गुरुवार, 30 अप्रैल 2020

श्रमिक दिवस पर विशेष/ दिहाड़ी पत्रकार सिर्फ एक मजदूर .......( त्रिलोकीनाथ)

श्रमिक दिवस पर विशेष 


दिहाड़ी पत्रकार सिर्फ एक मजदूर
कोविड-19 के आपातकाल पर मजदूरों को श्रद्धांजलि

उद्योगों की राह छोड़
 क्रांति की कल्पना

भारतीय मजदूरों का  भयानक सपना 
(त्रिलोकीनाथ)
विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र भारत में सड़क सुरक्षा घेरे के अंदर बैठे हुए  सत्ताधीश , चाहे वे राजनेता हो या कार्यपालिका के लोग अथवा न्यायपालिका से संबंधित कोई भी कर्मचारी अधिकारी उसने मजदूरों के अधिकारों का बीते 1 महीने से ज्यादा समय से लगातार हनन मात्र किया है.... वर्तमान में जो हो भी रहा है वह भी एक प्रकार का अज्ञात संख्या में शोषण और दमन की गाथा 1 महीने से ज्यादा समय से लिखी जा रही है।

कोरी भाषण बाजी , शोषण और दमन की प्रक्रिया के दौरान इस "जनता कर्फ्यू" में कुल कितने मजदूर मजबूर श्रमिक की हत्या हो गई, कितनों को जंगल में जानवरों ने खा लिया, कितने घायल हैं... यह संख्या तो लाखों में है। इसका कोई हिसाब विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्र भारत नहीं दे सकता।
 क्योंकि यही 2020 के "मई दिवस" का सबसे बड़ा कड़वा सच है... ।
 आज का यह लेख उन सभी श्रमिकों की स्मृतियों में विनम्र श्रद्धांजलि है जिन्होंने वायरस से तो नहीं किंतु डराकर, दमन कर शोषण कर शासन पर विश्वास रखने वाले लोगों से एक बड़ी जंग लड़ी है। ऐसे सहित सभी शहीदों का यह अभिनंदन भी है।
 शायद मुट्ठी भर मीसाबंदी कार्यकर्ताओं को कुछ महीने आपातकाल में रहने के कारण उन्हें कम से कम मध्यप्रदेश में तो करोड़ों रुपए हर माह क्षतिपूर्ति के रूप में बांटा जाता है.... जो उनके मृत्यु तक और उसके बाद उनकी पत्नियों को भी मिलेगा.. किंतु जो मजदूर इस भयानक कोविड-19 के आपातकाल में नकली वातावरण में शहीद हो गए हैं.... उन्हें कुछ नहीं मिलने वाला। ऐसे सभी शहीदों को विनम्र श्रद्धांजलि और उनके परिवारों की कुशलता के लिए हम ईश्वर से कामना करते हैं

 आज 1 मई को मजदूर दिवस  है किंतु भारत में अमीरों द्वारा आयात करके  भारत में  लाए गए  और फिर फैलाए गए कोरोनावायरस कोविड-19  की वर्तमान परिस्थिति से मजदूर दिवस  सिर्फ एक  उपहास मात्र है....
 क्या उद्देश्य  था मजदूर दिवस का हम जाने  की किसी भी समाज, देश, संस्था और उद्योग में मज़दूरों, कामगारों और मेहनतकशों की अहम भूमिका होती है। उन की बड़ी संख्या इस की कामयाबी के लिए हाथों, अक्ल-इल्म और तनदेही के साथ जुटी होती है। किसी भी उद्योग में कामयाबी के लिए मालिक, सरमाया, कामगार और सरकार अहम धड़े होते हैं। कामगारों के बिना कोई भी औद्योगिक ढांचा खड़ा नहीं रह सकता। 
अंतर्राष्ट्रीय मज़दूर दिवस या मई दिन मनाने की शुरूआत 1 मई 1886 से मानी जाती है जब अमेरिका की मज़दूर यूनियनों नें काम का समय 8 घंटे से ज़्यादा न रखे जाने के लिए हड़ताल की थी। इस हड़ताल के दौरान शिकागो की हेमार्केट में बम धमाका हुआ था। यह बम किस ने फेंका किसी का कोई पता नहीं। इसके निष्कर्ष के तौर पर पुलिस ने मज़दूरों पर गोली चला दी और सात मज़दूर मार दिए। "भरोसेमंद गवाहों ने तस्दीक की कि पिस्तौलों की सभी फलैशें गली के केंद्र की तरफ से आईं जहाँ पुलिस खड़ी थी और भीड़ की तरफ़ से एक भी फ्लैश नहीं आई। इस से भी आगे वाली बात, प्राथमिक अखबारी रिपोर्टों में भीड़ की तरफ से गोलीबारी का कोई ज़िक्र नहीं। मौके पर एक टेलीग्राफ खंबा गोलियों के साथ हुई छेद से पुर हुआ था, जो सभी की सभी पुलिस वाले तरफ़ से आईं थीं। चाहे इन घटनाओं का अमेरिका पर एकदम कोई बड़ा प्रभाव नहीं पड़ा था लेकिन कुछ समय के बाद अमेरिका में 8 घंटे काम करने का समय निश्चित कर दिया गया था। मौजूदा समय भारत और अन्य मुल्कों में मज़दूरों के 8 घंटे  आंदोलन, अराजकतावादियोंसमाजवादियों, तथा साम्यवादियों द्वारा समर्थित यह दिवस हर वर्ष उसी तरह मनाया जाने लगा है जैसे भारत में ठीक दशहरे को दशहरा उत्सव या तो राम की जीत में अथवा रावण की हार में मनाया जाता है।

