शनिवार, 5 फ़रवरी 2022

तवज्जो नहीं, इवेंट; स्टैचू आफ इक्वलिटी को


 क्या प्रिंट प्रेस ने

 खारिज किया

 मोदी के इवेंट को

(त्रिलोकीनाथ)

देश काल की स्थिति और परिस्थिति की नब्ज को टटोलने का काम समाचार पत्र करते हैं ।इलेक्ट्रॉनिक मीडिया अफवाह फैलाने ,प्रोपेगेंडा पैदा करने और इवेंट क्रिएशन का चमत्कार करने का काम करता रहा है। पहले इलेक्ट्रॉनिक मीडिया को समाचार का तत्कालिक वाहक माना जाता था किंतु अपने अल्पकाल में ही स्वयं को पालतू-जीव के रूप में विशेषकर इलेक्ट्रॉनिक टीवी मीडिया ने प्रस्तुत कर दिया है क्योंकि इलेक्ट्रॉनिक का सोशल मीडिया अभी भी स्वतंत्रता निष्पक्षता जैसी बीत चुकी इमानदार बातों को ढो रहा है। यह बात चल रहे पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के " स्टैचू आफ इक्वलिटी" नामक धार्मिक संत रामानुजाचार्य की एक बड़ी मूर्ति को प्रोपेगेंडा के रूप में प्रायोजित करने के मामले को भारत के प्रमुख प्रिंट मीडिया घरानों ने खारिज कर दिया है।

 और यही कारण है कि उन्होंने अपने अखबार में भारत के सबसे ताकतवर प्रधानमंत्री के रूप में स्वयं को प्रस्तुत करने वाले नरेंद्र मोदी के इस धार्मिक चुनावी इवेंट को तवज्जो नहीं दी है ।

दक्षिण भारत के प्रमुख अखबार "द हिंदू "ने उसे अपने मेन


स्ट्रीम लीड में समाचार नहीं माना है कुछ इसी तरह कोलकाता के "द टेलीग्राफ "

इंग्लिश न्यूज़ पेपर में फ्रंट पेज में जगह नहीं दी है जबकि चुनावी प्रदेश उत्तर प्रदेश में प्रमुख खबर अमर उजाला ने

इसे सेकंड लाइन का समाचार मान जगह दी है हो सकता है यह पेड न्यूज का ही एक हिस्सा हो जैसा कि महाराष्ट्र के नागपुर से प्रकाशित लोकमत अखबार ने सेकंड कैटेगरी की न्यूज़ के रूप प्रस्तुत किया है

किंतु भारत की राजधानी दिल्ली में प्रमुख समाचार पत्र जनसत्ता ने इस समाचार को आठवीं पेज में मात्र 8 लाइन का समाचार माना है जनसत्ता आज भी हिंदी अखबारों में वैचारिक समाचार जगत का निष्पक्ष प्रस्तुति मानी जाती है

बावजूद इसके कि बदलते परिवेश में कॉर्पोरेट पत्रकारिता घरानों की तरह है जनसत्ता नेवी अपने रंग रूप बदले हैं बावजूद इसके भी कि  संगीत घरानों और तवायफओ के घरानों की तरह उतना प्रदूषण कुछ पत्रकारिता के घरानों में नहीं आया है इसलिए आज भी वे आदर्श के रूप में देखे जाते हैं इसलिए भी पत्रकारिता के मार्गदर्शी विचार की तरह होते हैं इसलिए इनका महत्व होता है ।क्योंकि समाचार जगत का आजादी के 75 वर्ष बाद भी समाचार प्रस्तुत करने के तौर-तरीके पर कोई निजी आचार संहिता एकरूपता देश की स्वतंत्रता के स्वतंत्र विचारों के अनुरूप नहीं दिखता। ऐसे में क्षेत्रीय अथवा जमीनी समाचार जगत और पत्रकारों के लिए क्या शैक्षणिक संदेश जाता है 

यह बहुत भ्रामक है बहराल इस सबसे यह तय होता है की जमीनी पत्रकारिता को इस भ्रामक माहौल में अपने रास्ते स्वयं सुनिश्चित करने चाहिए अन्यथा स्वयं को पालतू जीव जंतु की तरह अपनी कीमत सत्ताधारी राजनेताओं या गैर सत्ताधारी राजनेताओं से सुनिश्चित करना चाहिए ।जैसा कि अलग-अलग मीडिया घराने प्रकाशित इवेंट समाचारों के कवरेज से दिखता है। मुफ्त का समाचार प्रकाशित कराने की नेताओं की गंदी आदत को खत्म करना चाहिए सिर्फ स्वतंत्र और निष्पक्ष समाचार पत्रकारिता के कवरेज के लिए इस्तेमाल होना चाहिए यही पत्रकारिता की बची क।ची सेवा हो सकती है।



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