रविवार, 1 दिसंबर 2024

"गर्व से कहो कि हम भ्रष्टाचारी हैं...?- 6" भ्रष्टाचार के लिये महायज्ञ...? ( त्रिलोकीनाथ )

        महायज्ञ 1997-1998 में सोनी टीवी पर प्रसारित एक भारतीय टेलीविजन शो यादगार टीवी सीरियल है। अनिल चौधरी द्वारा लिखित, निर्मित और निर्देशित, इस राजनीतिक नाटक में मनोहर सिंह, रोहिणी हट्टंगड़ी, गोविंद नामदेव ने अभिनय किया, जबकि अनन्या खरे, मुरली शर्मा, कुमुद मिश्रा और अन्य ने अपने लोकप्रिय भूमिका अदा की।राजनीति में भ्रष्टाचार को आम जीवन में उतरने का यह पारदर्शी चित्रण रहा करीब  25 साल बाद अब यह सांकेतिक महायज्ञ, धार्मिक महायज्ञ के रूप में भी भ्रष्टाचार को आत्मसात करने लगा है। महायज्ञ अब लोकहित के लिए ही हो यह जरूरी नहीं है यह भ्रष्टाचार के संरक्षण के लिए आतंक और भय दिखाने के लिए भी अब होने लगे हैं, इसमें कोई शक नहीं है। क्योंकि इससे प्रशासनिक अधिकारी अपने कर्तव्य को भूलकर विवाद नहीं पालना चाहते। यह सब पारदर्शी है।

-----------------( त्रिलोकीनाथ )---------------------



  तो बात कर रहे थे महायज्ञ टीवी सीरियल की उस "महायज्ञ " के नायक राष्ट्रीय नाटक ड्रामा के प्राध्यापक रहे मनोहर सिंह शहडोल में महिला मंडल में जब हमारे "राजा की रसोई" का मंचन किया था उसे समय के चीफगेस्ट रहे.. हालांकि तब हमें नहीं मालूम था कि यह मनोहर सिंह यादगार सीरियल में बड़े-ठाकुर की भूमिका अदा करेंगे. उसे समय यह जरूर चर्चा रही कि अनूपपुर के पास सीतापुर गांव में उपसंहार नामक एक फिल्म की शूटिंग के संदर्भ में शहडोल आए थे. बाद में यह किन्हीं कारणो से रिलीज नहीं हो पाई। किंतु मनोहर सिंह से जो संक्षिप्त मेरी मुलाकात रही उस कारण भी उनके व्यक्तित्व को  महायज्ञ में अन्य फिल्मों में चरित्र चित्रण को जीवंत रूप में देखा।

 इसलिए भी तब पतित हो रही राजनीति का सांकेतिक "महायज्ञ" यादगार टीवी सीरियल रहा।  महायज्ञ यह दिखाया था कि किस प्रकार से स्थानीय नेता पूरे गौरव के साथ भ्रष्टाचार को आत्मसात करते हैं.. और शीर्षस्थ  राजनीति, जमीन राजनीति को भ्रष्ट बनाए रखने के लिए काम करती है.. उस पर एक पूरा चित्रण रहा। जिन भी लोगों ने महायज्ञ को देखा है वह उनके मानस से कम ही बाहर जाता होगा।


आज से 45 वर्ष पहले तब रविंद्र नाथ टैगोर पार्क में गांधी चौक के पास विष्णु महायज्ञ हुआ था उसे समय समाज का हर वर्ग मिलजुलकर इस यज्ञ का संपादन किया था ओरिएंट पेपर मिल सके वाइस प्रेसिडेंट आई एम भंडारी स्वयं इस यज्ञ की पूजन कार्य किए थे संभवतः में आजादी के बाद पहला महायज्ञ शहडोल में हुआ था।

 यह भी एक संयोग था कि तब मोहन राम मंदिर शहडोल में एक लक्ष्मी नारायण महायज्ञ.. हमने लोकहित के उद्देश्य से और मंदिर को आम लोगों के बीच में लोकप्रिय  बनाने तथा लगभग पृष्ठभूमि में जा रही मोहन राम मंदिर को सामने लाने के लिए यह यज्ञ किया था.. उस समय जो यज्ञ के कर्ताधर्ता प्रमुख थे  मुझे सचिव का काम सौंपा गया था। उस लक्ष्मी नारायण महायज्ञ से निश्चित रूप से हमने मोहन राम मंदिर में तत्कालीन भ्रष्टाचार वह अराजकता को खत्म करने में सफलतापूर्वक कदम आगे बढ़ा पाए थे. कुछ आध्यात्मिक लाभ भी मिला लेकिन जल्द ही वह भ्रम टूट गया। क्योंकि महायज्ञ के आड़ में धर्म का नकाब पहन कर लोग क्या-क्या कैसा-कैसा अपने लक्ष्य पूर्ति को करते हैं हमने उसकी शुरुआत भी देखी थी। फिर भी उस समय कुछ अच्छे संत, महंत, विद्वान लोगों का शहडोल में आगमन हुआ था।