 ठीक इसी तरह 2020 का मई दिवस एक उत्सव की खानापूर्ति मात्र है।
 मजदूर दिवस में हमें उन सभी श्रमिकों की मृत्यु को, उनके दमन को और शोषण को याद करना चाहिए जिन्होंने शासन चलाने की अराजक कार्यप्रणाली के चलते हाल में नोटबंदी के कारण, एक नकली आपातकाल मैं कई लोग शहीद हो गए.... यह दूसरा दौर है  सिर्फ मानव वध के लिए तथाकथित तौर पर आर्थिक साम्राज्यवाद विस्तार के लिए बुहान के किसी लैब से कोरोनावायरस कोविड-19 को साम्यवादी सरकार ने ही इसे विकसित किया है।
 ...ऐसा कहा जाता है यह भारत नहीं आता, अगर इसे भारत के अमीरों, नवधनाढ्य भ्रष्ट राज्य सत्ता के साथ षडयंत्र कर भारत में इसे आयात नहीं करते।
 इतिहास गवाह है सर्वप्रथम स्वयं भारत में पहली बार केरल राज्य में 28 जनवरी को कोविड-19 के मरीज चर्चित हुए थे... और उसे केरल राज्य ने अपनी कुशलता के कारण नियंत्रित भी कर लिया था। कोविड-19 को जानने और समझने के लिए 25 मार्च "जनता कर्फ्यू" लागू होने के पहले तक 2 माह का बड़ा अवसर भारतीय लोकतंत्र के पास रहा। किंतु हमारा लोकतंत्र भी शायद 100 करोड़ से ज्यादा श्रमिकों के हित को लेकर सोचने की बजाय गलत नीतियों के कारण, गंदी राजनीति, घटिया प्रबंधन, भगवान भरोसे चलने वाली मदहोश सत्ता के कारण पूरे भारत को अपनी मातृभूमि मानकर काम करने वाला श्रमिक वर्ग, तथाकथित "जनता-कर्फ्यू" का शिकार हो गया। 
भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कहने के लिए कई बार जनता से रूबरू हुए किंतु इस आपातकाल में ज्ञात और अज्ञात नियमित रूप से शोषित, दमित और मृत्यु हो रहे करोड़ों की संख्या में मजदूरों के हित में कोई रोड मैप तैयार नहीं कर पाए।
जैसा कि उन्होंने हवाई जहाज से कोरोना मरीजों को आयात करते वक्त चिंतित दिख रहे थे...?, मध्यप्रदेश के हालात, तो  नंगे नाच की तरह सिर्फ कोठा बनकर रह गया था। जो इस भयानक  कोरोनावायरस के आक्रमण के दौरान  मनोरंजन बन गया था।
 तब  की कांग्रेस की अविवेकसाली लोगों के कबीलाई राजनीति मे चाहे जितना पिछड़ापन रहा हो किंतु उन्होंने प्रमाणित रुप से अपने विधानसभा में कोरोनावायरस के हमले का जिक्र किया.... और उसी का बहाना लेकर अपने सत्ता को बचाने का काम किया... किंतु वाह रे दिल्ली की सुप्रीम कोर्ट की

न्यायपालिका, जो "कोरोनावायरस शब्द" की गंभीरता को "डिकोड" नहीं कर सकी। और भ्रष्ट सत्ता का एक हिस्सा बनकर मात्र रह गई देखती रही।
 आज जिस सोशल डिस्टेंसिंग को पूरी दुनिया भारत के रूप में मॉडल मान रही है जब तक मध्य प्रदेश का सत्ता परिवर्तन नहीं हुआ क्या  केरल, क्या राजस्थान और क्या दिल्ली और क्या भोपाल पूरा लोकतंत्र का चरित्र पर्दाफाश होता रहा..... उससे ज्यादा और गंदा काम तब हुआ जब एकमात्र मुख्यमंत्री पद का शपथ दिलाकर  मार्च मैं एक माह बाद अप्रैल तक कोई भी मंत्रिमंडल नहीं बना.....
 मध्य प्रदेश का स्वास्थ्य मंत्रालय लगभग बेहोश था क्योंकि उसे चलाने वाला हमला स्वयं कोरोनावायरस का शिकार हो गया था। मारे भय के पूरा सिस्टम बंद कांच के कमरों में सुरक्षा के घेरे पर चूहों  की तरह अपनी सुरक्षा के लिए चिंतित दिखा ।यह भी एक कड़वा सत्य है।
 और पूरे भारत में लाखों करोड़ मज़दूर कि  अपने और अपने परिवार की जीवन बचाने के लिए आपात मृत्यु  शोषण और दमन का इतिहास प्रतिपल लिखा जाने लगा.... आज तक अकेले मध्यप्रदेश में करीब सवा सौ से ज्यादा मजदूर घटिया राजनीति के शिकार हो गए....  मृत हो गए।
 किसी भी प्रकार का कोई मुआवजा राहत इन परिवारों को अभी तक घोषित नहीं हुआ है। जो जिम्मेदार वर्ग है जो इन मजदूरों की वोट की बदौलत फर्श से अर्श तक करोड़ों अरबों के आसामी बन गए। वही इन मजदूरों की मौत के कारण हैं।
 शायद ही कोई न्यायपालिका में जाकर इन मजदूरों की हत्या की क्षतिपूर्ति का मांग याचना करेगा.....?, सुप्रीम कोर्ट स्वत: संज्ञान लेकर क्या कोई न्याय करेगी....? फिलहाल तो ऐसा कुछ होता नहीं दिखता.....जो लोकतंत्र के जीवित कर हो सकता है, न्यायपालिका मे न्यायाधीश के स्वयं के संज्ञान के रूप में जनरेट हो जाएं  ...?
.आज 1 मई को हमें यह कामना करनी चाहिए शायद ईश्वर उन्हें यह ज्ञान दे।


