सोमवार, 20 सितंबर 2021

चाकूबाजी में एसआई वेद प्रकाश घायल

बैड न्यूज़ 

आखिर आरोपी आदिवासी गोलू 


की पुलिस-हमला का हिम्मत कैसे बढ़ा


एक बुरी खबर है कि नरोजाबाद में कार्यरत पुलिस एसआई ठाकुर पर आरोपी गोलू कोल ने धारदार चाकू से उन्हें हमला कर घायल कर दिया है। सोशल मीडिया के अनुसार शाम पुलिस को यह सूचना मिली कि आरोपी गोलू कोल उर्फ प्रमोद थाना क्षेत्र के बाजारपुरा अंतर्गत बाजार मोहल्ला में देखा गया है जिसे पकडऩे के लिए तीन मोटर सायकलों पर 6 पुलिसकर्मी अलग-अलग दिशाओं से उसे घेरने की नीयत से मौके पर पहुंच ही रहे थे लेकिन सबसे पहले जैसे ही वेद प्रकाश ठाकुर वहां पहुंचे, आरोपी ने धारदार चाकू उनके पेट में घोंप दिया…..थोड़ी ही देर में अन्य वर्दीधारी भी वहां पहुंच गये, उन्होंने आरोपी को गिरफ्तार कर लिया, लेकिन एसआई गंभीर रूप से घायल हो गया। जिससे इलाज के लिए शहडोल जिला अस्पताल लाया गया है।

 बता दे कि कथित तौर पर बलात्कार मामले का आरोपी गोलू कोल उर्फ प्रमोद ने एसआई वेद प्रकाश ठाकुर को धारदार चाकू से हमला कर दिया है जिसके कारण पेट में लगभग 3 इंच तक घुसे चाकू को निकालने और स्वास्थ्य लाभ के लिए उन्हें मेडिकल कॉलेज शहडोल के लिए रेफर कर दिया है।  आरोपी ने पुलिस पर धारदार चाकू से हमला किया बेखौफ अपराधी के हौसले इतने बुलंद है कि वर्दीधारियो को भी निशाना बनाने से नही चूक रहे है……

सवाल यह भी है की थाना नरोजाबाद आदिवासी स्तर के अपराधियों का इस प्रकार का मनोबल क्यों बढ़ा हुआ है। तो जवाब यह भी है कि जब अपराधियों को यह आभास होने लगे कि पुलिस व्यवस्था में और अपराधियों में कोई अंतर नहीं है पुलिस की व्यवस्था सिर्फ भय पैदा कर अपराधियों के साथ सौदा-गिरी करती है तब आपराधिक मानसिकता वाला आरोपी निर्भय होकर पुलिस के साथ आम आदमी की तरह आपराधिक घटना कर जाता है। दूसरा पक्ष यह भी है आदिवासी बहुल क्षेत्र में नरोजाबाद थाना की निष्पक्षता अपराधियों की मध्यस्थता का केंद्र बनकर रह गया है और यदि इस प्रकार से मध्यस्थता नहीं हो पाती है तब पुलिस कानून का रुक कर मामले को निपटाती है। यह मानसिकता भी अपराधियों के मनोबल को बढ़ाता है। और कानून व अनुशासन का स्वाभाविक भय अथवा दबाव आम नागरिक में खत्म होता जाता है। जिसका परिणाम कभी-कभी इतना ही खतरनाक हो सकता है जितना कि इस बार एसआई ठाकुर के साथ हुआ ।

अपराधिक मध्यस्थता

नौरोजाबाद थाने की बड़ी कमजोरी

किंतु महत्वपूर्ण प्रश्न है की आदिवासी स्तर के व्यक्ति इस तरह निर्भय होकर अपराध कैसे कर बैठते हैं...? और अगर चाकू की जगह है उसके हाथ में बम या बंदूक होती तो वह उसका भी उपयोग कर सकता था।

