नैतिकता की राजनीति में शरद की परीक्षा... -1
शरद को छोड़ दें तो सांसद व विधायक गण क्षेत्र की "माफिया-गिरी" से डरते क्यों हैं... ?
(त्रिलोकीनाथ)
तो युवा विधायक शरद कोल नए-नए विधायक है।,उन्हें एक सफल भ्रष्ट विधायक होने में थोड़ा समय लगेगा इसलिए यदा-कदा वे आदिवासी क्षेत्र शहडोल में तमाम समस्याओं को चिन्हित करते रहते हैं... उसके खिलाफ आवाज भी उठाते रहते हैं। चाहे बीओटी रीवा अमरकंटक सड़क मार्ग की बात हो अथवा अवैध रेत खनन की बात हो जितना उन्हें समझ आता है उनकी सद्भावना अपने क्षेत्र के इस प्रकार के शोषण के खिलाफ उठती दिखती है अब दुबारा विधायक हो जाएं या फिर पैसे की बहुत ज्यादा जरूरत पड़ जाए और फिर राजनीति में अजीबका चलाने के लिए पैसे की जो हवस पैदा होती है, जितनी महंगी राजनीत हो गई है.., उस दुकान को चलाने के लिए जो करोड़ों रुपए चाहना होता है, अगर लक्ष्य उस प्रकार का होगा तो वह भी परंपरागत विधायक के गुण सीख जाएंगे। और इस हालत में वह भी अवैध कारोबारिओ को राज-काज के रूप में देखने लगेंगे।
यह बात इसलिए कही जा रही है कि अगर शरद कोल को कहीं यह महसूस होता है की अवैध खनिज कारोबार नहीं होना चाहिए, जो बहुत तेजी से हो रहा है। खनिज माफिया पूरे सिस्टम को गुलाम बना लिया है, तो वह बोलते रहते हैं। किंतु शहडोल संसदीय क्षेत्र के अन्य विधायक बिल्कुल नहीं बोलते... दो तो कैबिनेट मंत्री ही हैं, बिसाहूलाल सिंह और सुश्री मीना सिंह। उनका धर्म में भी बनता है की वे अवैध कारोबार को राजकाज के रूप में देखें और उसे नजरअंदाज करें । क्योंकि वर्तमान राज्य और केंद्र की सत्ता निजी करण की और जा रही है। तो इतना त्याग तो करना ही पड़ेगा। अपने क्षेत्र को बलिदान करना ही पड़ेगा। शायद यही समझ विकास का पैमाना बन रहा है ।
इसलिए अन्य विधायक ने भी मौन धारण कर लिया है। उनके भी बयान या आंदोलन कभी सामने नजर नहीं आते। जैसे सब कुछ शांति और व्यवस्था के साथ कायम है कानून काम कर रहा है ।
प्रशासन तो क्षेत्र की इस विधायकी का अनुगमन करता है जो उसका कर्तव्य भी है इसीलिए न्यायपालिका के बाद विधायिका ताकतवर बनाई भी गई है। किंतु जो विपक्षी पार्टियों के विधायक हैं अनूपपुर जिले के कोतमा और पुष्पराजगढ़ क्षेत्र के कांग्रेस के विधायक उनका तो कर्तव्य बनता है कि वे आलोचना जमकर करें, सत्ता की आलोचना उन्हें लगातार करते ही रहना चाहिए। किंतु ऐसा देखा नहीं गया। हो सकता है की कोतमा क्षेत्र में रीवा अमरकंटक सड़क मार्ग नहीं जाती है इसलिए सड़क के बारे में विधायक को नहीं बोलना चाहिए किंतु पुष्पराजगढ़ क्षेत्र में हृदय रेखा के रूप में रीवा अमरकंटक सड़क मार्ग बर्बाद हालत में गुजरती है ।इसके बावजूद भी क्षेत्र के दूसरी बार चुने गए कांग्रेस के विधायक फुन्दे लाल सिंह मौन व्रत धारण किए रहते हैं।
शायद उन्हें यह सब ना दिखता हो कि उनकी ही सरकार ने एक अनुबंध किया था निजीकरण के धंधे में कि 25 साल तक सड़क का निर्माण करके उसका प्रबंधन ठेकेदार करेगा। कथित एग्रीमेंट में यह भी था कि वह यानी ठेकेदार 110 करोड रुपए की रीवा अमरकंटक सड़क के लिए 55 करोड़ रुपये वे तत्कालीन कांग्रेस के शासन से पहले अपना हिस्सा लेगा और ₹55करोड़ अपनी तरफ से लगाएगा। तो 55 करोड़ का हिस्सा पहले लेने के बाद ठेकेदार ने लीपापोती करके सड़क बना दी। कहते हैं आधा पैसा तत्कालीन सत्ता ने अपने चुनाव के हिसाब से रख लिया था... आरोप है। और सड़क पूरी बनने के पहले ही टोल टैक्स वसूलना चालू कर दिया था। जो कि 15 साल तक बसूला। 10 साल में उसे इस सड़क को प्रबंधन करना है जो वह नहीं कर रहा है ।क्योंकि शासन में बैठा हुआ विधायिका चाहे वह कांग्रेस को हो या भाजपा का उसके ही अपने ठेकेदार होते हैं वह समय रहते पलटी मार लेता है। इसलिए अनुबंध के आधार पर जो प्रबंधन रीवा से अमरकंटक सड़क मार्ग पर करना चाहिए वह नहीं हो रहा है। इसके कुछ अन्य कारण भी बताए जाते हैं। जिसकी चर्चा बाद में करेंगे।
किंतु अगर एक भी व्यक्ति सड़क मार्ग की कुप्रबंधन के कारण दुर्घटना में मर रहा है तो ठेकेदार के खिलाफ एफ आई आर क्यों नहीं दर्ज की जा रही है....? क्या विधायकों ने ऐसे मुद्दों पर चुप रह कर क्षेत्रीय नागरिकों की हत्या का कारोबार में साझीदार बन रहे हैं...? जो उस सड़क मार्ग में मर रहे हैं।
आप कह सकते हैं कि अब मरना यात्राओं में कोई बड़ी बात नहीं है, औरंगाबाद में ट्रेन एक्सीडेंट में हमारे शहडोल के ही 16 लोग मर गए। मौत का कारोबार होता रहता है। क्या किसी विधायक ने अपनी चुप्पी तोड़ी। भाजपा के लोग शासन बचाने के लिए तो कांग्रेस के लोग भाजपा के समर्थन में चुप रहे। ऐसा ही मानना चाहिए।
इतना स्पष्ट है औरंगाबाद स्टेशन में 16 लोगों की मृत्यु एक्सीडेंट नहीं था। किंतु बात को विधायक उठाएंगे ऐसा लगता नहीं कभी। ( जारी....2)
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