 आज 1 मई को मजदूर दिवस  है किंतु भारत में अमीरों द्वारा आयात करके  भारत में  लाए गए  और फिर फैलाए गए कोरोनावायरस कोविड-19  की वर्तमान परिस्थिति से मजदूर दिवस  सिर्फ एक  उपहास मात्र है।
 क्या उद्देश्य  था मजदूर दिवस का हम जाने  की किसी भी समाज, देश, संस्था और उद्योग में मज़दूरों, कामगारों और मेहनतकशों की अहम भूमिका होती है। उन की बड़ी संख्या इस की कामयाबी के लिए हाथों, अक्ल-इल्म और तनदेही के साथ जुटी होती है। किसी भी उद्योग में कामयाबी के लिए मालिक, सरमाया, कामगार और सरकार अहम धड़े होते हैं। कामगारों के बिना कोई भी औद्योगिक ढांचा खड़ा नहीं रह सकता।

 भारत के लोकतंत्र में दिखने वाले तीन तंत्र तो हैं जो आजादी के बाद अपना बुनियादी ढांचा बना सके। किंतु भारत की आजादी के पहले से उसका हमराह रहा भारत की पत्रकारिता का क्यों की कोई बुनियादी ढांचा नहीं है.....? इसलिए हमारे प्रधानमंत्री इस कोविड-19 महामारी में भी पत्रकारिता की ताकत का तो उपयोग वह करना चाहते हैं किंतु जहां राहत की बात आती है वह जमीनी दिहाड़ी मजदूर पत्रकार को पहचानते ही नहीं.. ऐसा लगता है?
 उनके एक भी भाषण में पत्रकारों को राहत देने की बात, उनकी कल्पना में भी नहीं दिखता..... यही हालात मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री का है जब तक नरोत्तम मिश्रा मंत्री नहीं बने थे शायद धोखे से उन्होंने जमीनी पत्रकारों को कोविड-19 में काम कर रहे कार्यकर्ताओं के समतुल्य बीमा और राहत देने की सोच प्रकट की थी, किंतु जैसे ही मंत्री बने वे भी कर्तव्यनिष्ठ राजनीतिज्ञ की तरह मूकबधिर हो गए। अभी तक भी उनकी दया दृष्टि किसी भगवान की तरह ना तो अपने मुख्यमंत्री को समझा पाए और ना ही स्वयं को, कि मध्य प्रदेश का आम पत्रकार जो लगातार इस खोज खबर में कि कोविड-19 के संघर्ष में उसकी क्या भूमिका है..... बीते 7 दशक से भारत में जो मजाक किया है पत्रकारिता के साथ उन्हें क्या राहत दिया जाए....? कोई योजना दूर-दूर तक नहीं दिखाई देती है।
 यह भारतीय दिहाड़ी पत्रकार मजदूर की वह सच्चाई है जो कोविड-19 में प्रतिपल शोषित दमित और मृत हो रहे भारतीय मजदूरों की है। जो भी पत्रकार वर्तमान परिस्थितियों को स्वीकार करके स्वयं को राजभाट व
 गुलाम पत्रकारिता बनाने के प्रयास में अपनी राह चुनी है वास्तव में वे उस भारतीय पत्रकारिता के गद्दार भी हैं। जिन्होंने भारत की आजादी में अपने खून से पत्रकारिता को सींचा था। जोकि उनकी उस मनोवैज्ञानिक सोच के आवरण में जन्मी थी जो उस वक्त भी दिहाड़ी मजदूर रही होगी। किंतु आज की मजबूर-मजदूर और गुलाम मजदूरी नहीं थी।
 क्या भारत की आजादी के बाद भारतीय पत्रकारिता ने अपने लिए अपनी बुनियादी ढांचा के लिए यही कल्पना की थी...?, शायद नहीं...। किंतु आज वह शोषण और दमनकारी उन शक्तियों के साथ खड़े हैं जो भारत के हजारों  मजदूरो  के मरने लिए जिम्मेदार हैं...।
 आप कुछ नहीं कर सकते तो उनकी आवाज बन कर उन्हें श्रद्धांजलि दे ही सकते हैं। शायद जब आप अपनी रक्षा कर पाएंगे..... तब मजदूरों की आवाज स्वत: बन जाएंगे। किंतु क्या वर्तमान लोकतंत्र में आपमें बोलने और सोचने का साहस जीवित भी है.....?,
 यह चिंता की बात है और यही एक दिहाड़ी मजदूर होने के नाते मई दिवस पर हम मजदूरों के आईने में पड़ी धुंध को साफ कर सकते हैं ताकि लोकतंत्र के तीन स्तंभ विधायिका , कार्यपालिका और न्यायपालिका यह देख सके...., कि उनका लोकतंत्र भारतीय मजदूरों कि किस प्रकार से हत्या किया.....? क्या उन्हें क्षतिपूर्ति की मांग का हक है....?
 अगर इसकी गैरेंटी भारतीय पत्रकारिता नहीं दिला पा रही है और मजदूरों को यह सुरक्षा नहीं मिलती है तो निश्चित मानिए भारत का मजदूर अपने गांव में चाहे मर ही जाए अपनी मिट्टी में चाहे मिट जाए किंतु वह भारतीय अर्थव्यवस्था को मजबूत करने की लालच में फिर से वापस शहर की ओर, उद्योग पतियों की ओर नहीं लौटेगा.... यह एक अलग बात है की औद्योगीकरण की नई तकनीकी ने इन मजदूरों की अहमियत को कम किया है...।
 किंतु मजदूरों की दशा और दिशा अगर क्रांति की तरफ रास्ता चुनेगी तो उसकी कल्पना उन सत्ता देशों की कांच की दीवारों को ध्वस्त कर देगी, जिन पर बैठकर वे विलासिता की शासन पर अपनी गारंटी का सिक्का चला रहे हैं।
 आज मई दिवस में यही हमारी एक दिहाड़ी-मजदूर-पत्रकार होने के नाते पुष्पांजलि है। उन मृत श्रमिकों के लिए जो पैदल चलकर हजारों किलोमीटर इस युद्ध में अपनी जान गवा चुके हैं। हमारे प्रिय भारतीय नागरिक मजदूरों हम सात दशक बात भारतीय लोकतंत्र में इतना थक गए हैं कि इससे ज्यादा आपके लिए शायद कुछ नहीं लिख सकते..... मई दिवस की क्रांति आप सब में प्रज्वलित रहे....., यही शुभकामनाएं।

