भाजपा का सच/झूठ
सेवा-सप्ताह बनाम नंगानाच.....2
कुप्रबंधन से कोरोनाराम का नया
सांस्कृतिक राष्ट्रवाद
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--(त्रिलोकीनाथ)-------------------------
यह तो बहुत अच्छा हुआ डॉन ने निर्देश नहीं दिया कि पूरे देश में गुप्त तरीके से मारकाट मचा दो, लोगों को लूट लो अन्यथा वे सब कर्मठ कार्यकर्ता अपने नेता के लिए जान की बाजी लगा देते...। खुलकर नंगा नाच करते। क्योंकि हमे मालूम है कि उनका नेता, उनका भगवान है और भगवान जो भी निर्देश देगा वह अपने कार्यकर्ताओं की जीवन रक्षा और भविष्य की सुरक्षा के लिए देगा। एक सुनहरे सपने के लिए देगा। जिसमें "सांस्कृतिक राष्ट्रवाद" की धरातल पर आनंद ही आनंद होगा। यह धर्म नहीं कर्म का अंधभक्तों का अंधानुकरण अब शुरू होता।
क्योंकि सपने और सब्जबाग इसी रास्ते पर बिछाए गए हैं। यह उससे भी अच्छा हुआ की डॉन ने यह भी नहीं कहा कि अपने घर के बच्चों को हत्या कर दो, अपने मां बाप का गला घोट दो और मेरे लिए त्याग और महान बलिदान की पराकाष्ठा कर मोक्ष प्राप्त करो । क्योंकि अगर ऐसा डॉन कहता तो उनके कर्मठ कार्यकर्ता उसका पूर्ण अनुशासन के साथ जैसे करते आए हैं उनके सक्रिय कार्यकर्ता गुप्त निर्देशों का पालन करते आए हैं वह राजनीतिक दल के रूप में सार्वजनिक रूप से पालन करते ।
अंततः उन्होंने सेवा सप्ताह को जन्म दिवस के रूप में उत्सव के रूप में मनाया। यह उस चुनौती को करारा जवाब था जिसने इतना खूबसूरत अवसर प्रदान किया। अभी गुप्त-निर्देशों के तहत जमीनी कार्यकर्ताओं के लिए निर्देश बहाल नहीं किए गए हैं इसलिए प्रत्येक अवसर का सुनिश्चित समय में चाहे वह "कोरोनाराम" मंदिर का काम हो या फिर भारत की समस्त सार्वजनिक संपत्ति को अपने श्रेष्ठ-भक्तों को बतौर उपहार पूर्ण लोकतांत्रिक तरीके से इसी कोरोना कॉल मे परोसा गया, अब देश की कृषि मंत्री हरसिमरत कौर बादलउनके भक्त मंडली का हिस्सा नहीं थी....। ऊपर से सरदार फैमिली की, जिनका इतिहास ही बलिदान की जन्मभूमि पर हुआ है।उन्हें यह मंत्री-पद का बलिदान और त्याग तुच्छ लगा और जब एक लोकतांत्रिक कृषि मंत्री होने के नाते बिना उनकी सहमति के भारत के किसानों को "विश्वव्यापी" व महान बनाने के लिए लाए गए संसदीय बिल में सहमति नहीं ली गई। तो उन्होंने पूर्ण विनम्रता के साथ अपनी असहमति को त्यागपत्र में बदल कर डान के निर्देशों का पालन करने से मना कर दिया। स्वाभाविक रूप से वे बागी परिवार की हैं ऐसा कहा जाता है की जब जलियांवाला हत्याकांड जनरल डायर ने किया तो शाम के उन्हीं के घर पर कोई पार्टी-वार्टी हुई थी।
