शुक्रवार, 4 सितंबर 2020

शहडोल क्षेत्र के 2 कैबिनेट मंत्री के बावजूद क्यों लुट रहा है शहडोल का संसाधन.......?

क्या लोकप्रिय विधायक संजय शर्मा को बदनाम कर रहा है रेत माफिया...?

विधायक शरद कोल क्यों लड़ रहे हैं माफिया के खिलाफ अकेली लड़ाई.....?-2

स्थानी संसाधन में स्थानीय व्यक्तियों का पहला हक कौन छीन रहा है....

 शहडोल क्षेत्र के 2 कैबिनेट मंत्री के बावजूद क्यों लुट रहा है शहडोल का संसाधन.......?


              (त्रिलोकीनाथ)

... चलिए इसे भी छोड़े तो दूसरी बात करते हैं अवैध खनिज कारोबार की दुर्भाग्य से या सौभाग्य से यदि कांग्रेस के कार्यकाल में ठेकेदारों को शहडोल क्षेत्र के जिलों में ठेके जारी हुए तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने वाहवाही पीटी, की रिकॉर्ड बोलियां आई ।यह अलग बात है कि भाजपा सरकार में वह चुपचाप अवैध खनिज मेंसंरक्षण देने का काम कर रही थी जिससे रेत का मूल्यांकन जनहित और व्यवसाई खेत दोनों के मद्देनजर तय नहीं हो पाया।


तो जो रिकॉर्ड बोलियां आए उसमें शहडोल जिले में कांग्रेस के एक विधायक संजय शर्मा के संरक्षण में "वंशिका ग्रुप" में पूरे खदानों का काम अपने हाथ में लिया । इसी तरह अनूपपुर और उमरिया में भी नेताओं ने अपने अपने संरक्षण में खदानों का काम लिया ।तो अभी हम सिर्फ शहडोल की बात करेंगे शहडोल की पूरी खदानों में मात्र कुछ खदानों का अनुबंध खनिज विभाग से हुआ की रेत निकाली जाएगी। और लोकप्रिय विधायक संजय शर्मा के संरक्षण में इमानदारी से उन खदानों से रेत निकाली जाने लगी। बाकी खदानों में जिन का अनुबंध नहीं हुआ है वहां पर कहते हैं भारतीय जनता पार्टी का किसी बड़े नेता का भाई माफिया गिरी के सहारे पेटी कांट्रेक्टर के रूप में अवैध खनिज का कारोबार कर रहा है । चूंकी कथित तौर पर यह  खनिज माफिया किसी पूर्व मंत्री का भाई है जिसने भाजपा की सत्ता को बचाने के लिए बलिदान किया था और जेल में था । इसलिए पूरी भाजपा इस माफिया से अघोषित तौर पर अनुबंध करके शहडोल जिले की गैर अनुबंधित वह गैर चिन्हित खदानों से रेत निकालने का और उसे भंडारण करके निर्यात करने का काम कर रहा है।

 याने नाम लोकप्रिय कॉन्ग्रेस विधायक संजय शर्मा के संरक्षण में वंशिका ग्रुप का है किंतु मिलीभगत करके माफिया पूरे शहडोल जिले का अवैध खनिज का कारोबार खुलेआम और पूरी गुंडागर्दी के साथ करता है। प्रशासन विधायकों का अनुगमन करता है। संस्थान के मौखिक आदेशों को भी मानता है। इसलिए आदिवासी क्षेत्र में अवैध खनिज कारोबार लोकप्रिय विधायक संजय शर्मा को बदनाम करते हुए भाजपा के संरक्षण में खनिज माफिया क्षेत्र को लूट रहा है।


 इसमें सिर्फ शरद कोल जो पहली बार विधायक बने हैं और  मिलीभगत के कारोबार में अभी परिपक्व नहीं हुए हैं इसलिए वे यदा-कदा अपने व क्षेत्र हित में अवैध खनिज कारोबार की बात उठाते रहते हैं । 


