हिंदू-मुस्लिम-सिंधी भाई
मिलकर तालाब की
लूट मचाई।
( त्रिलोकीनाथ )
हिंदू-मुस्लिम,सिख-ईसाई
हम सब हैं भाई-भाई ।
यह नारा 20 वीं सदी का गया गुजरा पिछड़ा हुआ नारा हो गया है इस नारे की धमक भी धड़-धड़ाकर आज के मीडिया गिरी में गिर गई है ।जैसे डॉलर के सामने रुपया गिरता जा रहा है जैसे कभी रुपए की औकात देश की आजादी के समय डॉलर के बराबर थी वैसे ही यह नारा अपनी मूल्य के बराबर में कारगर रहा और देश को संभालने में काम आया ।अब यह नारा बेमानी हो चला ,नेताओं का जुमला हो गया है ।
किंतु इस नारे का आधुनिकीकरण 21वीं सदी में हम शहडोल नगर में देखना चाहते हैं क्योंकि बिना हिंदू-मुस्लिम के ध्रुवीकरण किए कोई मुद्दा जिंदा ही नहीं होता....
लंबे समय से हम तालाब के लिए चेतना पैदा करने का काम करते रहे
विशेषकर मोहन राम तालाब के लिए क्योंकि वह शहडोल के तमाम तालाबों की उच्च तकनीकी वाला सवा सौ साल पुराना कुशल तालाब था जो अब अराजकता और धार्मिक आतंक का शिकार हो गया है।
हिंदू-मुस्लिम-सिंधी भाई
सब मिलकर तालाब की लूट मचाई।
यह नारा यूं ही याद नहीं आता है। जब भी कभी पानी के संकट से हम शहडोल के संस्थापक काल के रहवासी प्रभावित होते हैं तो समस्या के मूल कारण की ओर जाते हैं।
हमारे घर में भी एक कुआं था अच्छा मीठा पानी था। हमें पानी की तकलीफ नहीं थी। बड़ा परिवार होने के बावजूद भी पानी के लिए कहीं भटकना नहीं पड़ता था। बड़ा परिवार इसलिए क्योंकि समाज का एक बड़ा हिस्सा हमसे जुड़ा भी रहता था। अब कुआं नहीं रहा; इसलिए क्योंकि डेढ़ दशक पूर्व कुएं का पानी हमसे अलविदा कह दिया और लगभग सूख गया था। काफी गहरा कुआं था फिर भी पीने को पानी मिल जाता था।
कुआं जब सूख गया तो हमें भी अलविदा कहना पड़ा अन्य अन्य कारणों से भी यह कुआं इसलिए सूखा क्योंकि भारतीय जनता पार्टी की शहडोल में नगर पालिका परिषद काम कर रही थी जिसकी जिम्मेदारी थी कि वह तालाबों का संरक्षण करें। हमारे कुएं में 4 तालाबों का जल स्रोत हमें पानी सप्लाई करता था हनुमान मंदिर के बगल में
विशाल घरौला तालाब ,अब जहां एकता बिल्डिंग वालों का मकान बन गया है शंभूनाथ शुक्ला के पीछे बड़ा तालाब और मोहनराम तालाब के 2 तालाब। इन तालाबों के भरे होने का मतलब हमें हमारे कुएं में भरपूर पेयजल की गारंटी थी।घरौला तालाब हमारे स्वर्गीय मित्र पार्षद रहे रवि वर्मा के वोट बैंक का भेंट चढ़ गया। याने तमाम अतिक्रमण कारी तालाब में इतना अतिक्रमण किए कि अंततः जब इसकी जीर्णोद्धार का कथा लिखी गई तो इस तालाब का कुल क्षेत्रफल को आधा से भी कम कर दिया गया। नगर पालिका परिषद की दूर दृष्टि से यह तालाब भी लगभग मृतप्राय तालाबों की श्रेणी में आ सकता है फिलहाल यह मृत होने की अवस्था में जिंदा है ।
