कल प्रभाष जोशी का 15वीं पुण्यतिथि थी वह भारत के मूर्धन्य पत्रकार थे जिनमें संभावना और संवेदना भरपूर थी चाहे क्रिकेट हो या राजनीति दोनों में भी जमकर खेलते थे और खबरें प्रकाशित करते थे। उन्हें विनम्र श्रद्धांजलि है। इसी तरह हुए तब वे उत्तर प्रदेश के एक गेस्ट हाउस में पहुंचे थे लेकिन वहां पर कमरे में बाथरूम में गंदगी थी छिपकलियों थी, इस शासकीय अराजकता और अव्यवस्था पर लौटकर उन्होंने अपने स्तंभ “कागज कारे” कहा था की जो राज्य शासन अपने गेस्ट हाउस को सुरक्षित नहीं रख सकती हैं वह जनता की जिम्मेदारी को कैसे निभाती होंगे..? और एक बड़ी टिप्पणी उन्होंने उत्तर प्रदेश शासन की कमियों पर कर डाली। वे ऐसे ही पत्रकार थे अब इस प्रकार के पत्रकार विलुप्त होती प्रजाति के हिस्से हो गए हैं।
क्योंकि अपन देख रहे हैं मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जमकर अपनी राजनीतिक शैली “बटेंगे तो कटेंगे” में वोट-बैंक पैदा करने में लगे हैं। हालांकि उन्होंने यह नारा उत्तर प्रदेश के लिए दिया था जहां बांटना और काटना राजनीति का जरूरत हो सकती थी। लेकिन महाराष्ट्र की राजनीति में बांटना और काटना सर-दर्द साबित हो रहा है क्योंकि चुनाव वहां पर भी है इसी तरह देश की राजनीति में भी बटने और कटने को लेकर के विवाद है। इसीलिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उसे थोड़ी शिष्ट भाषा में प्रस्तुत करने का काम किया, “एक है तो सेफ है”।बहरहाल यह राजनीतिक गंदगी आज के राजनेताओं की वैचारिक प्रदूषण को प्रमाणित करती है इससे ज्यादा कुछ नहीं।
---------- ( त्रिलोकी नाथ )-----------
हम बात कर रहे थे बांटने और काटने की व्यवस्था में मुख्यमंत्री की व्यवस्था को लेकर, वह “बटेंगे और कटगें” के अपने महामंत्र में वोट पैदा करने में लगे थे और उत्तर प्रदेश के झांसी में मुख्यमंत्री के राज्य मेंअराजकता व्यवस्था और कुप्रबंधन में 11 नवजात शिशु अस्पताल में विद्युतसार्टसर्किट हो जाने से जलकर मर गए, कहना चाहिए भुन गए। अन्य कई संघर्ष में जीवित बचाए जाने की कोशिश में है। इस तरह 11 नवजात जो भाजपा के वोटर हो सकते थे 18 वर्ष बाद वह जन्म लेने के कुछ दिनों बाद ही जलकर मर गए। पता नहीं मुख्यमंत्री झांसी गए या नहीं गए लेकिन यह खबर है कि उनके प्रतिनिधि इस दर्दनाक हादसे में जब वहां पहुंच रहे थे तो पूरा प्रशासन उनके प्रतिनिधि का स्वागत करने में लगा था। बच्चों की मौत के शमशान में आखिर किसका स्वागत होता है।हमारी राजनीति कुछ इसी अंदाज में झांसी के अस्पताल में अपनी उपस्थिति दिखा रही थी। यह इस वर्ष का सर्वाधिक दर्दनाक हादसा कहलाया जा सकता है।
इसी बीच एक खबर यह भी आई कि गुजरात में जो मोरबी पुल के टूट जाने से करीब 135 लोग कुप्रबंधन में दर्दनाक मौत के शिकार हो गए उसका आरोपी जयेश पटेल के घर में सम्मान का दौर चल रहा था। क्योंकि इसकी जमानत हो गई थी। जिसको लेकर वहां के कुछ गुजरातियों में जमीर जिंदा होने के कारण वह इसे अपमानजनक बता नाराज हो रहे हैं।
जब शहडोल में11 हाथियों की रहस्यमयी तरीके से मौत हो गई तो बताया गया कोदो और धान के खा लेने से अपने आप में भारत की ही नहीं विश्व की शायद वह बड़ी घटना बांधवगढ़ वन क्षेत्र में घट गई । इसी बीच अमेरिका में डोनाल्ड ट्रंप जो अपने विरोधी भारतीय मूल की कमला हैरिस को अश्लील गालियां देते थे वे चुनाव जीत गये और अमेरिका का राष्ट्रपति भी हो गये। विश्व की राजनीति अब इसी गंदगी की प्रदूषण में करवटें बदल रही है।
इसलिए शहडोल में हाथी के मर जाने का कोई फर्क नहीं पड़ता.., हाथी फिर कहीं से आएंगे फिर मरेंगे.. क्या वीरप्पन केरल कर्नाटक में हाथियों को नहीं मरता था..? यह सामान्य घटना है। इसीलिए शहडोल का प्रदूषण नियंत्रण विभाग में सात पर्दे के अंदर बैठे रहने वाला अधिकारी मेहरा को कोई फर्क नहीं पड़ता कि शहडोल में हाथी क्यों मर रहे हैं । खबर है प्रदेश में प्रदूषण वाले थोड़ा चिंतित दिखे और बांधवगढ़ के जंगल विभाग के अधिकारियों को नोटिस दिए हैं किंतु फिलहाल स्पष्ट नहीं है कि आखिर हाथी मरे कैसे…?
