उद्योगपति गौतम अडानी के खिलाफ अमेरिका में कथित रिश्वतखोरी और धोखाधड़ी के आरोप में अभियोग की जांच के लिए सुप्रीम कोर्ट में एक नई याचिका दायर की गई है। याचिका में कहा गया है कि इस कदम से "समूह द्वारा किए गए कदाचार का खुलासा हुआ है"। यह याचिका अधिवक्ता विशाल तिवारी द्वारा अडानी-हिंडनबर्ग विवाद में भारतीय कॉरपोरेट दिग्गज द्वारा शेयर मूल्य में हेरफेर के आरोपों के मामले में एक अंतरिम आवेदन के रूप में दायर की गई है। अमेरिकी न्याय विभाग ने अडानी पर चार भारतीय राज्यों में सौर ऊर्जा अनुबंधों के लिए अनुकूल शर्तों के बदले भारतीय अधिकारियों को 265 मिलियन अमेरिकी डॉलर (लगभग 2,200 करोड़ रुपये) की रिश्वत देने की एक विस्तृत योजना का हिस्सा होने का आरोप लगाया है।अमेरिकी न्यायालय में घूसखोरी के मामले में चल रहे विवाद के मध्य नजर कितने सरकार ने 6000 करोड रुपए की गौतम अडानी के साथ किए गए अनुबंध पूर्ण कार्यों को रद्द कर दिया है क्योंकि वह अपने यहां किसी भ्रष्टाचार को पल्लवित नहीं होने देना चाहता था अथवा अन्य कोई कारण रहे होंगे फिलहाल अनुबंध रद्द कर दिया गया है
लेकिन जहां अनुबंध हुआ ही नहीं जैसे शहडोल क्षेत्र में रिलायंस सीबीएम जो मिथेन गैस निकाल रही है उसने मध्य प्रदेश सरकार के साथ कोई अनुबंध किया ही नहीं...; यानी शहडोल जिले का जो खनिज विभाग है वह उसके लिए भी अधिकार रखता है कि जब वह अनुबंध करेगा तभी मुकेश अंबानी के नेतृत्व वाली रिलायंस कंपनी गैस को निकल पाएगी क्योंकि अगर इस प्रक्रिया से गैस नहीं निकलती है तो यह अवैध गैस का उत्खनन कहलाएगा.... फिलहाल शहडोल क्षेत्र में बिना अनुबंध के 2009 से लगातार गैस निकाल रही है और मध्य प्रदेश शासन और प्रशासन लगभग मुकेश अंबानी की कंपनी से गिड़गड़ा रहा है कि कृपया करके अनुबंध कर ले.... लेकिन अदाणी-मॉडल के छुतहे हो चुके, मुकेश अंबानी और उनकी रिलायंस इंडस्ट्रीज इस भुच्च आदिवासी क्षेत्र में कानूनी प्रक्रिया का क्यों पालन करेंगे; जब अपना गुजराती भाई अदाणी दुनिया के सबसे बड़े शक्तिशाली और सतर्क लोकतंत्र वाले अमेरिका में कानून का पालन नहीं करता है तो यह शहडोल तो आदिवासी क्षेत्र है यह बना ही है लूटने और खाने के लिए...?
-------------------- ( त्रिलोकी नाथ )------------------------
इसीलिए 2009 से 2024 तक मध्य प्रदेश सरकार के विहित अनुबंध नहीं किया गया ....और कम से कम भारत के संविधान की पांचवी अनुसूची में संरक्षित अनुसूचित आदिवासी विशेष क्षेत्र शहडोल में इस अनुबंध न किए जाने की घटना को भारत की दोनों बड़ी राजनीतिक पार्टियां भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस मिलकर नजरअंदाज करती हैं.... क्योंकि लगभग दोनों का प्रशासन में यह भलीभांति ज्ञात हो चुका है कि उद्योगपति मुकेशअंबानी और उनके नेतृत्व वाली रिलायंस इंडस्ट्रीज कानून को नहीं मानता। बस उसके ना मानने को कानूनी मान्यता कैसे मिले गत 15 वर्ष से इस पर लगातार चिंतन और मनन चल रहा है...? विधायिका स्तर पर भी और कार्यपालिका स्तर पर भी। इसीलिए गत 15 साल से गैस का अवैध उत्खनन मुकेश अंबानी और उनकी नेतृत्व रिलायंस इंडस्ट्रीज शहडोल में गैरकानूनी/ अपराधिक तरीके से गैस का धड़ाधड़ निकासी कर रही है... पहली नजर में तो जो इस अनुबंध से पंजीयन के राजस्व का करोड़ों रुपए मिलने वाला था वह लगभग डुबा कर रखा गया है.... शायद राजनीतिक पार्टियों का चंदा और अन्य सहयोग रिलायंस इंडस्ट्रीज की तरफ से इसी "डूबा कर रखे गए" करोड़ों रुपए के राजस्व राशि के ब्याज से आ रहा है...?
