क्या किसान आंदोलन शहडोल जेल की भूमिका तय होगी.....?
(आज आजतक ने राकेश टिकैत की और
किसान यूनियन की हिस्ट्री का प्रकाशन किया है जिससे यह शंका बलवती होने लगी है कि क्या राकेश टिकैत वर्तमान किसान आंदोलन को अथवा फेल करेंगे या फिर समझौते का बड़ा चेहरा बनाया जा सकता है दरअसल इलेक्ट्रॉनिक मीडिया गिरी के जो बड़े चेहरे लोकतंत्र में पत्रकारिता के नाम पर सरकार की ओर से उनके लिए काम करते हैं उसमें कई टीवी चैनल्स में प्रमुख नाम आज तकका कुशलता के साथ दिया जाता है और यदि 50 किसान चेहरों में टिकैत का चेहरा सामने आता है तो यह भी सामने आता है कि राकेश टिकैत से अलग मिला गया था। इसे भी याद रखना जरूरी है कि राकेश टिकैत शहडोल क्षेत्र के जैतहरी मोजर बेयर प्लांट में जब किसान आंदोलन के नेतृत्व में आए थे तब उन्हें भारतीय जनता पार्टी सरकार ने गिरफ्तार करके शहडोल जेल में डाल दिया था जहां वे लंबे समय तक रहे और फिर बाद में भाजपा के तथाकथित समझौते के तहत उन्हें जेल से मुक्ति मिली थी। तो शहडोल जेल की यह कहानी दिल्ली के किसान आंदोलन को कितना प्रभावित करती है देखना होगा। फिलहाल देखिए टिकैत के कहानी जो आज तक ने बताई है बहर हाल किसानों के हित में यदि कोई समझौता होता है तो सुखद होगा अन्यथा दुखद तो हो ही रहा है)
किसानों के साथ एक और नाम जो आंदोलन में मुखर तौर पर उभरा है वह है भारतीय किसान यूनियन के राष्ट्रीय प्रवक्ता राकेश टिकैत का. भारतीय किसान यूनियन एक ऐसा किसान संगठन है जिसकी पहचान पूरे देश में है और इसके अध्यक्ष राकेश के बड़े भाई नरेश टिकैत हैं. लेकिन, व्यवहारिक तौर पर यूनियन से जुड़े फैसले राकेश टिकैत ही लेते हैं. राकेश बड़े किसान नेता और भारतीय किसान यूनियन के अध्यक्ष रहे स्वर्गीय महेंद्र सिंह टिकैत के दूसरे बेटे हैं.
राकेश टिकैत फिलहाल किसानों के उस कोर ग्रुप में शामिल हैं जो कृषि संशोधन बिल पर लगातार सरकार से बात कर रही है. बीती शाम अमित शाह से मुलाकात करने वाले किसानों में भी राकेश टिकैत शामिल थे और सभी पिछले पांच दौर की वार्ताओं में भारतीय किसान यूनियन का प्रतिनिधित्व राकेश टिकैत ही कर रहे थे.
जानिए कौन हैं राकेश टिकैत
राकेश टिकैत की पहचान ऐसे व्यवहारिक नेता की है जो धरना-प्रदर्शनों के साथ-साथ किसानों के व्यवहारिक हित की बात रखते हैं. किसान नेता महेंद्र सिंह टिकैत के दूसरे बेटे राकेश टिकैत के पास इस वक्त भारतीय किसान यूनियन की कमान है और यह संगठन उत्तर प्रदेश और उत्तर भारत के साथ-साथ पूरे देश में फैला हुआ है.
राकेश टिकैत का जन्म मुजफ्फरनगर जनपद के सिसौली गांव मे 4 जून 1969 को हुआ था. राकेश टिकैत 1992 में दिल्ली पुलिस में कांस्टेबल के पद पर नौकरी करते थे. राकेश टिकैत ने मेरठ यूनिवर्सिटी से एमए की पढ़ाई की हुई है. लेकिन 1993-1994 में दिल्ली के लाल किले पर स्वर्गीय महेंद्र सिंह टिकैत के नेतृत्व में चल रहे किसानों के आंदोलन के चलते सरकार का आंदोलन खत्म कराने का जैसे ही दबाव पड़ने लगा उसी समय राकेश टिकैत ने 1993-1994 में दिल्ली पुलिस की नौकरी छोड़ दी थी.
नौकरी छोड़ किसानों की लड़ाई में लिया हिस्सा
नौकरी छोड़ राकेश ने पूरी तरह से भारतीय किसान यूनियन के साथ किसानों की लड़ाई में हिस्सा लेना शुरू कर दिया था. पिता महेंद्र सिंह टिकैत की कैंसर से मृत्यु के बाद राकेश टिकैत ने पूरी तरह भारतीय किसान यूनियन की कमान संभाल ली.
दरअसल महेंद्र सिंह टिकैत बालियान खाप से आते थे और जब महेंद्र सिंह टिकैत की मृत्यु हुई तब आपने बड़े बेटे नरेश टिकैत को भारतीय किसान यूनियन का अध्यक्ष बनाया क्योंकि खाप के नियमों के मुताबिक बड़ा बेटा ही मुखिया हो सकता है, लेकिन व्यवहारिक तौर पर भारतीय किसान यूनियन की कमान राकेश टिकैत के हाथ में है और सभी अहम फैसले राकेश टिकैत ही लेते हैं. राकेश टिकैत की संगठन क्षमता को देखते हुए उन्हें भारतीय किसान यूनियन का राष्ट्रीय प्रवक्ता बना दिया गया था जिसे वो आज तक बखूभी निभा रहे हैं.
