प्रत्यक्षम् किम् प्रमाणम् -6
रिकॉर्ड पर रिकॉर्ड
याने इवेंट पर इवेंट
राही मनवा दुख की
(त्रिलोकीनाथ)
गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड का धंधा करने वाले मल्टीनेशनल कॉर्पोरेट को अपना धंधा भारत में बंद कर देना चाहिए क्योंकि हमारे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी रिकॉर्ड पर रिकॉर्ड तोड़ते चले जा रहे हैं। पिछले दिनों एक रिकॉर्ड और बनने का अवसर कोरोना-भाईसाहब ने दे दिया। 1 दिन में ढाई करोड़ से ज्यादा वैक्सीनेशन हो गए इसके पहले भारत का रिकॉर्ड था जो मोदी जी के जन्मदिन मनाने के चक्कर में पूरे भारत के कर्मचारी इस महान वैक्सीनेशन कारोबार में लगकर रिकॉर्ड बनाने का काम किए हैं।
पिछले 7 वर्षों की मोदी जी के शासन को देखें तो सबका साथ, सबका विकास और सबका विश्वास भी लूटते हुए लगातार रिकॉर्ड टूट रहे ।चाहे दो करोड़ रोजगार देने का झूठ का मामला हो या 15लाख रुपए हर खाते में आने का मामला हो य राम मंदिर निर्माण का मामला हो अथवा जम्मू कश्मीर मि 370 हटाने का मामला हो तीन तलाक का मामला भी उसमें एक है ।अब सी ए ए सीएबी सीएसई पीपीपी मॉडल से बनाने के अपने अपने रिकॉर्ड रोज टूट रहे हैं। एक रिकॉर्ड दिल्ली की सड़कों पर भी बना की दो व्हीलर्स अथवा देसी पथ गामिनी यान बैलगाड़ी ट्रैक्टर आदि उस पर नहीं चलेंगे। सड़क बनाई इसलिए गई थी कि उसमें सबका साथ, सबका विकास होगा लेकिन यहां भी विश्वास लूट लिया गया।
बी ओ टी से निर्मित सड़क अमरकंटक की घाटी में टूट के गिर गई।
यही अंदाज अब मध्यप्रदेश में भी सरकार अपने शासन में मॉडल के रूप में ला रही है ऐसा बताया जाता है बस शहडोल के पर्यावरण और परिस्थितिकी का विनाश का रास्ता उस वक्त विकसित होते हुए प्रमाणित हुआ जब बी ओ टी माध्यम से बनाई गई प्रदेश की शायद पहली या
दूसरी सड़क, "रीवा-अमरकंटक सड़क मार्ग" अपने लक्ष्य 25 वर्ष कार्य अवधि को पूरा करने के पहले ही अमरकंटक की घाटियों में टूट के गिर गई ।अब वह सड़क मार्ग प्रशासन ने सुरक्षा के दृष्टिकोण से बंद कर दिया है। लेकिन जब लगातार एक्सीडेंट हो रहे थे और दुर्घटनाएं हो रही थी तब तक सड़क मार्ग को बाणसागर के आसपास या छुहिया घाटी के पास ठीक नहीं किया गया बल्कि ऑफ द रिकॉर्ड सड़क को ही डायवर्ट कर दिया गया ताकि
50-55 लोग मर सके। यह भी एक विकास है इस हत्याकांड के लिए कोई व्यक्ति जिम्मेदार नहीं ठहराया गया।।
क्योंकि मुख्यमंत्री मानते हैं कि वह तो हेलीकॉप्टर और हवाई जहाज के रास्ते आते जाते हैं तो उन्हें कैसे अनुभव होगा कि सड़क में दुर्घटनाएं भी होती हैं । यह तो सड़कें पकौड़ा चलने जैसा रोजगार मात्र है। इसीलिए 25 साल रीवा अमरकंटक सड़क मार्ग के निर्माण पर पूरे भी नहीं हुए और उसे डामरीकरण से सीसी सीमेंट के रूप में विकसित करने का काम प्रारंभ हो गया। और शायद यही कारण था कि 55 लोग का बलिदान भी हो गया। क्योंकि जब सड़क का निर्माण होना है तो मरम्मत क्यों होगा...? हां मरम्मत के नाम पर जो धन खर्च होना है उसे नेता अफसर मिलकर बांट लेंगे और ऐसा ही होता रहा। अब इस हत्या को इवेंट के रूप में कैसे मनाया जाए यह एक चुनौती है ।
क्योंकि कोरोनावायरस में अगर 40 से 50 लाख लोग कथित तौर पर मरे हैं तो उसमें सकारात्मक नजरिया रखते हुए नरेंद्र मोदी के जन्मदिन पर वैक्सीनेशन का ढाई करोड़ का रिकॉर्ड एक उत्सव के रूप में मनाने का काम हुआ। शायद इसीलिए प्रदेश भाजपा सरकार केंद्र सरकार के इवेंट के मॉडल को अपना मॉडल बनाने में तुली हुई है। जैसे 80 करोड़ भारतीय गरीबों को किसी मंदिर या मस्जिद के सामने भीख ना मांग ना पड़े इसलिए 5 किलो का जब अनुदान राहत, जिसे वे "मुफ्त" में कहते हैं, देने का सोच पैदा हुआ। अकेले मोदी जी की दाढ़ी वाली फोटो के साथ जब भीख देने वाले झूले के साथ आई तो शिवराज सिंह जी ने उसे अपने मॉडल के रूप में तत्काल अधिग्रहित कर लिया और एक झोला में अपनी भी फोटो लगा दी मोदी जी की दाढ़ी वाली फोटो के साथ।
