मामला संक्रमण मुक्त रीवा मैं कोरोना मरीज लाए जाने का ....
रीवा से बाहर शिफ्ट करने की खबर ने दी राहत की संदेश
क्षेत्रीय निवासियों की जागरूकता से बना राजनीतिक दबाव....?
(त्रिलोकीनाथ)
खबर है कि शहडोल के पड़ोसी जिले रीवा स्थित मेडिकल कॉलेज में इंदौर से लाए गए दो कोरोना मरीज को रीवा में एडमिट कराए जाने के बाद स्थानीय स्तर पर भारी विरोध का सामना प्रशासन को व शासन को देखना पड़ा और निंदा का कारण बनना पड़ा
जिस कारण अब अंतत: संक्रामक मुक्त रीवा क्षेत्र से मरीज को हटाए जाने के लिए मध्य प्रदेश सरकार तैयार हो गई है और इस संबंध में आवश्यक तैयारियां की जा रही हैं। हो सकता है आज इंदौर से लाए गए मरीज को रीवा से बाहर भोपाल, जबलपुर स्थानांतरित किया जा सकता है।
ज्ञातव्य है रीवा की नागरिक-जागरूकता के परिणाम स्वरूप राजनीतिक दबाव के कारण यह निर्णय लिया गया इसके पूर्व स्थानीय प्रशासन ने लोकज्ञान का उपयोग न करने के कारण मरीज को स्वस्थ हो जाने की आशा से मरीज के रहने पर स्थानीय जनों पर किसी भी प्रकार के खतरे की आशंका से इंकार किया था।
कमिश्नर भार्गव ने वकायदे वीडियो जारी कर इस मामले में स्पष्टीकरण भी दिया था जबकि रीवा के तमाम स्थानीय संगठनों ने विभिन्न नागरिकों सहित रीवा के पूर्व महाराजा ने भी शासन और प्रशासन की रीवा मेडिकल कॉलेज में कोविड-19 के मरीज के भर्ती कराए जाने के निर्णय की कड़ी निंदा की थी रीवा के पूर्व महाराजा पुष्पराज सिंह का वीडियो बेहद आक्रामक व बगावती अंदाज में नजर आ रहा था। उन्होंने क्षेत्र के सांसद और विधायकों को शासन के निर्णय पर इस्तीफा देने का आवाहन किया था।
यह अलग बात है कि उनका आज क्या महत्व है , यह दूसरी बात है कि पुष्पराज सिंह के पुत्र दिव्यराज स्वयं भारतीय जनता पार्टी के विधायक हैं । हाल में भारतीय जनता पार्टी प्रदेश संगठन द्वारा कोविड-19 के मद्देनजर गठित टास्क फोर्स में रीवा के विधायक पूर्व मंत्री राजेंद्र शुक्ला एवं शहडोल से भाजपा विधायक मंत्री पूर्व मंत्री मीना टास्क फोर्स समिति में सदस्य हैं। अब तक शहडोल और रीवा संभाग के प्रशासनिक कार्यवाही से विंध्य क्षेत्र कोविड-19 बीमारी से संक्रामक होने की एक भी प्रकरण दर्ज नहीं किए गए। ऐसे में संक्रमण मुक्त विंध्य क्षेत्र में कोरोना पॉजिटिव मरीज को इंदौर से हजार किलोमीटर दूर सतना में और इसके बाद उसे रीवा मेडिकल कॉलेज में स्थानांतरित करने का निर्णय शासन और प्रशासन की लोक ज्ञान के मद्देनजर अदूरदर्शिता हुआ। क्षेत्र में कोरोना संक्रमण फैलाए जाने कि शंका का षणयंत्र के रूप में देखा जा रहा था, और स्थानीय नागरिकों सहित पूर्व महाराजा पुष्पराज सिंह ने भी इसी मद्देनजर इस निर्णय पर कड़ी आपत्ति जताई थी।
यह अलग बात है कि शहडोल संभाग के आदिवासी अंचल से इस निर्णय पर किसी भी प्रकार की टिप्पणी सार्वजनिक रूप से नहीं आई। लोक धारणा के अनुसार अब तक बिंद्य मेकल सोन नदी तट कछार क्षेत्र मैं संक्रमण नहीं पाए जाने से स्थानीय नागरिक स्वयं को प्राकृतिक सुरक्षा चक्र के संरक्षण में महफूज पा रहे थे। अचानक प्रशासन के निर्णय से भी व्याकुल हो गए थे। आंतरिक सूत्रों के अनुसार रीवा कलेक्टर द्वारा सतना रीवा सीमा पर कोरोना मरीज के प्रवेश पर अभी समय तक रोक लगा कर रखी गई थी, किंतु प्रशासन का निर्णय होने के कारण अंततः उन्होंने कोरोना मरीज को रीवा मेडिकल कॉलेज के लिए प्रवेश करने दिया।
स्थानीय जनमानस में इस बात को लेकर व्यग्रता दिखी कि जब प्रशासन ने ही इस आशय का निर्णय ले लिया कि कोरोनावायरस मरीज के मृत्यु होने पर उसे स्थानांतरित कर किसी अन्य निवास स्थान पर मृत दाह संस्कार की अनुमति की बजाए उसी जिले के पास बाहर मृतक का मरणोपरांत संस्कार किया जाएगा जिस जिले में मरीज की मृत्यु हुई है, ऐसे हालत के बाद भी दो जीवित कोरोना मरीजों को संक्रमण मुक्त क्षेत्र में आखिर किस कारण से विंध्य क्षेत्र में रखने का निर्णय लिया गया ।यह देखना होगा कि क्या भविष्य में शहडोल और रीवा संभाग के लोकप्रतिनिधी किसी बड़ी जांच एजेंसी के जरिए इस प्रकार के निर्णय पर कितने सवाल खड़े करते हैं.. या फिर किसी अज्ञात भय से मौन व्रत रखते हैं। आखिर स्थानीय जनमानस को यह जानने का नैतिक अधिकार है यह विरोधाभासी निर्णय किस दबाव में लिया गया था और सतना प्रशासन ने क्यों दवा देकर रीवा मेडिकल कॉलेज में इसे शिफ्ट किया था...?
