दाग अच्छे हैं।
धन्य है, हिंदू मुस्लिम
वोट ध्रुवीकरण स्टार्टअप
आदेश से 17 साल लागू हुआ
वायु प्रदूषण कानून...
(त्रिलोकीनाथ )
यूं तो सुप्रीम कोर्ट ने 17 साल पहले साल 2005 में सुप्रीम
कोर्ट ने लाउडस्पीकर पर महत्वपूर्ण आदेश दिया था। SC ने कहा था कि ऊंची आवाज यानी तेज शोरगुल सुनने के लिए मजबूर करना मौलिक अधिकार का हनन है। कोर्ट ने साफ कहा था कि किसी को भी इतना शोर करने का अधिकार नहीं है कि पड़ोसियों और दूसरे लोगों को परेशानी हो। कोई भी शख्स लाउडस्पीकर बजाते हुए अनुच्छेद 19(1)ए के तहत मिले अधिकार का दावा नहीं कर सकता है। एक प्रकार का यह वायु प्रदूषण के खिलाफ भी बड़ा आदेश था
तो इस तरह 17 साल पहले बने कानून पर जब तक जनचेतना जागृत नहीं होती तब तक उच्चतम न्यायालय का आदेश भी टांय-टांय फिश्श जैसा हो जाता है। अब जबकि सत्ता की राजनीतिक संरक्षण में महाराष्ट्र के नेता राज ठाकरे ने इस पर राजनीति की तब जाकर पूरे देश के धार्मिक संस्थाओं में लगे हुए लाउडस्पीकर उतरने लगे यानी वायु प्रदूषण कम होने लगा ।
तो इससे क्या सीखा हमारे लोकतंत्र ने।
अपने समझ में तो इतना ही आया है कि अगर हिंदू मुस्लिम का धंधा आड़े नहीं आता तो शायद वायु प्रदूषण को लेकर सुप्रीम कोर्ट का आदेश रद्दी की टोकरी में पड़ ही रह जाता।
तो अगर यह ताकत राजनीतिक चेतना में हिंदूमुस्लिम को लेकर इंप्लीमेंट हुई है तो गंगा के प्रदूषण के मामले में हिंदूमुस्लिम का धंधा आखिर क्यों अपनी दुकानदारी नहीं ढूंढ पा रहा है। क्योंकि इसमें जितने भी कारोबारी हैं सब का प्रदूषण लाभ कमा रहा है। इसलिए गंगा निर्मल नहीं हो पा रही है। यह भी सही है कि जमाना अब गांधीवाद का नहीं है गंगा प्रदूषण के खिलाफ 2 बड़े व्यक्तित्व आमरण अनशन करके गंगा के लिए अपनी जान गंवा चुके हैं। सत्ता का बाल भी बांका नहीं हुआ। क्योंकि नैतिकता जैसा कोई शब्द राजनीति में जगह नहीं रखता।
तो जब तक गंगा के प्रदूषण का मामला हिंदूमुस्लिम के नजरिए से नहीं देखा जाएगा उसमें वोट बैंक का ध्रुवीकरण नहीं किया जाएगा तब तक गंगा या यमुना यूंही प्रदूषित होती रहेंगी।
जब हम गंगा की बात करते हैं तब भारत की सभी नदियों की बात कर रहे होते हैं यह समझ कर चलना चाहिए। तो जहां जितनी भी नदियां हैं हिंदू और मुस्लिमों का प्रदूषण वहां खोजने का काम होना चाहिए। वह प्रदूषण यह जरूर स्पष्ट करें कि उसमें वोट बैंक का ध्रुवीकरण जिंदा हो सके। अगर नदियों का प्रदूषण वोट बैंक के ध्रुवीकरण की राजनीति को जीवित करने का पुरुषार्थ पैदा नहीं करता तो कोई भी कानून बन जाए कोई भी न्यायालय कुछ भी गंगा यमुना जैसी कई नदियों के सतत निर्मल प्रवाह के लिए बनाए गए तमाम कानून सिर्फ रद्दी की टोकरी के अलावा और कहीं जगह नहीं पा सकते।
प्रदूषण के खिलाफ क्यों नहीं बने स्टार्टअप..