बहरहाल जिस हाथी में चढ़कर हमारे आध्यात्मिक मां लक्ष्मी धनतेरस और दिवाली को घर-घर पहुंचती हैं धनतेरस में 11 हाथियों के मर जाने की खबर ने मन को हिला दिया। यह आदिवासी क्षेत्र के हर निवासी नागरिक की बड़ी कसक है। कसक तो यह भी है कि दिल्ली में वायु प्रदूषण अपने आसमान पर है हालांकि इस लोकसभा चुनाव में मोदी सरकार ने 400 पार का नारा दिया था यह अलग बात है कि वह ढाई सौ भी नहीं पहुंच पाए और मिलजुल कर सरकार चलाने के लिए बाध्य हैं। कोई बात नहीं दिल्ली में 400 पार का नारा दम तोड़ दिया लेकिन हमारा वायु प्रदूषण इसी दिल्ली में पूरी तरह से कब्जा कर लिया है और वह 400 पर करते हुए अपनी रफ्तार संसदीय सीट 542 के लक्ष्य को पाने में लगा हुआ है..।
जो आंकड़े आज जनसत्ता में प्रकाशित हुए हैं वह दिल्ली के नागरिकों के लिए हैं शहडोल जैसे आदिवासी क्षेत्र में इनका कोई नाता नहीं है इसीलिए शहडोल का प्रदूषण नियंत्रण विभाग का मेहरा 7 पर्दे के अंदर सोता रहता है। उसकी कोई जिम्मेदारी ही नहीं है कि वह बताये कि जिस पर्यावरण और परिस्थिति में मेंकल बिंध्य पर्वत श्रेणियां में धड़ाधड़ अराजकता और कुप्रबंधन में कॉलरिया और उद्योग चल रहे हैं वह आखिर अपने विनाश की लीला को कब लक्ष्य प्राप्त करेगा…?
यानी हमारे शहडोल क्षेत्र में वायु का जो पवित्रम गुणवत्ता थी वह उमरिया, शहडोल और अनूपपुर में पिछले दो दशकों में कितनी गिरी है..? कौन पूछेगा…? क्योंकि मेहरा सात पर्दे अंदर रहता है। दिन भर लग जाता है ऐसे अधिकारी से मिलने में। उसकी खुद की ड्यूटी होती नहीं, क्योंकि वह स्वयं को उसे पद का आरक्षित हकदार समझता है। यही भारतीय राजनीति की प्रदूषण की पहचान है।
ठीक है शहडोल में संविधान की पांचवी अनुसूची के तहत शहडोल आदिवासी विशेष क्षेत्र है और शायद इसीलिए शहडोल में 15 नवंबर को मुख्यमंत्री और राज्यपाल साथ-साथ आए थे भगवान बिरसा मुंडा के जनजाति गौरव दिवस को मनाने के लिए ।बिरसा मुंडा आदिवासियों के नायक थे, जो झारखंड से पहचान रखते हैं शहडोल में उनकी विशिष्ट पहचान नहीं है। शहडोल में तो दलपत सिंह-दलबीर सिंह को हम आजादी के बाद पहचानते हैं…. बिरसा मुंडा आजादी के पहले के नायक हैं लेकिन शहडोल में बिरसा मुंडा को थोपा जाता है.. शहडोल मेडिकल कॉलेज बिरसा मुंडा जी के नाम पर है, ठीक है। वह भी सही है लेकिन यह भी सही है कि जब जनजाति गौरव दिवस में मुख्यमंत्री और राज्यपाल दोनों आए तो कांग्रेसी आदिवासी विधायक फुंदेलाल जी को आदिवासियों का गौरव मानने से इनकार कर दिया। उन्हें इस राज्य स्तरीय कार्यक्रम में कोई निमंत्रण नहीं दिया गया । फुंदेलाल जी को लगा कि यह उनका अपमान है और वह शहडोल में ही धरना स्थल पर बैठ गए। जिन्हे गिरफ्तार कर लिया गया। यही राजनीतिक कसक आज है, हम जिसे चाहेंगे बाटेंगे जिसे चाहेंगे काटेंगे ….
