किसान की खबर है , भाई; ज़रा धैर्य से...
"..सवा लाख से एक लड़ाऊं ..."
गुरु गोविंद सिंह की यह भाषा जंग में उतरे बाबा नरेंद्र मोदी को शायद जल्दी समझ में आ गई.. कि उसका मुकाबला भारत के वोटरों से नहीं है जिन्हें ईवीएम के खिलौने से खेला जा सकता हो बल्कि भारतीय आत्मा की आवाज से है लेकिन देर बहुत हो गई|
(--------त्रिलोकीनाथ---------)
इसीलिए मोदी ने दिल्ली के चारों ओर सड़कों पर रोक दिए गए किसान आंदोलन बनाम मोदी सरकार का मोर्चा अंततः अपने सभी लगभग फेल हो चुके हमलावर अस्त्रों में अविश्वास करके स्वयं दूसरी घोषित किसान आंदोलन उर्फ कन्फ्यूजन जंग की लड़ाई में स्वयं को उतार दिया| गुजरात में आमने-सामने कुछ किसानों से बात करने के बाद मध्य प्रदेश के बहाने देश की लाखों-करोड़ों किसानों को समझाने के लिए करोड़ों पर खर्च करके टेली कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए वर्चुअल मीटिंग में
किसानों को समझाने का प्रयास किया की किसानोंको कुछ लोग गुमराह कर रहे हैं जैसे कृषि बिल किसानों के कल्याण का नया अवतार है|
किंतु लगता है बहुत देर हो चुकी है जहां के किसान समझ गए हैं व लड़ रहे हैं दिल्ली में आकर, जान दे रहे हैं ।
और बचा कुचा सरकार जागरूकता पैदा करने का काम कर रही है आखिर दुनिया की सबसे बड़ी ताकतवर संख्या वाली पार्टी का अधिनायकवाद अपने हाथ में रखने वाला शख्स चिल्ला चिल्ला कर भी जब किसान सुधार कार्यक्रमों को नहीं समझा पा रहा है। नरेंद्र मोदी अब कितना भी कहे कि उनकी नियति गंगा और नर्मदा की तरह पवित्र है लेकिन यह नियति प्रदूषण का शिकार हो चुकी है तो लगता है मोदी बाबा का विश्वास आम आदमियों में नहीं रहा है ,कम से कम जागरूक पंजाब हरियाणा किसानों में नहीं है। उसका कारण साफ और सुथरा है। प्राथमिक विद्यालयों में एक कहानी से यह समझ में आता है तो आइए भेड़िया आया भेड़िया आया वाली कहानी है क्या इस दौर में समझने का प्रयास करते हैं
कहानी
एक बार की बात है, एक लड़का था जो अपनी भेड़ों के झुंड को ताजी हरी घास चराने के लिए पहाड़ी पर ले जाता था। यह काम उसके लिए थोड़ा उबाऊ था। ऊपर पहाड़ों में बैठ–बैठे वो पूरा दिन ऊब जाता था। एक दिन उसके दिमाग में एक विचार आया जिससे वो अपनी बोरियत दूर कर सकता है। अपनी बोरियत दूर करने के लिए, वह चिल्लाया, “भेड़िया! भेड़िया! भागो, भेड़िया आया, भेड़िया आया”।
आसपास बसें गाँव वाले उसकी आवाज सुनकर अपनी लाठी लेकर दौड़े, सोचकर कि कहीं भेड़िया उस बच्चे को खा न जाएं। लेकिन उन्होंने देखा कि वहाँ कोई भेड़िया नहीं आया था। गाँव वालों को वहाँ देखकर लड़का जोर–जोर से हँसने लगा, उसे लगा उसने लोगों को बेवकूफ बना दिया।
फिर कुछ दिनों के बाद उसने फिर से वैसा ही करने का सोचा, वह चिल्लाया, “भेड़िया आया, भेड़िया आया!” और गाँव वाले फिर से पहाड़ी की ओर भागते हुए गए, तो फिर उन्होंने पाया कि चरवाहे लड़के ने फिर से उन्हें बेवकूफ बनाया था। लड़का फिर लोटपोटकर हँसने लगा यह सोच कर की उसने फिर से गाँव वालों को बेवकूफ बना दिया। इस बात से सभी गाँव वाले बहुत गुस्से में आ गए और उन्होंने उस लड़के से कहा “अगली बार जब तुम सच में मदद के लिए रोओगे, पुकारोगे तो हम नहीं आएंगे।” यह कहकर सभी वहाँ से चले गए।
अगले दिन जब वह लड़का पहाड़ों में अपनी भेड़ें चरा रहा था, तो उसने अचानक उसे एक भेड़िया दिखा। वह डरकर जल्दी से एक पेड़ पर चढ़ गया और जोर से चिल्लाया “बचाओ, भेड़िया आया! भेड़िया आया!”, वह चिल्लाते रहा। लेकिन अफसोस! कोई भी उस लड़के की भेड़ को बचाने नहीं आया। भेड़िया उसकी कुछ भेड़ों को खा गया।
