कॉरपोरेट मीडिया संकट ,
पतन का विरोधाभासी
संघर्ष का अर्ध्यसत्य
नुकसान पत्रकारिता को...
(त्रिलोकीनाथ)
यह उकसा कर आत्महत्या कराने का प्रकरण मुझे शहडोल जिले के जैसिंहनगर के 6 पत्रकारों को 306 में फंसाने की याद दिला दे गया ,इसमें कई के भविष्य बर्बाद हो गए ।पुलिस, वह चाहे शहडोल हो या मुंबई की उकसाकर आत्महत्या कराने के मामले में प्रकरण दर्ज करने पर बार बार सोचना चाहिए.... ताकि सच और झूठ के बीच का फर्क धारा 306 कर सके अन्यथा कानून की लिखी धाराएं लोकतंत्र के दुरुपयोग का कारण बन जाती है और यह एक खतरनाक प्रवृत्ति है।
किंतु कॉरपोरेट मीडिया हाल में जिस प्रकार से काम कर रहा है यह उसका पतन का विरोधाभासी संघर्ष है जिला स्तर पर पत्रकारों को पत्रकारिता बचाने के लिए चिंतन मनन करते रहना चाहिए।
कारपोरेट जगत, पत्रकारिता को सिर्फ यूज एंड थ्रो के रूप में इस्तेमाल करता है।
आइए पहले अपनी कहानी सुनाने के वह कहानी सुनाएं जिसमें अर्णब गोस्वामी को 306 में लपेटा गया है।
पूछता है भारत के लिए अपने तरीके से मीडिया गिरी करने वाले टीवी चैनल के अर्णव गोस्वामी का मुम्बई पुलिस ने आज गिरफ्तार कर ही दिया। मॉमला 2018 का है, आत्महत्या के लिए उकसाने का धारा 306 का। अर्नब गोस्वामी को महाराष्ट्र सीआईडी ने 2018 में इंटीरियर डिजाइनर अन्वय नाइक और उनकी मां कुमुद नाइक की आत्महत्या की जांच के सिलसिले में गिरफ्तार किया गया है। अर्णब को अलीबाग ले जाया गया है।
जान लें कि अर्नब गोस्वामी का यह मॉमला पत्रकारिता से जुड़ा नहीं है।
2018 में 53 साल के एक इंटीरियर डिजाइनर अन्वय नाइक और उसकी मां ने आत्महत्या कर ली थी। इस मामले की जांच सीआईडी की टीम कर रही है। कथित तौर पर अन्वय नाइक के लिखे सुसाइड नोट में कहा गया था कि आरोपियों (अर्नब और दो अन्य) ने उनके 5.40 करोड़ रुपए का भुगतान नहीं किया था, इसलिए उन्हें आत्महत्या का कदम उठाना पड़ा। अर्णब गोस्वामी के रिपब्लिक टीवी ने आरोपों को खारिज कर दिया था।
अन्वय की पत्नी अक्षता ने इसी साल मई में आरोप लगाया था कि रायगढ़ पुलिस ने मामले की ठीक से जांच नहीं की। उन्होंने मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे से न्याय की गुहार लगाई थी।
हालांकि, रायगढ़ के तब के एसपी अनिल पारसकर के मुताबिक, इस मामले में आरोपियों के खिलाफ कोई सबूत नहीं मिले थे। पुलिस ने कोर्ट में रिपोर्ट भी दाखिल कर दी थी।अक्षता के मुताबिक, अन्वय ने रिपब्लिक टीवी के स्टूडियो का काम किया था। इसके लिए 500 मजदूर लगाए गए थे, लेकिन बाद में अर्नब ने भुगतान नहीं किया। जिससे वे तंगी में आ गए। परेशान होकर उन्होंने अपनी बुजुर्ग मां के साथ खुदकुशी कर ली। अक्षता का दावा है कि काफी कोशिश के बाद अलीबाग पुलिस ने अर्णब समेत तीनों आरोपियों के खिलाफ एफआईआर तो दर्ज की थे कथित तौर पर यह मामला क्लोज कर दिया था