बहरहाल उपलब्धि के रूप में हमें यह खबर दी गई कि जो पानी अमरकंटक में सोन नदी से होकर शहडोल से गुजरता है और सवा सौ किलोमीटर दूर बाणसागर के बृहद बांध को बनाता है। अब इस सोन नदी का पानी सवा सौ किलोमीटर दूर से वापस शहडोल लाया जाएगा… ताकि शहडोल के लोगों की प्यास बुझाई जा सके..?हो सकता है भविष्य में यही पानी प्रधानमंत्री जी एक बड़ी योजना के तहत अमरकंटक में बाणसागर के सोन नदी का पानी पहुंचाने के लिए कोई प्रोजेक्ट लांच कर दें…?
जरूरत भी है, क्योंकि आखिर अमरकंटक से ही सोन नदी निकली है और वह अगर सूख जाएगी तो बाणसागर में भी पानी की कमी आ सकती है और तीन राज्यों का जिम्मेदारी बाणसागर पर है कि वह भारत को खेतीहर बनाए रखें। इस तरह शहडोल में बाणसागर का पानी प्यास बुझाने आ रहा है। लेकिन जिस स्तर पर 400 पार दिल्ली में वायु का राक्षस यानी प्रदूषण अपनी सत्ता बनाए हुए हैं अगर वह शहडोल में भी 400 पर करने में आमादा हो गया तब हवा कहां से लाएंगे…? यह बड़ा प्रश्न है…? इसके लिए अभी से ही सोचना पड़ेगा।
यह सही है की शहडोल नगर में मोहन राम तालाब के स्रोत तालाब को शहडोल नगर का सर्वाधिक गंदा और प्रदूषण तालाब अप्रत्यक्ष रूप में घोषित कर दिया गया है और उसके मूल तालाब से उसको काट दिया गया है। क्योंकि उसके प्रदूषण से मोहन राम तालाब नष्ट हो रहा था। लेकिन मूल तालाब में पानी आना बंद हो गया तो वह दोस्त 3 साल सूखा तालाब बनाकर रहा फिर शहडोल में नल के जरिए जो पेयजल नगर पालिका उपलब्ध कराती थी उस तालाब भरा जा रहा है.. अच्छा है शहडोल में जब बाणसागर का पानी आएगा तो शहडोल के पूरे तालाब लबालब भर दिए जाएंगे… इससे शहडोल का जलस्तर ऊपर उठेगा।
फिर प्रश्न वहीं खड़ा है की लेकिन अगर हवा दिल्ली के 400 पर के स्तर पर चली गई शहडोल में तो प्रदूषण नियंत्रण अधिकारी मेहरा को परदे से निकलना पड़ेगा और बताना पड़ेगा की शहडोल और उमरिया तथा अनूपपुर में वायु प्रदूषण किस स्तर का है…? तो अगर अभी से बता देते तो बुराई क्या थी…? हम यह तो जान जाते कि अभी हम आजादी के अमृतकाल के बाद वायु प्रदूषण के किस स्तर पर चले गए हैं.. और जब हम शताब्दी समारोह मनाएंगे तब कितना विनाश कर चुके होंगे..? आखिर गर्व से यह कहने का हक हमें भी तो होना चाहिए कि “गर्व से कहो कि हम भ्रष्टाचारी हैं”….?