किन्तु उन्होंने अभी तक दाड़ी नहीं बढ़ाई है अगर शिवराज सिंह की दाढ़ी बड़ी होती है तो यह भी एक इवेंट होता। जो होना शेष है ।
चालू होगा जनसुनवाई कार्यक्रम
सट्टे की बाजीगरी
तो परेशानी और समस्याएं के सट्टे के आंकड़े की तरह हमारे प्रदेश में फैले हुए हैं लोकप्रिय समाजसेवी सटोरिया बल्लू-पंडित सही वक्त में सही तीर नहीं लगाने से गांजा के आरोप में अपना "पकोड़ा तलने का धंधा" सब कुछ खोकर जिला जेल शहडोल का 10 करोड़ की बिल्डिंग में मेहमान बना हुआ है।
हमारी भी संवेदना है अगर यह सटोरिया बाहर होता तो किसी सरकारी कार्यालय में जनसुनवाई
विभाग के जन्म से पैदा हुई सीएम हेल्पलाइन के आंकड़ों की बाजीगरी में उलझा रहता और उसमें भी कुछ ना कुछ रोजगार परक सट्टा जैसे महान स्कूल प्रोग्राम का इवेंट करता। क्योंकि एक सरकारी उच्चाधिकारी सीएम हेल्पलाइन जनित सट्टे की आंकड़ों की तरह विस्तृत भ्रामक समस्या से कैसे निपटा जाए उसे कैसे शासन और प्रशासन की कुशल योगिता का प्रमाण पत्र मिले इसमें व्यस्त दिखा। अपन भी उसको सलाह दे डाले, साहब जन अभियान परिषद के कार्य करने वाले कुशल स्वयं सेवकों की सहायता से जमीन पर इन समस्याओं का निवारण हो सकता है। क्योंकि बात समझाने की है समस्याएं जहां की तहां है।
अपना अनुभव रहा है की मोहन राम मंदिर ट्रस्ट के मामले में सीएम हेल्पलाइन में जो कंप्लेन
महीनों य सालों पड़ी रही उसका निवारण हमें समझाने से हुआ की तहसीलदार के यहां न्यायालय में आवेदन लगा दीजिए आप का निराकरण तत्काल हो जाएगा। सीएम हेल्पलाइन बंद कर दीजिए, हमने कंप्लेन बंद कर दी।
अब 1 साल से तहसीलदार सोहागपुर के यहां फाइल उसी तरह गुम हो गई जैसे कोरोना आम नागरिक गुम जाता है।
लेकिन सीएम हेल्पलाइन की सट्टे की बाजीगरी में उच्चाधिकारियों को एक सफलता इसलिए मिल गई क्योंकि हमने कंप्लेन का निवारण पा लिया ।तो यह जनसुनवाई भी एक प्रकार का सट्टा बाजार है इसका निवारण अधिकारियों की बजाए सटोरियों से करवाना चाहिए ।क्योंकि वे आंकड़ों को हेरफेर करने में बेहद सफल रहते हैं। उन्हें मालूम है कि किस नंबर में कितने का दाम लगने वाला है। उस आधार पर जनसुनवाई के सीएम हेल्पलाइन के आंकड़े ताश की पत्तों की तरह है भरभरा कर गिर जाएंगे। किंतु दुखद है कि प्रधानमंत्री द्वारा पकोड़ा तलने को रोजगार बताने का कारोबार के बावजूद जनसुनवाई के आंकड़ों में सट्टा का सौंदर्य प्रशासनिक अधिकारियों को नहीं दिख रहा है।
बेहतर होता कि जब जनसुनवाई अब चालू होने वाली है तो पिछले आंकड़ों को बट्टे खाते में डाल दिया। जैसे शहडोल के राम मंदिर प्रमाणित भ्रष्टाचार का समस्या बट्टे खाते में तहसीलदार के कार्यालय में गुम हो गया। अब कौन समझाए कि बल्लू पंडित को जब तक अधिकारी नहीं बनाया जाएगा, जब तक उसे गांजे के झूठे प्रकरण से बाहर नहीं निकाला जाएगा, सीएम हेल्पलाइन की आंकड़ों का सट्टा बाजार लाभप्रद कारोबार का मुद्रीकरण नहीं बनने वाला है। और ऐसे में इवेंट को जिंदा रखना मुश्किल हो जाएगा ।
आखिर लोगों को कितनी बार मूर्ख बनाया जा सकता है या फिर आउट सोर्स जैसे तालिबानियों का प्रबंधन भी विकास के रास्ते तय कर सकता है क्योंकि सबका साथ सबका विकास सबके विश्वास से यूं ही नहीं चलने वाला है कुछ पाने के लिए कुछ तो खोना ही पड़ता है यही प्रकृति का नियम है
तो प्रत्यक्षण किम् प्रमाणम, बंधुओं 40 लाख की मृत्यु पर जन्मदिन इवेंट के रूप में कैसे कन्वर्ट होता है यह सीखना चाहिए क्योंकि हम तो दलित शोषित वंचित और पिछड़े आदिवासी क्षेत्र के निवासी हैं जहां इसी परिवार में यदि कोई एक व्यक्ति भी मर जाता है तो साल भर शोक मनाया जाता रहा है यही हमारा पिछड़ापन था
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