मंगलवार, 10 दिसंबर 2024

एक ईमानदार थे अधिवक्ता राकेश चतुर्वेदी ... (त्रिलोकी नाथ)

     


  डॉ राकेश चतुर्वेदी, एडवोकेट से मेरी मुलाकात मोहन राम मंदिर ट्रस्ट विवाद के मुकदमे के संबंध में स्वर्गीय पंडित मोहन राम पांडे के वंशज स्व. हर प्रसाद जी पांडे ने  1997- 98 में न्यायालय मुकदमा के दौर पर अपने पारिवारिक अधिवक्ता के रूप में मुझे परिचय कराया था। हर प्रसाद जी पांडे, पंडित मोहन राम पांडे के परिवार की ओर से अधिकृत प्रतिनिधि थे जो मोहन मंदिर ट्रस्ट के मुकदमों को देख रहे थे। उस दौर में उनको अक्सर अपने जमुना ,अनूपपुर जिला स्थित आवास से आना जाना पड़ता था। हालांकि डॉक्टर चतुर्वेदी शहडोल राजस्व बार में तब अपने सीनियर इंद्रजीत मिश्र के साथ प्रैक्टिस भी करते थे। राकेश चतुर्वेदी के बड़े भाई साहब प्रो. राजेंद्र प्रसाद चतुर्वेदी शहडोल कॉलेज में प्रोफेसर थे वर्तमान में वह वे अवधेश प्रताप सिंह विश्वविद्यालय में प्रोफेसर हैं। उनके छोटे भाई इंद्रेश चतुर्वेदी रीवा न्यायालय में अधिवक्ता है. डॉ राकेश धर्मपत्नी अनूपपुर जिले के जमुना में शिक्षक पद पर कार्यरत हैं। उनके दो पुत्री व एक पुत्र हैं। डॉ राकेश चतुर्वेदी अपने भाइयों के प्रति बहुत समर्पित थे और अपने बड़े भाई प्रोफेसर चतुर्वेदी को आदर्श मानकर उनकी हर बात को धार्मिक आदेश के रूप में देखे थे और उसका पालन करते थे उनका इस परिवारिक समझ व समरसता से भी मैं बहुत प्रभावित था जो आज के दौर में अक्सर कम परिवारों में देखने को मिलता है।

गत शुक्रवार को 59 वर्षीय राकेश बुढ़ार शहडोल मार्ग में सड़क दुर्घटना में घायल हो गए थे उन्हें बचाने के प्रयास में जबलपुर नागपुर हर संभव प्रयास किया गया किंतु गंभीर दुर्घटना के कारण डॉक्टर के दल ने जवाब दे दिया जिस कारण उन्हें रीवा मेडिकल कॉलेज में लाकर इलाज किया जा रहा था ।कल 10 दिसंबर को 10:15 में उन्होंने अंतिम सांस ली उनका अंतिम संस्कार उनके निज निवास गांव गोबरी (अमरपाटन) जिला सतना में किया गया।  

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राकेश चतुर्वेदी के निधन से मुझे एक विश्वसनीय विधिक सलाहकार का साथ छूट जाना का हमेशा कमी बनी रहेगी । उन्होंने शहडोल के मोहन राम मंदिर ट्रस्ट के विवादों को गंभीरता से जान लिया था इस कारण भी कि उनके परिजन पुरानी लंका चित्रकूट से दीक्षित थे। वे स्वयं पुरानी लंका चित्रकूट के पीठाधीश महंत बलराम प्रपन्नाचार्य जी से दीक्षित थे। इसलिए भी वह मोहन राम मंदिर ट्रस्ट के हर विवादों को गंभीरता से समझते थे। अगर मोहन राम मंदिर ट्रस्ट के न्यायालीन  विवादों में अधिवक्ता के रूप में शहडोल के स्व. बैजनाथजी शर्मा एडवोकेट की भूमिका को जब भी याद किया जाएगा डॉक्टर राकेश चतुर्वेदी के बिना वह हमेशा अधूरा रहेगा। क्योंकि पूरी पृष्ठभूमि में राकेश चतुर्वेदी ने हर जानकारी को समझने में हमें मदद की थी। मैं व्यक्तिगत तौर पर तुलनात्मक रूप में डॉक्टर राकेश चतुर्वेदी को हमेशा मंदिर विवाद की निर्णायक भूमिका में उनके निर्णय के साथ खड़ा रहा। 

