नाचू कि गांउ...या फिर रोंउ...
दुनिया का तीसरा बड़ा संक्रमित राष्ट्र बना भारत.....
लकवा ग्रस्त स्वास्थ्य प्रणाली का प्रमाण पत्र
स्वास्थ्य की गारंटी मौलिक अधिकार क्यों नहीं....?
-------------------------------------------(त्रिलोकीनाथ)---------------------------------------------
यह कड़वी सच्चाई के लिए हम चाहे तो "रेगिस्तान के शुतुरमुर्ग" की तरह अपना सिर रेत में छुपा सकते हैं कि हमारा रिकवरी रेट शानदार है ... ,अक्सर यह रिकवरी रेट मध्य प्रदेश की सरकार का आत्म विश्वास होता है। किंतु हम यह सोचने को तैयार नहीं हैं और कोई जिम्मेदारी लेने को भी तैयार नहीं है।
और एक लोकतांत्रिक सरकार होने के नाते इस्तीफा देने के बारे में तो सोच भी नहीं सकते ... कि भारत में लोकतांत्रिक सरकार फेल हो चुकी है... झूठ को, पाखंड को और मीडिया को मैनेज करके चाहे तो कितने भी राग-
विरुदावली का गायन करवालें, किंतु टॉप थ्री इन वर्ल्ड, मोस्ट सर्वाइवल कंट्री के रूप में भारत आज दर्ज हो जाएगा.... एक लोकतांत्रिक पार्टी के नाते तत्वों की संवेदनाओं को मनमानी तरीके से रच कर उसे हम चाहे कितना भी अच्छा क्यों न परोस दे किंतु वर्ल्डोमीटर का कोरोना संक्रमित दुनिया के आंखों में हम एक कड़वी सच्चाई के रूप में स्थापित हो रहे हैं ।
यह चंद्र ग्रहण 2020 का भारत के स्वास्थ्य व्यवस्था पर लगा हुआ चंद्र ग्रहण माना जाना चाहिए और हो भी क्यों ना जहां आदमी का स्वास्थ एक लोकतांत्रिक नागरिक, स्वतंत्र राष्ट्र के नागरिक का स्वस्थ-जीवन उसका मौलिक अधिकार होना चाहिए, वह बीमा कारोबार का सबसे बड़ा लूटपाट का हथियार है, और कारोबार को अगर सरकार प्रमोट करती है उसे संरक्षण देती है तो ऐसे देश में कोरोनावायरस को संरक्षण क्यों नहीं मिलना चाहिए.....? यह आम नागरिकों ने खुली बहस का मुद्दा होना चाहिए।
वोट डालते वक्त या सरकार चुनते वक्त भी यह प्राथमिक मुद्दा होना चाहिए। किंतु जैसे कोरोनावायरस का भय दिखाकर पूरे मीडिया को खरीद कर उसके जरिए जो भय का वातावरण आम नागरिकों के मन मस्तिष्क में स्थापित किया, याने माइंड-सेट किया उससे स्वास्थ्य बीमा का कारोबार कितना बड़ा होगा यह तो आंकड़े बताएंगे.... किंतु यह जरूर सत्य निकल कर के आया। ठीक उसी प्रकार से जैसे किसी बड़े बीमारी को ठीक करने के लिए जो कड़वी दवाई दी जाती है एलोपैथी की, उससे जो साइड-इफेक्ट होता है वह किडनी को ही डैमेज, क्षतिग्रस्त कर जाता है।
इस तरह आम नागरिकों को इतना भयभीत किया गया कि जब उन्हें कहा गया की दिया जलाओ, थाली बजाओ, ताली बजाओ... तो वह वैसा ही मारे डर के करता रहा.. यह अलग बात है दुनिया की सर्वश्रेष्ठ सदस्यता वाली राजनीतिक दल या अन्य राजनीतिक दलों को इसमें यह दिखा कि किसका वोट बैंक कितना बढ़ रहा है। विशेषकर अनुयाई दिखने वाली परंपरा में इसे बल मिला... वोट बैंक का एक बड़ा कारोबार देखने का सपना दिखा...।
अब जब विश्व स्वास्थ्य संगठन यह चेतावनी बार-बार देता है कि यह जो कोरोनावायरस का वातावरण है यह वह असली लहर नहीं है जो आनी बाकी है..... जिससे कोरोनावायरस का असली प्रकोप देखने को मिलेगा, तो क्या हम जब दुनिया के टॉप 3 कोरोना संक्रमित राष्ट्र बन गए हैं, हमें इंतजार करना चाहिए अमेरिका से भी ऊपर जाकर अपने को टॉप वन बनाने के लिए... अथवा अब भी वक्त है कि सभी राजनीतिक दल एकमत होकर अपनी राजनीतिक तुष्टि को किनारे रखकर एक राष्ट्रीय सरकार की कल्पना को साकार रूप देते हुए कोरोनावायरस से लड़ाई के लिए एकमत हो जाएं ।
शायद यह एकमात्र रास्ता प्रत्येक नागरिक में ऐसे निष्ठा जगा सकता है कि वह आशावाद होकर भविष्य की सुरक्षा के लिए वर्तमान को सुरक्षित कर सकें ।
यह प्रतियोगिता भी समाप्त हो जाए की लूटपाट ,डाका, धोखाधड़ी और बेईमानी ही आजीविका ही एकमात्र रास्ता है...? और यह भी तय हो कि इससे आगे हम एक नए राष्ट्र की संकल्पना कर सकते हैं, अपने पुराने भ्रष्टाचार को प्रमाण पत्र की तरह अपने ड्राइंग रूम में भलाई सजा ले किंतु अब जबकि राष्ट्रीय सरकार बने अपने अहम को छोड़कर नागरिकों की स्वास्थ्य की गारंटी पर क्यों नहीं काम होना चाहिए ...?