तो जिम्मेदार लोगों का कहना है तालाब मर रहे हैं तो मरने दीजिए ....क्यों चिंता करते हैं। बोरिंग यानी ट्यूबवेल से काम चलाइए।
हम अपना दुख कैसे शेयर करें। हमारे घर में चार बोरिंग अलग-अलग एंगल पर ड्रिल की गई कुछ दिन चलने के बाद यह बोरिंग भी हमसे अलविदा हो ली है याने बोरिंग में पानी देना बंद कर दिया।
जब तालाब ही नहीं है जल स्रोत ही नहीं है तो विशेष क्षेत्र में बसा हमारा मकान पानी कैसे देता। इस तरह हम नगरपालिका के उधार के पानी पर अपने जीवन का आसरा ढूंढने लगे।
उधार का पानी इसलिए लिखना पड़ रहा है क्योंकि नगर पालिका परिषद जो पानी सरफा नदी को जिंदा मानकर उससे लेने के लिए सराफा नाला पर डैम बनाया था ।वह सरफा नदी ही नेताओं की बेशर्मी से लगभग मृत हो गई। कहते हैं अगर कोयला खदानों का पानी सरफा नाला से ना भरा जाए तो शहडोल के नगर के लोग बूंद-बूंद पानी पानी के लिए तरस जाएंगे।
यह लोकतंत्र का बड़ा पाप है शहडोल नगर के लिए। विकास नाम का यह राक्षस शहडोल की पूरी पानी को पी गया है। अब जिंदगी पीना रह गया है जिसका परिणाम नगर पालिका परिषद ने ₹10 हर माह मिलने वाले पानी की कीमत से बढ़ाकर झटके पर झटके में डेड सो रुपए माह कर दिया लगता है।
दिल्ली केजरीवाल सरकार पढ़े-लिखे मूर्खों की मंडली ...?
शहडोल के हालात देखकर ऐसा लगता है दिल्ली वाले केजरीवाल सरकार पढ़े-लिखे मूर्खों की मंडली है जो रामलीला करके दिल्ली के लोगों को मुफ्त पानी पिलाने का काम कर रही है। क्योंकि वहां भी यमुना सूख गई है फिर भी पानी का मौलिक अधिकार भारत की आजाद संविधान की मौखिक गारंटी के रूप में दिल्ली के पढ़े-लिख नेताओं ने स्वीकार कर लिया है। हमारे यहां के पढ़े-लिखे नगर पालिका परिषद और प्रदेश सरकार अभी इसे मानवीय अधिकार के रूप में नहीं देखती है। इसीलिए पानी की कीमतें आसमान पर कर दी गई है। सब तालाबों और उसकी जल स्रोतों की हत्या करके यह सुनियोजित षड्यंत्र के तहत किया गया माफिया नुमा नेताओं का आम जनता पर खुली लूट की घोषणा भी मानी जानी चाहिए अन्यथा 1 सेकंड भी पानी के अधिकार से वंचित करने का अपराध संबंधित अधिकारियों के खिलाफ क्यों नहीं दर्ज होना चाहिए...?
चाहे कारण जो भी हो क्योंकि प्राकृति दत्त जल स्रोतों को नष्ट करने का षड्यंत्र पूर्ण कार्य चाहे नेता हो या अधिकारी दोनों ही मिलकर शहडोल में क्रियान्वित किए हैं औरअभी भी सुधरने को तैयार नहीं है।
ऐसी खबरें अखबारों में आती रहती है तो देखना होगा शहडोल पालिका परिषद की विकास की में व्यवस्था पानी को बोतल में बंद करके कब राशन की तरह घर घर पहुंचाने का धंधा प्रारंभ करती है। अथवा गुलाम भारत की तरह ही पानी पर नैतिक अधिकार की स्वतंत्रता देती है।
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