शनिवार, 21 नवंबर 2020

आखिर क्यों मोहनराम ट्रस्ट बना हुआ है अपराधियों का अड्डा? (त्रिलोकीनाथ)

आखिर क्यों,

 मोहनराम ट्रस्ट परिसर तालाब बना हुआ है अपराधियों का अड्डा ...?









(त्रिलोकीनाथ)


इसमें जलन भी लगती है कि हमारे स्थानीय लोक त्यौहार, छठ-पर्व के उत्सव आयोजन में पीछे हो गए हैं ।और यह अच्छी जलन है। इसलिए बहुत ज्यादा अच्छी जलन है क्योंकि यह सोचकर गर्व होता है छठ-पर्व की वजह से साल में एक बार आवश्यक रूप से तालाबों और जल सरोवर जल केंद्रों को याद किया जाता है। इसके लिए इस त्यौहार को विशेष रुप से मन में आस्था बनती है


 वैसे ही पानी के महत्व को शायद इसलिए छोड़ना चाहिए क्योंकि जल निगम में कई गुजराती ठेकेदार दूर अंचल से लाकर स्वच्छ जल हमें पिलाएंगे क्योंकि शहडोल नगर को केंद्र में रखकर बात हो पानी की पानी से भरे तालाबों की अथवा नदी नालों  के आसपास हैं उनके संरक्षण के लिए क्या हमारी कोई सोच जिंदा भी है.... और है तो किस सीमा तक है....? चुनावी नारों तक है, राजनीति के उपयोग के लिए है अथवा माफियाओं के हित के लिए है इसमें अलग-अलग संदर्भ में अलग-अलग विषय वस्तु बन जाते हैं।

 


किंतु जिस प्रकार से वोट की राजनीति हाल में गर्म हुई है उसमें बिहार अथवा उत्तर प्रदेश के लोगों का शहडोल मे दबदबा इस बात पर दिखने लगा है कि छठ पर्व में जल संरक्षण के लिए सुनिश्चित जल सरोवर नदी नालों को लेकर गाहे-बगाहे काफी कुछ होने लगा है। और चाहे जो डर हो, सम्मान तो बिल्कुल नहीं है; सम्मान होता तालाबों के प्रति, तो तालाब शहडोल के मर नहीं रहे होते । तो डर के कारण छठ पर्व में तालाबों की विशेष रूप से निगरानी की जाने लगी है। क्योंकि बिहारी वोटर या बिहारी नेता स्थानीय राजनीति में प्रभुत्व बना चुके हैं।

 इसमें जलन भी लगती है कि हमारे स्थानीय लोक त्यौहार, छठ-पर्व के उत्सव आयोजन में पीछे हो गए हैं ।और यह अच्छी जलन है। इसलिए बहुत ज्यादा अच्छी जलन है क्योंकि यह सोचकर गर्व होता है छठ-पर्व की वजह से साल में एक बार आवश्यक रूप से तालाबों और जल सरोवर जल केंद्रों को याद किया जाता है। इसके लिए इस त्यौहार को विशेष रुप से मन में आस्था बनती है।

 बहराल जल संरक्षण और त्योहारों के बीच में महत्वपूर्ण बात यह है कि मोहन राम तालाब फिर से चर्चा में आया यह शहडोल नगर का गौरवशाली तालाब भी है और उससे ज्यादा यह तमाम अपराधियों का अड्डा भी है कुछ धर्म का नकाब पहनकर संरक्षित अपराध है तो कुछ गैर कानूनी तरीके से अपराधी स्वेच्छा से अपराध करते हैं। अगर कमिश्नर शहडोल की बात माने तो करोड़ों रुपए का भ्रष्टाचार मोहन राम तालाब संरक्षण के नाम पर प्रमाणित है। जांच का काम है, होता रहता है क्योंकि भ्रष्टाचार उतना ही जरूरी है जितना कि प्रशासन चलाना?


