गुरुवार, 7 मई 2020

वक्त के मिजाज से क्या मिला... भाग-1 ( त्रिलोकीनाथ)

वक्त के मिजाज से क्या मिला... भाग-1 
सनातन विकास की रफ्तार
टटोलने का अवसर .... 
मूकबधिर समाज
आखिर कब जागेगा .....



कोविड-19 कोरोनावायरस नामक महामारी के कार्यकाल में निर्मित "जनता कर्फ्यू" ने जीवन शैली के परिवर्तन के बड़े संदेश दिए और पूरे प्रमाण के साथ ।इसे प्राकृतिक संदेश मानकर यदि आम नागरिक गण / हमारा लोकतंत्र अपने दायित्वों का निर्वहन अपने जीवन शैली में अनुशासित तरीके से करना सीख जाएगा तो सचमुच में जनता कर्फ्यू से कोविड-19 की चुनौती, जनता के लिए वरदान साबित हो जाएगी।
जैसा कि अद्यतन परिस्थिति की में हमने पाया कि जो जीव जंतु जो हमारे पर्यावरण संरक्षण के लिए एक संकेतक के रूप में हमारे पास में विद्यमान  रहे चाहे गौरैया कौवा कोयल की आवाज और उपस्थिति हो अथवा नदी तालाबों का तथा वायुमंडल में प्रदूषण मुक्त स्वस्थ वातावरण का निर्माण रहा हो जिसमें हमारी खुली आंखों से सितारों की छलक हमें आज आश्चर्यचकित करती है जो समय रहते शहडोल जैसे क्षेत्र में भी विलुप्त होती जा रही थी अब कचरे विकास क्रम जिसकी हत्या कर रहा था
 खासतौर से अधकचरे विकास की रफ्तार में स्थानीय जनप्रतिनिधि और प्रशासन मेें समन्वय के तहत किस तरह से प्राकृतिक संसाधनों को उनके प्राकृतिक वातावरण में सहेज कर रखने के लिए जनता कर्फ्यू एक बड़ा वरदान साबित हो ... किंतु क्या अपने अपने झूठे अभिमान और भ्रष्टाचार के सागर में गोता लगा रहे आज का कतिपय जिम्मेवार शैक्षणिक गुणवत्ता वाला तबका विशेषकर जो आईएएस, आई एफ एस , आईईएस आईआईटीएन आदि इसी तरह निकटतम शैक्षणिक डिग्री धारी तमाम पदों पर पद आसीन अधिकारी हो अथवा लोकज्ञानी जनप्रतिनिधि, वे भारत की आजादी के विभाजन का दर्द लिए इस बड़ी बीमारी के बीच में अराजक कुप्रबंधन के कारण करोड़ों मजदूरों के पलायन की पीड़ा के बीच में से कोई निष्कर्ष निकाल पाते हैं.....? क्योंकि अभी तक जो आंकड़े आए हैं सिर्फ शहडोल जिले में उसमें 24000 से ज्यादा प्रवासि मजदूरों के घर वापसी की बात बताई गई है जबकि प्राकृतिक संसाधनों के मामले में शहडोल भारत के कई लोगों को रोजगार देता है फिर यहां का मजदूर क्यों पलायन को मजबूर हुआ....?
 यह भी 21वीं सदी के भारत के लिए एक अवसर है। किंतु शहडोल जैसे अजीबोगरीब भौगोलिक प्राकृतिक वातावरण के संगम में स्थित परिस्थितिकियों का वर्तमान क्षेत्र में अब तक तथाकथित  कानूनी रूप से स्थापित एक राष्ट्रीय आदिवासी विश्वविद्यालय अमरकंटक तो दूसरा शहडोल विश्वविद्यालय में उपस्थित कार्यरत बौद्धिक समाज भी क्या इन परिस्थितियों का कोई विशेष सेमिनार करके, अपने निष्कर्ष की प्रस्तुति दे कर मानव समाज के लिए उत्कृष्ट उदाहरण क्या प्रस्तुत कर पाएगी...? यह भी एक बड़ा प्रश्न है ।

क्योंकि आज भी राष्ट्रीय विश्वविद्यालय अमरकंटक में अपनी जातिगत संकीर्णता के नेताओं और भ्रष्टाचार के लिए लगातार चर्चा में बने रहने की उसकी उपलब्धि कम होती नजर नहीं आ रही है। जैसा कि गुरु पत्नी ने एक प्रोफ़ेसर पर गंभीर आरोप लगाए।
 कम से कम शहडोल विश्वविद्यालय में स्थानीय निवासी के  कुलपति होने पर कोविड-19 की चुनौतियां व  मजदूरो पलायन की परिस्थिति में  शहडोल के प्राकृतिक संरचना से हम क्या सीख पाए..? अथवा उनमें क्या संरक्षित रख कर के हम प्रकृति के दिए गए इस अवसर को मानव समाज के हितकारी कार्यक्रमों के लिए सूचीबद्ध कर सकते हैं ...,
 यह इन विश्वविद्यालयों के लिए कम से कम बड़ी चुनौती है..? कि क्या यहां का शैक्षणिक अमला..., यदि उसमें कोई विशिष्ट योग्यता है या उत्कृष्टता के अवसर हैं तो शहडोल क्षेत्र को, प्रदेश को, देश अथवा दुनिया को हम क्या अद्यतन संकट से अपनी उपलब्धियों के लिए क्या निष्कर्ष दे पाएंगे...? ऐसे कई प्रश्न अगर शिक्षण क्षेत्रों में वहां के शिक्षा जगत को स्वयं को परखने का अवसर दे रहे हैं ।
(त्रिलोकीनाथ ,पर्यावरण मंच शहडोल)

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

भारतीय संसद महामारी कोविड और कैंसर का खतरे मे.....: उपराष्ट्रपति

  मुंबई उपराष्ट्रपति जगदीप धनकड की माने तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के  राम राज्य में और अमृतकाल के दौर में गुजर रही भारतीय लोकतंत्र का सं...