शनिवार, 6 नवंबर 2021

बातें खरी खरी-- (त्रिलोकीनाथ)

 प्राचीन पुरातत्व की अनदेखी......

बूढ़ीमाता मंदिर के सामने

सुलभ शौचालय


यह कैसा राम

राज्य...?


लांकि उमरिया कोई पाकिस्तान नहीं है, और शहडोल कोई भारत भी नहीं है...; ठीक ऐसे ही जैसे शहडोल कोई पाकिस्तान नहीं है और उमरिया कोई भारत नहीं है... दोनों ही भारत के मध्यप्रदेश राज्य के, कभी विंध्यप्रदेश रहे क्षेत्र के जिले हैं.. आतताई कूटनीतिक राजनीतिज्ञों के शहडोल प्रवेश के पहले यह दोनों बल्कि अनूपपुर जिले को ही मिला दें तो तीनों शहडोल जिले के ही हिस्से रहे। जिनका नाम बदलकर अब शहडोल संभाग हो गया है।

 तो शहडोल की आराध्य देवी कटनी रोड में मुड़ना


नदी पार "बूढ़ीमाता मंदिर" वहां पर हजारोंं वर्षों से विराजमान है इनका इतिहास कितना प्रभावशाली रहा है कि कभी सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया वेंकट चलैय्या इनकी दास्तान सुनकर इन्हें दर्शन करने शहडोल चले आए। अब जब हिंदुओं की सरकार शहडोल में भी है बूढ़ीमाता मंदिर के आसपास विकास नामक राक्षस अपना पैर पसारने लगा है। कभी मकान निर्माण के आधार पर, कभी भू माफिया के निर्माण के आधार पर तो कभी सामाजिक विकास के नाम पर अलग-अलग नकाब पहनकर बूढ़ीमाता मंदिर परिक्षेत्र को ,उसके आध्यात्मिक वातावरण को नष्ट-भ्रष्ट करने का काम हो रहा है।

क्योंकि संभाग मुख्यालय शहडोल की नगर के सीमा पर अब उमरिया जिले के प्रवेश द्वार पर मां बूढ़ी माता हमसे हिस्से में बट गई हैं । 

इसलिए हमें जरा भी शर्म नहीं आती । विधायकों और नेताओं को भी साथ में शहडोल के प्रशासनिक अधिकारियों को जरा भी शर्म नहीं आती की बूढ़ी माता मंदिर का मुख्य द्वार जहां खुलता है वहां सुलभ शौचालय का पिछवाड़ा बना दिया जाता है। ताकि उस सुलभ शौचालय जो भी गंदगी एकत्र होगी उसको सुलभता के साथ बूढ़ी माता के सामने वाले नाले में बदबूदार वातावरण बनाने के लिए विकास किया जाएगा। यह बात हमें बताना पड़े यह उससे भी ज्यादा शर्म की बात है।

 क्योंकि शहडोल का जिला न्यायालय के बगल में यह अन्याय हो रहा है क्या न्यायपालिका के लोग न्याय अधिकारी आदि लोग अपने सुप्रीम कोर्ट चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया आगमन के उस गौरवशाली क्षण को भी याद करके उस कारण को जिस कारण से वे शहडोल आए बूढ़ी माता मंदिर के पर्यावरण संरक्षण पर, क्षेत्र संरक्षण और परिस्थितिकी के संरक्षण के लिए कोई बात क्यों नहीं रख पा रहे हैं...? जरूरी है कि जब मंदिर परिसर बदबूदार गंदगी से वातावरण से प्रभावित होने लगे तब कोई याचिकाकर्ता किसी कोर्ट में जाए तो उसे पेशी दर पेसी प्रताड़ित किया जाए..? यह भी गंभीर बात है ।

क्योंकि शहडोल की राजनीति और यहां का


प्रशासनिक सोच की क्षमता शायद कुंद होती जा रही है इसलिए यह बात कहनी पड़ रही है। किन्तु जब हमारे संवेदनशील संभाग आयुक्त राजीव शर्मा जी अमरकंटक में जाकर उसे विश्व पटल पर रखना चाहते हैं तब दिया तले अंधेरा क्यों बढ़ता जाता है...? बूढ़ी माता मंदिर की प्राचीन वैभव और उससे जुड़े गौरवशाली पुरातात्विक शिवमंदिर का प्राचीन इतिहास सामने लाकर का पर्यटन कारी क्षेत्र क्यों नहीं बनने देना चाहते...? उसके लिए योजनाएं क्यों नहीं बनती है...? बूढ़ी माता मंदिर की पर्यावरण और पारिस्थितिकी को उमरिया जिले के भरोसे क्यों छोड़ा जाता है...? जहां के कलेक्टर और नेता इतनी दूर तक देख पाने की क्षमता भी नहीं रखते....?

 अगर हम कुछ नहीं कर सकते तो विनाश रूपी राक्षस को सुलभ शौचालय के रूप में या सड़क बाईपास के रूप में बहुत कीमती पुरातात्विक संपदा बूढ़ीमाता के प्राचीन वैभवता को नष्ट करने का काम क्यों होने देते हैं...?

 यह बहुत बड़ा प्रश्न उस संवेदनशील प्रशासन के लिए या उन विधायकों और नेताओं के लिए भी है जिन्हें जनता ने इन्हें भी संरक्षित करने के लिए अपना वोट दिया था। क्या यह जनता का अपराध था....? कम से कम बूढ़ी माता मंदिर के प्रवेश द्वार के ठीक समक्ष टीले पर सुलभ शौचालय का बनाया जाना यही प्रमाणित करता है।

 क्या यही हमारा वर्तमान राम राज्य है.....?


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