हाल में उन्होंने यही काम किया है जिसकी तारीफ खुले मन से करना चाहिए। अवैध खनिज कारोबार को अगर खनिज माफिया कर रहा है तो रेत की दरें भी उसकी बनाई दरों पर चलती हैं। जो इतनी ज्यादा है कि अगर लोन पर लिया हुआ ट्रैक्टर अपनी किस्त पटाने के लिए सिर्फ एक माह में 10 बार रेत की अवैध खनन या परिवहन करता है तो वह बैंक कर्ज से मुक्त होने की क्षमता रखता है। और नैतिक रूप से क्षेत्रीय विधायकों को यह महसूस होना भी चाहिए की कम से कम बैंक की किस्तों का भुगतान स्थानीय संसाधन से यदि हो सकता है तो उसे प्राथमिक तौर पर कानूनी जामा पहना कर क्यों नहीं गैर अनुबंधित खदानों से रेत परिवहन की इजाजत दिलाई जाए।
 ऐसे ट्रैक्टर या वाहनों को कानून सम्मत दिशा निर्देश देकर बाजार का लाभ उठाने का अवसर क्यों नहीं मिलना चाहिए...?
 हमारे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी कहते हैं कि "कोविड-19 की चुनौती को अवसर में बदलना चाहिए और तब जबकि कोरोनावायरस के दौरान बेरोजगारी, बेकारी से तथा बैंक कर्ज से स्थानीय आम आदमी जो फंसा हुआ है और उसके किस्त पटाने के लिए प्रकृतिदत्त स्थानी संसाधन भी उसे मदद करने को तैयार है ,याने भरपूर है तो सिर्फ खनिज माफिया की गुलामी में स्थानी संसाधन की लूट का अधिकार क्यों  कानून बनाकर रखा गया है । 

स्थानीय व्यक्तियों जो बैंक कर्जे में फंस गए हैं, उसमें बहुतायत आदिवासियों के नाम पर हैं उनसे मुक्त कराने का रास्ता क्यों नहीं निकालना चाहिए...? इसकी जानकारी बैंकर से से साधारण मिल जाएगी कि कितने ट्रैक्टर लोन पर हैं
 माह में क्या 10 ट्रिप रेता भी इन वाहनों को मेहनत करके निकालने का कानूनी अधिकार नहीं दिया जा सकता..? विधायक और सांसद आखिर इस दिशा में अगर चुप हैं तो खनिज माफिया की इतनी गुलामी अच्छी नहीं है.... और उस पर भी कांग्रेस के विधायक संजय शर्मा के "वंशिका ग्रुप" को बदनामी हिस्से में आ रही है....।  
  अपने बदनामी से बचने के लिए स्वयं एक सफल नेता होने के नाते संजय शर्मा को भी  प्रशासन के साथ तालमेल करके ऐसे निर्देश जारी करवाने चाहिए....
 किंतु क्या पावरफुल विधायक संजय शर्मा भी क्षेत्र के आदिवासी विधायकों की तरह एक कठपुतली मात्र है...? 
और यही कारण है की बहुत अच्छा लगता है की एक विधायक शरद कोल तो है जो राजनीति की माफिया-गिरी के रंग में ढला नहीं है..., हो सकता है यह उसकी नादानी हो, और अगर यह नादानी है तो बहुत सुखद है। वे उस परंपरा को निर्वहन कर रहे है जो उसके संसदीय क्षेत्र के चुरहट विधानसभा से कभी मंत्री रहे चंद्र प्रताप तिवारी की लिखी पुस्तक "नासमझी के 40 वर्ष .." की विरासत को संभाले हुए हैं।
 शरद कोल इसलिए भी बधाई के पात्र हैं क्योंकि उन्हें लगता है कि आदिवासी क्षेत्र में स्थानीय संसाधन पर स्थानीय को व्यक्तियों का पहला हक होना ही चाहिए। यदि इसके लिए कोविड-19 की महामारी में ठेके भी निरस्त करने पड़े तो क्यों नहीं निरस्त कर देना चाहिए ....?
 उम्मीद करना चाहिए कि शहडोल के सभी विधायक और सांसद भी सीधी संसदीय क्षेत्र के ब्यौहारी विधानसभा के युवा विधायक शरद कोल से इमानदारी का वायरस ग्रहण करें और जनहित में उसका उपयोग भी.... यही सत्ता का अर्थ है और जॉर्ज फर्नांडिस के अनुसार "राजनीति की परिभाषा, लोगों की सेवा है".....
कमोवेश खनिज माफिया के माफिया गिरी का यही हाल कैबिनेट मंत्री मीना सिंह के उमरिया जिले में और क्रांतिकारी बागी नेता बिसाहूलाल सिंह कैबिनेट मंत्री के अनूपपुर जिले में भी खुलेआम चल रहा है इसे भी आगे समीक्षा करेंगे गौरतलब है किस सुश्री मीना सिंह शहडोल संभाग के प्रभारी मंत्री भी हैं जिनकी जिम्मेदारी इन खनिज माफियाओं को नियंत्रित करना आदिवासी क्षेत्र की सुरक्षा के लिए सर्वोच्च प्राथमिकता होनी चाहिए किंतु क्या हो रहा है देखते हैं अगले एपिसोड में... फिलहाल आदिवासियों कि मंत्री आदिवासी क्षेत्र को माफियाओं से मुक्ति नहीं दिलाती दिख रही है....?


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