गुरुवार, 5 अगस्त 2021

पतित लोकतंत्र की भी कहानी है भारतीय खिलाड़ियों के पदक

यह कैसा गौरवशाली क्षण...?

ओलंपियाड से क्यों झलकती है


हमारे खिलाड़ियों की गरीबी


(त्रिलोकीनाथ) 

बहुचर्चित फिल्म गांधी में अपनी भारत यात्रा के दौरान जब वे एक नदी पर उतरकर पानी पीने जाते हैं तब देखते हैं की एक महिला अपने आंचल को अपने वस्त्र से ढकने का प्रयास करती हैं , महात्मा गांधी के आंखों में पानी भर आता है और वे अपना अंगवस्त्र पानी में बहा कर उक्त महिला को देने का प्रयास करते हैं । 

सार्वजनिक स्थानों में आजादी के सत्तर साल बाद भी यह मंजर अक्सर देखने को मिलता है। अंतरराष्ट्रीय ओलंपिक खेलों के बाद महात्मागांधी के सबसे बड़े अनुयाई होने के दावा करने वाले गुजरात  निवासी  प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के 14 लाख की सूट तब  मुंह चिढ़ाने जैसा लगता है जब ओलपियाड से ताम्रपदक, रजतपदक जीत कर हमारी गौरव को अपनी बदहाली से, गरीबी से संघर्ष करके सामने दिखने वाला खिलाड़ी भारत के प्रतीक के रूप में पहचाना जाता है। और इवेंट के रूप में उसका मजाक बनाया जाता है हर कोई इस तात्कालिक लाभ में अपनी वैसी फोटो उसके साथ दिखाना चाहता है जैसे गांधी फिल्में गांधी ने तब अपना अंग वस्त्र भारत की गरीब महिला को उसकी गरीबी के लिए दिया था...; अंतर इतना है तब गांधी देश के लिए काम कर रहे थे और अब हमारे नेता अपनी वोट राजनीति को लूटने के लिए उसकी गरीबी को बेचते हैं...

 अन्यथा पहले ओलंपियाड में जब हॉकी के जादूगर ध्यानचंद ने का जादू दुनिया में छाया था अथवा पाकिस्तान के जन्मे मिल्खा सिंह भारत की गुलामी से आजादी तक समस्याओं और परिस्थितियों से इतना भागे कि उन्हें जन्म तो पाकिस्तान में लेना पड़ा विकास भारत में करना पड़ा और उड़न सिख का तमगा पाकिस्तान ने दिया। इसके बावजूद भी भारतीय खेलों के लिए भारत की गरीबी नेताओं की गरीबी से ज्यादा गरीब दिखती है..., क्योंकि वे उनकी गरीबी को भी बेचकर प्रचार करके थकना नहीं चाहता।

 जबकि भारत के लिए भारत का गरीब दुनिया के ओलिंपियाड में अपनी कड़ी मेहनत से और उससे ज्यादा कड़े संघर्ष से पदक जीत कर लाता है। जापान के ओलिंपियाड में ऐसे ही कुछ हमारे गौरवशाली क्षण कुछ इस प्रकार से दर्ज हुए। हमें गर्व है इस शर्म के साथ कि भारतीय राजनीति कुछ सीख नहीं पाई संघर्ष साली इतिहास से...










रवि कुमार दहिया गुरुवार 57 किलोग्राम फ़्री स्टाइल कुश्ती के फ़ाइनल में रूसी ओलंपिक समिति के पहलवान ज़ोर उगुएव से 7-4 से हारे. तो वहीं 86 किलोवर्ग फ़्री स्टाइल कुश्ती में पूनिया यूरोपीय देश सैन मारिनो के पहलवान माइल्स अमीन से हारे.

इसी तरह प्राप्त सारे ऐतिहासिक पदक हमें सिर ऊंचा करके जीने का अंदाज बताते हैं जीत के बाद हर कोई उसके पीछे देखना चाहता है श्रेय भी लेना चाहता किंतु इमानदारी से मैं कुछ करना नहीं चाहता भारतीय खेलों को जमीनी हकीकत का जामा पहनाने के लिए वह उतना ही झूठा साबित होता है जितना कि संसद में कोरोनावायरस के संबंध में कहा गया यह दवा की ऑक्सीजन की कमी से भारत में एक भी व्यक्ति नहीं मरा।

 अयोध्या की राम की कसम।


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