अब तक अनुभव में आया है की निर्णय के कारण ही इस महामारी को मध्यप्रदेश में विस्तार मिला है अन्यथा यह भारत का दूसरा बड़ा संक्रमण क्षेत्र नहीं बन पाता, जबकि भारत में सबसे पहले केरल में कोरोना मरीज पाया गया बावजूद इसके केरल ने इसे अपनी कुशलता से पूरी तरह नियंत्रित कर लिया और इस पर आंशिक सफलता पाने का काम कर सका।
अब इस आशय की खबर फैलने के बाद स्थानीय क्षेत्रीय नागरिकों में राहत की सांस ली है उनकी आशंका भयमुक्त होकर मनोवैज्ञानिक रूप से सुरक्षा कवच में स्वयं को सुरक्षित समझने लगे हैं संक्रमण मुक्त क्षेत्र से कोरोना मरीज को हटाए जाने का स्वागत किया गया है। निश्चय ही शहडोल संभाग के लिए भी यह सुखद खबर है। कि उसका ग्रीन जॉन का हक सुरक्षित रहेगा हालांकि प्रशासन ने इस मरीज की उपस्थिति से ग्रीन जोन पर किसी भी प्रकार का फर्क पड़ने की बात से इंकार किया था।
रीवा से बाहर शिफ्ट करने की खबर ने दी राहत की संदेश
क्षेत्रीय निवासियों की जागरूकता से बना राजनीतिक दबाव....?
(त्रिलोकीनाथ)
खबर है कि शहडोल के पड़ोसी जिले रीवा स्थित मेडिकल कॉलेज में इंदौर से लाए गए दो कोरोना मरीज को रीवा में एडमिट कराए जाने के बाद स्थानीय स्तर पर भारी विरोध का सामना प्रशासन को व शासन को देखना पड़ा और निंदा का कारण बनना पड़ा
जिस कारण अब अंतत: संक्रामक मुक्त रीवा क्षेत्र से मरीज को हटाए जाने के लिए मध्य प्रदेश सरकार तैयार हो गई है और इस संबंध में आवश्यक तैयारियां की जा रही हैं। हो सकता है आज इंदौर से लाए गए मरीज को रीवा से बाहर भोपाल, जबलपुर स्थानांतरित किया जा सकता है।
ज्ञातव्य है रीवा की नागरिक-जागरूकता के परिणाम स्वरूप राजनीतिक दबाव के कारण यह निर्णय लिया गया इसके पूर्व स्थानीय प्रशासन ने लोकज्ञान का उपयोग न करने के कारण मरीज को स्वस्थ हो जाने की आशा से मरीज के रहने पर स्थानीय जनों पर किसी भी प्रकार के खतरे की आशंका से इंकार किया था।
कमिश्नर भार्गव ने वकायदे वीडियो जारी कर इस मामले में स्पष्टीकरण भी दिया था जबकि रीवा के तमाम स्थानीय संगठनों ने विभिन्न नागरिकों सहित रीवा के पूर्व महाराजा ने भी शासन और प्रशासन की रीवा मेडिकल कॉलेज में कोविड-19 के मरीज के भर्ती कराए जाने के निर्णय की कड़ी निंदा की थी रीवा के पूर्व महाराजा पुष्पराज सिंह का वीडियो बेहद आक्रामक व बगावती अंदाज में नजर आ रहा था। उन्होंने क्षेत्र के सांसद और विधायकों को शासन के निर्णय पर इस्तीफा देने का आवाहन किया था।
यह अलग बात है कि उनका आज क्या महत्व है , यह दूसरी बात है कि पुष्पराज सिंह के पुत्र दिव्यराज स्वयं भारतीय जनता पार्टी के विधायक हैं । हाल में भारतीय जनता पार्टी प्रदेश संगठन द्वारा कोविड-19 के मद्देनजर गठित टास्क फोर्स में रीवा के विधायक पूर्व मंत्री राजेंद्र शुक्ला एवं शहडोल से भाजपा विधायक मंत्री पूर्व मंत्री मीना टास्क फोर्स समिति में सदस्य हैं। अब तक शहडोल और रीवा संभाग के प्रशासनिक कार्यवाही से विंध्य क्षेत्र कोविड-19 बीमारी से संक्रामक होने की एक भी प्रकरण दर्ज नहीं किए गए। ऐसे में संक्रमण