 यह बहुत चिंताजनक बात है हम पूर्व में भी लिखते चले जा रहे हैं कि नरोजाबाद थाना का सूदखोर उमेश सिंह के साथ गहरा तालमेल है क्योंकि उमेश सिंह एक दबंग बाहरी व्यक्ति है जो स्थानीय कर्मचारियों वह सीधे साधे आदिवासी लोगों को दबाकर सूदखोरी का कारोबार करता रहा है इसी में एक केवल सिंह नामक व्यक्ति से करीब 17 लॉख रुपए उसके द्वारा ठगा गया और जब पुलिस के पास शिकायत पहुंची तो पुलिस थाना ने बजाए गंभीर कार्यवाही कर आदिवासी केवल सिंह को न्याय दिलाने के उमेश सिंह के पक्ष में मध्यस्थता करते हुए कथित समझोता नामा तैयार करा कर केवल सिंह की जीवन भर की कमाई को लुट जाने दिया। कई वर्षों से केवल सिंह अलग-अलग जगह भटक रहा है किंतु पुलिस थाना अब उसे यह कहने में जरा भी संकोच नही करती है कि करीब 17 लाख का समझौता ढाई लाख रुपए मैं चुकता करने का काम केवल  ने क्यों किया था...?

 यही का सूदखोर आरोपी उमेश सिंह किसी पुलिस वाले के साथ किया होता तो अभी तक वह शहडोल के ऑपरेशन शंखनाद के तर्ज पर किसी जेल में बंद होता किंतु स्थानीय आदिवासी केवल सिंह को उसकी बीमारी/ बदहाली व बर्बादी के लिए पुलिस थाना नरोजाबाद ने कुछ इस कदर ला खड़ा कर दिया है किसी शिवाय नरोजाबाद थाने को कोसने के और कुछ नहीं कर पा रहा है। इसी प्रकार घटनाओं से अपराधियों व पुलिस  में अंतर नहीं रह जाता है। और जब धारणा पुलिस के बारे में इस प्रकार से विकसित हो जाती है तो कानून का भय अपराधियों में खत्म हो जाता है। तब कोई गोलू कोल किसी भी पुलिस वाले के साथ इस प्रकार का दुस्साहस कर बैठता है।

 अन्यथा पुलिस का अनुशासन और देशभक्ति का उसका रुतबा अपराधियों को थर थर कांपने के लिए विवश कर देते हैं इस घटना से हमें यह सीखना चाहिए कि पुलिस को अपनी कार्यप्रणाली के प्रति आम नागरिक के प्रति हर आरोपी में वैसा ही व्यवहार करना चाहिए जैसा कि पुलिस का किसी आरोपी के साथ होता है। निश्चित तौर पर चाकूबाजी की इस घटना की पृष्ठभूमि की उच्च अधिकारी जांच करेंगे और सुनिश्चित करेंगे कि आखिर कैसे कोई आदिवासी गोलू कोल भरे बाजार में एसआई ठाकुर पर हमले का दुस्साहस कर बैठा ताकि अन्य पुलिस कर्मचारियों पर इसका दुष्प्रभाव ना पड़े अन्यथा करने को तो कानपुर में विकास दुबे ने पहले पुलिस वालों को मारा फिर बाद में पुलिस वालों ने उसे मध्यप्रदेश मैं पकड़ा  और उसकी पारदर्शी तरीके से कार पलटा कर उसे भगा कर हत्या कर दी किंतु यह कोई कानून व्यवस्था नहीं है। यह तो गुंडाराज है कभी पुलिस की गुंडई चल गई तो कभी अपराधियों की.... इससे कैसे बचा जा सकता है निश्चित तौर पर इस पर पारदर्शी कार्यवाही होनी चाहिए। शहडोल जैसे आदिवासी पुलिस जोन में यह गलत कदम है जिस पर तत्काल सकारात्मक अंकुश लगना चाहिए। एसआई वेदप्रकाश ठाकुर की शीघ्र स्वस्थ होने की हमारी कामनाएं  है।


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