शुक्रवार, 13 मई 2022

"स्काईलेब" के लूट का सवाल लिए दर-दर भटक रहे हैं नेता..

"अलादीन का चिराग "गुम होते ही

 परेशान है विधायिका 

"स्काईलेब" के लूट 

का सवाल लिए 

दर-दर भटक रहे हैं नेता..

       (त्रिलोकीनाथ)

माननीय उच्चतम न्यायालय ने ओबीसी आरक्षण पर फैसला क्या दिया मानो अंतरिक्ष से स्काईलेब कहां गिरेगा... इस पर जो रोमांच वर्षों पहले बना था वही रोमांच पुनर्जीवित हो गया। स्काईलेब गिरने में तब रोमांच और भय व खतरे का था, अब लूट का है.... कि आरक्षण के फैसले से ओबीसी वोट बैंक कहां-कहां गिर सकता है। ऐसा लगता है मानो सरकार और नेताओं दोनों का खजाना आम जनता के हवाले कर दिया गया है इसलिए मध्य प्रदेश सरकार के मुख्यमंत्री अपना विदेश दौरा कैंसिल कर दिए कह रहे हैं यह सब उनके प्यार के लिए किया तथा 13 तारीख को हर जिले में सभी नेता भेजे गए कि जाकर लोकतंत्र में मूर्छित पड़े पत्रकारिता से कहिए और ढूंढिए इसका इलाज कहां कैसे कर रहा है और उसे कैसे लूटा जा सकता है।

 कांग्रेस पार्टी और भारतीय जनता पार्टी मानो ओबीसी आरक्षण के फैसले वाले इस टूटे हुए स्काई लैब की लूट के लिए खो खो की शुद्ध भाषा में कहें शुद्ध भाषा में कहा जाए तो कुर्सी दौड़ की प्रतियोगिता पैदा कर दिए हैं। ऐसे नहीं  हम हैं तेरे प्यार में पागल ओबीसी वालों आरक्षण के चलते।


 संविधान निर्माताओं ने दलित उत्थान के लिए आरक्षण की जो जो कल्पना की थी वह तो पूरी हुई नहीं, हां उससे जो लोकतंत्र का दुर्भाग्यजनक वोट बैंक का लूट का धंधा डिवेलप हुआ उसे पॉलीटिकल कॉर्पोरेट इंडस्ट्रीज की तरह राजनीतिक पार्टियां अपने-अपने हितों को पूरा करने के लिए पूरी ताकत लगा दी। यह कहना गलत होगा की ओबीसी आरक्षण से निकलने वाले वोट बैंक की लूट में भाजपा सबसे आगे दौड़ रही है इस ओबीसी आरक्षण वोट बैंक का धंधा तब के संत स्वरूप दिखने वाले राजा नहीं फकीर है किस शब्दों से नवाजे गए प्रधानमंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह ने स्टार्टअप को पैदा किया था जो 21वीं सदी में कुर्सी दौड़ की तरह खुली लूट की प्रतियोगिता का कारण बन गया है।

  अगर एक इमानदारी से चाहते तो संविधान में आरक्षण की व्यवस्था से निहित उद्देश्य पूर्ति की समीक्षा कर सकते थे.. क्या वास्तव में आरक्षण ने अपने उद्देश्य पूर्ति में दलित उत्थान के लक्ष्य को पाया था अथवा नया उद्देश्य पैदा कर रहा था...? कड़वा सच है कि आरक्षित वर्ग में  सिवाय नए सामंतवादी निर्माण के अलावा आरक्षण संविधान के उद्देश्य के हिसाब से फेल हो गया है। जिस वर्ग में आरक्षण दिया गया था उसमें अनुसूचित सभी जातियों का समतामूलक विकास नहीं हुआ। क्योंकि समूचे आरक्षण का लाभ कुछ  जातियों ने उठा लिया बाकी जातियां आजादी के अमृत महोत्सव काल में जहां की तहां पड़ी है।