बुधवार, 29 अप्रैल 2020



"का वर्षा.., जब कृषि सुखानी..!"


एसी ने छात्रावासों में कोविड-19 के मद्देनजर परलगाई रोक।
( त्रिलोकीनाथ )

खबर है, जिला पंचायत के मुख्य कार्यपालन अधिकारी पार्थ जयसवाल के निर्देश के बाद शहडोल सहायक आयुक्त आदिवासी विभाग द्वारा आदिवासी विभाग के विभिन्न छात्रावासों में प्रवासी मजदूरों को ठहराने की प्रक्रिया पर रोक लगा दी है। जिस पर कल 30 अप्रैल से अमल होना चालू हो जाएगा ।
इसके पूर्व अभी तक सिर्फ आदिवासी बच्चों के लिए बनाए गए छात्रावासों में विभिन्न स्तर के कोरोनावायरस के मद्देनजर आए प्रवासी मजदूरों/ नागरिकों को आइसोलेशन के लिए ठहराने का काम हो रहा था । यह अलग बात है की इन हॉस्टलों में ठहराए जाने की संख्या के मामले में बहुत कुछ पारदर्शी नहीं था। किंतु देर से ही सही एक बार ही एक प्रकाशित आंकड़े सामने आए...

 चलिए देर है..,अंधेर नहीं ....के तर्ज पर सहायक आयुक्त ने यह निर्णय ले ही लिया है कि छात्रावासों को कोविड-19 महामारी काल में प्रवासियों के ठहराने के लिए उपयोग नहीं किया जाएगा। इसके पूर्व  शासन-प्रशासन की नीतिगत अदूरदर्शी कार्यक्रमों के कारण गोहपारू विकासखंड में जो भयानक परिणाम सामने आए उससे शहडोल जिला कोविड-19 के मरीजों के मामले में कलंकित हो गया।
     जब ऐसे ही हॉस्टलों में ठहराए गए और बाद में छोड़ दिए जाने से गांव में जाने के बाद जब टेस्ट रिपोर्ट आई तो संक्रमित मजदूरों के मद्देनजर न
न सिर्फ में संबंधित हॉस्टलों को बल्कि संपूर्ण लेदरा और बरेली गांव को कंटेनमेंट एरिया घोषित कर दिया गया।
 अपुष्ट सूत्र के अनुसार इसी प्रकार के मजदूरों में आज ग्राम पपौंध की एक महिला भी संक्रमित मरीज के रूप में चिन्हित की गई है। यानी शहडोल जिले में कोरोना वायरस संक्रमित मरीजों की संख्या मैं विस्तार होना चालू हो गया है। अभी कब थमेगा इसकी गणना हर 14 दिन के बाद अनुमान लगाया जा सकेगा। ईश्वर करें इन संक्रमित मजदूरों की आने वाली दूसरी रिपोर्ट नेगेटिव प्राप्त हो तो शहडोल अपने ग्रीन जोन को बचा सकेगा।