तब उस लक्ष्मी नारायण महायज्ञ में एक पवित्र उद्देश्य निहित था। तब हम लोगों ने भ्रष्टाचार को मोहन राम मंदिर से हटाने का प्रण लिया था। इसके बाद 2000 के पहले दशक में मुझे भी मोहन राम मंदिर ट्रस्ट में सदस्य के रूप में यानी ट्रस्टी के रूप में एसडीएम कोर्ट में प्रस्तावित किया गया। तब श्री भास्कर राव जो कटनी के बयो वृद्ध नागरिक थे मोहन राम मंदिर की स्थिति से नाराज होने के कारण हमारे साथ न्यायालय मैं न्याय की लड़ाई के लिए के लिए सहमत हो गए थे ।हमने उनके कटनी स्थित आवास में  एक बैठक की थी जिसमें चित्रकूट के पीठाधीश महंत रोहिणीश्वर प्रपन्नाचार्य जो वर्तमान में भी हैं उस बैठक में शामिल हुए। बहरहाल मोहन राम मंदिर में भ्रष्टाचार मुक्ति के लिए जो महायज्ञ पूर्व में किया गया वह अपने लक्ष्य को प्राप्त कर रहा था। अब समय बीत गया है कम से कम शहडोल के मंदिर ट्रस्ट से जुड़ा हुआ संदर्भ में कह सकते हैं पूरा का पूरा धर्म राजनीति का गुलाम है और राजनीतिक उद्देश्य पूर्ति के लिए काम करता है उसका आध्यात्मिक पक्ष लगभग नगण्य हो चुका है।

लेकिन जल्दी ही हमको समझ में आ गया हम एक बड़े भ्रष्टाचार के खिलाफ जो लड़ाई लड़ रहे थे दर असल उससे बड़ा भ्रष्टाचारी धर्म का नकाब पहनकर शहडोल में घुसपैठियों के रूप में घुस रहा था...। हम उसमें फंस रहे थे और हमने पाया भी पुरानी लंका चित्रकूट के पीठाधीश रोहाणेश्वर प्रपन्नाचार्य तब युवा चेहरा थे। उनमें धर्म को लेकर कुछ उत्साह था और हम भी उनके उत्साह में शामिल हो गए थे..

अब इसी मोहन मंदिर में फिर से एक लक्ष्मी नारायण महायज्ञ  फिर चालू होने वाला है। लेकिन इस बार हम इससे दूर है क्योंकि हमें मालूम है यह महायज्ञ किसी पवित्र उद्देश्य को लेकर करने की बजाय धार्मिक और आध्यात्मिक पक्ष में गुरु-परंपरा को मानने वाले लोगों को उपयोग करने के लिए किया जा रहा है. ताकि प्रशासन और शासन को यह बताया जा सके की महायज्ञ करने वाले लोग वास्तव में धार्मिक होते हैं और वह एक भीड़ तंत्र भी रखते हैं अगर उसका संरक्षण सत्ता कर रही है तो प्रशासन को आतंकित और भयभीत रहना सीखना चाहिए। कानून क्या कहता है, मध्य प्रदेश का उच्च न्यायालय क्या कहता है उसे प्रशासन कचरे में डाल दें.. और मोहन राम मंदिर ट्रस्ट के मामले में हाई कोर्ट के निर्देशों को कचरे में रख करके का आंख मूंदकर नकाबपोश धार्मिक लोगों का अनुसरण करें.

 देखा भी गया है कि जब-जब  भ्रष्टाचारी वर्ग का नंगा नाच पर प्रशासन अपनी नकेल कसता है तभी ऐसे महायज्ञ उन्हें याद आते हैं। और इन महायज्ञों से कतिपय लोग अपने भ्रष्टाचार को संरक्षित करते हैं। तो जो महायज्ञ में यजमान इत्यादि होते हैं उन्हें इस भ्रम का दंभ होता है कि वह एक धार्मिक व्यक्ति हैं और धर्म के लिए कुछ कर पा रहे हैं। और ऐसा होना भी चाहिए क्योंकि गुरु के संरक्षण में यदि आध्यात्मिक का लाभ नहीं मिल रहा है तो कहां मिलेगा यह बड़ा प्रश्न है...?

