रहिमन पानी राखिए....
तलाब विनाश के चौकीदार....
पुलिस महानिरीक्षक कार्यालय, आखिर क्यों..?
शहडोल ।पुलिस महानिरीक्षक कार्यालय के ठीक पीछे कि दोनों तालाब अपनी मृत्यु के दिन गिन रहे हैं, क्योंकि इस पर अपना कब्जा बता कर कोई व्यक्ति तालाब के मेड़ पर किराया भी वसूल रहा है और जगह-जगह मकान भी बनवा रहा है। हालांकि तालाब को सरकारी करण कर दिया गया है किंतु जिस प्रकार से माफियाओं को हटाया जाता है तालाब को बचाने के लिए भू माफिया के खिलाफ पर्याप्त कार्यवाही नहीं की गई है।
तो बगल में एक और तालाब है इस तालाब के अंदर भी सड़क बना दी गई है क्योंकि वोट बैंक बनाना जरूरी है तालाब को बचा कर रखना जरूरी नहीं है क्योंकि जिंदगी सिर्फ अपने लिए जीनी है इसलिए गुलाबी घेरे वाले तालाब विनाश के कगार पर है तो नीले घेरा वाले तालाब को बचाने की संभावना तब तक जीवित रहेगी जब तक उसमें माफिया से शासन और प्रशासन लड़ सकता है यह अलग बात है किस शासन के लोगों के खिलाफ कोई माफिया सफेदपोश नकाब पहनकर न्यायालय के समक्ष तालाब में अपना अधिपत्य जाहिर करना चाहता है तो देखना यह भी चाहिए की शुरुआत में क्या कमिश्नर और कलेक्टर तथा पुलिस महा निरीक्षक के दीया तले अंधेरे की इस कहावत को साबित करता तालाब माफिया के खिलाफ कोई पारदर्शी कार्यवाही किसी प्रशासनिक अधिकारी के लिए उसकी योग्यता के लिए चुनौती के रूप में स्वीकार किया जा सकता है और अगर नहीं तो माफिया राज जिंदाबाद इसका नारा भी बुलंद होना ही चाहिए क्योंकि दवे छुपे उच्चाधिकारी भी इस व्यवस्था मैं आंख मूंद ना चाहते हैं क्योंकि वर्तमान व्यवस्था मे हमारे तालाब मरते ही जा रहे हैं। ऐसी बात नहीं है कि अगर पुलिस इमानदारी से चाहने तो वह जिला एवं सत्र न्यायालय आवास के सामने अपनी जमीन भी बचा सकती है यह अनुभव में सिर्फ भी हुआ है तो फिर तालाब के मामले में इतना रूखा व्यवहार क्यों.....?
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें