एक था जोशीमठ ....भाग 3
लोकतंत्र की
असफलता का
प्रमाण पत्र है ज्योतिरमठ...?
.........( त्रिलोकी नाथ)..........
आदि शंकराचार्य द्वारा स्थापित जोशी मठ का आध्यात्मिक केंद्र तीर्थ धीरे-धीरे कैसे विनाश की ओर चला गया और यहां रहने वाले ता नागरिक जो हजारों की संख्या में है इस भीषण ठंड के हालात में सड़क में आने को मजबूर हो गए| यह लोकतंत्र की असफलता का प्रमाण पत्र भी है| ज्योतिर मठ में लोकतांत्रिक प्रक्रिया को अपनाते शंकराचार्य के उत्तराधिकारी अपनेअपने कर्तव्यों का लोकतंत्र के अनुरूप निर्वहन करते हुए माननीय उच्च न्यायालय में इस बाबत याचिका प्रस्तुत की है उसके परिणाम क्या आएंगे वह अपनी जगह किंतु हमें यह जानना जरूरी है कि आखिर हमने इस लोकतंत्र के आने के बाद अपनी कौन सी आध्यात्मिक पृष्ठभूमि उस कार्यकाल में जो कि स्वयं को हिंदुत्व का स्वघोषित ठेकेदार कहता है ऐसे राजनीति के संरक्षण में हमने अपने ऐतिहासिक ज्योतिर मठ के आध्यात्मिक केंद्र को विलुप्त होने की कगार में पहुंचा दिया है तो जानिए और क्या था इस ज्योतिर मठ मे
हिंदुओं के लिये एक धार्मिक स्थल की प्रधानता के रूप में जोशीमठ
, आदि शंकराचार्य की संबद्धता के कारण मान्य हुआ। जोशीमठ शब्द ज्योतिर्मठ शब्द का अपभ्रंश रूप है जिसे कभी-कभी ज्योतिषपीठ भी कहते हैं। इसे वर्तमान ईसा पुर्व ५१५ में आदि शंकराचार्य ने स्थापित किया था उन्होंने यहां एक शहतूत के पेड़ के नीचे तप किया और यहीं उन्हें ज्योति या ज्ञान की प्राप्ति हुई यहीं उन्होंने शंकर भाष्य की रचना की जो सनातन धर्म के सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण ग्रंथों में से एक है
मंदिरों के हर प्राचीन शहर की तरह जोशीमठ भी ज्ञान पीठ है जहां आदि शंकराचार्य ने भारत के उत्तरी कोने के चार मठों में से पहला की स्थापना की इस शहर को ज्योतिमठ भी कहा जाता है तथा इसकी मान्यता ज्योतिष केंद्र के रूप में भी है। संपूर्ण देश से यहां पुजारियों, साधुओं एवं संतों का आगमन होता रहा तथा पुराने समय में कई आकर यहीं बस गये बद्रीनाथ मंदिर जाते हुए तीर्थयात्री भी यहां विश्राम करते थे वास्तव में तब यह मान्यता थी कि बद्रीनाथ की यात्रा तब तक अपूर्ण रहती है जब तक जोशीमठ जाकर नरसिंह मंदिर में पूजा न की जाए।
आदि शंकराचार्य द्वारा बद्रीनाथ मंदिर की स्थापना तथा वहां नम्बूद्रि पुजारियों को बिठाने के समय से ही जोशीमठ बद्रीनाथ के जाड़े का स्थान रहा है और आज भी वह जारी है जाड़े के 6 महीनों के दौरान जब बद्रीनाथ मंदिर बर्फ से ढंका होता है तब भगवान विष्णु की पूजा जोशीमठ के नरसिंह मंदिर में ही होती है बद्रीनाथ के रावल मंदिर कर्मचारियों के साथ जाड़े में जोशीमठ में ही तब तक रहते हैं, जब कि मंदिर का कपाट जाड़े के बाद नहीं खुल जाता।
जोशीमठ एक परंपरागत व्यापारिक शहर है और जब तिब्बत के साथ व्यापार चरमोत्कर्ष पर था तब भोटिया लोग अपना सामान यहां आकर बिक्री करते थे एवं आवश्यक अन्य सामग्री खरीदकर तिब्बत वापस जाते थे वर्ष 1962 में भारत-चीन युद्ध के बाद यह व्यापारिक कार्य बंद हो गया और कई भोटिया लोगों ने जोशीमठ तथा इसके इर्द
गिर्द के इलाकों में बस जाना पसंद कियापर्वतों से दूर होने के कारण, जहां वे रहते हैं, यह सुनिश्चित हुआ कि वे अपने विशिष्ट सांस्कृतिक परंपरा को संगीत एवं नृत्य के रूप में कायम रख सकेंअधिकांश गीत एवं नाच या तो धार्मिक या फिर लोगों की जीवन शैली पर आधारित हैं जो आज भी मूल रूप से कृषिकार्य से संबंधित हैं।