क्योंकि स्वास्थ्य ही धन है इस मूल सिद्धांत जब तक लक्ष्य गत नहीं किया जाएगा हमारी पार्टियां राजनीतिक दल दुनिया में कोरोनावायरस में टॉप कंट्री के रूप में पहुंचने की लड़ाई लड़ रही हैं...
सबसे बड़ी सदस्यता वाली पार्टी का दावा करने वाली भारतीय जनता पार्टी के 10 करोड़ से ऊपर के सदस्य यदि चाहते तो 10-10 लोगों को भी अपने घर से खाना बनाकर पहुंचा देते तो शायद 100 करोड़ों लोग इस महामारी में सुरक्षा की गारंटी पर भारत की एकता की ताकत बन सकते थे... किंतु फिलहाल तो हम यहां फेल ही रहे..।
तो सिर्फ राष्ट्रीय सरकार की संकल्पना को मूल रूप ही भारत को कोरोना से बचा सकता है, बाकी आर्मी-कैंप में जाकर फोटो खींचाना, ऐसी मॉडलिंग से कुछ हासिल होता नहीं दिखाई देता.. यह भी एक कड़वी सच्चाई है।
ठीक उसी तरह की जैसे हम दुनिया के तीसरी बड़ी कोरोना संक्रमित राष्ट्र के रूप में स्थापित हो गए हैं हमने रूस को पीछे छोड़ दिया है
जाने हम ज्यादा मरीजों के राष्ट्र बन गए हैं जहां से करीब 38000 करोड रुपए कि हथियार खरीदने गए थे और चीन की बात तो वह तो 22 में स्थान पर चला गया है आज ताकत हथियार नहीं कोरोना जिसके पास जितने कम कोरोनावायरस होंगे वह उतना ही ताकतवर राष्ट्र होगा। इस तरह भारत टॉप 3 में पहुंचने के बाद इसके साथ ही टॉप कंट्री ऑफ द कोरोनावायरस वर्ल्ड बनने की प्रतियोगिता चालू हो जाएगी।
क्या हम इसीलिए आजाद हुए थे....?
क्या 15 अगस्त 2020 से लाल किला का झंडा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सुरक्षित तरीके से फहरा सकेंगे, अथवा पुरे सोशल डिस्टेंसिंग के साथ वर्चुअल 15 अगस्त झंडारोहण का कार्यक्रम बंद कमरे से डिजिटल सिस्टम से फहराया जाएगा जैसा कि अमेरिका ने अपने स्वतंत्रता का दिवस खो दिया है क्या हमारे देश के जैसा भी हो जैसे भी लोग हमारी विधायिका को चला रहे हैं उनमें सोचने और समझने की क्षमता अभी बाकी है हम तो आदिवासी हैं क्योंकि आदिवासी क्षेत्र के निवासी हैं हमारा तो नियत ही शोषण होने का है देश को बचाने के लिए उन्ही को सोचना है देखते हैं आगामी 15 अगस्त तक हमारे महानुभाव महामहिम और माननीय देश को कहां ले जाते हैं ईश्वर ना करें हम दुनिया के सर्वाधिक संक्रमित राष्ट्र के पायदान में खड़े हो जाएं.... कम से कम मेरी तो यही एक आदिवासी पत्रकार होने के नाते सोच है ईश्वर करें यह पूरी तरह से गलत साबित हो क्योंकि हम तकिया कलाम विश्व गुरु तो नहीं बन पाए किंतु गुरु पूर्णिमा के दिन यह तीसरे संक्रमित रास्ता नगमा जरूर हमारे सिर पर लग गया है जो बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है... और हमारी असफलता का प्रमाण पत्र भी...
तो आशा पर, आकाश टिका है...
स्वास तंत्र कब टूटे.....
मंगलम शुभम,
गुरु पूर्णिमा की शुभकामनाएं
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