 किंतु इस सब में जब छुटपुट अपराध, हत्या के अंजाम तक पहुंच जाएं तो चर्चा होनी ही चाहिए कि अगर मोहनराम तालाब करोड़ों रुपया सरकारी फंड से खर्च करने के बाद भी सुरक्षित और संरक्षित नहीं है और तब और जबकि मध्यप्रदेश का उच्च न्यायालय ट्रस्ट मामलों के लंबित मुकदमे में अपने निर्देश के अधीन एक स्वतंत्र कमेटी  के प्रबंधन में मोहन राम तालाब को छोड़ रखा हो तो फिर और क्या तरीका है कि मोहन राम तालाब क्षेत्र में हत्या ना हो।

 तमाम प्रकार के नशाखोरी का यह  अड्डा  ना बने सौंदर्यीकरण के नाम पर भ्रष्टाचार का जो पहाड़ खड़ा किया गया है जो थोड़ा बहुत इन्वेस्ट भी किया गया है वह बचा रह जाए क्योंकि जो भी सुंदरीकरण किया गया था वह भी चोरों ने लूटना चालू कर दिया है कबाड़ी होने लोहे की ग्रिल काट ली है लाइट्स को नुकसान पहुंचाया गया है सीमेंटेड चेयर टूट गई हैं क्या इसके लिए  अलग से उच्च न्यायालय में जाने की आवश्यकता है  कि वह कोई पथक निर्देश से...?,

 कम से कम तब तक जब तक की कोई जांच कमेटी कमिश्नर की इसकी पारदर्शी जांच ना कर ले आप इसे सुरक्षित क्यों नहीं रहना चाहिए ....?

किंतु ऐसा कुछ होता नहीं दिखता है हिंदुत्व की ठेकेदारी पर काम करने वाली राज्य सरकार हो या फिर नगर पालिका की सरकार हो दोनों ही मोहन राम मंदिर के इस विरासत को बर्बादी के हालात में छोड़ दिया है? क्यों उच्च न्यायालय के आदेशों का पालन नहीं हो रहा है ? 

यह कहना बड़ा आसान है कि जिन्हें शिकायत हो वह न्यायालय के आदेश की अवमानना की शिकायत उच्च न्यायालय में कर ले। किंतु इससे क्या मंदिर और तालाब बचाया जा सकता है? अगर न्यायालय ही कुछ कर सकती या न्यायालय के आदेशों का सम्मान होता तो मोहन राम तालाब के अंदर अपराधिक गतिविधियों का गतिविधियों का अड्डा नहीं बनता। स्वतंत्र कमेटी का प्रबंधन मोहन राम तालाब को संरक्षित और सुरक्षित रख करता। किंतु ऐसा लगता है जैसे ना वर्तमान स्वतंत्र कमेटी को चिंता है और ना ही हाई कोर्ट को संज्ञान में डालने की कोई बात है। शासन और प्रशासन तो अपराधियों को तब तक पहचानना भी नहीं चाहते जब तक के हत्या ना हो जाए।

 मोहन राम तालाब के 2 तालाबों में एक तालाब शहडोल शहर की नालियों का अड्डा है जहां प्रदूषित पानी भरा हुआ है। यह वही स्रोत तालाब है जिसका विनियमित तरीके से पानी शुद्ध होकर मुख्य तालाब में आना चाहिए किंतु ऐसा लगता है कि प्रबंधन अथवा ट्रस्ट पर कब्जा करके अवैध रूप से काम कर रहे हिंदुत्व के लोगों को बस में नहीं है।

चौकीदारों ने ही लूट ली संपत्ति...


 अन्यथा उच्च न्यायालय में मुकदमा लंबित रहते जिस तरह मोहन राम मंदिर ट्रस्ट की शहडोल खसरा नंबर 138 की जमीन 33 डिसमिल लूट ली गई उसी तरह स्रोत तालाब को भी भाटकर उस पर हिंदुत्व के लोगों का कब्जा हो जाता। अन्यथा ईदगाह वाले तो कर ही लेते हैं। जैसे अन्य समाज के लोगों ने कब्जा कर ही लिया है इसी हिंदुत्व सरकार के संरक्षण में। प्रतीकात्मक तौर पर इस विषय को छोड़कर अगर हम मुख्य बिंदु पर नहीं आएंगे तो भटक जाएंगे।

आखिर परिसर में अपराध का जिम्मेदार कौन?