 और अगर यही आरक्षण उद्देश्य की पूर्ति है तो कम से कम 10000 साल अंतिम पंक्ति के अंतिम व्यक्ति को लाभ मिलने में आरक्षण का सिद्धांत शायद काम करें।

 आज भी बैगा जनजाति का सांसद आरक्षित क्षेत्र में निकल कर नहीं आया है यही हाल अन्य आरक्षित जातियों का है तो फिर ओबीसी आरक्षण सिवाये प्रोपेगेंडा के कुछ भी नहीं। ओबीसी में  सामंतवादीयो  के निर्माण के अलावा कुछ भी नहीं ।

क्योंकि निचले तबके की समाज में भरोसा का सिद्धांत लाने की जो कयामत रही उसकी तो नेताओं ने मिलकर हत्या कर दी। यही कारण था उत्तर प्रदेश में आरक्षित क्षेत्र में कई जातियों ने अपने अपने नेता पैदा कर लिए और यह है एक राजनीतिक दल के सूक्ष्म जातिवाद किस सिद्धांत के अनुरूप है।

नतीजा का सवाल यह है की लाश जलाने के लि प्रशासन बलात्कार पीड़िता की लाश को रात के अंधेरे में कीमती मिट्टी तेल पेट्रोल डालकर आग लगा दी थी। वैचारिक पतन की इन परिस्थितियों में आरक्षण के मंथन से जो जातिवाद का अलादीन का चिराग वाला जिन्न निकला, हर नेता उस जिन्न को चुनाव के धंधे में उसे खींचकर अपनी इच्छा पूर्ति करता रहा है। किंतु इस बार अलादीन का चिराग  ही सुप्रीम कोर्ट ने खत्म कर दी।

 तब कुत्ताघसीटा में राजनीतिक पार्टियां अपने नए नए इवेंट क्रिएट करने में लग गई है। बजाय इसके कि इस फैसले से कम से कम यह सबक लेते ही क्या जो एससी एसटी को आरक्षण लागू हुआ था उससे सामाजिक बराबरी आजादी के अमृत महोत्सव काल में जिंदा रख पाए...?

 इसकी समीक्षा करने और जरूरी सुधार करने की वजाये अलादीन के चिराग को घिसने का असर खत्म होने से जो हड़बड़ाहट कॉर्पोरेट राजनीतिक पार्टियों मैं हो रही है  वह अब देखते ही बनती है अब वही पत्रकारिता के सहारे ओबीसी वोट बैंक को लूटने के लिए हर जगह इस अंदाज में पत्रकार वार्ताएं आयोजित की जा रही हैं और भी कार्य किए जा रहे हैं जैसे ओबीसी वोट बैंक का स्काई लैब उसी स्थान पर गिरने वाला है जिस स्थान पर वे ओबीसी वोट बैंक को ज्यादा मूर्ख बना सकते हैं यह आश्वासन दे सकते हैं यानी कुर्सी दौड़ की प्रतियोगिता में राजनीतिक पार्टियां से ही से लग गई है बेहतर होता कि ऐसे गंदे खेल आरक्षण के नाम पर खत्म करने चाहिए और देखना चाहिए कि वास्तव में क्या संविधान की मंशा के अनुरूप जहां कहीं भी आरक्षण लगा है उस समूचे वर्ग का उत्थान हुआ है या नहीं हुआ है और अगर नहीं हुआ है तो वहां उस क्षेत्र के पुलिस और प्रशासन के खिलाफ क्या कार्यवाही की गई है अगर संविधान की मंशा की पूर्ति नहीं हो रही है तो अब यह अलग बात है कि जिसे यह चौकीदारी करनी है वह खुद इसे लूटने में लगा है तो अब तो जनता जनार्दन ही तय करेगी कि कितना फूट डालकर कितना लूट कर सत्ता में कौन बैठता है और यही लोकतंत्र की खूबसूरती है। सुप्रीम कोर्ट को जय हिंद।


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