शुक्रवार, 5 मार्च 2021

काके ने कहा, मोदी जी मार रहे हैं (त्रिलोकीनाथ)

 काके ने कहा...




मोदी, सब तरफ से मार रहे है...

(त्रिलोकीनाथ)

 महंगाई के दौर में पेट्रोलियम पदार्थों डीजल पेट्रोल गैस की कीमतें अधिक होने से हो रही आलोचनाओं के बीच में मंत्री धर्मेंद्र प्रधान की सफाई आई कि अंतरराष्ट्रीय कारणों से महंगाई बढ़ रही है, जब भी सच्चाई स्पष्ट है कि अंतरराष्ट्रीय कारणों के कारण डीजल पेट्रोल आधे से भी कम रेट पर बिकने चाहिए। विरोधाभासी सफेद झूठ समाचार को पढ़ते हुए मैंने काके से कहा...

"मंत्री क्या उटपटांग बयान दे रहे हैं..."

 काके अपना काम करते रहे... मैं फिर अखबार पढ़ने लगा, कुछ देर ठहरने के बाद काके ने कहा.. "मोदी जी दोनों तरफ से मार रहे हैं..."

 उनकी बातों को समझने के लिए मैं उनका चेहरा देखता रहा, उन्होंने आगे कहा

 "पेट्रोल डीजल की कीमतें बढ़ाकर लूटा जा रहा है तो दूसरी तरफ इलेक्ट्रॉनिक गाड़ियों के लिए बाजार भी खोला जा रहा है की पेट्रोल डीजल महंगाई बढ़ रही है... इसलिए, इलेक्ट्रिक गाड़ियों का इस्तेमाल करिए..., बहुत सस्ती पड़ेगी। और तीसरी तरफ सूदखोरी ब्याज का धंधा बढ़ाने के लिए बैंकों के निजीकरण हो रहे हैं... तो इलेक्ट्रॉनिक वाहन खरीदने को पैसा नहीं है अगर तो कर्ज  में घर बैठे गाड़ियां आप खरीद लीजिए....। कुल मिलाकर उपभोक्ता हर तरफ से कैसे लूटा जा सके इसका कारोबार हो रहा है यह सब जगह से सिर्फ मारा जा रहा है"

 उनकी बातों को सुनकर और समझ कर मुझे यह लगा कि जो व्यक्ति जिस कारोबार में जीवन जीता है वह उस व्यवसाय के मर्म को समझता है, कि आखिर चोट कहां पड़ रही है। और कौन चोट कर रहा है। बाहर का आदमी सिर्फ देखता है।

 तो उनकी बातों से यह भी स्पष्ट हो गया की पेट्रोल ,डीजल की कीमत लीटर की बजाय जल्द ही पॉइंट में बिक्री होंगी। फिलहाल ₹1 पॉइंट से ऊपर पेट्रोल बिक रहा है, यह किस लक्ष्य तक जाएगा कुछ कहना जल्दबाजी होगी।

 क्योंकि यह इस बात पर भी निर्भर करता है की इलेक्ट्रॉनिक्स गाड़ियां या इलेक्ट्रिक वाहन से उसे बाजार में लागत से कितना गुना ज्यादा उतारा जाएगा और लागत में राजनीत को मिलने वाला कितने गुना चंदा होगा। इस पर इलेक्ट्रिक वाहनों का दर तय होगा।

 कुल मिलाकर पेट्रोल-डीजल एक से ₹2 या तीन चार रुपए पॉइंट भी हो जाए ताकि लोक महंगाई से परेशान होकर अपनी वाहनों को घर के शोरूम में खड़ा कर दें और बैंक से कर्ज लेकर इलेक्ट्रॉनिक वाहन खरीदना चालू कर दें। इससे आम नागरिक कर्ज के जाल में भी फंस जाएगा, कुछ रईसों के लिए पेट्रोल डीजल आरक्षित हो जाएंगे... तो महंगाई का दिखाने वाला सांप भी मर जाएगा और लाठी भी नहीं टूटेगी.. आम नागरिक कर्ज में भी फंस जाएगा और सूदखोर बैंक के कर्ज, उद्योगपति के वाहन भी बिकेंगे....; इस अंदाज में भारतीय बाजार विकसित किया जाएगा।