किंतु देश की आजादी के बाद उनके बगावत का अंदाज देखने का मिला था उन्होंने कालीख को मिटाने का काम किया...। पितृपक्ष में पितरों का सम्मान किए। इस पर चर्चा फिर करेंगे।
चर्चा इस बात की कि डॉन का निर्देश था जन्मदिवस को सेवा-सप्ताह में मनाया जाए। हमें इस बात का बुरा लगा कि हम इस महान महाकाल के तांडव नृत्य में भाग नहीं ले पाए। जो पूरे एक हफ्ता चला। सरकारी खर्चे से पूरी विलासिता के साथ। यानी जनता के टैक्स से पूरी बेशर्मी के साथ।
इसलिए की जन्मदिवस के पहले से ही हमें भी "कोरोनाराम" ने जकड़ लिया था। एक पट्टा हमारे घर पर भी लग गया था, लालवाला। ठीक 17 सितंबर तारीख को लालपट्टे की अवधि सुनिश्चित की गई थी। हम मुक्त होते इसके पहले ही मेरे परिवार में मेरे बड़े पिताजी के सबसे छोटे लड़के करीब 50 वर्ष के अवधेश का "कोरोनाराम" के कारण मेडिकल कॉलेज शहडोल में निधन हो गया।
अब हमारा परिवार इस मृत्योत्सव के शोक में व उसके पश्चात कोरोना के कारण जो मृत्यु होती है उसकी कष्टकारी परिस्थितियों एक अमानवीय परिस्थिति का सामना कर रहा है।
तो शुरुआत इसी से करते हैं 3 तारीख को स्वयं मेडिकल कॉलेज की परिस्थितिकी को देखने और समझने की अपनी जिज्ञासा के कारण अपने बेटे का "अचानक नाक के सुगंध है ना आने से" सन्का का निवारण हेतु, जांच कराने चले गए। मेडिकल कॉलेज के स्वास्थ्य सेवाओं में समर्पित तमाम चिकित्सकों के कर्तव्य निष्ठा के बाद भी संभवत है हम कोविड19 कुप्रबंधन के शिकार हो गए। ऐसा मुझे शंका है। एक तो ऐसी किसी बीमारी की कल्पना में मेडिकल कॉलेज का निर्माण भी नहीं हुआ था जो कुछ भी था वह तत्कालीन परिस्थितियों के मद्देनजर ही उसी से मनाया गया था जैसे हमें याद है कि जिला चिकित्सालय शहडोल में टीवी के मरीज के लिए अलग अस्पताल था ऐसा कोई अलग तथ्य कोविड-19 के लिए नहीं बना था तो जो प्रबंधन अत्याधुनिक करीब 1000 करोड़ रुपए की मेडिकल कॉलेज के लिए होना चाहिए विशेषकर कोविड-19 के लिए वह वह मुझे आदिवासी पत्रकार को समझ में नहीं आया।
हो सकता है मेरी ज्ञान और समझ उस प्रबंधन से परे रही हो। क्योंकि 100 ×100 के चेंबर/हाल में स्वस्थ नागरिकों का और कोविड प्रभावित नागरिकों का दो-तीन मीटर के अंतर में खड़ा रहना समझ से बाहर लगा।
उससे ज्यादा यह कि जो स्वास्थ्य कार्यकर्ता 1 मीटर के अंतर से हमें लिस्टेड सूचीबद्ध कर रहे थे वही दो कार्यकर्ता 3 से 4 मीटर के अंतर पर कोविड-19 से बचाव के लिए किट पहनकर हमारा सैंपल टेस्ट ले रहे थे। क्योंकि मैं अपनी आदिवासी पत्रकारिता की जिज्ञासा की पुष्टि के लिए स्वयं के जांच करा रहा था इसलिए मुझे लगा कि मैं शायद गलत जगह आ गया। अगर प्रबंधन सही होता तो यह मेरी सोच है कि क्या होता है...?