बागपत जनपद के दादरी गांव की सुनीता देवी से हुई शादी
राकेश टिकैत की शादी सन 1985 में बागपत जनपद के दादरी गांव की सुनीता देवी से हुई थी इनके एक पुत्र चरण सिंह दो पुत्री सीमा और ज्योति हैं. इनके सभी बच्चों की शादी हो चुकी है. भारतीय किसान यूनियन की नींव 1987 में उस समय रखी गई थी. जब बिजली के दाम को लेकर किसानों ने शामली जनपद के करमुखेड़ी में महेंद्र सिंह टिकैत के नेतृत्व में एक बड़ा आंदोलन किया था. जिसमें दो किसान जयपाल ओर अकबर पुलिस की गोली लगने से मारे गए थे. उसके बाद भारतीय किसान यूनियन बनाया गया था जिसका अध्यक्ष स्वर्गीय चौधरी महेंद्र सिंह टिकैत को बनाया गया था.
15 मई 2011 को लंबी बीमारी के चलते महेंद्र सिंह टिकैत के निधन के बाद इनके बड़े बेटे चौधरी नरेश टिकैत को पगड़ी पहनाकर भारतीय किसान यूनियन का अध्यक्ष बनाकर कमान सौंप दी गई थी. राकेश टिकैत ने दो बार राजनीति में भी आने की कोशिश की है. पहली बार 2007 मे उन्होंने मुजफ्फरनगर की खतौली विधानसभा सीट से निर्दलीय चुनाव लड़ा था. उसके बाद राकेश टिकैत ने 2014 में अमरोहा जनपद से राष्ट्रीय लोक दल पार्टी से लोकसभा का चुनाव भी लड़ा था. लेकिन दोनों ही चुनाव में इनको हार का सामना करना पड़ा था.
बीकेयू के राष्ट्रीय प्रवक्ता हैं राकेश टिकैत
भारतीय किसान यूनियन के नेता रहे स्वर्गीय महेंद्र सिंह टिकैत के पुत्र राकेश टिकैत टिकट कुल चार भाई हैं, जिनमें सबसे बड़े नरेश टिकैत हैं जोकि भारतीय किसान यूनियन के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं. वहीं राकेश टिकैत बीकेयू के राष्ट्रीय प्रवक्ता हैं. इसके अलावा राकेश टिकैत के दो अन्य भाई हैं. उत्तर प्रदेश से भारतीय किसान यूनियन के प्रदेश प्रवक्ता, आलोक वर्मा ने आज तक से बातचीत में, जानकारी साझा करते हुए बताया कि राकेश टिकैत से छोटे एवं तीसरे स्थान पर उनके भाई सुरेंद्र टिकैत मेरठ के एक शुगर मिल में मैनेजर के तौर पर कार्यरत हैं. वहीं, सबसे छोटे भाई नरेंद्र खेती का काम करते हैं. आलोक वर्मा आगे बताते हैं कि वर्ष 1985 में राकेश दिल्ली पुलिस में एसआई यानी कि सब इंस्पेक्टर के तौर पर भर्ती हुए थे.
दिल्ली के लाल किले पर डंकल प्रस्ताव आंदोलन चलाया
इसी दौरान उनके पिता महेंद्र टिकैत द्वारा दिल्ली के लाल किले पर डंकल प्रस्ताव हेतु आंदोलन चलाया गया था, जिसमें सरकार द्वारा राकेश टिकैत के ऊपर दबाव डाला जा रहा था कि वह अपने पिता को समझाएं और आंदोलन को खत्म कराएं. सरकार द्वारा राकेश के ऊपर दबाव बनाने के कारण 1993 में राकेश टिकैत ने पुलिस की नौकरी से इस्तीफा दे दिया और उसके बाद से इन्होंने किसानों के लिए सक्रिय काम करते हुए अपने पिता के साथ काम करना शुरू किया और 1997 में भारतीय किसान यूनियन के राष्ट्रीय प्रवक्ता बनाए गए.
किसानों की लड़ाई लड़ते रहने के कारण राकेश टिकैत 44 बार जेल की यात्रा भी कर चुके हैं. बीकेयू के उत्तर प्रदेश प्रवक्ता आलोक यह भी बताते हैं कि मध्यप्रदेश में एक समय किसान के भूमि अधिकरण कानून के खिलाफ उनको 39 दिनों तक जेल में रहना पड़ा था. उसके उपरांत दिल्ली में लोकसभा के बाहर किसानों के गन्ना मूल्य बढ़ाने हेतु सरकार के खिलाफ प्रदर्शन किया,और गन्ना को जला दिया था, जिसकी वजह से उन्हें तिहाड़ जेल भेज दिया गया था.
बाजरे के मूल्य बढ़ाने के लिए सरकार से मांग
राकेश टिकैत ने राजस्थान में भी किसानों के हित में बाजरे के मूल्य बढ़ाने के लिए सरकार से मांग की थी, सरकार द्वारा मांग न मानने पर टिकैत ने सरकार के खिलाफ प्रदर्शन किया था. जिस वजह से उन्हें जयपुर जेल में जाना पड़ा था. हालांकि आलोक वर्मा बताते हैं कि राजस्थान सरकार ने बाजरे के मूल्य को किसानों के लिए बढ़ा दिया था. वहीं, राष्ट्रीय लोकदल के अध्यक्ष अजीत सिंह ने 2014 में अमरोहा से राकेश टिकैत को लोकसभा प्रत्याशी बनाया था.
इस मामले में लगातार सरकार से बातचीत कर रहे भारतीय किसान यूनियन का मानना है कि अब गेंद सरकार के पाले में है और सरकार को ही तय करना है कि आंदोलन खत्म होगा या फिर अनवरत चलता रहेगा क्योंकि अगर सरकार ने तीनों कानून वापस नहीं लिए तो इस आंदोलन के खत्म होने की संभावना नहीं है
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