 
      बहरहाल यदि कोई सही रोड मैप होता तो इन हालातों से बचा जा सकता था। किंतु होनी को कौन टाल सकता है...? अब सहायक आयुक्त आदिवासी विभाग में आदिवासी बच्चों के हित को देखते हुए छात्रावासों में प्रवासी मजदूरों/ अतिथियों को ठहराने पर जो पाबंदी लगाई है उसके लिए सिर्फ इतना ही कहा जा सकता है कि,
" का वर्षा जब कृषि सुखानी...!"
 याने अब जब मरीजों का संख्या बढ़ने लगा है असफलता प्रमाणित होने लगी है तो आप कुछ भी करें कोई विशेष फर्क नहीं पड़ने वाला । फिर भी छात्रावासों की सुरक्षा जितनी की जाए उतना कम है। अब चिंता इस बात की होनी चाहिए कि जिन छात्रावासों में ऐसे लोगों को ठहराया गया है उसके संसाधन का जो उपयोग किया गया है उसे किस स्तर पर निपटाया जाए। या तो उस संसाधन को भविष्य में उपयोग करने पर तब तक प्रतिबंधित कर दिया जाए जब तक की तीन चार महीने बाद अपेक्षित सैनिटाइजर का पर्याप्त उपयोग करने के बाद भी उक्त सामग्री का उपयोग करने वाले व्यक्तियों का स्वास्थ्य अच्छा रहता है। इसी गारंटी नहीं मिल जाए ।तब तक कोई सामग्री उपयोग न की जाए ।
यह बात पहले सोच ली गई होती तो शायद शहडोल के लिए ग्रीनजोन में बना रहना मुमकिन रहता।
 लेकिन यह सोच तब पैदा होती है जब मुख्यालय सहायक आदिवासी विभाग पूर्णत: भ्रष्टाचार से मुक्त हो और उसकी मंशा भ्रष्टाचारियों के दिमाग से ना संचालित होती हो...? सच बात यह है कि बंद कमरे में बैठकर भ्रष्टाचार करने वाला अमला अपने भ्रष्ट उद्देश्य मात्र के लिए ही कार्यों को रचता रहता है... फिर चाहे ऐसे कार्यों की सजा पूरे शहडोल के नागरिकों को क्यों ना भोगना  पड़े..., उम्मीद करना चाहिए के अनुभवों से सीखकर संपूर्ण स्वच्छता के मद्देनजर शीर्ष अधिकारियों को अपने इर्द-गिर्द संपूर्ण स्वच्छता के लिए भ्रष्ट व्यक्तियों को जो स्वत: प्रमाणित हैं उन्हें दूर कर देना चाहिए। यदि कोविड-19 के दौरान भी अधिकारी यह नहीं सीख पाए हैं तो उन्हें भगवान भी नहीं समझा सकता....। जब हम नौनिहाल आदिवासी बच्चों के संरक्षण की बात सोच रहे होते हैं तब निजी जीवन में भी दायित्वों को पूर्ण करने का संकल्प होना ही चाहिए... फिर चाहे कोई भी भ्रष्टाचारी कितना भी आप का निकटतम क्यों ना हो उस से दूरी बना ही लेनी चाहिए। क्योंकि यह भी कोरोनावायरस ही  है जो सिस्टम को चर रहे हैं।

कोरोना के खौफ के बीच खरहनी के युवाओ की अनूठी पहल

     अपने गाओ की ज़िम्मेदारी हम स्वयं लेते हैं 

शहडोल (खरहनी)। हाल ही में शहडोल में पाए गए 2 पॉजिटिव केसेस से एक ओर जहां भय का माहौल है , वही दूसरी ओर कुछ युवाओ की टोली ऐसी है जिन्होंने प्रशाशन के ऊपर ढीले रवैये का आरोप लगाते हुए कहा है कि हम अपने गांव की ज़िम्मेदारी खुद लेते हैं ।
खरहनी गाँव के युवाओ ने स्वतः गांव में जगह जगह पोस्टर , बैनर के माध्यम से लोगो को जागरूक करने का काम किया है ।
एवं गाँव के बॉर्डर को  सील करके किसी को बाहर न जाने की सलाह दी है । अराजकता
के इस माहौल में गाओ के युवाओं के ये कदम सराहनीय एवं प्रशंशनिय है ।


इस अभियान में खैरहनी गांव के युवक आशीष मिश्रा, अर्पित
पांडेय ,लवकुश द्विवेदी ने मुख्य भूमिका निभाई है ।
बता दिया जाए कि खैरहनी गांव उन गाँवो से सटा हुआ गांव है जहां कोरोना के प्रकरण मिले हैं ।



सम्पूर्ण lockdown का संदेश 




मंगलवार, 28 अप्रैल 2020

सवाल, आयातितकोरोना से होने वाली मौत क्षति का...

सवाल, आयातितकोरोना से होने वाली मौत क्षति का.......
अगर अमेरिका के राष्ट्रपति ट्रंप की बात माने तो भारत में समय रहते कोरोना पर नियंत्रण नहीं पाए जाने और विशेषकर मध्यप्रदेश में राजनीतिक कारणों से कोरोना के कारण होने वाली मौतों की क्षति की भरपाई किससे होना चाहिए....? यह भी एक बड़ा प्रश्न  है किंतु हम अमेरिका नहीं है और ट्रंप तो बिल्कुल नहीं.....?



