बुधवार, 22 सितंबर 2021

अब प्रधानमंत्री आवास बना तालाब विनाश योजना... (त्रिलोकीनाथ)

तालाब विनाश कि शर्त पर प्रधानमंत्री आवास...? 


तालाब के अंदर प्रधानमंत्री आवास यह कैसा विकास...? 

हम किस मूर्खता की ओर बढ़ रहे हैं...

(त्रिलोकीनाथ)

अनुभव बताता है की संविधान की पांचवी अनुसूची में संरक्षित आदिवासी विशेष क्षेत्र शहडोल संभाग कि जो भी विकास हुए हैं उसे विनाश ज्यादा हुआ है। विकास की तुलना में बेकारी, बेरोजगारी और स्वस्थ प्राकृतिक जीवन के खिलाफ नुकसान हुआ है। 21वीं सदी की शुरुआत में शहडोल का बहुतायत हिस्सा "रीवा-अमरकंटक सड़क मार्ग" के नाम पर कॉर्पोरेट जगत के लिए लूट का संसाधन बन गया। योजना तो यह थी कि उच्च गुणवत्ता वाली सड़क निर्माण के बाद कॉर्पोरेट 15 साल तक टैक्स वसूले का और बाद में 10 साल तक इसका रखरखाव कारपोरेट के अनुबंध के आधार पर होगा, किंतु शुरुआत से ही इसमें पर्यावरण विनाश करते हुए खुली डकैती का जो रास्ता सरकार के लोगों ने अपनाया उससे पर्यावरण पारिस्थितिकी को जबरदस्त नुकसान हुआ। जहां-जहां यह सड़क निकली वहां के आसपास के हरे भरेे पेड़-पौधों तालाबों का भराव प्रभावित हो गया। लगभग तालाब अपनी उम्र के पहले ही मर गए। शहडोल शहर के निकट बरुका गांव के पास तालाब जिसका जल बहाव सड़क की दूसरे सीमा को पार करके आता था वह इसलिए खत्म हो गया। क्योंकि सड़क की तकनीकी निर्माण में जो भी  विशेषज्ञ रहे या  वे अज्ञानी थे या फिर जानबूझकर कॉर्पोरेट की लूट में शामिल होते हुए जल बहाव को तालाब की सुरक्षा के लिए पुलिया नहीं बनाई गई और तालाब लगभग मर गया । यही हालत पूरे रीवा अमरकंटक सड़क मार्ग की परिस्थिति वाले तालाबों का हुआ।


 ऐसा  पर्यावरण और परिस्थितिकी का विनाश का रास्ता उस वक्त विकसित होते हुए प्रमाणित हुआ जब  बी ओ टी माध्यम से बनाई गई प्रदेश की शायद पहली या



दूसरी सड़क, "रीवा-अमरकंटक सड़क मार्ग" अपने लक्ष्य 25 वर्ष कार्य अवधि को पूरा करने के पहले ही अमरकंटक की घाटियों में टूट के गिर गई ।अब वह सड़क मार्ग प्रशासन ने सुरक्षा के दृष्टिकोण से बंद कर दिया है। लेकिन जब लगातार एक्सीडेंट हो रहे थे और दुर्घटनाएं हो रही थी तब तक सड़क मार्ग को बाणसागर के आसपास या छुहिया घाटी के पास ठीक नहीं किया गया बल्कि ऑफ द रिकॉर्ड सड़क को ही डायवर्ट कर दिया गया ताकि


50-55 लोग मर सके। नवजात बच्चो से ले युवाओं की जोड़ी और परीक्षा देने वाले अपना भविष्य संंभालने वाले बड़े बुजुर्गों तक  की इस हत्याकांड के लिए कोई व्यक्ति जिम्मेदार नहीं ठहराया गया।।

 क्योंकि मुख्यमंत्री मानते हैं कि वह तो हेलीकॉप्टर और हवाई जहाज के रास्ते आते जाते हैं तो उन्हें कैसे अनुभव होगा कि सड़क दुर्घटनाएं मैं उनके अपने भी मर सकते हैं । उनके लिए सड़कें पकौड़ा चलने जैसा रोजगार मात्र है। इसीलिए 25 साल रीवा अमरकंटक सड़क मार्ग के निर्माण पर पूरे भी नहीं हुए और उसे डामरीकरण से सीसी सीमेंट के रूप में विकसित करने का काम बड़े भ्रष्टाचार के लिए प्रारंभ हो गया। और शायद यही कारण था कि 55 लोग का बलिदान भी हो गया। क्योंकि जब सड़क का निर्माण होना है तो मरम्मत क्यों होगा...? हां मरम्मत के नाम पर जो धन खर्च होना था उसे नेता अफसर मिलकर बांट लेंगे और ऐसा ही होता रहा। अब इस इस सामूहिक हत्या के लिए किसी को दंड नहीं दिया गया है चाहे कांग्रेस के निर्माण में ठेकेदार पैदा हुआ हो या फिर भाजपा के दौर में लूटता रहा हो तो नेता भी खुश अफसर भी खुश और ठेकेदार तो लोकतांत्रिक प्रतिनिधियों को टुकड़ा फेंक कर चलता बना।

 इस घटना से जुड़ी छाया चित्रों को प्रमाणित अनुभव को लोकतंत्र की शीर्ष संस्थाओं में या राष्ट्रपति अथवा राज्यपाल के भवन में यदि आर्ट गैलरी के रूप में दरवाजों में लगाकर अगर रखा जाए तो शायद नई पीढ़ी अपनी विरासत की मूर्खता से कुछ सीख पाए...? किंतु ऐसा होता नहीं दिख रहा है।

