो लड़ाई लड़ रहे थे दर असल उससे बड़ा भ्रष्टाचारी धर्म का नकाब पहनकर शहडोल में घुसपैठियों के रूप में घुस रहा था...। हम उसमें फंस रहे थे और हमने पाया भी पुरानी लंका चित्रकूट के पीठाधीश रोहाणेश्वर प्रपन्नाचार्य तब युवा चेहरा थे। उनमें धर्म को लेकर कुछ उत्साह था और हम भी उनके उत्साह में शामिल हो गए थे..

अब इसी मोहन मंदिर में फिर से एक लक्ष्मी नारायण महायज्ञ  फिर चालू होने वाला है। लेकिन इस बार हम इससे दूर है क्योंकि हमें मालूम है यह महायज्ञ किसी पवित्र उद्देश्य को लेकर करने की बजाय धार्मिक और आध्यात्मिक पक्ष में गुरु-परंपरा को मानने वाले लोगों को उपयोग करने के लिए किया जा रहा है. ताकि प्रशासन और शासन को यह बताया जा सके की महायज्ञ करने वाले लोग वास्तव में धार्मिक होते हैं और वह एक भीड़ तंत्र भी रखते हैं अगर उसका संरक्षण सत्ता कर रही है तो प्रशासन को आतंकित और भयभीत रहना सीखना चाहिए। कानून क्या कहता है, मध्य प्रदेश का उच्च न्यायालय क्या कहता है उसे प्रशासन कचरे में डाल दें.. और मोहन राम मंदिर ट्रस्ट के मामले में हाई कोर्ट के निर्देशों को कचरे में रख करके का आंख मूंदकर नकाबपोश धार्मिक लोगों का अनुसरण करें.

 देखा भी गया है कि जब-जब  भ्रष्टाचारी वर्ग का नंगा नाच पर प्रशासन अपनी नकेल कसता है तभी ऐसे महायज्ञ उन्हें याद आते हैं। और इन महायज्ञों से कतिपय लोग अपने भ्रष्टाचार को संरक्षित करते हैं। तो जो महायज्ञ में यजमान इत्यादि होते हैं उन्हें इस भ्रम का दंभ होता है कि वह एक धार्मिक व्यक्ति हैं और धर्म के लिए कुछ कर पा रहे हैं। और ऐसा होना भी चाहिए क्योंकि गुरु के संरक्षण में यदि आध्यात्मिक का लाभ नहीं मिल रहा है तो कहां मिलेगा यह बड़ा प्रश्न है...?

 इसलिए भी आज भी एक बड़ा वर्ग आसाराम को, य राम रहीम को अपना सच्चा गुरु मानता है भलाई वह बलात्कार में दंडित किए गए हो.. क्योंकि  वह उनका व्यक्तिगत जीवन है... गुरु-शिष्य परंपरा में इसका कोई महत्व नहीं होता और इसे हमारी राजनीति राम-रहीम को बार-बार जेल से छुड़ाकर प्रमाणित भी करती रही है।   

तो  यह एक प्रकार का इवेंट होता है इसका आध्यात्मिक महायज्ञ से कोई नाता नहीं होता ऐसे में गुरु भी खुश; ,शिष्य भी खुश... भ्रष्टाचारी के बल्ले बल्ले होते हैं... टीवी सीरियल महायज्ञ में भी कुछ इसी प्रकार का कथा के रूप में हमें मनोरंजन देखने को मिला था अब यह मनोरंजन वास्तविक रूप से दिखने वाले धार्मिक महायज्ञ में इवेंट के रूप में दिखाई देतें हैं 

.. अन्यथा जब हमने आध्यात्मिक महायज्ञ की शुरुआत की थी उसे समय पवित्र लक्ष्य हमें प्रतिफल के रूप में देखने को मिले वर्तमान परिवेश में ऐसे महायज्ञ एक  अपव्यय मनोरंजन के अलावा कुछ नहीं है.. क्योंकि इनका उद्देश्य किसी साधु संगत प्रसिद्ध संतों का संरक्षण अथवा आध्यात्मिक उन्नति.. जिस उद्देश्य के लिए स्वर्गीय पंडित मोहन राम पांडे जी ने 19वीं सदी के अंत में शहडोल में मोहन राम मंदिर की स्थापना की थी अब वह उद्देश्य विफल होता दिख रहा है..। क्योंकि मंदिर में रहने वाले पुजारी को 10-12 साल से वेतन तक नहीं दिया गया है मंदिर के अंदर पृथक से बने शिव पार्वती मंदिर की छत टूटने की कगार पर है लेकिन भ्रष्टाचारी समाज जिसमें पाखंडी धार्मिक और भ्रष्ट लोग होते हैं उन्हें उसे नहीं बनने दिया, क्योंकि उनका उद्देश्य मंदिर ट्रस्ट को लूटना प्रथम है..

लेकिन इसका एक सुखद पक्ष है की एक धार्मिक इवेंट के रूप में शहडोल जैसे शहर में जहां कुछ नहीं होता वहां ना होने से कुछ  अच्छा होता दिखता है। हलांकि एक लंबे समय के बाद स्टेडियम में राजन जी का राम कथा ने एक सुखद आध्यात्मिक वातावरण बनाने का काम हुआ है इसे अवश्य याद करना चाहिए। 

किंतु लक्ष्मी नारायण महायज्ञ का उद्देश्य अगर भ्रष्टाचार को संरक्षित करना है प्रशासन को उनके कर्तव्य पूर्ति करने से डराना है उसे भयभीत करना है.. तो यह एक धार्मिक अर्ध-सत्य हमें देखने को मिलता है। इस पर हम समय-समय पर चर्चा करते रहेंगे।

 किंतु  धर्म का नकाब पहनकर भ्रष्टाचारी बाहरी लोग कैसे शहडोल की आध्यात्मिक और धार्मिक भावनाओं का शोषण करते हैं जिस कारण से मोहन राम मंदिर ट्रस्ट लूटपाट, भ्रष्टाचार और घटिया राजनीति का अड्डा बन गया है। इसकी पवित्र भूमिका भटक गई है। और इसे प्रमाणित करते हुए तत्कालीन शहडोल के कमिश्नर ने मोहन राम मंदिर में निर्माण कार्यों में जब ढाई करोड रुपए के करीब भ्रष्टाचार के लिए नगर पालिका के कर्मचारियों को दोषी पाया और दंडित किया तभी लगा कि मोहन राम मंदिर अब भ्रष्टाचार का एक अच्छा अवसर बन गया है।तो हम समझने का आगे प्रयास करेंगे कि वास्तव में कैसे राजनीति का भ्रष्टाचार का महायज्ञ, धर्म का महायज्ञ को भ्रष्ट कर रहा है। जिसे प्रशासन के कर्तव्य निष्ठ अधिकारी मुख बधिर होकर देख रहे हैं तो आखिर क्यों देख रहे हैं...?

 

छत्तीसगढ़: नक्सलियों द्वारा आईईडी से वाहन उड़ाए , 8 जवान शहीद/ रुपया गिरकर 85.83 प्रति डॉलर //

  बीजापुर: पुलिस ने बताया कि सोमवार को छत्तीसगढ़ के बीजापुर जिले में नक्सलियों द्वारा एक आईईडी से वाहन उड़ाए जाने के बाद जिला रिजर्व गार्ड ...