रविवार, 12 अप्रैल 2020










आज 13 अप्रैल  .......
 13 अप्रैल 1919, "जलियांवाला बाग हत्याकांड"
रविंद्रनाथ टैगोर ने अपना सम्मान लौटा दिया.........., 
हम क्या लौटा सकते हैं..?

(त्रिलोकीनाथ)

कहते हैं भारत की स्वतंत्रता के इस क्रूर काल 13 अप्रैल ने 1919 में जलियांवाला बाग के अंदर घेराबंदी करके एक अंग्रेज ने 15 सौ लोगों पर गोली चलवा कर हत्या कर दी थी। 15 से 18000 लोग यहां पर अंग्रेजों के विरोध में सभा कर रहे थे।
144 धारा का उल्लंघन मानकर, तब जनरल डायर ने इस हत्याकांड को अंजाम दिया था, और जैसे आया था वैसे ही चला गया था जालियांवाला बाग से ।
जालियाँवालाबाग हत्याकांड 
भारत के पंजाब प्रान्त के अमृतसर में स्वर्ण मन्दिर के निकट जलियाँवाला बाग में १३ अप्रैल १९१९ (बैसाखी के दिन) हुआ था। रौलेट एक्ट का विरोध करने के लिए एक सभा हो रही थी जिसमें जनरल डायर नामक एक अँग्रेज ऑफिसर ने अकारण उस सभा में उपस्थित भीड़ पर गोलियाँ चलवा दीं और  हजारो घायल हुए।

 ब्रिटिश गवर्नमेंट के अमृतसर के डिप्टी कमिश्नर कार्यालय में 484 शहीदों की सूची है, जबकि जलियांवाला बाग में कुल 388 शहीदों की सूची है। 
आज 13 अप्रैल 2020 तक  चीन के  बुहान नगर से निकला "तथाकथित रासायनिक जैविक हथियार बना" कोविड-19 कोरोनावायरस आज तक पूरी दुनिया में करीब सवा लाख लोगों की हत्या कर चुका है। 18लाखों की संख्या में लोग घायल हैं, इसे विश्व महामारी का दर्जा दिया गया।
13अप्रैल "नागरिक दायित्व में प्राण गंवाने" का दिन है अगर हम कुछ नहीं सीख पाए तो 2 हफ्ते का और अवसर को मिलने वाला है पीछे मुड़कर देखिए कि हमने क्या खोया है .....?
हम शहडोल को देखें क्योंकि हम शहडोल के रहने वाले हैं, हमने नगर के तालाब को मिलकर लूटने का काम किया.. विकास के नाम पर विलासिता का ट्यूबवेल लगा पानी को नष्ट करने का काम किया.. अंधाधुंध इस हरे भरे जंगल को कागज उद्योग पेपर मिल के लिए बलिदान करने का काम किया..., कोयला बॉक्साइट रेत पत्थर के लिए हम माफिया बन गए और प्रशासन के साथ मिलकर लूटने का काम किया...दोहन नहीं ....।
 नदियों को प्रदूषित करने मैं कोई कमी नहीं छोड़ी... साहब, हम सब वास्तव में घोर अपराधी हैं इस विंध्य और मैंकल की गोद में बैठ कर हम जो अंधाधुंध लूट के विकास का साम्राज्य स्थापित किया..... 
हम विकास चक्कर में किसी रेशम के कीड़े की तरह फस गए हैं... क्योंकि हमारी वैचारिक सोच मानवीय विकास की नहीं है.., हम तो सिर्फ लुटेरे हैं.....?
 संपूर्ण योग्यता इस बात पर निहित है कि हम कितना लूट सके है.... यह वक्त यह भी सोचने का है कि जब मृत्यु के कगार पर खड़े हैं.. कोई दरवाजा खटखटा रहा है... अंजाना व्यक्ति, तो वह हमारा "अतिथि देवो भव" नहीं है वह बुहान का वायरस भी है... यह 101 साल की प्रगति है। जो जालियांवाला बाग के शहीदों नागरिकों का बच्चे, बूढ़े, युवा, जवान आदमी और औरतों का बलिदान का अपमान भी है।
तो क्या हम कर सकते हैं...? 
कुछ कर सकते हैं.. हां क्या 1000 ंंनागरिक मारे गए लोगों के लिए हम अपने शहडोल में विरासत में 1000 तालाबों की रक्षा का वचन लेते हैं...?, और भी रास्ते हैं  सामाजिक दायित्व के  किंतु यह प्रत्यक्ष रास्ता है क्या हमारे लोकतंत्र में इतनी भी श्रद्धांजलि देने की क्षमता है....? और अगर नहीं है तो कोरोना जैसे अदृश्य शक्तियां हमेशा हमें किसी न किसी रूप में हमारे घर में कैद करती रहेंगी...।
 क्योंकि अगर तालाब होते, तो आप घर में कैद नहीं रहते। सोशल डिस्टेंस) बनाकर के खुली हवा में सांस लेे सकते थे, तो इतना डर तो होना चाहिए। क्योंकि यही डर हमारी ताकत है। हमारी कायरता नहीं  क्या आप तैयार हैं ....? सोचिए और सोचते रहिए क्योंकि 13 अप्रैल 1919 नागरिक समूह के हत्या का श्रद्धांजलि दिवस भी है

 नेता कितना सोचेंगे यह बहुत महत्वपूर्ण नहीं है...., मैं मोहनराम तालाब की रक्षा के लिए सतत वचनबद्ध हूं। चाहे कितने भी क्रूर "दृश्य-अदृश्य" कोरोना इसकी हत्या का प्रयास करें....।, आप भी वचनबद्ध रहिए आसपास के किसी एक तालाब के साथ अपनी संवेदनशीलता  का रिश्ता बना कर। तालाबों को नदियों तक और नदियों को महानदियों तक और महा नदियों को सागर तक विलय हो जाने का रास्ता बस यही एक रास्ता है। और इससे बेहतर समय अन्य नही। आप आराम से दो हफ्ता सोच सकते हैं कुछ तो प्रायश्चित होना ही चाहिए। यही जलियांवाला बाग में नागरिक समूह की हत्या में मारे गए 1000 नागरिक के लिए, एक नागरिक की सच्ची श्रद्धांजलि होगी। मंगलम शुभम।

                                   

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