मुक्त विंध्य क्षेत्र में कोरोना पॉजिटिव मरीज को इंदौर से हजार किलोमीटर दूर सतना में और इसके बाद उसे रीवा मेडिकल कॉलेज में स्थानांतरित करने का निर्णय शासन और प्रशासन की लोक ज्ञान के मद्देनजर अदूरदर्शिता हुआ। क्षेत्र में कोरोना संक्रमण फैलाए जाने कि शंका का षणयंत्र के रूप में देखा जा रहा था, और स्थानीय नागरिकों सहित पूर्व महाराजा पुष्पराज सिंह ने भी इसी मद्देनजर इस निर्णय पर कड़ी आपत्ति जताई थी।
यह अलग बात है कि शहडोल संभाग के आदिवासी अंचल से इस निर्णय पर किसी भी प्रकार की टिप्पणी सार्वजनिक रूप से नहीं आई। लोक धारणा के अनुसार अब तक बिंद्य मेकल सोन नदी तट कछार क्षेत्र मैं संक्रमण नहीं पाए जाने से स्थानीय नागरिक स्वयं को प्राकृतिक सुरक्षा चक्र के संरक्षण में महफूज पा रहे थे। अचानक प्रशासन के निर्णय से भी व्याकुल हो गए थे। आंतरिक सूत्रों के अनुसार रीवा कलेक्टर द्वारा सतना रीवा सीमा पर कोरोना मरीज के प्रवेश पर अभी समय तक रोक लगा कर रखी गई थी, किंतु प्रशासन का निर्णय होने के कारण अंततः उन्होंने कोरोना मरीज को रीवा मेडिकल कॉलेज के लिए प्रवेश करने दिया।
स्थानीय जनमानस में इस बात को लेकर व्यग्रता दिखी कि जब प्रशासन ने ही इस आशय का निर्णय ले लिया कि कोरोनावायरस मरीज के मृत्यु होने पर उसे स्थानांतरित कर किसी अन्य निवास स्थान पर मृत दाह संस्कार की अनुमति की बजाए उसी जिले के पास बाहर मृतक का मरणोपरांत संस्कार किया जाएगा जिस जिले में मरीज की मृत्यु हुई है, ऐसे हालत के बाद भी दो जीवित कोरोना मरीजों को संक्रमण मुक्त क्षेत्र में आखिर किस कारण से विंध्य क्षेत्र में रखने का निर्णय लिया गया ।यह देखना होगा कि क्या भविष्य में शहडोल और रीवा संभाग के लोकप्रतिनिधी किसी बड़ी जांच एजेंसी के जरिए इस प्रकार के निर्णय पर कितने सवाल खड़े करते हैं.. या फिर किसी अज्ञात भय से मौन व्रत रखते हैं। आखिर स्थानीय जनमानस को यह जानने का नैतिक अधिकार है यह विरोधाभासी निर्णय किस दबाव में लिया गया था और सतना प्रशासन ने क्यों दवा देकर रीवा मेडिकल कॉलेज में इसे शिफ्ट किया था...?
अब तक अनुभव में आया है की निर्णय के कारण ही इस महामारी को मध्यप्रदेश में विस्तार मिला है अन्यथा यह भारत का दूसरा बड़ा संक्रमण क्षेत्र नहीं बन पाता, जबकि भारत में सबसे पहले केरल में कोरोना मरीज पाया गया बावजूद इसके केरल ने इसे अपनी कुशलता से पूरी तरह नियंत्रित कर लिया और इस पर आंशिक सफलता पाने का काम कर सका।
अब इस आशय की खबर फैलने के बाद स्थानीय क्षेत्रीय नागरिकों में राहत की सांस ली है उनकी आशंका भयमुक्त होकर मनोवैज्ञानिक रूप से सुरक्षा कवच में स्वयं को सुरक्षित समझने लगे हैं संक्रमण मुक्त क्षेत्र से कोरोना मरीज को हटाए जाने का स्वागत किया गया है। निश्चय ही शहडोल संभाग के लिए भी यह सुखद खबर है। कि उसका ग्रीन जॉन का हक सुरक्षित रहेगा हालांकि प्रशासन ने इस मरीज की उपस्थिति से ग्रीन जोन पर किसी भी प्रकार का फर्क पड़ने की बात से इंकार किया था।
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