आरोपित अवैध शराब व सट्टा के छोटे प्यादों का फोटो प्रकाशन कितना उचित....?
जबकि मुखिया सुरक्षित हो...
(त्रिलोकीनाथ)
आज एनडीटीवी इंडिया के प्राइम टाइम में रवीश कुमार ने बिहार की शराबबंदी के हालात पर बड़ी रिपोर्ट प्रस्तुत की उसमें सिवान के एक युवक की बात भी की
जो अपनी परिस्थितियों के कारण नौकरी छोड़ कर कोरोना काल में गांव आ गया और इसी दौरान आबकारी पुलिस का छापा उसके घर में पड़ा जिसमें वह कथित तौर पर शराब कारोबार में पकड़ा गया और 7 दिन जेल मे रहा। जिसके कारण उसकी नौकरी उसकी नौकरी चली गई।
इस घटना का जिक्र इस फोटो के साथ इसलिए किया गया है कि शहडोल आदिवासी विशेष क्षेत्र में अक्सर देखा जाता है कि बड़े बड़े अपराधों चाहे रेत माफिया हो, कोल माफिया हो, वन माफिया हो अथवा उद्योग माफिया आदि आदि माफिया का उनका चेहरा दिखाने में पुलिस बचती रही है या मीडिया भी उसको फोकस करने में बचा है। क्योंकि कोई व्यक्ति बड़ा आदमी है। लेकिन गैर कानूनी तरीके से शराब बेच रहे छोटे तबके के लोगों की फोटो चाहे वे पुरुषों महिलाओं व बुजुर्ग हूं। पुलिस अथवा आबकारी विभाग के प्रेस विज्ञप्ति के साथ जारी किया जाता है। जबकि यह सभी आरोपी न्यायालय से दंडित भी नहीं होते अथवा उनका चालान भी प्रस्तुत नहीं होता। तो भी उनकी फोटो प्रकाशित कर दिया जाता है ।जबकि न्यायालय उन्हें अंतिम रूप से प्रमाणित भी नहीं करती है। यदि प्रमाणित कर भी दे यह सजा भी देते तो भी इनके अपराधों जो अजीबका परक होते हैं और मात्र सरकारी लाइसेंस जारी कर देने से वैध हो जाते हैं। और फिर वैध लाइसेंस के आड़ में अवैध शराब जो बिकती है ऐसे विक्रेताओं की फोटो भी कभी जारी नहीं की जाती। बल्कि जिले में कहां-कहां ऐसे अवैध कारोबार, वैध लाइसेंस धारी करते हैं उनकी फोटो भी जारी नहीं की जाती ।
फिर स्थानीय नागरिकों को इस प्रकार से फोटो जारी करके महानअपराधी की तरह प्रस्तुत करना कुछ अनैतिक प्रशासन की इंगित करता है।
शायद हमारा समाचार जगत इस चीज को नहीं समझ पाता है इसी को समझने के लिए हमने आज जब एनडीटीवी में आरोपित व्यक्ति की फोटो के साथ उसके चेहरे को छुपाए जाने के भाग को देखा तो फोटो खींच कर यह समझने का प्रयास किया है कि शहडोल पुलिस द्वारा इस प्रकार की फोटो जारी करना स्थानीय नागरिकों का कितना जायज है, जायज है भी या नहीं...? अथवा पूरी तरह से नाजायज है।
तब और जब बड़े अवैध कार्य कारोबारियों को हमारी व्यवस्था संरक्षण देती है... क्योंकि वह भ्रष्टाचार की व्यवस्था के हिस्सा होते हैं और यह छोटे कारोबारी भ्रष्ट व्यवस्था को अप्रोच नहीं करते इसलिए इन्हें खानापूर्ति के रूप में इस्तेमाल भी किया जाता है...
ऐसा लिखने का आशय यह नहीं है की अवैध छोटे कारोबारियों को संरक्षण देना चाहिए, किंतु जब बड़े माफिया नुमा कारोबारियों रेत माफिया आदि के अवैध लोगों को थाने में लिस्टेड नहीं किया जाता की कुल कितने आदमी कहां कहां काम कर रहे हैं तो फिर इन छोटे गरीब आदमियों का अपराध क्या सिर्फ यह है कि वे गरीब है...? और परंपरागत तरीके से उस व्यवसाय में अजीबका ढूंढ रहे हैं जो गैरकानूनी है..। क्या इनके पुनर्वास की व्यवस्था भी की जाती है....?
यह प्रश्न भी अहम प्रश्न है अथवा भविष्य में अपराधियों की सूची बनाने के लिए टारगेट पूरा करने में यह काम आते हैं....? यह यक्ष प्रश्न है। पुलिस अथवा संबंधित प्रशासन को स्थानीय गरीब लोगों के साथ सद्भावना पूर्ण फोटो प्रकाशन से परहेज क्यों नहीं करना चाहिए ....?
तब जबकि स्थापित संरक्षित माफिया के खिलाफ हम सोच भी नहीं पाते.....?
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