मंगलवार, 7 दिसंबर 2021

अल्ट्राटेक बेरोजगारों के शोषण का बना अड्डा

 सैयद-तनवीर की जोड़ी ने


लूटे लाखों 

रुपए बेरोजगारों से


सार्वजनिक क्षेत्रों में युवा बेरोजगारों के लिए रोजगार एक सपना होता जा रहा है क्योंकि आदिवासी  क्षेत्र में रोजगार के जो भी संभावनाएं हैं प्राकृतिक संसाधन खदानों और जंगलों पर निर्भर है जंगल की भर्तियां सरकार के भरोसे निर्भर है है और खदाने लगभग पूरी तरह से निजी करण की ओर चली गई है इस तरह स्थानीय व्यक्तियों को रोजगार की संभावित अवसर निजी क्षेत्र में कल रहे खदानों में चाहे भी पत्थर की खदान हो अथवा रेत की खदान या फिर आयरन ओर हो, बॉक्साइट अथवा कोयला खदान एवं सब का निजीकरण होता जा रहा है ।जिससे रोजगार के सभी अवसरों पर क्षेत्रवाद/जातिवाद पैदा हो गया है।

 इसी में शहडोल जिला मुख्यालय से लगे एक अल्ट्राटेक बिचारपुर कोल माइन्स अपने कोयला खदान से जुड़े रोजगार के अवसरों पर विवादित हो रही है।

 हाल में


एक तनवीर नाम का व्यक्ति वहां के मुसलमान अधिकारियों के संपर्क में रहकर स्थानीय लोगों से रोजगार दिलाने के नाम पर  लाखों रुपए वसूली कर रहा है और कई लोगों का पैसा लेकर अल्ट्राटेक के सैयद  उच्च अधिकारी के नाम पर अपना दबदबा बनाए हुए हैं ।तनवीर का कहना है कि जो भी रोजगार के अवसर अल्ट्राट्रेक के जरिए होंगे वह तनवीर के द्वारा भर्ती हो सकती है और इस नाम पर लाखों रुपए की कमाई भी करके अल्ट्राटेक के अधिकारियों को बंदरबांट कर दिया गया है; ऐसा उसका दावा है। अल्ट्राटेक के संबंधित अधिकारी जवाब देने से बच रहे हैं ऐसे में स्थानीय लोगों को रोजगार की बात सिर्फ ठगी का विषय रह गया है।

 यह अलग बात है कि जब निजी करण के जरिए चाहे रिलायंस सीबीएम का मतलब या फिर  रेत खदानों की बात हो या फिर कोयला खदानों की सब जगह है स्थानीय लोगों के शोषण की बात प्रमुखता से उजागर होकर आती है। क्योंकि मामला निजी क्षेत्र में रोजगार के भ्रष्टाचार का है इसलिए सरकारी अधिकारी भी किनारा काट लेते हैं। जबकि जब यह उद्योग लगे थे तब दावा किया गया था की 75% स्थानीय लोगों को रोजगार दिए जाएंगे किंतु अब यह मसला सिर्फ इस बात पर टिका है कि कतिपय अधिकारियों के इशारे से ही रोजगार उपलब्ध कराया जाएगा ।अन्यथा अल्ट्राटेक के नियत दलालों के द्वारा स्थानीय युवाओं को लूटपाट करना एक व्यवस्था बनती जा रही है क्षेत्र के सांसद और विधायक इन उद्योगपतियों के सामने सिर्फ कठपुतली बनकर रह गए हैं को यह बताने को तैयार नहीं है कि वास्तव में कितने रोजगार के अवसर इन निजी कृत संस्थानों में पैदा हो रहे हैं तो भ्रम जाल में दलालों के माध्यम से आम बेरोजगार लूट रहा है देखना होगा क्या अल्ट्राटेक के अधिकारी अपने नाम पर हो रही खुली डकैती को संरक्षण देते हैं अथवा विराम लगाते हैं या फिर यह भी एक व्यवस्था बनती जा रही है स्थानीय लोगों  75% रोजगार के नाम पर खुली शोषणकारी व्यवस्था की ...?


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