शुक्रवार, 14 जनवरी 2022

जांच रिपोर्ट... कुछ पचा नहीं.....?

 तो, लो आ गई जांच रिपोर्ट......

सीएफआईटी से


लोकज्ञान में 


भगवान-भरोसे हुई दुर्घटना.....

जैसे भारत के दूसरे प्रधानमंत्री लालबहादुर शास्त्री का निधन 11 जनवरी 1966 ताशकन्द,


सोवियत संघ मे अभी तक कुछ भी समझ में नहीं आ रहा है। वे9 जून 1964 से 11 जनवरी 1966 को अपनी मृत्यु तक लगभग अठारह महीने भारत के प्रधानमन्त्री रहे उसी तरह अब जबकि जैसे अमेरिका ने परिभाषित किया है याने भगवान भरोसे दुर्घटना को आधार मान लिया गया है। की परिस्थितियां निर्मित हुई और दुर्घटना में भारत के प्रथम सीडीएस बिपिन रावत अपनी धर्मपत्नी श्रीमती मधुलिका रावत तथा तमाम अफसरों के साथ मौत की गोद में जा समाये। इस प्रकार के निष्कर्ष श्री शास्त्री के निधन के जैसे परिस्थितियों में अभी भी अस्वीकार्य हैं।

 कहते हैं हमारे वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी जब पंजाब से वापस लौटे तो उन्होंने सूत्रों के हवाले से कहा था कि "सीएम को थैंक्स कहना कि मैं जिंदा वापस लौट आया..." तो क्या जिस हेलीकॉप्टर से उन्हें निर्धारित मीटिंग स्थल पर जाना था, जिसे छोड़ दिया और सड़क मार्ग से जा रहे थे।तो उस हेलीकॉप्टर में भी प्रश्न चिन्ह है क्या...। क्योंकि इसी हेलीकॉप्टर जनरल रावत व अन्य हमारे फौजी सवार थे। जिस पर कथित तौर पर खराब मौसम होने के कारण प्रधानमंत्री श्री मोदी को गंतव्य स्थल तक जाना था।

आखिर प्रधानमंत्री जी ने क्यों कहा कि अपने ही देश में कि वे जिंदा बच गए, आदि-आदि कारण से भी संकाये खड़ी होती हैं।


आखिर जिस सर्वाधिक हर परिस्थिति में सुरक्षित हेलीकॉप्टर होने के बाद भी अंत में वही परिभाषित होता दिख रहा है जिसे लोक ज्ञान में  "भगवान भरोसे" कहा जाता है और हवाला भी अमेरिका की जांच एजेंसी के परिभाषा का दिया जाता है। तो सवाल उठता ही है फिर हमारी लेटेस्ट टेक्नोलॉजी किस काम की..? क्या हम आज भी उतने ही पिछड़े हैं जितने कभी पिछड़े थे....? तब भी जब ताशकंद समझौते के बाद हमारे "जय जवान-जय किसान" का नारा देने वाले प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री का निधन हो गया था। आज 21वीं सदी में सबसे सशक्त होने का दंभ भरने के बाद भी हम भगवान भरोसे निष्कर्षों पर कैसे यकीन कर सकते हैं...? या क्यों करना चाहिए...? क्या किसी दबाव में ऐसे निष्कर्ष भगवान भरोसे जारी किए जा सकते हैं.....


दैनिक जनसत्ता ने इसे लीड न्यूज़ बनाया है जिसमें कहा गया है दुर्घटना का कारण सीएफआईटी है। अमेरिकी विमानन नियामक "सीएफए" के हवाले से परिभाषा दी गई है सीएफआईटी के इलाके जमीन पहाड़ जल निकाय वा कोई बाधा के साथ अनजाने में टकराव के रूप में परिभाषित किया गया है जब जबकि एक विमान सकारात्मक नियंत्रण में है सीएफआईटी (कंट्रोल फ्लाइट इन टू टेरेन) की स्थिति होती है।

 हो सकता है आने वाली सरकारें जनरल बिपिन रावत की इस दुर्घटना को उसी तरह पारदर्शी करने का काम करेंगे, जैसे हमारे प्रिय स्वर्गीय लाल बहादुर शास्त्री जी की मृत्यु को वर्तमान सरकार ने पारदर्शी करने का काम किया । जो अभी भी अपारदर्शी ही है। आखिर भारत के नागरिक को यह जानने का हक क्यों नहीं होना चाहिए,  क्या हुआ था उस वक्त जब श्री शास्त्री का निधन हो गया और उस वक्त जब हमारे प्रथम सीडीएस सपरिवार तमाम रहस्यों के साथ अपने विश्वसनीय स्टाफ के साथ किसी भगवान भरोसे दुर्घटना ग्रस्त होकर अकाल मृत्यु में समा गए थे....? आस्था की दुनिया में रहने वाले हमारे जैसे आदिवासी क्षेत्र के लोगों का दिल है कि मानता नहीं।



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