कहां जा सकता है की कोई सरकारी नीति इस प्रकार की नहीं है इस प्रकार "सिंगल ट्रांसफर आर्डर" किए जाएं जबकि सूची निष्पक्ष दिखने वाली एक मुझसे निकाली जाती है ताकि कम से कम दिखने में तो भ्रष्टाचार न दिखे.....
लेकिन शहडोल में यह ज्ञान सक्षम योग्य अधिकारी को जो अधिकारी की पात्रता रखता हो उसे शायद हो सकता है अवश्य हो.... और वह ऐसे आर्डर नहीं करता ...लेकिन जब किसी बाबू को अधिकारी बना दिया जाए तब वह है चाहे कोषालय से करोड़ों रुपए का गैरकानूनी आहरण करना हो या फिर अधिकारी बनकर या बनाया जाकर मंत्री जी से फ्रेंचाइजी लेकर के सिंगल ट्रांसफर आर्डर धड़ाधड़ कर सकता है....
क्योंकि ऐसे "बाबू कम अधिकारी" का कोई नैतिक दायित्व नहीं होता है. जब अनैतिकता की प्रसव पीड़ा से उसका जन्म होता है उसे मालूम होता है कि वह जन्मजात अधिकारी पद में गैरकानूनी कार्यो के लिए प्रकट हुआ है , तो अगर वह कानूनन काम करेगा तो यह उसकी वफादारी और कर्तव्यनिष्ठा के खिलाफ गद्दारी होगी।
इसीलिए मंत्री जी के इच्छा के अनुसार वह आंख मूंदकर आदिम जाति कल्याण में जिले का अधिकारी बनकर जिला अंतर्गत ट्रांसफर के कार्य का संपादन कर रहा है। ऐसे अधिकारी अंसारी का मानना यह है यह जिम्मेदारी पात्र अधिकारियों की है कि वे कर्तव्य निष्ठा का पालन करें और जब चुनाव आता है तो वह युद्ध होता है, युद्ध में सब जायज होता है फिलहाल अघोषित चुनाव प्रक्रिया लागू हो चुकी है और ऐसे में पार्टी फंड कलेक्शन की जिम्मेदारी राम भक्त अंसारी को दी गई है।
क्योंकि पार्टी को मालूम है कि उनके पास कर्तव्यनिष्ठ जो मुन्ना भाई थे वह खुद चुनाव लड़ने के लिए बेताब हैं मुन्ना भाई का भी दावा है कि उन्हें राजमाता का आशीर्वाद प्राप्त है और वह राजमाता के नवीन दत्तक पुत्र हैं और राजमाता अपने दत्तक पुत्र को टिकट नहीं देंगी, ऐसा संभव नहीं ....
इस तरह मुन्नाभाई के सहयोग से राम भक्त अंसारी का कार्यभार पूरी कर्तव्यनिष्ठा से मुन्ना भाई के अनुपस्थिति में उसका काम हो रहा है ।
जैसे "करते हो तुम कन्हैया... मेरा नाम हो रहा है... इस आधार पर आदिम जाति कल्याण विभाग में खुलेआम पूरी पारदर्शिता के साथ एक बाबू को अधिकारी बनाकर मंत्री जी ने खुली लूट की छूट दे दी है और युद्ध में सब जायज है इसलिए यह भी जायज है कि वह "सिंगल ट्रांसफर आर्डर" धड़ाधड़ करता रहे टारगेट विधानसभा चुनाव के लक्ष्य को प्राप्त करना है अब यह अलग बात है कि ऐसे आर्डर पर जमीन में यह ने विभिन्न कार्यालयों में धक्का-मुक्की मची हुई है ।
ऐसे में एमएस अंसारी की अफसरशाही के इन दिनों जलवे हैं लूट सके तो लूट अंत काल पछतायेगा जब प्राण जाएंगे छूट... इस मूल सिद्धांत पर आदिवासी विभाग इन दिनों चर्चा का गर्म विषय है कौन जाने किस मास्टर की घूस की राशि कब कौन कहां लेकर भाग जाए.... अब बात अन्य विभागों की भी धड़ल्ले से चल रही है.... मंत्री तो मंत्री उनके प्यादे भी जलवो के सुमार पर हैं।
इसीलिए कहा गया है कि राजा से बढ़कर राजा की पिलाई होती है जिसे कहीं भी पेशाब की छूट होती है सीधी जिले में कर्मठ भाजपा कार्यकर्ता ने तो शराब और सिगरेट के धुए के धुंध में गलत जगह पेशाब कर दीजिए लेकिन शहडोल में पिलाई बिना पिए ही शहडोल जिले के कर्मचारियों के स्थानांतरण में सफर कभी भी कहीं भी पेशाब कर देता है और कोई बोलता भी नहीं क्योंकि सबको मालूम है यह राजा की पिलई है।
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