 इसलिए भी आज भी एक बड़ा वर्ग आसाराम को, य राम रहीम को अपना सच्चा गुरु मानता है भलाई वह बलात्कार में दंडित किए गए हो.. क्योंकि  वह उनका व्यक्तिगत जीवन है... गुरु-शिष्य परंपरा में इसका कोई महत्व नहीं होता और इसे हमारी राजनीति राम-रहीम को बार-बार जेल से छुड़ाकर प्रमाणित भी करती रही है।   

तो  यह एक प्रकार का इवेंट होता है इसका आध्यात्मिक महायज्ञ से कोई नाता नहीं होता ऐसे में गुरु भी खुश; ,शिष्य भी खुश... भ्रष्टाचारी के बल्ले बल्ले होते हैं... टीवी सीरियल महायज्ञ में भी कुछ इसी प्रकार का कथा के रूप में हमें मनोरंजन देखने को मिला था अब यह मनोरंजन वास्तविक रूप से दिखने वाले धार्मिक महायज्ञ में इवेंट के रूप में दिखाई देतें हैं 

.. अन्यथा जब हमने आध्यात्मिक महायज्ञ की शुरुआत की थी उसे समय पवित्र लक्ष्य हमें प्रतिफल के रूप में देखने को मिले वर्तमान परिवेश में ऐसे महायज्ञ एक  अपव्यय मनोरंजन के अलावा कुछ नहीं है.. क्योंकि इनका उद्देश्य किसी साधु संगत प्रसिद्ध संतों का संरक्षण अथवा आध्यात्मिक उन्नति.. जिस उद्देश्य के लिए स्वर्गीय पंडित मोहन राम पांडे जी ने 19वीं सदी के अंत में शहडोल में मोहन राम मंदिर की स्थापना की थी अब वह उद्देश्य विफल होता दिख रहा है..। क्योंकि मंदिर में रहने वाले पुजारी को 10-12 साल से वेतन तक नहीं दिया गया है मंदिर के अंदर पृथक से बने शिव पार्वती मंदिर की छत टूटने की कगार पर है लेकिन भ्रष्टाचारी समाज जिसमें पाखंडी धार्मिक और भ्रष्ट लोग होते हैं उन्हें उसे नहीं बनने दिया, क्योंकि उनका उद्देश्य मंदिर ट्रस्ट को लूटना प्रथम है..

लेकिन इसका एक सुखद पक्ष है की एक धार्मिक इवेंट के रूप में शहडोल जैसे शहर में जहां कुछ नहीं होता वहां ना होने से कुछ  अच्छा होता दिखता है। हलांकि एक लंबे समय के बाद स्टेडियम में राजन जी का राम कथा ने एक सुखद आध्यात्मिक वातावरण बनाने का काम हुआ है इसे अवश्य याद करना चाहिए। 

किंतु लक्ष्मी नारायण महायज्ञ का उद्देश्य अगर भ्रष्टाचार को संरक्षित करना है प्रशासन को उनके कर्तव्य पूर्ति करने से डराना है उसे भयभीत करना है.. तो यह एक धार्मिक अर्ध-सत्य हमें देखने को मिलता है। इस पर हम समय-समय पर चर्चा करते रहेंगे।

 किंतु  धर्म का नकाब पहनकर भ्रष्टाचारी बाहरी लोग कैसे शहडोल की आध्यात्मिक और धार्मिक भावनाओं का शोषण करते हैं जिस कारण से मोहन राम मंदिर ट्रस्ट लूटपाट, भ्रष्टाचार और घटिया राजनीति का अड्डा बन गया है। इसकी पवित्र भूमिका भटक गई है। और इसे प्रमाणित करते हुए तत्कालीन शहडोल के कमिश्नर ने मोहन राम मंदिर में निर्माण कार्यों में जब ढाई करोड रुपए के करीब भ्रष्टाचार के लिए नगर पालिका के कर्मचारियों को दोषी पाया और दंडित किया तभी लगा कि मोहन राम मंदिर अब भ्रष्टाचार का एक अच्छा अवसर बन गया है।तो हम समझने का आगे प्रयास करेंगे कि वास्तव में कैसे राजनीति का भ्रष्टाचार का महायज्ञ, धर्म का महायज्ञ को भ्रष्ट कर रहा है। जिसे प्रशासन के कर्तव्य निष्ठ अधिकारी मुख बधिर होकर देख रहे हैं तो आखिर क्यों देख रहे हैं...?

 

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