 अब शहडोल नगर के लिए नए नेता का नया धंधा है प्रधानमंत्री-आवास यानी तलाब-विनाश का नारा शहडोल नगर में गौरव के साथ आगे बढ़ रहा है। हमने अपने निरीक्षण में पाया है कि जब तक नगरपालिका जैसी स्वायत्तशासी संस्था जीवित नहीं थी तब तक शहडोल नगर के सैकड़ों तालाब खुशहाल और जिंदा थे प्राकृतिक रूप से विरासत में प्राप्त इन तालाबों पर कई भाजपा नेताओं ने अपने अपने वोट की खेती लहराने के लिए तालाब को पाटना चालू कर दिया।


कुछ नई सड़क बनवा दी तो कई लोगों ने तालाब ही नष्ट करवा दिए, तो नगर पालिका को लगा क्या फालतू के गड्ढे हैं जिसमें पानी भर जाता है उन्होंने कचरा डालना चालू कर दिया ताकि पट जाए। और विकास नामक परजीवी भ्रष्ट नेता और अफसरों के बच्चों का पेट पाल सकें। अन्यथा वह भूख मर जाएंगे...; कुछ इस अंदाज में शहडोल नगर के तालाब एक-एक करके हत्या कर दिए और किए जा रहे  हैं । 

कांग्रेस के अर्जुन सिंह थे तब तालाबों की मेड पर पट्टे बांटे थे अब भाजपाई प्रधानमंत्री मोदी की आवास योजना से हो रही है हत्या 

पहले जब कांग्रेस के अर्जुन सिंह थे तब तालाबों की मेड पर पट्टे बांट दिए गए अब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की विकास पूर्ण कल्पना को धरातल में लाने के लिए तालाबों के अंदर और सुरक्षित किए गए तालाबों पर भी प्रधानमंत्री आवास के लिए अपने लोगों को कब्जा कराने की दृष्टिकोण से लाखों रुपए देखकर माफिया गिरी की जा रही है। तालाब के आसपास निर्माण कार्य कराए जा रहे हैं जैसे


जेल भवन के पास के तालाब को मैंने बीसवीं सदी में नेताओं और अफसरों से लड़कर चिन्हित कराया और बचाने का काम किया। प्रधानमंत्री आवास का नकाब पहनकर उसमें कब्जा करा दिया गया। यह ने सरकारी धन से तालाब के हत्या की योजना रच दी गई ।

अब माइनिंग पॉलिटेक्निक स्कूल के पीछे पांडव नगर का बड़ा तालाब प्रधानमंत्री आवास की विनाश पूर्ण योजना का गवाह बन रहा है


तालाब के अंदर पिलर डालकर प्रधानमंत्री आवास बनाया जा रहा है। यह माफियाओं की सल्तनत को भी बनाएगा और संबंधित नेता के वोट बैंक को तालिबानी (कट्टर ज्ञानार्थी) की तरह मजबूत कर देगा। ताकि वह तालाब को जल्दी नष्ट कर सके। हालांकि ऐसा नहीं है कभी-कभी क्यों सिरफिरे ब्यूरोक्रेट्स कमिश्नर हीरालाल त्रिवेदी जैसे लोग अपने ऐतिहासिक फैसले रखते हैं किंतु "संविधान की सूपा में 32 छेद"मे नव धनाढ्य माफिया जगह निकाल लेता है।

जब कमिश्नरी बनी थी तब पहली बार कमिश्नर अरुण तिवारी के साथ एक बैठक में नगर तालाब संरक्षण के लिए विस्तार से चर्चा हुई और उस पर कार्यवाही भी हुई तालाबों के संरक्षण को एक दिशा भी मिली और शायद फिर हीरालाल त्रिवेदी ने अपने फैसले से प्रशासनिक निर्णय से तालाब की संवेदना के प्रति गलत उदाहरण पेश कर दिया या फिर वह नागरिक संवेदना के खिलाफ संदेश दे गया जबकि विकास और विनाश एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। इस मिथक को तोड़कर अधिकारी अपना रास्ता तय कर सकते थे। किंतु ऐसा करने की बजाय न्यायालयों ने भी कोई मध्य मार्ग नहीं दिखाया। जिससे तालाब नष्ट होते चले गए जा रहे हैं

 तो देखना यह होगा कि संवेदनशील महिला कलेक्टर ,साहित्यकार और लेखक संवेदनशील कमिश्नर और उसके अधीनस्थ काम करने वाले कुछ संवेदनशील अधिकारी कर्मचारी अपने ज्ञान और विवेक का उपयोग तालाबों के संरक्षण के लिए क्या कोई रास्ते निकाल पाते हैं, ताकि वह मॉडल बन कर प्रदेश और देश के लिए मार्गदर्शी साबित हो... अथवा शहडोल के अंदर प्रधानमंत्री आवास तलाब विनाश का नारा बुलंद करेंगे होता रहेगा..? 

ताकि तमाम गुजरात की कंपनियां मल्टीनेशनल कंपनी के सहयोग से घर घर फिल्टर करके पानी जबरदस्ती नागरिक को पिला सकें और जितना इस कारोबार में लूट सकती हैं लूट सके ,प्राकृतिक विरासत में प्राप्त संसाधनों की हत्या करके.... क्योंकि जब तालाब ही नहीं होंगे तो जल स्रोत कहां से होगे....?

यह भी देखना होगा...।

( सामग्री संपूर्ण सहयोग सुरेंद्र नामदेव खबर 29)

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