कोविड-19 का 35 वा दिन "मुझे मार कर बेशर्म (शेर), खा गया..." त्रिलोकीनाथ

कोविड-19 का 35 वा दिन....
"मुझे मार कर बेशर्म खा गया...."
"


आरबीआई के निर्देश फाइनेंस कंपनियों पर क्यों नहीं है लागू....?
 कौन कराएगा इसका पालन ....
बना.,बड़ा यक्ष प्रश्न...?

(त्रिलोकीनाथ)

फिल्म "मिस्टर नटवरलाल" में अमजद खान एक गोल्ड-माइन का माफिया होता है इस माइंस को लूटने के लिए वह गांव में शेर का (फिल्म में बाघ है)भय भी फैला कर रखता है। और उसके भाया  से वह अपनी माफियागिरी सफल बनाए रखता है। इस फिल्म में चर्चित गाना बच्चों में बहुत लोकप्रिय हुआ,
"मेरे पास आओ मेरे दोस्तों एक किस्सा सुनो....."
 इसका अंतिम वाक्य था 
."...खुदा की कसम मजा आ गया, मुझे मार कर बेशर्म (शेर) खा गया..."
 बच्चा पूछता है लेकिन आप तो जिंदा हो तो अमिताभ बच्चन जवाब देता है 
"यह जीना भी कोई जीना है लल्लू....."

फिलहाल हमारे बांधवगढ़ के जंगल से कोई बाघ नहीं आया है, अगल-बगल मारकर खा रहा है.... समाचार आते रहते हैं।
 किंतु बाघ का नकाब पहने नकाबपोश विश्व की महामारी कोरोनावायरस कोविड-19 का डर हमें अपने कमरे में बंद करके रखा है। और भारत के तमाम पूंजीपति घराने माफिया के रूप में अपनी आमदनी बढ़ाने के मीटर चालू किए हुए हैं।
 बावजूद इसके कि रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया ने "कोविड-19" के जनता कर्फ्यू की हालात पर ध्यान में रखते हुए अपनी एडवाइजरी गाइडलाइंस जारी की हैं।..


जिसमें एक है तमाम बैंक और फाइनेंस कंपनियां 3 महीने के लिए किसी भी प्रकार का ब्याज , मासिक किस्त के लिए कोई दवाब नहीं देंगी। किंतु काउंटर पेमेंट करने की शर्त पर ऋण देने वाली फाइनेंस कंपनियां और माइक्रो फाइनेंस कंपनियां अपना अपना कार्यालय तो जरूर ताला लगा कर रख दी हैं और भारतीय जनता पार्टी के शासनकाल में निर्भय होकर आम नागरिकों को खून चूसने के लिए "ऑनलाइन पेमेंट" की नई पॉलिसी चालू करके अपने अपने तरीके से कई गुना ब्याज बढ़ाते हुए एक माह के अंदर ही "अपने ब्याज की राशि को डबल" कर लिए हैं। 
 एक पुलिस उच्चाधिकारी कि अपनी जुबानी में यह बात आई कि किस प्रकार से एक चार पहिया वाहन की किस्त पटाने के लिए कोविड-19 में 7% ब्याज पर किस्तों की सुविधा दी जा रही थी...।

