और आकाश पृथ्वी मर गया
पाली में क्या बिरासनी देख रही हैं
(त्रिलोकीनाथ)
जैसे 15 -16 जून की दरमियानी रात को चीन ने हमारे 20 सैनिक घुसकर हत्या कर दिए और किंकर्तव्यविमूढ़ हम हालात में, 56 इंच का सीना हमारा तन्हा रह गया...।
कुछ इसी प्रकार से पाली जनपद में में प्रतीकात्मक आकाश और पृथ्वी के पिंड स्वरूप गाय के मुख याने गोमुख के चिथड़े लिए घूमती गाय और उसके पीछे उसका नवजात बछड़ा भारत की वर्तमान हिंदुत्व-ब्रांड की व्यवस्था को मुंह चिढ़ा रही है।
अथर्ववेद में 20 कांड 731 सूक्त एवं 5971 मंत्र है मंत्र समूह को सूक्त कहा जाता है सूक्त का रचयिता दृष्टा जो ऋषि है वही सूक्त का ऋषि कहा जाता है। सूक्त में जो वर्णन है या जिसका वर्णन है वही उस सुख का देवता होता है इस प्रकार अथर्व को आम भाषा में समझाने के लिए लेखक राज बहादुर पांडे भरसक प्रयास किए। डायमंड पॉकेट बुक्स से प्रकाशित इस पुस्तक में नवम कांड के चतुर्थ अनु वाक् सूक्त सात देवता गौ का वर्णन है जिसमें कहा गया है।
गौ के सींग प्रजापति, सिर इंद्र, ललाट अग्नि, मस्तिष्क सोम, ऊपर का अधर धौ नीचे का अधर पृथ्वी, दांत मरुदगण जिह्वा विद्युत, कंधा कृतिका, ग्रीवा रेवती ककूद बृहस्पति, कंधा मित्रावरुण, बाहु महादेव , भुजाएं त्वष्टाअर्यमा, जंघाए गंधर्व, शफ अदिति हैं। बड़ी आत इड़ा, जननइन्द्री प्रजा, गुदा देवता, इसी प्रकार अन्य अंग भी विश्व के पदार्थ हैं और गौ संपूर्ण विश्व का रूप है।
इसी प्रकार के आते हैं अलग अलग तरीके से गाय को समझाने का प्रयास किया गया है हिंदू सनातन धर्म के प्रमुख चार वेदों में अथर्ववेद में गाय की मीमांसा का जो वर्णन किया गया है उसमें गाय के मुख के ऊपर के अधर को आकाश और नीचे के अधर को पृथ्वी कहा गया है। पुरातन पुराण में अथवा वेद में कही गई बातों को 2 मिनट के लिए हम सच मान ले तो क्या उमरिया जिले के पाली में गाय अपने नवजात बछड़े के साथ जिस चारागाह में अथवा स्थान पर घूम रही थी और कथित तौर पर उसने कुछ चीज खा लिया जिससे वहां विस्फोट हो गया और गाय का दुर्दांत कष्ट दाई ऊपर और नीचे का अधर याने आकाश और पृथ्वी दोनों ही फट गए। उसके चिथड़े उड़ गए... क्या कलेक्टर उमरिया को या कमिश्नर शहडोल को इसकी चिंता है....? चिंता तो पुलिस महानिरीक्षक को और पुलिस अधीक्षक को भी होनी चाहिए... क्योंकि अगर उन्होंने कानून की अजीबका पालन की कर्तव्यनिष्ठा से अपना वह अपने परिवार का र पेट पाल रहे हैं तो जब इनके क्षेत्र में तब के कानून यानी चार वेदों में अथर्ववेद में वर्णित गोमुख याने पृथ्वी और आकाश को किसी विस्फोटक पदार्थ से चिथड़े उड़ गए हो ऐसे में संबंधित क्षेत्र के उच्च अधिकारी किस प्रकार से आराम से नींद ले सकते हैं.....?
झूठा ही सही पुरा-विज्ञान ज्ञान के दृष्टिकोण से वर्णित कानूनी व्यवस्था में गाय की सुरक्षा इन जिम्मेदार अधिकारियों का प्रथम कर्तव्य क्यों नहीं होना चाहिए...? यह ठीक है केरल में किसी हाथी के गर्भ में विस्फोट करके हाथी और उसके बच्चे को मार डालने की घटना ने भारत को हिलाया था.., किंतु पाली में घटित घटना गाय के साथ उसके मुख में विस्फोट से उनके जबड़े का उड़ जाना एक दुर्दांत कारी घटना है। इसके लिए जो भी इससे संबंधित हैं उन्हें कतई क्षमा नहीं किया जाना चाहिए....
किंतु क्षमा कब प्रकट होता है जब अपराधी चिन्हित किए जाने की काबिलियत कानून के रक्षकों के द्वारा संभव हो.... मीडिया में यह बात आई जरूर है किंतु इससे अब तक ना कोई दंगा का धंधा हुआ है ना ही हिंदुत्व की कोई लहर पैदा हुई है.....