जोर-जोर से अपनी बातों को चिल्लाने से आप कब तक लोगों को बेवकूफ बना सकते हैं इस कहानी के कई पक्ष है किंतु स्वयं को देश का प्रधान सेवक और चौकीदार कहने वाले नरेंद्र मोदी की हालात कुछ इसी प्रकार से हो गई है
इस तरह बीते 6 साल से जो भी सब्जबाग 56 इंची के नरेंद्र मोदी ने अपनी भाजपा और साथियों की मदद से भारत की जनता को दिखाएं वास्तव में वह धरातल पर उतरे नहीं। जो जबरदस्ती जन स्वीकृत के विरुद्ध बदलाव किया भी गया वह मात्र भेड़िया कदर दिखाने के उद्देश्य मुट्ठी भर लोगों की पुष्टि के लिए अथवा हिंदुत्व ब्रांड विस्तार के लिए किया गया ।
हद तो तब हो गई जब कोरोना के महाकाल में चोरी-छिपे कृषि बेल को मनमानी तरीके से अध्यादेश के जरिए कानून बना दिया गया जागरूक अथवा नासमझ पंजाब हरियाणा के किसानों को यह बिल समझ में नहीं आया तो बजाय उन्हें समझाने के महीनों से उनके सामने उन्हें बौना दिखाने के लिए तमाम प्रकार के झुंझुनू बजाए जाते रहे। कभी राम मंदिर कभी 370 तो कभी करोना का उन्माद और भय का स्पीकर बजता रहा। चक्की कृषि बेल भारत की आत्मा की आवाज को हिला रहा था। वे आंदोलन पर उतर आए सत्याग्रह जैसे खतरनाक हथियार के साथ लेकिन उन्हें संतुष्ट करने की बजाय अब जबकि सब अस्त्र जिसमें विरोधियों को देशद्रोही किसानों को खालिस्तानी गद्दार अथवा अलग-अलग प्रकार के अराजकतावादी बताने का प्रयास करने वाले सभी प्रोपेगेंडा फेल हो गए तब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जो कमान संभाली है।
किसान आंदोलन की लंबी लड़ाई से मोदी हारे और थके हुए नेतृत्व का परिचायक है। इसलिए अब अगर वह सही भी बोलते हैं तो भेड़िया आया भेड़िया आया की कहानी के मुख्य चरित्र बन कर रह जाते हैं। देखना होगा कि कहीं कोई भेड़िया चरित्र को खा जाए। और लोग विश्वास नहीं करेंगे कि भेड़िया सचमुच में आया है जबकि वास्तविक हालात यह हैं कि कृषि बिल से संबंधित तीन सुधार भी आज लाखों किसानों को भेड़िए की तरह खाने को उत्सुक हैं। ऐसा कन्फ्यूजन है यह मोदी का दावा है। यह अलग बात है गांव समाज/ किसान समाज कुछ राजनीतिक दलों की चौकीदारी के सहयोग से भेड़िए को फिलहाल हांका लगाए हुए हैं। देखना यह भी होगा भेड़ियों की संख्या बल ज्यादा बड़ी है तो वह किसानों को खाती है अथवा किसान आंदोलन काल्पनिक कथित कृषि सुधार बिल के भेड़िया को मार डालता है। अभी सिर्फ दो राज्य हुए हैं जहां से बाबा मोदी कर्तव्यनिष्ठ होकर, निष्ठावान चौकीदार होने के नाते अपने बनाए कानून की रक्षा कर रहे हैं अभी कई राज्यों में इससे भी बड़ी करोड़ों अरबों रुपए खर्च करने वाली मीटिंगो के जरिए किसान आंदोलन पर बाबा मोदी के हमले होंगे।
तो लड़ाई लंबी चलेगी... जंग में कितने किसान मरेंगे... यह कोई महत्व नहीं रखता है उनके लिए..। महत्व रखता है मेरा कानून जिंदा रहेगा या नहीं...।
वास्तव में मध्य मार्ग यह भी है की एक कदम पीछे करके यह कानून वापस लेकर पुनः सर्वसम्मति से कृषि सुधार बिल पारित हो जाए किंतु जंग में अस्त्र और मौत का कारोबार चल चुका है तो देखते चलिए मीटिंग तक कितने किसान मरते हैं...? किंतु सवाल यह है आंकड़ों को क्या कोई इमानदारी से बताएगा भी कि क्यों भ्रम बन रहा है की "बाड़ी अब खेत खा रही है...?"
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