बुधवार, 17 जून 2020

आदिवासी समाज में बहु पत्नी ..., अधिकारी की विलासिता कितनी नाजायज.... (त्रिलोकीनाथ)

इति आदिवासी क्षेत्रे...





आदिवासी समाज में बहु पत्नी प्रथा कितना जायज आदिवासी
अधिकारी की विलासिता कितनी नाजायज....

(त्रिलोकीनाथ)
हिंदू सनातन धर्म के आदर्श पुरुष भगवान राम ने एक परंपरा तोड़ी थी, जनक दुलारी सीता जी से जब ब्याह करके आए तो प्रथम मिलन पर उन्होंने अपनी पत्नी सीता को वचन दिया था कि वह बहुत पत्नी प्रथा को नहीं अपनाएंगे यानी एक ही पत्नी जनक दुलारी उनकी पत्नी होगी।
   यह कथा है रामायण सीरियल में। इसे बहुत ही सुंदर तरीके से प्रदर्शित किया गया है। आज भी आदिवासी समाज में बहु पत्नी प्रथा गर्व का विषय है, इसमें कोई शक नहीं। हमारे जितने भी राजनीतिक नेता हुए हैं उनकी कई पत्नियां हुई है उन्होंने कुछ पत्नियों को छोड़ भी दिया है। और अपनी बड़ी उम्र में इस बात का ख्याल नहीं किया कि उन्हें छोटी उम्र की यानी उनकी पुत्री के समान उम्र की युवतियों से विवाह की कामना नहीं करनी चाहिए । 
किंतु प्रथा, प्रथा होती है जैसे दहेज प्रथा, जैसे सती प्रथा, जैसे भ्रष्टाचार के प्रथा...। लोकतंत्र में नेताओं के लिए बहू पत्नी प्रथा आचार संहिता का मामला होता है, नैतिकता ही तय करती है कि उन्हें क्या करना है। यह सिर्फ आदिवासी समाज की विडंबना नहीं श्रेष्ठ ब्राह्मणों में अपने को प्रदर्शित करने वाले  स्वर्गीय नारायण दत्त तिवारी ने घोषित तौर पर नहीं अघोषित तौर पर पत्नियां रखी थी। यह महिलाओं के सम्मान की बात थी इसलिए उनके पुत्र ने उम्र के चौथे पन पर सुप्रीम कोर्ट से मोहर लगवाया कि वह एनडी तिवारी का पुत्र है, और अपनी मां को पत्नी का हक दिलाया। यह अलग बात है कि वह पुत्र भी चल बसा । 
    आज भी रीवा, सतना या बाहर से शहडोल  क्षेत्र में आकर काम करने वाले कई सवर्णों , जिन्हें अगड़ा कहा जाता है अक्सर नौकरीपेशा लोग ऑफ द रिकॉर्ड पत्नियां रखते हैं । बड़े बड़े अधिकारियों की पत्नियां आदिवासी अंचलों में छोटी मोटी दुकानदारी करते हुए अधिकारियों के बच्चों को पालती है । सामाजिक भय से और नौकरी के भय से भी अधिकारी खासतौर से ब्राम्हण इन पत्नियों को फाइनेंस तो करते हैं किंतु उन्हें सामाजिक सम्मान नहीं दिला पाते हैं । 
   बहरहाल यह बात इसलिए लिखी जा रही है कि खुद के आदिवासी समाज में नौकरी पेशा उच्चाधिकारियों में एक ऐसे अधिकारी की चर्चा आम हो चुकी है कि साहब पत्नी तो हो घर में छोड़ आए हैं हर तीन चार महीने में एक नई लड़की जो आदिवासी होती है वह उनके घर में घरेलू सेवादार के रूप में हमेशा आ जाती है। इन अधिकारी पर क्षेत्र के आदिवासी विकास की जिम्मेदारी भी है। और वे आदिवासियों का विकास इस तरह से कर रहे हैं यह दुखद है । क्योंकि सबको मालूम है कि माननीय अधिकारी कौन है....? इसलिए नाम का उल्लेख करना शायद कानून के पचड़े में फंसने जैसा है... किंतु यह बात इसलिए भी लिखी जा रही है कि आदिवासी विभाग शहडोल जो कि भ्रष्टाचार के लिए स्वर्ग बना हुआ है और भ्रष्टाचारियोंं की कोई जातिि नहीं सिर्फ एक जाति किि व भ्रष्टाचारी और वह सबको समान दृष्टि से भ्रष्टाचार का बंटवारा करता है  और स्वर्ग में स्थापित ऐसे इंद्र अपनी अनेक अप्सराओं के साथ रासलीला करते नजर आते हैं जो कि लोकतंत्र है इसलिए गलत है। 
    यहां तक तो सही है की आदिवासी समाज के लोग जब बहू पत्नी प्रथा का अनुगमन करते हैं तो उस महिला को पत्नी का दर्जा देकर सम्मानित करते हैं और नैतिक रूप से भी उसका पूर्ण पालन करते हैं किंतु विलासिता और अय्याशी के लिए अगर कोई आदिवासी अधिकारी क्षेत्र की लड़कियों को उपयोग करो और फेंक दो की तरह चर्चा मैं आता है तब यह बात आदिवासी विभाग का या आदिवासी समाज उसे आलोचना का केंद्र क्यों नहीं बनाता.... अगर अधिकारी को वह पत्नी प्रथा का अनुगमन करना है तो वह नौकरी छोड़ दें और साथ में अपनी तनख्वाह से कई गुना लाखों  रुपए प्रतिमाह ऊपरी  आमदनी भी छोड़ दें फिर विवाह करें और क्षेत्र की आदिवासी महिलाओं को सेवादार के रूप में रखें हर 3 महीने में बदल दे या फिर विवाह कर ले इससे फर्क नहीं पड़ता । 
      किंतु अगर जिम्मेवारी आदिवासी समाज के विकास की है तो उसका बजट व्यक्तिगत अय्याशी के लिए भ्रष्टाचार के जरिए अपव्यय हो यह क्षेत्र की प्रभारी मंत्री सुश्री मीना सिंह अथवा महिला विधायकों की प्राथमिक जिम्मेदारी है कि वे ऐसे अधिकारियों पर निगाह रखें अगर उस पर उत्कृष्ट आदिवासी छात्रों का भविष्य संभालने की जिम्मेदारी है तब तो  उन्हें क्षेत्र से बाहर करने के समुचित तरीके ढूंढने ही चाहिए अन्यथा जातिवाद के नाम पर उन्हें पाल कर रखना ऐसी भ्रष्ट प्रथाओं को बढ़ावा देना जैसा है ...
क्योंकि यह बात गर्म है इसलिए जिक्र करना उचित था। देखना होगा अगर हमें दिखता है तो मंत्री और विधायकों को या अन्य अफसरों को जिनकी जिम्मेदारी कानून का पालन कराना है उन्हें भी दिखता है या नहीं.....?

1 टिप्पणी:

  1. 1 आदमी की वजह से आपने तो पूरे ब्राह्मण समाज को ही नीच कह दिया ।
    क्षमा चाहता हूँ किंतु यह उचित नहीं है । ऐसे व्यक्ति का नाम सार्वजनिक किया जाना चाहिए न कि उसके जाति समाज को ।

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