गीत के साथ थाडिया नृत्य बसंत पंचमी को होता है जो बसंत के आगमन समारोह का प्रतीक है। झुमेला नृत्य दीपावली पर होता है तथा पांडव नृत्य जाड़े में फसल कटने के बाद किया जाता है, जिसमें महाभारत की प्रमुख घटनाओं को प्रदर्शित किया जाता है जीतू बगडवाल तथा जागर जैसे अन्य नृत्यों में पौराणिक कथाओं का प्रदर्शन होता है परंपरागत परिधानों से सज्जित नर्तक ढोल एवं रनसिंधे की धुन पर थिरकते हैं लोकगीतों का गायन खासकर उस समय होता है जब महिलायें एक जगह जमा होकर परंपरागत गीत गाती हैं, जिनमें बहादुरी के कारनामे, प्रेम तथा कठिन जीवन, जो पहाड़ी पर वे व्यतीत करती हैं, शामिल रहते हैं जिले में मनोरंजन एवं मनोविनोद के प्रमुख अवसर त्योहार, धार्मिक एवं सामाजिक मेले है विशेष अवसरों पर लोग शिव एवं पार्वती से संवंधित किंवदन्तियों का स्वांग रचते है दशहरे के दौरान रामलीला का वार्षिक आयोजन होता है।
नरसिंह मंदिर पर एक अन्य समारोह तिमुंडा बीर मेला आयोजित होता है स्पष्ट रूप से इस समारोह में बीर 8 किलो कच्चा चावल, बड़ी मात्रा में गुड़ तथा घी के साथ एक बकरे का खून पीता है तथा उसके गुर्दे एवं हृदय का भक्षण करता है उसके बाद वह भगवती के वशीभूत होकर अचेतावस्था में नाचता है।
तथा अपने चार पसंदीदा एवं सर्वाधिक विद्वान शिष्यों को चार मठों की गद्दी पर आसीन कर दिया, जिसे उन्होंने देश के चार कोनों में स्थापित किया था उनके शिष्य ट्रोटकाचार्य इस प्रकार ज्योतिर्मठ के प्रथम शंकराचार्य हुए जोशीमठ वासियों में से कई उस समय के अपने पूर्वजों की संतान मानते हैं जब दक्षिण भारत से कई नंबूद्रि ब्राह्मण परिवार यहां आकर बस गए तथा यहां के लोगों के साथ शादी-विवाह रचा लिया
जोशीमठ के लोग परंपरागत तौर से पुजारी और साधु थे जो बहुसंख्यक प्राचीन एवं उपास्य मंदिरों में कार्यरत थे तथा वेदों एवं संस्कृत के विद्वान थे। नरसिंह और वासुदेव मंदिरों के पुजारी परंपरागत डिमरी लोग हैं। यह सदियों पहले कर्नाटक के एक गांव से जोशीमठ पहुंचे उन्हें जोशीमठ के मंदिरों में पुजारी और बद्रीनाथ के मंदिरों में सहायक पुजारी का अधिकार सदियों पहले गढ़वाल के राजा द्वारा दिया गया वह गढ़वाल के सरोला समूह के ब्राह्मणों में से है। शहर की बद्रीनाथ से निकटता के कारण यह सुनिश्चित है कि वर्ष में 6 महीने रावल एवं अन्य बद्री मंदिर के कर्मचारी जोशीमठ में ही रहें। आज भी यह परंपरा जारी है।
त्रिशूल शिखर से उतरती ढाल पर, संकरी जगह पर अलकनंदा के बांयें किनारे पर जोशीमठ स्थित है इसके दोनों ओर एक चक्राकार ऊंचाई की छाया है और खासकर उत्तर में एक ऊंचा पर्वत उच्च हिमालय से आती ठंडी हवा को रोकता है यह तीन तरफ बर्फ से ढंके दक्षिण में त्रिशूल (7,250 मीटर), उत्तर पश्चिम में बद्री शिखर (7,100 मीटर), तथा उत्तर में कामत (7,750 मीटर) शिखर से घिरा है हर जगह से हाथी की शक्ल धारण किये हाथी पर्वत को देखा जा सकता है फिर भी इसकी सबसे अलौकिक विशेषता है एक पर्वत, जो एक लेटी हुई महिला की तरह है और इसे स्लीपिंग ब्यूटी के नाम से पुकारा जाता है। (मुक्त ज्ञानकोश विकिपीडिया से)
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