मेरी जितनी समझ है उसके अनुसार 2-3 प्रथक-प्रथक कच्छ सूचीबद्ध कर रहे कार्यकर्ताओं की कम से कम 10 मीटर की दूरी पर अलग-अलग होते और संदेहास्पद मरीज उन कमरो में प्रथक प्रथक जाता। ताकि कोविड-19 कोई भी सैंपलिंग के दौरान उस प्रक्रिया से जिसे लेकर स्वयं फिट पहनकर सूचीबद्ध कर रहे कार्य स्वास्थ्य कार्यकर्ता जो सतर्क थे अन्य स्वस्थ नागरिक प्रभावित ना होते।, किंतु ऐसा कुछ दिखा नहीं।
100 बाई 100 के चेंबर में सिर्फ ओपेन टीन सैड था जहां वेल्टीनेशन था/ वही हवा का निकास था बाकी हवा का निकास भी पर्याप्त नहीं था। क्योंकि कोई एग्जास्ट फैन हवा निकास के लिए व्यवस्था नहीं थी। इसलिए मुझे शक हुआ कि मैंने गलत निर्णय लिया, यहां आकर।
यह भी हो सकता था कि सभी सेंपलिंग खुले वातावरण में रखी जाती ताकि स्वस्थ व्यक्ति से प्रभावित नहीं होता और इस तरह मुझे यकीन हो गया कि मैं भी पॉजिटिव आऊंगा। मेरे नजर में यह कुप्रबंधन था। और धोखे से जब रिजल्ट 5 तारीख को आया तो मैं उन सभी 20 के 20 लोगों में पॉजिटिव था। एक स्वस्थ किंतु एक प्रमाणित अस्वस्थ कोविड-19 का व्यक्ति एक अधिकारी ने मेरे से कहा कि लगता है आप भी मेरे जैसे ही कोविड-19 कार हो गए हैं। किंतु उन्होंने शायद मेरी पत्रकारिता स्तर की जिज्ञासा की अपने नजर से ना देखा रहा हो।
बहरहाल मेरी पत्रकारिता की जिज्ञासा ने मुझे पहली नजर में परेशान कर दिया। यह अलग बात है कि मुझे होम-आइसोलेशन के कारण अन्य लाभ भी मिले जो शायद में अपनी जिज्ञासा बस लाभ नहीं ले पाता। अब मेरा बेटा नेगेटिव है जो इस्मेल लॉस मात्र तक सीमित रहा और आइसोलेशन के कारण भी ठीक हुआ।
किंतु इस पूरी प्रक्रिया में जो सबसे खतरनाक हालात थे मेरे निजी जीवन के लिए वह यह कि मैं अपनी 93 वर्षीय वयोवृद्ध मां जोकि अचानक 1 तारीख के बाद से स्वास्थ्य के दृष्टिकोण से अब की तब जैसी हालात से गुजर रही थी। मुझे उनसे स्वयं को दूर करना पड़ा। क्योंकि प्रधानमंत्री नरेंद्रमोदी ने कहा था बुजुर्गों का विशेष ख्याल रखना है ।क्योंकि उन पर इसका सीधा असर पड़ता है, मैं कोविड-19 पॉजिटिव प्रमाणित हो चुका था चाह कर भी अपने मन को मैं नहीं समझा सकता था कि मैं पूर्ण स्वस्थ व्यक्ति हूं। मेरी पत्नी अपने इस कार्यकाल में संपूर्ण जिम्मेदारी का निर्वहन किया उनके पास अब उनकी बिमार सास के अलावा उनके पति और पुत्र को "कोरोनावायरस" होने के बाद मानसिक, शारीरिक, आर्थिक और सामाजिक प्रताड़ना का शिकार भी होना पड़ा। क्योंकि नियम निर्देश थे के प्रमाणित व्यक्ति के घर में कंटेनमेंट एरिया का लाल-फ्लेक्सी लगा दी जाती है ।इस तरह है एक बहुत बुरे दौर से मैं और मेरा परिवार गुजर रहा था। शायद राम जी की कृपा थी हमारी माताराम सेवाओं के चलते स्वस्थ हो गई,जब तक हम कोविड-19 से मुक्त होते तब तक वे पूर्ण स्वस्थ हो चुकी थी। मेडिकल कॉलेज से बड़ा कोविड-19 प्रमाण पत्र मेरी 93 वर्ष मां का स्वस्थ होना था।
इसी दौरान डॉन ने शायद भारत के अंदर प्रधानमंत्री नरेंद्रमोदी का जन्मदिन का उत्सव 17 सितंबर को केंद्र में रखकर सेवा-सप्ताह में मनाने का काम किया। किंतु मैं या मेरे परिवार के लिए यह मरण-दिवस के रूप में दर्ज हुआ।
कोई कैसे अपना जन्म दिवस हफ्ते भर चला सकता है,
अगर उसके देश में 87,000 से ज्यादा लोग इस कोरोना काल में कोरोना बीमारी के चलते मर गए हो....?
क्या यह नंगा नाच नहीं है....?
तांडव की उद्घोषणा नहीं है....?
इसीलिए मैं कहता हूं कि यह डॉन की कृपा थी कि उसने अपने तथाकथित 10 करोड़ से ज्यादा कार्यकर्ताओं को यह नहीं कहा कि अपने परिवार के लोगों की समूल हत्या कर दो.... उसने यह नहीं कहा कि परिवार व समाज के लोगों को लूट लो ...!
यह डॉन की कृपा थी किंतु यह सेवा सप्ताह बनाम सत्ता का नंगा नाच जरूर बनकर सामने आया.....
-------------------(जारीभाग-3)
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