अवैध पट्टे की आड़ पर बने अतिक्रमण को लगा झटका......
कलेक्टर ने किया निरस्त
तो, टूटेगा माफियागिरी का अतिक्रमण..?
(विशेष खबर मनीष शुक्ला के साथ )
तो क्या फर्क पड़ता है जब पत्रकार अपनी पत्रकारिता झारता है, माना जाता है प्रेशर बना होगा तो झाड़ दिया, ना तो सिस्टम को फर्क पड़ता है और ना ही उस पक्ष को जो भ्रष्टाचार से ओतप्रोत सिस्टम को अपने जूते के तले दबा कर रखता है... लेकिन अगर कलेक्टर या न्यायालय का आदेश जब झरने लगता है, तब फर्क पड़ता है.... क्योंकि धनपुरी के रीजनल ऑफिस के सामने सरकारी जमीन पर सरकारी कर्मचारियों की मदद से गैर-सरकारी प्रमाणित करते हुए अतिक्रमणकारी ने न सिर्फ अतिक्रमण कर लिया बल्कि उस पर अपना ताजमहल भी बना लिया।
तो आइए देखें इस दौरान क्या-क्या हुआ?
और क्या ताजमहल तोड़ने की औकात हमारे सिस्टम में है...? अथवा वह भी सिर्फ एक प्रेशर था जो कलेक्टर के आदेश के रूप में झर गया जैसे पत्रकार को जब प्रेसर बनता है तो वह झर जाता है।
धनपुरी के नगर पालिका क्षेत्र में रीजनल ऑफिस के करोड़ों रुपए की कीमती सरकारी जमीन पर अवैध निर्माण की खबर आती है
शुरुआत होने पर स्थानीय अखबार में इसका प्रकाशन भी होता है पत्रकार को अपेक्षा होती है कि प्रशासन जागरूक होगा किंतु ऐसा होता नहीं। औपचारिक तौर पर नेशनल हाईवे सेेे लगी इस सरकारी जमीन को सीमांकन और जांचकर्ता कुछ इस प्रकार से जांच करते हैं की जमीन निजी पट्टेे की आराजी बताा दी जाती।
प्रश्न आधीन आराजी नगर पालिका क्षेत्र् अंतर्गत है तथा धारा 57(2) के तहत नगर पालिका क्षेत्र केे अंतर्ग भूमि स्वामी घोषित किए जाने का अधिकार अनुविभागीय अधिकारी (राजस्व) को नहीं इसलिए अधीनस्थ न्यायालय का आदेश निरस्त किया जाता है। तथा प्रश्नआधीन भूमि यानी रीजनल ऑफिस केे सामने की भूमि को मध्यप्रदेश शासन लिखे जानेे का आदेश किया जाता है ।
तो क्या अब कलेक्टर द्वारा पारित आदेश में लगे हुए मुहर की कोई मायने होंगे अथवा वह भी लोकतंत्र के चौथे स्तंभ की तरह सिर्फ भोंकता हुआ चौकीदार साबित होगा....? क्योंकि अंततः जमीनी कार्यवाही ही तमाम कार्रवाईयों को प्रमाणित करती है ।
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