शहडोल में दुष्प्रेरण का एक मामला जैसीनगर थाने से जुड़ा हुआ बताया आज जाता है ।जिसमें एक छात्रा के आत्महत्या का कारण यह बताया गया कि जैसीहनगर के 6 पत्रकार पेशे से जुड़े लोगों को घटनास्थल पर एक साथ पहुंचकर परिस्थितियों की संज्ञान लेने के मामले में हुई चर्चा के बाद छात्रा ने आत्महत्या कर लिया था। इससे ज्यादा महत्वपूर्ण यह बात थी की तत्कालीन जिला पंचायत अध्यक्ष श्रीमती कमलेश नट के पति उक्त घटना स्थल स्कूल छात्रावास के मुखिया थे और तब बात चर्चा में आ जाने के कारण मामले ने राजनीतिक रंग ले लिया और आत्महत्या के प्रकरण पर विशिष्ट छानबीन करने की वजह तत्कालीन पुलिस शहडोल ने पत्रकारों पर ही दुश प्रेरणा का आरोप लगाकर उन्हें आरोपी बना दिया।
हालांकि कुछ पत्रकारों ने तब यह बात बताई थी किंतु पत्रकारिता का जो संगठन है वह इतना कमजोर थका हुआ और प्रतियोगी है की यह बात मजबूती के साथ पत्रकारिता हित में जोड़कर नहीं देखी गई हो सकता है तब तत्कालीन छात्रा से संबंधित घटना का संज्ञान यदि पुलिस ने लिया होता और वह उक्त विषय की चर्चा करती और तब छात्रा यदि आत्महत्या करती तो क्या पूरी पुलिस टीम पर दुष्प्रेरणना का आरोप लगाकर कार्यवाही की जाती ..?, शायद नहीं..। फिर कोई एक पत्रकार शायद उस प्रेरणा का कारक हो सकता था है .., पत्रकारों का दल पर यह आरोप लगाना तत्कालीन पुलिस की मानसिक दिवालियापन को बताती है फिर भी शहडोल जैसे आदिवासी क्षेत्रों में इस प्रकार से यह पहली बड़ी घटना थी जो पत्रकारिता पेशी के जुड़े लोगों के समूह पर पुलिस ने आरोपित किया था। और शायद तब पुलिस शहडोल पत्रकारिता के प्राकृतिक संसाधन की लूट के उजागर होने से नाराज थी।
फिर जो प्रचलन बना वह नए पत्रकारिता समाज को जन्म दिया जिससे कॉरपोरेट मीडिया पत्रकारिता की जिस भाषा में समझता है और बोलता है, जी हुजूरी करने वाले पत्रकारिता विशिष्ट राजनीतिक दलों की पक्षपात करने वाले पत्रकार, पत्रकारिता की नई पीढ़ी के आइकॉन बनते चले गए। यह जब आदिवासी क्षेत्रों यानी पिछड़े क्षेत्रों के हालात हैं तो राजधानी और सुपर मेट्रो सिटी मैं तो पत्रकारिता का नकाब पहनकर कॉरपोरेट जगत में कब्जा कर लिया। ऐसे में पत्रकारिता की आड़ में वह पत्रकारिता को नई परिभाषा देता रहता है। जिसका नतीजा कारपोरेट मीडिया में अंतर संघर्ष के रूप में अर्णब गोस्वामी की गिरफ्तारी दुर्भाग्य जनक तरीके से हुई है। तमाम प्रकार की प्रश्न अपनी जगह हैं किंतु यदि नकाब मीडिया गिरी का और उससे जुड़ी पत्रकारिता की साख की बात होती है तब अर्णव चर्चा में आ जाते हैं। और जैसीहनगर के 6 पत्रकार निरपराध अर्णव जैसे आरोपों पर कोर्ट और पुलिस के शिकार हो जाते हैं ।न्यायालय कि अपनी परिभाषा है अपना नजरिया है कानूनी दांवपेच में जैसीहनगर का यह मामला कितना खरा उतरता है अपनी जगह है किंतु इससे जिन लोगों का भविष्य प्रभावित हुआ है उसे समझ कर नई पत्रकारों की पीढ़ी जोखिम लेकर पत्रकारिता का साहस नहीं दिखा पाएगी। वैसे भी भारत में चतुर्थ स्तंभ नाम का तिनका मात्र रह गया है जिसके सहारे पत्रकारिता अपनी नैया पार लगा रही है इसलिए जब भी अर्णव के मामले में शहडोल क्षेत्र अथवा मध्य प्रदेश की पत्रकारिता से जुड़े लोग प्रश्न खड़ा करने की बात करें तो जैसीहनगर के 6 पत्रकारों के मामले में पुलिस पुनर विवेचना करने अथवा राज्य शासन इस पर निर्णय ले यह जरूर शामिल होना चाहिए।
अन्यथा अर्णव की गिरफ्तारी सिर्फ "बड़े लोगों की बड़ी बात" मात्र है और कुछ नहीं।,
कम से कम शहडोल की पत्रकारिता के संदर्भ में कुछ भी नहीं।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें