शुक्रवार, 10 अप्रैल 2020

बुहान का वायरस और मरकज का जमात (प्रस्तुति- त्रिलोकीनाथ

....अथ कोरोना कथा.... बीते 17 दिन
मीडिया पर चर्चा पर बने रहे
 बुहान का वायरस और

 मरकज का जमात
(प्रस्तुति-
त्रिलोकीनाथ)
कोविड-19 के  विश्व  स्तरीय महामारी के सतर्कता  हेतु  भारत में  21 दिन का लॉक डाउन किया गया जिसका आज 17 वां दिन है 
जब यह भारत में मनुष्यों द्वारा आयात की गई तब अंदाज नहीं था कि यह विकासशील भारत का आर्थिक नब्ज तोड़ देगी।
कुछ ही दिन में भारतीय शिक्षा  गुणवत्ता की उत्कृष्ट डिग्री भारतीय स्तर की सेवाओं को हासिल करने वाले भारत की राजधानी दिल्ली राज्य के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल से लेकर भारत के लोक ज्ञान से निकले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी दोनों ने ही किस महामारी को भारतीय सनातन धार्मिक कार्यकाल महाभारत के 18 दिनों युद्ध से इसकी तुलना की है और इसको पराजित करने का तमाम प्रयास कर रहे हैं इसके साथ ही भारत में दो प्रकार के कोरोना,वायरस का हमला हो गया एक तो वह जो बुहान से निकला कोविड-19 दूसरा वह जो  मरकज से सांप्रदायिकता-20 के रूप में....? कुछ इसी प्रकार का समतुल्य वातावरण भारतीय समाचार जगत, खासतौर से इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में कब्जा कर रखा है.... और इसमें यह भ्रम होता है कि इस महायुद्ध में पहले किसको पराजित किया जाएगा या किसी को भी नहीं...? अथवा दोनों अपनी मौत मरेंगे....।
 यह तो आने वाला वक्त बताएगा क्योंकि बहुत सब कुछ अभी बोल देना बहुत जल्दबाजी होगी जब धर्म का इतना बड़ा माया जाल फैला हो तो शीशे को साफ करने का इंतजार करना ही चाहिए, ताकि देखा जा सके कि हो क्या रहा है..? तो पहले बहुचर्चित कोरोना महामारी को समझें..


वुहान कोरोना वायरस विश्वमारी (2019–20)
 की शुरुआत एक नए किस्म के कोरोनवायरस (2019-nCoV) के संक्रमण के रूप में मध्य चीन के वुहान शहर में 2019 के मध्य दिसंबर में हुई। बहुत से लोगों को बिना किसी कारण निमोनिया होने लगा और यह देखा गया की पीड़ित लोगों में से अधिकतर लोग हुआँन सीफ़ूड मार्केट में मछलियाँ बेचते हैं तथा जीवित पशुओं का भी व्यापर करते हैं। चीनी वैज्ञानिकों ने बाद में कोरोनावायरस

 की एक नई नस्ल की पहचान की जिसे 2019-nCoV

 प्रारंभिक पदनाम दिया गया। इस नए वायरस में कम से कम 70 प्रतिशत वही जीनोम अनुक्रम पाए गए जो सार्स-कोरोनावायरस
 में पाए जाते हैं। संक्रमण का पता लगाने के लिए एक विशिष्ट नैदानिक पीसीआर परीक्षण के विकास के साथ कई मामलों की पुष्टि उन लोगों में हुई जो सीधे बाजार से जुड़े हुए थे और उन लोगों में भी इस वायरस का पता लगा जो सीधे उस मार्केट से नहीं जुड़े हुए थे। पहले यह स्पष्ट नहीं था कि यह वायरस सार्स   ;
(सिवियर एक्यूट रेस्पिरेटरी सिंड्रोम अथवा सार्स (हिन्दीअति तीव्र श्वसन परिलक्षणसार्स कोरोनावाइरस द्वारा जनित श्वसन से संबंधित रोग है। नवम्बर २००२ और जुलाई २००३ के बीच, दक्षिणी चीन में सार्स रोग प्रकोप आरम्भ हुआ जिसके परिणामस्वरूप विभिन्न देशों में 8273 लोग संक्रमित हुए एवं 775 लोगों की मृत्यु हो गयी थी, इसमें सबसे अधिक संख्या हाँगकांग की रही। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के अनुसार (9.6% मृत्यु)। २००३ के पूर्वार्द्ध में कुछ ही सप्ताह में सार्स विभिन्न ३७ देशों के व्यक्तियों में फैल गया। ) जैसा घातक है कि नहीं।

मरकज का मर्कट बना उत्पात का कारण
नई दिल्ली के निजामुद्दीन का मरकज। मरकज़ के मायने centre यानी केंद्र होता है और तबलीग का मतलब है अल्लाह और कुरान, हदीस की बात दूसरों तक पहुंचाना. वहीं जमात का मतलब ग्रुप से है. तबलीगी जमात यानी एक ग्रुप की जमात. तबलीगी मरकज का मतलब इस्लाम की बात दूसरे लोगों तक पहुंचाने का केंद्र. लगभग 75 साल पहले मेवात के मौलाना मौलाना इलियास साहब ने मरकज की स्थापना की थी इस मरकज को बनाने का उनका मकसद था कि भारत के अनपढ़ मुसलमानों में बढ़ती जहालत को खत्म करके उनको इस्लाम के बताए गए रास्ते और नमाज की तरफ लाना था ताकि यह भटके हुए लोग नमाज पढ़ें, रोजे रखें और बुराइयों से बचें, सच्चाई अख्तियार करें. इन कामों से मरकज़  को इतनी प्रसिद्धि मिली कि वह पूरी दुनिया में जाना जाने लगा. दुनिया भर से लोग यहां आने लगे और फिर बुराई से अच्छाई की तरफ लाने का केंद्र बन गया.
मरकज में अमीर यानी हेड की हिदायत पर देश और विदेश के कोने-कोने में लोगों के ग्रुप जिसको जमात कहा जाता है, मस्जिदों में जा-जाकर इस्लाम की बातों को लोगों तक पहुंचाने का काम करने लगे. इसमें इलाक़े के हिसाब से एक कमेटी बना देते हैं. वे अपने इलाक़े में गश्त ( भ्रमण) करते हुए लोगों से बुराई को छोड़ने और नेकी की तरफ़ चलने के लिए कहती हैं. फिर वे लोग इस तरह नए सदस्यों को जोड़ते हैं और उनको अपनी कमेटी के जरिए मस्जिद से जाने वाली जमात में शरीक होने के लिए कहा जाता है. ये जमात तीन दिन से लेकर चालीस दिन या और उससे अधिक दिनों के लिए होती है. इलाक़े की मस्जिद से बनी कमेटी अपनी लिस्ट ज़िले के मुख्य केन्द्र को देती हैं और फिर वह मरकज़ में भेज दी जाती है. 
फिर ये लोग अपनी मस्जिदों से ग्रुप यानी जमात की शक्ल में ज़िले की मरकज़ में जाते हैं जहां से ये तय होता है कि किस जमात को किस इलाक़े में जाना है. और हर जमात का अमीर (हेड) बना दिया जाता है जिसके आदेश को सभी सदस्यों को मानना पड़ता है. ज़िले के मरकज़ से लेकर राज्य के मरकज़ और उसके अलावा देश के निज़ामुद्दीन स्थित मुख्य मरकज़ से संचालन होता है. 
मरकज में सिर्फ जमीन और आसमान का जिक्र होता है यहां किसी भी तरह की दुनियावी बातों पर पूरी तरह पाबंदी है. यही वजह है कि तबलीगी जमात को पूरी दुनिया में वीजा मिल जाता है. तबलीगी जमात का जलसा हर साल भोपाल के साथ-साथ देश के हर हिस्से में  होता है. इसमें भारी भीड़ इकट्ठी होती है.


 मरकज में मौजूद जमात देश के लिए पूरी तरह समर्पित रहती है. यही वजह है कि पूरे देश में जब कभी भी किसी भी तरह का नुकसान होता है तो वो सरकार के बजाय अपने आप को कसूरवार ठहराते हैं. उनका ये मानना है कि खुदा ने हमको दुनिया में अच्छाई के लिए भेजा है. कहीं न कहीं हम अच्छाइयों और इस्लाम के बताए रास्तों से दूर हो रहे हैं. इसलिए खुदा का यह कहर हमारे लिए है. और मगरिब की नमाज़ के बाद देश में अमन और सलामती के लिए ख़ास दुआ की जाती है. (एनडीटीवी से साभार)
बहरहाल इस मरकज के प्रमुख मौलाना साद, ऐसे जुड़े जमात मैं कोरोना फैलने की सूचना के बाद से फरार हो गए..., हालांकि बाद में उन्होंने स्वयं को सेल्फ आइसोलेशन की बात कहकर पल्ला झाड़ लिया है। बताते चलें किस मरकज के ठीक बगल में केंद्र सरकार के अधीन काम करने वाली पुलिस का थाना है बीते 6 साल में इस मरकज के सभी प्रकार के वैध अवैध कार्यों को नजरअंदाज क्यों किया जाता रहा यह समझ से बाहर है जब स्थितियां बिगड़ गए हैं तब भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार स्वयं मरकज प्रमुख से मिलने गए थे और इसके बाद मरकज मौलाना साद सेल्फ आइसोलेशन में चले गए थे बावजूद इसके भारत का पूरा इलेक्ट्रॉनिक मीडिया इस पर कोहराम मच आए हुए हैं
इस प्रकार जितना इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में बुहान का वायरस कोविड-19 जगह बनाए हुए हैं उससे कम तो नहीं किंतु मरकज और उसका मौलाना चर्चा का विषय है ।
इस प्रकार से दो बहुचर्चित शब्दों की अलग-अलग व्याख्या जानना जो हमें प्रभावित करती है बहुत जरूरी है ताकि हम दोनों से ही अपनी सुरक्षा बनाए रखें।

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