 यह सरकार की विफलता है या फिर सरकार का इन पूंजीपतियों का संरक्षण है कि वह यह दुस्साहस इस विश्व महामारी के दौर में भी बरकरार किए हुए हैं। और लोगों को कोविड-19 कोरोनावायरस  का भय शहरों में दिखाकर अपने कार्यालय बंद करके ब्याज के जरिए खुली लूट का कारोबार चला रखे हैं।वे विभिन्न प्रकार से संदेश मोबाइल के जरिए भेज कर आम नागरिकों का शोषण कर रहे हैं।
 यह सही है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अथवा मुख्यमंत्री या फिर रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया अपनी इस व्यवस्था को देने के बाद जिला प्रशासन से अपने निर्देशों के पालन कराए जाने पर पूर्ण भरोसा करते है ।और इस प्रकार से शासन चलता है।
 किंतु हम शहडोल जैसे विशेष आदिवासी प्रक्षेत्र के निवासी हैं, जहां पर संविधान की पांचवी अनुसूची में इस बात का आश्वासन देकर शहडोल क्षेत्र को शामिल किया गया था कि उनका शोषण किसी भी रूप में नहीं किया जाएगा।  इसके लिए संविधान की पांचवी अनुसूची क्षेत्र लागू तमाम महाजनी पद्धति के जरिए ऋण देने वाले सभी लाइसेंसों को निरस्त कर दिया जाता है। ताकि 2 गुना 4 गुना और कई गुना ब्याज वसूलने वाले सभी व्यक्ति और संस्थाएं आम नागरिकों को लूट न सके, किंतु आश्चर्यजनक तरीके से शासन ही पिछला दरवाजा खोल कर फाइनेंस कंपनियों के जरिए पूंजीपतियों-लुटेरों को "स्लैब-रेट" ब्याज पद्धति के आधार पर काम करने देती है।
और बकायदा ऐसे क्षेत्रों में इस प्रकार के ऋण फाइनेंस कंपनी दे रही जबकि महाजनो और सूदखोरों से बचाने के लिए ही उनके लाइसेंस निरस्त किए गए थे.....?
 यह एक व्यवस्था है, अब दूसरी व्यवस्था देखते हैं रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया ने जो निर्देश इस महामारी कोरोनावायरस के चलते शहर बंदी के कारण लागू किया गया, निर्देशों का पालन यह फाइनेंस कंपनियां किसके संरक्षण में नहीं करती हैं...? यह चेहरे तक सामने नहीं आएंगे जब तक इनकी पकड़-धकड़ स्थानीय जिला प्रशासन, पुलिस प्रशासन नहीं करेगा ....., राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल तो आने से रहे क्योंकि यह तबलीगी जमात के मरकज नहीं है ।उनको पकड़ने के लिए आदिवासी क्षेत्रों में खुली डकैती मे सिर्फ आम नागरिक लूट रहा है।
 जिन लोगों ने विभिन्न तरीके से कर्ज लेकर इन पूंजीपतियों की  गुलामी स्वीकार कर ली थी, बहराल जिला प्रशासन और स्थानीय नेता भी इस प्रकार की लूट को अनवरत होते रहने देने के लिए जिम्मेदार है... या तो वे चुप हैं, क्योंकि उनका हिस्सा उनके पास पहुंच गया...?
 या फिर वह लापरवाह हैं.. और अपने नागरिकों को गुलाम बनाने की प्रक्रिया में शामिल है... इन पूंजी पतियों के दबाव में । कभी  तत्कालीन सत्ता  ब्रिटिश गवर्नमेंट  व्यापारी बनकर ही  भारत में नागरिकों को गुलाम बनाने का काम की थी  आज जिन्हें हम फाइनेंस कंपनी जो अलग-अलग नामों से प्रचलित हैं, जो किसी भी दुकानदार से एग्रीमेंट  करके उनकी सामग्री विक्रय कराने के लिए फाइनेंस में कर्ज देती हैं और ईएमआई के जरिए।
 यदि 1 दिन भी यह राशि भुगतान चूक हो गई तो बस स्लैबरेट यानी 2 गुना 3 गुना 4 गुना.... उदाहरण है। क्योंकि एक माह पहले अगर किसी का ब्याज ₹5000 था तो वह 1 माह बाद भुगतान करता है तो उसे ₹10000 देने की बाध्यता है.... इस प्रकार की स्कीम से आश्चर्य लगता है कि केंद्र सरकार और राज्य सरकार कुछ क्यों नहीं सीख पाते कि अगर एक माह में ही कोई रकम दुगनी हो जाती है तो फिर आम नागरिकों मैं गरीबी क्यों है..... आखिर किन्ही नियमों के तहत ही तो इनकी यह ब्याज रकम दोगुनी हो रही होती है.... और अगर यह गैरकानूनी है तो इस सार्वजनिक लूट, जो मध्यवर्गीय परिवार के घरों में डाका डाला जा रहा है उसके लिए कौन जिम्मेवार है....?
 यह प्रश्न हमेशा खड़ा रहेगा। किंतु अगर प्रदेश का मुख्यमंत्री कोई शिवराज सिंह चौहान यह कहता है कि मैं इस शहडोल जिले को गोद ले लिया हूं तो भी उसकी गोद में बैठे हुए नागरिकों को अगर पूंजीपति लूट रहे हैं या डाका डाल रहे हैं और शासन-प्रशासन चुप है इसका मतलब है कि वह इस लूट में शामिल है...?, अगर अवसर वैश्विक आपदा का है कोरोनावायरस कोविड-19 जैसी महामारी का है जिससे पूरा सिस्टम बंद हो गया है तो भी इन  सूदखोरों का लूट का मीटर किसके संरक्षण में चालू है ....क्या यह देखना जिला प्रशासन का काम नहीं है...? या वह देखना ही नहीं चाहता ।अथवा लिखित में तो राहत की बात की जाती है किंतु मौखिक में लूट जारी रहे का संदेश रहता है......?
 यह संदेश बार-बार आम नागरिकों के मन में बतौर गुलामी उठता है चुंकी देश स्वतंत्र है, इसलिए उसका हक है यह जानना उसे कौन लूट रहा है.. 
और लूट का बंटवारा ,क्या पीएम केयर फंड में भी जा रहा है....?
 अथवा रेड क्रॉस सोसाइटी में...?
 या फिर पार्टी फंड में...?
 इतना अधिकार तो आम नागरिक का बनता ही है... यह प्रश्न है तो पूरे देश भर नागरिकों के लिए किंतु अगर शहडोल जिला विशेष आदिवासी क्षेत्र जिला है संविधान की अनुसूची में संरक्षित है अगर कोई मुख्यमंत्री है दावा करता है कि उसने इसे गोद में ले रखा है... ऐसे जिले के नागरिकों का इतना हक तो बनता है...? कि वह जाने की लूट का बंटवारा कौन-कौन कर रहा है...?
 और अगर यह नहीं हो रहा है तो कोरोना के कारण बंद कार्यालयों के बावजूद फाइनेंस कंपनियां कैसे अपने व्याज को एक माह में डबल कर रही हैं....?
 निश्चित तौर पर संवेदनशील संबंधित जिला प्रशासन इसे कर्तव्य मानकर नागरिकों को संरक्षित करने का काम करेगा,
 अन्यथा यह माना जाएगा कि शैक्षणिक गुणवत्ता मात्र भ्रष्टाचार संरक्षण के लिए ही जन्मी थी...। 
और मिस्टर नटवरलाल का शेर यानी "कोविड-19 वायरस" डर दिखाकर हमें लूटा जा रहा है....? 
तो कौन है आज का
 मिस्टर नटवरलाल...?