उनके रोज (जमुना) अनूपपुर  में आने-जाने के कारण हर प्रसाद पांडे जी की सलाह पर तब मोहन राम मंदिर के अंदर पीछे में दो कमरे में उनके अस्थाई आवास भी बनाया। जहां उनका पूरा फर्नीचर और विधिक फाइलें रहा करती थीं ।जब भी कभी वह रुक जाते थे हमारी वहीं पर विस्तार से चर्चा होती थी। हर प्रसाद पांडे जी के सलाह पर वे मंदिर प्रांगण में अपना अस्थाई किराए का आवास बना लिए थे। उससे हर प्रसाद पांडे जी को भी बहुत मदद मिलती थी। आज भी उनका बहुत सारा पलंग फर्नीचर और फाइलें वहीं पर हैं क्योंकि समय-काल बदलने के बाद 2008 में पुरानी लंका चित्रकूट के पावर ऑफ अटॉर्नी लवकुश शास्त्री से मतातंर होने के बाद उन्होंने मंदिर प्रांगण में आना-जाना लगभग बंद कर दिया... किंतु उनका पूरा आवासीय सामान अन्य फाइलें मंदिर परिसर में ही रखा रह गया जो आज भी वहां पर रखा हुआ है.. कितना लवकुश शास्त्री ने गायब कर दिया है यह तो जब कभी मंदिर ट्रस्ट का प्रभार अगर स्वतंत्र कमेटी ले पाती है उसे स्पष्ट होगा ... बहरहाल आज यह विषय वस्तु नहीं है। 


आज का दिन डॉ राकेश चतुर्वेदी के न होने से उनकी स्मृतियों में उनके सहज व सरल स्वभाव के साथ एक ईमानदारी पूर्ण तरीके से वकालत कैसे की जाती है उसको याद करने का है। ऐसे  कम अधिवक्ता होंगे जिन्होंने नैतिकता को प्राथमिकता का तकाजा देकर अधिवक्ता के अपने पेसे को जीने का प्रयास किया है। उनके आदर्श में जिला न्यायालय में वर्तमान में नोटरी के पद पर पदस्थ अनिल मिश्रा कि वह हमेशा चर्चा करते थे। दरअसल राकेश चतुर्वेदी मूल रूप से अधिवक्ता के पेसे की बजाय शिक्षाविद के रूप में अपने को स्थापित करना चाहते थे ।उन्होंने "बैगा आदिवासी जनजाति" से आदेश प्रताप सिंह विश्वविद्यालय से पीएचडी की थी। उन्हें अक्सर सुना गया कि वह अवधेश प्रताप सिंह विश्वविद्यालय के परीक्षा कॉपियों को जांच भी करते थे। जिसमें उन्हें पारिश्रमिक मिल जाता था। उनकी सहजता और सरलता का यह प्रमाण था की शहडोल स्थित शिवम कॉलोनी के पास उनकी व उनके परिवार की करीब 45 डिसमिल जमीन में अतिक्रमणकारियों / भू माफिया ने अपनी निगाहें गड़ा दी थी। हम लोगों ने बड़ी मुश्किल से काफी जमीन पर उनका कब्जा कराया था। वह जमीन सुरक्षित कराई थी। तब भी भू माफियाओं से उनका अनबन चलता रहता था। वह न्यायालय प्रक्रिया पर बहुत विश्वास रखते थे‌ वह उसी से हर लड़ाई को जीतना चाहते थे। यह दुर्भाग्य है कि हमारी न्याय प्रक्रिया बहुत दूषित होने के साथ बेहद धीमी गति से चलने वाली एक प्रक्रिया है जिसके कारण न्याय नहीं हो पता है।