यह बात हम इसलिए नहीं कह रहे हैं कि ऐसा हमें गलतफहमी हो रही है..
मेरे अनुभव में शहडोल क्षेत्र में आदिवासी क्षेत्र का उद्धार करने आए 1965 में के एक अन्य ओरिएंट पेपर मिल्स में भी इसी प्रकार की आपराधिक घटनाएं जानबूझकर संरक्षित की गई थी और 1992 से 1998 तक एक लंबी रिपोर्टिंग की अलग-अलग एंगल पर की गई प्रक्रिया के बाद अंततः कांग्रेस की मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह को कानून बनाकर ओरिएंट पेपर मिल्स के ऊपर करीब 300 करोड रुपए की रिकवरी निकलना पड़ा था.. और वर्तमान हर माह मिल रही में लाखों रुपए सोन नदी से मिलने वाले पानी के टैक्स के रूप में अलग से देना पड़ा था.. इसी तरह अन्य उद्योगों के साथ इस प्रदेश में होता रहा.. इसलिए यह अनुभव गम्य है।
क्योंकि उद्योगपति शहडोल आदिवासी क्षेत्र में दामाद बनकर आते हैं और सरकारें इन दामादों को तो उनके समस्त गैर कानूनी अपराध को छुपा कर रखना विधायक का और कार्यपालिका की मजबूरी हो जाती है। फिलहाल तो ओरिएंट पेपर मिल्स अमलाई की घटना से यही प्रमाणित हुआ है। कहते हैं अफीम ने अलग से इस अनुबंध का पंजीयन विभाग में पंजीयन कराया है या नहीं यह भी अभी स्पष्ट नहीं है...? अब सरकार ने ओरियन्ट पेपर मिल कि उसे दलील को स्वीकार करने की दिशा में कुछ काम किया है। जिसमें कहा गया कि वह तो आदिवासी क्षेत्र का उद्धार करने आए थे यानि भगवान के रूप में उन्होंने अवतार लिया था इसलिए वह तथाकथित 300 करोड रुपए की बकाया राजस्व राशि घटकर 70-75 करोड रुपए कर दी गई है...? फिलहाल वह भी नहीं मिली है। ओरिएंट पेपर मिल के सभी कल्याणकारी राजनीतिक कारोबार इन्हीं प्रकार के करोड़ों रुपए के बकाए के ब्याज से चल रहा है...तो यही अघोषित रिश्वत कहलाएगी और भारत में रिश्वत पर कोई कड़क कानूनी व्यवस्था फिलहाल तो उद्योगपतियों के लिए सुनिश्चित नहीं की गई है। इसीलिए भारत में अदाणी ने सोलर एनर्जी पर करीब 2200 करोड रुपए की रिश्वत यानी घू़ंस बताकर कथित तौर पर पांच राज्यों में ठेका हासिल किया है। अमेरिका की न्यायपालिका और जांच एजेंसियां इसे भ्रष्टाचार मानते हैं वह उनकी अपनी समस्या है ऐसा हम फिलहाल के लिए अपनी समझ सुरक्षित रखें.... इसके बाद भी हमें गर्व न हो कि हम भ्रष्टाचारी हैं... तो यह हमारे लिए शर्म की बात है.....?
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