 कुछ ऐसी आशंका में काके ने अद्यतन राजनीतिक व्यवस्था पर निराशाजनक बात कही थी। तो यह तय है पेट्रोल और डीजल की कीमतें और बढ़ेंगी या फिर उपभोक्ताओं को अपनी आवश्यकताओं को सीमित करना होगा। ताकि नकली बाजार का व्यवसाय भोगवादी प्रवृत्ति से मुड़कर प्राकृतिक व्यवस्था के अनुरूप चल पड़े। किंतु इस दिशा में सरकार कोई प्रयास करती नजर नहीं आती। वह तो सिर्फ बड़े पूंजीपतियों की कठपुतली की तरह उंगलियों के इशारे पर काम करती नजर आती है।

 ठीक इसी तरह कृषि सुधार बिल में भी उद्योगपतियों ने  जिसमें दिखने वाले भारतीय और ना दिखने वाले अज्ञात जिन्हें एफडीआई विदेशी निवेशक भी कहा जाता है अपने उंगली के इशारे से नियंत्रित कर रहे हैं ऐसा कहा जा सकता है और यही कारण है कि कृषि सुधार नामक चर्चित 3 काले कानून के कारण दिल्ली बॉर्डर में बैठे हुए सैकड़ों किसान बलिदान होने को मजबूर हो रहे हैं; काफी शहीद हो गए हैं। किंतु शासन की सिर पर जूं तक नहीं रेंग रही है। क्योंकि वह बाजारवाद की कठपुतली बन गई है।

 बावजूद इसके की भारत का लोकज्ञानी किसान समाज अथवा ऑटोमोबाइल इंडस्ट्री से जुड़े हुए भारतीय नागरिक अपनी समझ से यह धीरे-धीरे समझ गया है कि इन सब के पीछे आखिर चल क्या रहा है..।

 अब तो उनके अपने भी धर्म के लेकर मजाक करने लगे


किंतु इंटरनेशनल इंडस्ट्रियल ट्रेडर्स (अंतर्राष्ट्रीय औद्योगिक व्यापारी) जिन्हें मल्टीनेशनल माफिया भी कहा जा सकता है भारतीय बाजार पर कब्जा करने के लिए भारतीय संविधान मैं निहित व्यवस्था को हथियार के रूप में इस्तेमाल कर रहे हैं। किंतु चाहे बढ़ रही पेट्रोल डीजल की कीमतें हूं या फिर कृषि सुधार बिल में चल रहे गंभीर आंदोलन की समस्या हो। अंततः यह भारतीय नागरिकों की मानसिक आजादी को खत्म कर देगा। क्या स्वतंत्रता का आंदोलन मैं सैकड़ों वर्षों के बलिदान और संघर्ष का लक्ष्य यही था....? बात सिर्फ महंगाई अथवा लूट तक सीमित नहीं है.., स्वतंत्रता हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है और इस मूलभूत अधिकार को बचाए रखने की भी है तो फिर रास्ता क्या है...?

 आखिर हमारे जनप्रतिनिधि इस पर मौन क्यों हैं यह एक बड़ा प्रश्न है..? तो क्या हमसे पहले हमारी लोकतांत्रिक संस्थाएं कार्यपालिका, विधायिका अथवा न्यायपालिका गुलाम हो चुकी हैं.... यह भी एक बड़ा यक्ष प्रश्न है...?

 इसका निदान इस बात पर है कि छोटी से छोटी घट रही घटनाओं पर क्या आप नजर रखते हैं...? अथवा उसे नजरअंदाज करते हैं...

 क्या यह भी छोटी घटना है कि पेट्रोल "प्रति लीटर" की दर से बिकने की बजाए "प्रति पॉइंट" की दर से बिकने लगा है...?

 क्या आप सोच सकते हैं तो बिल भी प्रति पॉइंट पर क्यों न लिया जाए.. उपभोक्ता का आखिर यह एक अधिकार भी है शायद, जागो ग्राहक जागो से आप जाग जाएं.... 

कि सिर्फ महंगाई ही नहीं बढ़ रही है बल्कि हम एक सुनियोजित गुलामी की तरफ खींचे चले जा रहे हैं..

 जहां काके कहेंगे कि मोदी सब तरफ से मार रहा है... क्योंकि उन्हें मरने का अनुभव हो रहा है... और हम नकली धर्म-कर्म-कर्तव्य मार्ग के भ्रामक ताने-बाने में अंधे कुएं में धकेले जा रहे हैं।

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