 मुद्दा यह है की छठ का त्यौहार के कारण मोहन राम तालाब कुछ दिन के लिए ही चाहे सुरक्षित हो जाता है। आखिर क्यों नहीं जिन लोगों का दबदबा है वह इसे कानूनी तौर तरीके से सुरक्षित और संरक्षित करने का प्रशासन पर दबाव डालते हैं? तब जबकि मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय निर्देश करता है कि मोहन राम मंदिर ट्रस्ट की प्रबंधन को स्वतंत्र एजेंसी या स्वतंत्र समिति अपने हाथ में ले ले और संपूर्ण ट्रस्ट को सुरक्षित करें ।


इसके बावजूद आखिर किन लोगों ने माननीय उच्च न्यायालय के आदेश को किनारे रखकर इसी लंबित प्रकरण के दौरान अपराधियों का अड्डा ट्रस्ट प्रॉपर्टी को बनने दिया। जबकि 2011 में उच्च न्यायालय ने स्वतंत्र समिति के गठन का काम किया था। तो क्या स्वतंत्र समिति के लोगों ने मिलकर ही अपराध जगत का अड्डा बनाने का काम किया है? क्या इस दौरान बदलने वाले जिला प्रशासन व पुलिस प्रशासन मोहन राम तालाब क्षेत्र को सुरक्षित और संरक्षित करने के लिए प्रबंधन  को हत्या के आरोप के लिए जिम्मेदार ठहराया? कि आखिर उसके क्षेत्र में हत्या कैसे हो रही है। या फिर अपराधिक गतिविधियों का केंद्र वह कैसे बन रहा है। हमें अभी भी याद है कि बाईपास रोड स्थित शराबगी डीजल पंप पर एक बस में आग लग जाने से एक व्यक्ति जलकर मर गया था और  पंप में परिसर में क्योंकि बस खड़ी थी इसलिए दिलीप शराबगी, पंप मालिक के खिलाफ भी अपराधिक मुकदमा बना था। जब मोहन राम तालाब परिसर में हत्या होती है तो प्रबंधन के खिलाफ अपराधिक मुकदमा कायम क्यों नहीं होता...? यह प्रश्न भी अहम है।

 क्योंकि जब यह मुद्दा उठेगा तभी यह बात भी स्पष्ट होगी की क्या उच्च न्यायालय के निर्देश के अधीन कानून सम्मत कार्यवाही प्रशासन यहां कर भी रहा है अथवा नहीं। अन्यथा धर्म का नकाब पहनकर मोहन राम तालाब परिसर मैं किस प्रकार से कानून को अपनी जूती में नोक पर रखकर कोई माफिया पूरे धार्मिक परिसर को अपराधियों का अड्डा बना दिया है। किंतु इसके लिए जब तक कानून और प्रशासन का जमीर जागता नहीं है तब तक यह संभव ही नहीं है क्योंकि जैसे ही कानून के हाथ नकाबपोश  लोगों तक पहुंचेंगे पुलिस और प्रशासन के पसीने छूटने लगेगे और शायद यही डर है कि मोहन राम तालाब परिसर हर प्रकार के अपराधियों का खुला अड्डा है ।भ्रष्टाचार का स्वर्ग है और गैर कानूनी काम करने वालों का शरणगाह भी क्योंकि यहां हिंदुत्व का झंडा लहरा रहा है, सनातन हिंदू धर्म सिर्फ गुलाम है। किंतु अंत में छठ पर्व में मैं हमेशा गौरवान्वित रहूंगा कि जहां भी इसे मानने वाला समाज है साल में एक बार कमिटेड होकर तालाबों के लिए काम कर रहा है उन्हें बहुत-बहुत बधाई।


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