मंगलवार, 22 दिसंबर 2020

यानी जमीर जिंदा है (त्रिलोकीनाथ)

 मामला शहडोल  जिला चिकित्सालय में सामूहिक इस्तीफे का ।

जमीर जिंदा है... 



         (त्रिलोकीनाथ)

जी हां, यह खबर चौंकाने वाली तो है ही कि जहां 1-1 डॉक्टर् के अकाल पड़े हो, जहां चिकित्सा कार्य प्रणाली की चर्चा भारत में होती हो कि कुछ ही घंटे में कैसे बच्चे बार-बार मर जाते हैं, जहां कुपोषण को लेकर चर्चा होती हो, जहां चिकित्सीय गुणवत्ता कभी मॉडल बन कर आता है तो कभी गंदगी और गुणवत्ता हीन का कारण बन जाता है, ऐसे जिला चिकित्सालय शहडोल में अराजकता का ही  आलम है की जातिवाद से ज्यादा खतरनाक अधिनायकवाद अपनी सत्ता कुंडली के रूप में जमा कर चिकित्सा व्यवस्था में फुफकार लगाना चाहता है...?

 हो सकता है उच्चशिक्षा के क्षेत्र में गुणवत्ता हीन शिक्षा प्रणाली और अराजकता सिद्ध हो चुके आदिवासी क्षेत्र शहडोल में जमीर को मारकर उच्च शिक्षा मे अधिनायकवाद जड़े जमा लिया हो किंतु चिकित्सा के क्षेत्र में आत्मनिर्भर-चिकित्सक समाज का जमीर शायद आज भी जिंदा है कि वह चिकित्सा के अंदर पारंपरिक जूनियर-सीनियर की मर्यादा का पालन बनाए रखने के लिए स्वयं में गुणवत्ता की आचार संहिता स्थापित करने के लिए आज भी वह वचनबद्ध दिखते हैं ।


तमाम प्रकार की अराजक प्रणाली के बावजूद भी यदि चिकित्सा जगत के डॉक्टर थोपी गई कार्य प्रणाली के रामराज्य को अस्वीकार कर देते हैं तो इसका मतलब है कि चिकित्सा समाज में आज भी जमीर जिंदा है ।

निश्चित तौर पर आज दिए गए सामूहिक इस्तीफा से शासन और प्रशासन के कान खड़े होंगे कि ऐसा नहीं चल सकता खासतौर से आत्मनिर्भर चिकित्सक समाज में। किंतु यह भी अराजक हो चुकी सिस्टम के पतन की कहानी है की यदि सेवा में रत चिकित्सक समाज शांतिपूर्ण तरीके से अपनी बात शासन और प्रशासन के समक्ष रखता है तो उसे भी किसान आंदोलन की तरह नजरअंदाज करने का काम होता है। यह ठीक है कि जिस प्रकार से किसान आंदोलन में लोग मर रहे हैं या प्रताड़ित हैं उस तरह से शहडोल में चिकित्सा के छोटी सी नियुक्ति में कोई डॉक्टर नहीं मरेगा किंतु निश्चित तौर पर इसका कुप्रभाव आम मरीज पर आदिवासी क्षेत्र में जबरदस्त पड़ने वाला है। एक पर्यावरण का भी निर्माण होगा जिसमें यह सिद्ध होगा कि यहां पर स्वास्थ्य चिकित्सा प्रणाली में गुणवत्ता देने की वजह जबरजस्ती पदों पर कब्जा करके अपनी मनमानी चलाने का काम हो रहा है। और इससे आदिवासी क्षेत्र का मरीज सरकारी चिकित्सा व्यवस्था पर अविश्वास करेगा। इसलिए भी जरूरी है कि समय रहते बिना किसान आंदोलन की तरह इसे लंबा खींचने के तत्काल इस पर निर्णय लिया जाना चाहिए और जो चिकित्सा समाज चिकित्सक स्थानीय परिस्थितियों को देखते हुए सर्वसम्मति का निर्माण करना चाहते हैं उसका निर्माण करके सम्मानजनक तरीके से चिकित्सा के अंदर निर्मित आचार संहिता का सम्मान भी करना चाहिए ।

देखते हैं की अधिनायकवाद क्या चिकित्सा संस्था को बचाना चाहता है अथवा अपनी मनमानी करके अपना सिक्का जमाना चाहता है कि मैं चाहे यह करूं मैं चाहे वह करूं मेरी मर्जी..... आशा करना चाहिए कि बौद्धिक समाज चिकित्सकों के सर्वसम्मति का सम्मान करते हुए संवेदनशील जिला चिकित्सालय की व्यवस्था तत्काल ठीक करेंगे।


कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

भारतीय संसद महामारी कोविड और कैंसर का खतरे मे.....: उपराष्ट्रपति

  मुंबई उपराष्ट्रपति जगदीप धनकड की माने तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के  राम राज्य में और अमृतकाल के दौर में गुजर रही भारतीय लोकतंत्र का सं...