हां जो कुछ हुआ है उससे कुछ लोग अपनी भावनाएं प्रकट कर रहे हैं जो दिखाने वाला सत्य भी कहा जा सकता है।
किंतु वास्तविक सत्य वह इतना करुणादा यक है उसने हिंदू सनातन व्यवस्था में वर्णित इस चलते-फिरते कानून को जिसे अथर्ववेद ने अंत में कहा की "गाय संपूर्ण विश्व का रूप है"।
यह ठीक है कि इन व्यवस्थाओं का आध्यात्मिक पृष्ठभूमि परामनोवैज्ञानिक विज्ञान को समझने की और जानने की चेष्टा हिंदुत्व के ब्रांड ने बोर विषय बना दिया है । उसकी रुचि को अनुपयोगी कर दिया है।
बावजूद इसके गाय का दूध आज भी मां की दूध के बाद पहला स्थान लेता है... सूअर का दूध अथवा बकरी का दूध या अन्य पशुओं का दूध वह स्थान नहीं लेता है... यह भी अलग बात है की अमूल का दूध अब सब स्थानों की पूर्ति करने लगा है....
लेकिन जब पर्यावरणविद थक हार कर जैविक ज्ञान को प्रमाणित करने लगे हैं, जैव विविधता को स्थापित करने लगे हैं, जैव रसायन को सर्वोच्च प्राथमिकता देने लगे हैं। तब भी झूठा ही सही यदि गाय को संपूर्ण विश्व कहा गया है तो समझना चाहिए कि कुछ तो बात होगी, गाय को हम अपनी सहूलियत के हिसाब से, अपने धंधे के हिसाब से कितना महत्व देते हैं वह आपके लाभ हानि का हिस्सा है...
किंतु गाय सिर्फ अपना चारागाह मांगती है और वह जमीन से ले लेती है जो उसे घास पत्र आदि में मिलता है। वह आपसे कुछ नहीं चाहती।
यह भी तय है कि उमरिया जिले में कथित विस्फोटक जिसके कारण गाय का जबड़ा प्राय फट गया, मांस के लोथड़े में जीवित रहा, वह पृथ्वी ने नहीं दिया था। वह मनुष्य ने दिया.. तो कौन मनुष्य राक्षस रहा जो संपूर्ण विश्व को विनाश की कल्पना के इस ब्रह्मांड के पिंड स्वरूप गाय को उसके मुख में डालने का का रास्ता बना दिया...।
यह तय करना भी कानून के नाम पर नौकरी करने वाले अपने बच्चों और बीवी का पेट पालने वाले अजीबका चलाने वाले अधिकारियों का नैतिक सर्वोच्च प्राथमिक कर्तव्य होना चाहिए। कोई गाय का परिवार चिट्ठी लिखकर, आवेदन देकर, ई-मेल करके बछड़ा आपके पास नहीं आएगा... क्योंकि आप कानून के रक्षक हैं तो आप दोषी को पकड़े...।
यह स्वत संज्ञान लेने की और संज्ञान में प्राथमिकता की बात होगी। यह ठीक है की गाय अथवा बैल अन्य मांसाहारीओं के लिए सिर्फ एक भक्ष पदार्थ है। जैसे किसी हिंसक पशु के लिए एक भक्ष पदार्थ...।
अब तो भारत का कानून भी गाय को संरक्षण देता है... फिर भी यह चिन्हित ना हो पाना जिम्मेदार अधिकारी वर्ग की मानवता के पक्ष को संदेहास्पद पैदा करता है ....कि क्या वे मानव हैं....? और अगर वह मानव नहीं है तो क्या उनके परिवार में मानव जन्म ले रहे हैं...?
उनसे मानव बनने की अपेक्षा करनी चाहिए क्योंकि अगर संपूर्ण विश्व का आकाश और पृथ्वी फट गया है.., मांस के लोथोड़े में आपके कार्यक्षेत्र में घूम रहा है तो यह आपके लिए चुल्लू भर पानी में डूब मरने वाली बात है।
भ्रष्टाचार और चाटुकारिता की जिंदगी से दो पल निकालकर जरूर सोचना चाहिए... नहीं तो , हो सकता है यह शुरुआत हो किसी बड़ी अनहोनी की..., किसी बड़ी आशंका की... क्योंकि आकाश और पृथ्वी के प्रतीकात्मक जैविक केंद्रों के फटने का अर्थ है आपका नष्ट हो जाना ....इसे मुझ लेखक का आप सब श्राप भी समझें...., तो एक पत्रकार वार्ता गाय के लिए भी जिम्मेदार तबका करेगा.... निष्कर्षों के साथ... ऐसी अपेक्षा रहेगी....
गाय तो अंततः मर ही गई उसे मर ही जाना चाहिए जब पूरा समाज पशु हो गया हो रही बछड़े की बात तो जो गाय के मरने के कारक रहे हो उन्हें ताजा मांस की भी जरूरत पड़ेगी ऐसे भेड़ियों से क्या बछड़ा बच पाएगा चलिए कुछ समय के लिए बचा ही गया किंतु हम जो संवेदनशील समाज हैं उसकी तो हत्या हो ही गई है क्या अपराधी पकड़े जाएंगे या फिर पशु का मर जाना पशु स्वरूप आदमियों के लिए क्या मायने रखता है भविष्य यह भी निष्कर्ष निकालेगा शायद हम पशु बनने से रह जाएं जो उसके दृष्टा हैं जिम्मेदार हैं जो कानून की कसम की रोटी खाते हैं जिन्हें भविष्य में अपने बच्चों को गाय की हत्या का श्राप नहीं लगना चाहिए क्योंकि यह सार्वजनिक संवेदनहीनता की पराकाष्ठा है कम से कम उस क्षेत्र में हिंदुत्व वाली किसी भी पार्टी को जीवित रहने का कोई अधिकार नहीं है क्योंकि उनका ब्रांड हिंदुत्व ब्रांड के चिथड़े उड़ गए हैं
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