मामला जनता जनार्दन के अपमान का
हमसे भूल
हो गई ...
हमका
माफी
दयी देओ..
अंतत: "विश्रामपुर के संत" ने माफी मांग ली। हालांकि क्षमा मांगने से कोई छोटा नहीं हो जाता किंतु ऐसी परिस्थितियां बनती ही क्यों हैं जबकि आप गंभीर पद में बैठे हो...? यह हालात महामहिम राज्यपाल पद की गरिमा को पतित करता है
( त्रिलोकीनाथ )
उपन्यासकार श्रीलाल शुक्ल ने एक पुस्तक लिखी "विश्रामपुर का संत जिसमें राज्यपाल बनाए जाने की परिस्थितियों का और उसके दुरुपयोग का उलाहना है
महाराष्ट्र के राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी ने ‘गुजराती और राजस्थानी’ वाले अपने बयान पर माफी मांग ली है। राज्यपाल ने कहा था कि अगर मुंबई से गुजरातियों और राजस्थानियों को हटा दिया जाए तो शहर के पास न तो पैसे रहेंगे और न ही वित्तीय राजधानी का तमगा रहेगा। उनके इस बयान पर चौतरफा विरोध हुआ था। खुद महाराष्ट्र के सीएम एकनाथ शिंदे ने इस पर आपत्ति जताई थी।
गुस्सा इस कदर फूट पड़ा था की पूर्व मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने राज्यपाल कोश्यारी को कोल्हापुरी चप्पल देखने की सलाह दी थी तमाम राजनीतिक हलकों से विरोध को देखते हुए राज्यपाल कोश्यारी ने सोमवार को एक लंबा बयान जारी करते हुए माफी मांग ली।
कोश्यारी ने यह बयान शुक्रवार शाम को एक कार्यक्रम में दिया था, जिसपर कई राजनीतिक पार्टियों द्वारा आपत्ति जताए जाने के बाद विवाद पैदा हो गया। हर पद की अपनी एक गरिमा होती है उसकी एक मर्यादा होती है लोकतंत्र की यही एक खूबसूरती है किंतु जब इन मर्यादाओं को पार करके कोई राजनीतिक दल का कार्यकर्ता प्रायोजित तरीके से अथवा किसी षड्यंत्र का हिस्सा होकर कार्य करने की आदत बना लेता है तब वह लोकतंत्र को भी प्रेरित करता है और स्वयं को भी पतंग की राह में ला खड़ा करता है। जिसका परिणाम यह होता है कि सर्वत्र उसकी निंदा होने लगती है। और उसे बैकफुट में आना पड़ता है। वहीं निष्ठावान कार्यकर्ता रहे भरत कोशियारी के साथ घटित हुआ तो सवाल यह भी है कि इसके बाद उन्हें महाराष्ट्र के राज्यपाल भवन में रहने का कितना नैतिक अधिकार सुरक्षित रह गया है।
यह अलग बात है कि उनकी इस कलाकारी को उनकी योग्यता के रूप में देखा जाएगा और वह महाराष्ट्र से नहीं हटाए जाएंगे। किसी बड़े नए घटनाक्रम में उनकी योग्यता का उपयोग किया जाएगा। जैसे कि हाल में सत्ता परिवर्तन में उनकी योग्यता फायदे का सौदा रही एक पार्टी के लिए। किंतु महाराष्ट्र की जनमानस में भारी उथल-पुथल कर गई खासतौर भारत की एकमात्र हिंदू हृदय सम्राट से परिभाषित शिवसेना और शिवसैनिकों के जीवन में खलल डाल करके । यही सत्ता का चरित्र है किंतु सत्ता का पतित चरित्र महामहिम पद पर पदस्थ संवैधानिक व्यक्तियों को जब पतित करता है तो संकेत अच्छे नहीं माने जाते।
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