 उनकी सहजता और सरलता इस प्रकार की थी कि वह इस पर विश्वास रखते थे कि अधिवक्ता को फील्ड में जाकर के वकालत नहीं करना चाहिए उसका कार्य क्षेत्र न्यायालय का क्षेत्र के सीमा में ही सुनिश्चित होना चाहिए। ताकि लोकतांत्रिक तरीके से नई प्रक्रिया को अपनाया जा सके और ऐसा उन्होंने अपने जीवन में किया भी। यह अलग बात है कि इस कारण व्यक्तिगत तौर पर उनकी जमीन पर उन्हें भारी मुश्किल से कब्जा मिल पाया।

किंतु जहां भी उन्हें संशय होता था वह अपने बुद्धि की बजाय अपने सीनियर्स से उसे समझाना चाहते थे। मुझे याद है की एक मामले में हम सीनियर एडवोकेट खूबचंद्र जी अग्रवाल के पास गए हुए थे और राकेश चतुर्वेदी से उन्होंने पूछा कि यह प्रकरण एक-पक्षी कैसे हो गया.. बात के दौरान उसमें अधिवक्ता की लापरवाही या क्लाइंट को लेकर उसकी नाराजगी प्रदर्शित हो रही थी. तब खूब चंद्र जी अग्रवाल ने कहा कि किसी भी हालत में क्लाइंट कैसा भी हो और उसे कितनी भी नाराजगी हो अपने क्लाइंट के प्रति वफादार होना चाहिए और एक पक्षीय कार्यवाही अगर अधिवक्ता के अभाव में होती है तो यह बेहद दुखद है... डॉक्टर राकेश चतुर्वेदी ने मुझे इस बारे में करीब एक घंटा विस्तार से चर्चा किया और अधिवक्ता पेसे में उनकी बात को गांठ बांध ली थी उनकी इस सहजता और सरलता से में हमेशा उनसे प्रभावित रहता था। 


उनके ना रहने से मुझे एक विश्वसनीय मित्र, ईमानदार अधिवक्ता का अभाव हमेशा होता रहेगा। हम लगभग 28 साल साथ-साथ जीवन यात्रा में उनके साथ रहे। मेडिकल कॉलेज में हमारी भाभी यानी उनकी धर्मपत्नी ने मुझे बताया की जमुना से निकलने ते वक्त उन्होंने कहा था की मोटरसाइकिल पर ना जाएं.. क्योंकि गाड़ी बहुत तेज चलती है और वह रो पड़ी थीं.. सच में वह उनकी आत्मा की आवाज थी की कुछ अनहोनी होने वाली है.. उन्होंने अर्धांगिनी होने के नाते चेतावनी भी दी थी किंतु डॉ राकेश चतुर्वेदी की जीवन यात्रा यही तक सुनिश्चित थी.. इसलिए वह शहडोल की ओर चल पड़े थे और दुर्भाग्य से हेलमेट भी नहीं लगाया था जबकि ड्राइवर मिश्रा जी हेलमेट लगाए हुए थे। शायद इसीलिए उन्हें रफ्तार का आभास नहीं था... कहते हैं रास्ते में कोई बैल आ गया था और यह दुर्घटना हो गई. मिश्रा जी का सर बच गया क्योंकि उन्होंने हेलमेट लगाया था पीछे बैठने के कारण राकेश चतुर्वेदी इस दुर्घटना की गंभीरता से सर पर ब्लड क्लॉटिंग के कारण इतने गंभीर रूप से घायल हुए यह उनके जीवन की अंतिम यात्रा साबित हुई।

 यह अलग बात है कि हम भी उनसे कई बार काहे की जब शहडोल में जमीन है तो एक कमरा बनाकर यही रहिए किंतु उन्होंने अपने आजीविका की परिस्थितियों के चलते इस जीवन संघर्ष में यह युद्ध हार गए।

 डॉ राकेश चतुर्वेदी की निधन से शहडोल जिला अधिवक्ता संघ राजस्व बार एसोसिएशन सोहागपुर और अनूपपुर बार एसोसिएशन में शोक की लहर फैल गई।

 हमारी भी परमपिता परमात्मा से प्रार्थना है कि वह जहां भी रहे उन्हें शांति प्रदान हो ईश्वर उनके भाइयों एवं परिवार को इस वज्रघात को सहन करने की क्षमता प्रदान करें यही हमारी श्रद्धांजलि है। ओम शांति:

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