शहडोल संभाग घोषित 270 में दो पत्रकार ब्लैक फंगस मे भी मरे...
मृतक परिवारों को स्थानीय संसाधन में रोजगार में प्राथमिकता नहीं...?
सवाल पर प्रभारी मंत्री कि कोई सोच नहीं है
(त्रिलोकीनाथ साथ विवेक पांडे)
कोविड-19 इंडिया की माने अब तक शहडोल मे 118 अनूपपुर मे 89 और उमरिया में 63 इस तरह संभाग में 270 लोग इस घोषित महामारी की मौत में मर गए हैं ।शहडोल , अनूपपुर और उमरिया में अलग-अलग प्रभारी मंत्री है। सरकार का दावा है कि वह बहुत संवेदनशील है। संसद में सरकार ने कहा कि ऑक्सीजन कमी से कोई नहीं मरा बावजूद इसके तथाकथित अघोषित तौर पर शहडोल मेडिकल कॉलेज में ऑक्सीजन की कमी से करीब 20 से ज्यादा लोग मरे थे । अयोध्या में स्थापित राजनैतिक राम की कसम खा भी ली जाए कि हां सरकार सही बोल रही है क्योंकि जो मर गए वे लौटकर नहीं आने वाले और ना ही बताने वाले हैं की वे ऑक्सीजन कमी से मरे हैं अथवा कोविड-19 महामारी से या फिर पोस्ट कोविड-19 इफेक्ट यानी कोरोना से ठीक होने की पश्चात हार्टअटैक डिप्रेशन सुसाइड से मरे हैं या फिर किन्ही अन्य कोविड-19 से....? शहडोल में दो पत्रकार कोविड-19 जनित ब्लैक फंगस मे मर गए। तो इस पर ज्यादा मंथन करना संवेदनहीनता की पोस्टमार्टम करने जैसा है।
प्राकृतिक संसाधन से परिपूर्ण शहडोल संभाग मे मृतकों के शेष बचे जीवित लोगों के लिए स्थाई रोजगार कारक समाधान क्या सरकार के पास है यह एक बड़ा प्रश्न है...? हलांकि सरकारी दावा सबसे बेहतरीन करने का है किंतु सरकार की नगद देने वाली भीख से हटकर मृतकों के परिजनों को स्वावलंबन के साथ जीने के लिए स्थाई रोजगार देने के प्रयास स्थानीय संसाधन जनित रोजगार से क्यों नहीं होना चाहिए...?
क्या स्थानीय प्राकृतिक संसाधन सिर्फ उद्योगपतियों, राजनेताओं और ब्यूरोक्रेट्स के तथाकथित विकास नामक अज्ञात योजना के लिए आरक्षित है..? या फिर वोट की राजनीति वाले एससी-एसटी-ओबीसी में जन्म लेने वाले "आरक्षण "के लिए आरक्षित है... यह भी बड़ा महत्वपूर्ण प्रश्न है..?
भलाई सरकारे दावा करें कि स्थानीय संसाधन में स्थानीय व्यक्तियों को रोजगार सर्वोच्च प्राथमिकता है किंतु इस महामारी में मृतक परिवार के लिए भी ऐसा कुछ दिखता नहीं ।
शहडोल में सर्किट हाउस पर प्रभारी मंत्री रामखेलावन पटेल से यही प्रश्न पूछने का प्रयास किया गया.. उन्होंने या तो प्रश्न को समझा नहीं या फिर संवेदना के साथ उसका उत्तर देने में बचते दिखे। गोलमोल जवाब से उनकी जवाबदेही कम होती दिखी। जब उनसे बार-बार इस पर चर्चा की जा रही थी, वे प्रदेश की सरकारी योजनाओं को देश की सबसे अच्छी योजना बता कर स्थानीय संसाधनों में रोजगार में प्राथमिकता के प्रश्न को खत्म करते दिखे तो देखिए यह झलक पत्रकार वार्ता की।
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