अब जो राजनीति के स्टार्टअप हैं जैसा कि प्रधानमंत्री जी अक्सर स्टार्टअप को लेकर रोमांचित रहते हैं और बोलते हैं उसकी संभावनाओं पर आश्चर्यजनक आशा रखते हैं उन्होंने फ्रांस में वहां भारतीयों के जरिए भारत के तमाम वोटरों को संबोधन कर रहे कि कैसे 2014 के पहले करीब 600 स्टार्टअप थे जो 7 साल में बढ़कर 60,000 से ज्यादा हो चुके हैं और वह करोड़ों करोड़ों रुपए कमा रहे हैं आखिर ऐसे स्टार्टअप गंगा मां की निर्मलता के लिए क्यों स्टार्ट नहीं हो रहे हैं उन्हें किसी ने रोका है क्या...? जैसे वायु प्रदूषण को लेकर लाउडस्पीकर का आदेश 17 साल से रुका पड़ा हुआ था उसमें जब हिंदू मुस्लिम की ऊर्जा भरी गई तब वह स्टार्ट हुआ और एक धमकी में राज ठाकरे ने कानून लागू करवा दिया तो क्यों नहीं उन्हें ऐसे स्टार्टअप सुनिश्चित करने चाहिए जो नदियों के प्रदूषण के मामले में हिंदू मुस्लिम वोट बैंक की राजनीति का ध्रुवीकरण पैदा कर सकें... तभी जाकर धार्मिक प्राचीन नदी नालों सहित अन्य जल संरचनाओं के प्रदूषण पर शायद कानून अपना काम करेगा।
अन्यथा दिन प्रतिदिन हम शहडोल जैसे आदिवासी क्षेत्र में बैठने वाले लोग भी देख रहे हैं कि चाहे सोन नदी हो, चाहे नर्मदा नदी हो या जोहिला नदी अथवा शहडोल जैसीनगर प्रॉपर के तमाम सैकड़ों तालाबों की दुर्दशा और बर्बादी का आलम लगातार बढ़ता ही जा रहा है।
क्या कुछ ऐसे स्टार्टअप हो सकते हैं जो इन नदी तालाबों के बीच में हिंदूमुस्लिम कि वह दुकानदारी पैदा कर सकें जिसमें भारत के संविधान में बने हुए मृत पड़े कानून जीवित होकर उसी तरह लागू हो जाएं जैसे कि कोई राज ठाकरे सत्ता के इशारे पर सुप्रीम कोर्ट के 17 साल पुराने कानून को लागू करा पाने में अपना भी सीनाठोक रहा है। क्योंकि जब तक जनता का जागरण नहीं होगा सत्ता की मद में बैठी व्यवस्था प्राथमिकता नहीं देती है।
इतना तो तय है लेकिन लाउडस्पीकर के अंदर जो हिंदूमुस्लिम का वायरस पैदा किया गया था वैसा वायरस गंगा प्रदूषण के मामले में क्यों पैदा नहीं किया जा सकता। ताकि हमारे नदी नाले प्रदूषण मुक्त हो सकें। वह भी तब जबकि हमारे देश में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपनी पूरी ताकत से सत्तासीन है जिनका दावा है कि "गंगा मां ने उन्हें बनारस ने बुलाया था"। किंतु वह भी मां गंगा एक नदी मात्र के प्रदूषण को खत्म ना कर सके। इसलिए यह व्यंग लिखना पड़ा काश भारत के संविधान के अंदर विशेषकर प्रदूषण कारी संविधान के अंदर ऐसे स्टार्टअप पैदा हों जो "हिंदूमुस्लिम वोट बैंक के ध्रुवीकरण" को नदियों के प्रदूषण मुक्त बनाने में काम आ सके। वायु प्रदूषण हटाने के लिए "स्टार्टअप राज ठाकरे" को बहुत-बहुत बधाई।
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