सोमवार, 27 अप्रैल 2020

बुरा ना लगे यह सिर्फ फ्रस्ट्रेशन है...,ग्रीन-जोन का चैन, सुरक्षा चक्र टूटगया, धैर्य भी......?( त्रिलोकीनाथ)

बुरा ना लगे यह सिर्फ फ्रस्ट्रेशन है...
27अप्रैल , दो कोरोना मरीज आए ।
अमीरों का रोग , कोरोना मरीज भेजे गए  या आयात किए गए.......?
 ग्रीन-जोन का चैन, सुरक्षा चक्र टूटगया,
 धैर्य भी......?
 यही सच है, गुस्सा भी   ....
 .
अब तक एक भी राजनेता संक्रमित नहीं.....
(त्रिलोकीनाथ)
जिस प्रकार से विभिन्न सूत्रों से खबरें आ रही उसका निष्कर्ष सोच कर मन ठिठक जाता है कि क्या होगा अगर कन्या आश्रम में ठहराए गए कोटा के सभी विद्यार्थी जो अपने-अपने घरों में उसी शाम को भेज दिए गए...., उनमें से कोई दुर्भाग्य जनक खबर आएगी तो। ईश्वर ना करें क्योंकि हम ईश्वर के ही भरोसे हैं.....
 मध्य प्रदेश सरकार की नीतियां और उनकी कारगुजारी का परिणाम शहडोल जैसे ग्रीनजोन में बसे सुरक्षित क्षेत्र में दो मजदूरों के कोरोनावायरस हो जाने के बाद जैसे सरकार पर भरोसा खत्म ही हो चुका है। 

अमीरों का भेजा गया या आयात किया गया यह कोरोना महाबिमारी इन गरीबों तक मजदूरों तक कैसे पहुंचा, इसकी कोई हिस्ट्री अभी मजदूर भी नहीं बता सकते। यही मध्य प्रदेश सरकार की विफलता है, क्योंकि शिवराज सिंह अक्सर कहा करते थे कि शहडोल को उन्होंने गोद में ले लिया है तो अब उनके गोद में कोरोना विदिशा व अहमदनगर से कैसे लोड करके डाल दिया गया है? इसकी हिस्ट्री तो अब शिवराज सिंह भी नहीं बता सकते...?.
 और यह जिम्मेदारी कौन लेगा, किसी राजनीतिक ताकत में यह साहस अगर है तो वह तत्काल इस्तीफा दे दे......
 कि अगर अत्यंत सुरक्षित रहा अब तक, शहडोल जिला किन लोगों की मूर्खता का या फिर उनकी धूर्तता का परिणाम के रूप में शहडोल भी कोरोना पॉजिटिव न सिर्फ हुआ है बल्कि वह अंदर गांव तक भेजने में जो भी संबंधित लोग हैं , क्या उनके ऊपर कोई धारा लग सकती है ....?

शायद नहीं क्योंकि जो जज है, वह अपराधी है, जो अपराधी है, वह दंड का नहीं न्याय का पात्र दिख रहा है.... क्योंकि उसने सत्ता अपने बाहुबल से छीन कर ली है.....?
 शहडोल जैसे अतिदलित शोषित और खुली भ्रष्टाचार के केंद्र में कोरोनावायरस से अब हमें कौन बचाएगा यह एक बड़ा प्रश्न चिन्ह इसलिए भी है क्योंकि जहां कहीं भी कमिश्नर अशोक भार्गव जाते हैं वहां के तो समाचार आ जाते हैं। किंतु संपूर्ण रूप से एक भी डाटा प्रतिदिन पारदर्शी तरीके से नियमित उपलब्ध नहीं है या आमजन के लिए उपलब्ध नहीं कराया गया कि आखिर कुल कितने लोग शहडोल जिले में कहां कहां से लाए गए...

 या फिर आए और उन्हें शहडोल के आदिवासी बच्चों के हॉस्टलों में उनके बिस्तर में अथवा संसाधनों में कहां-कहां ठहराया गया.... और वह किन परिस्थितियों में, क्या अभी भी संबंधित क्षेत्र के प्रमुख को अपने आइसोलेशन होने के हालात की सूचना दे रहे हैं, या कोई सेक्रेटरी अथवा सरपंच उन्हें निगरानी कर रहा है.....?
 शायद यह सूचना शहडोल प्रशासन के पास बिल्कुल नहीं होगी..., क्योंकि अगर होती तो निश्चित तौर पर सार्वजनिक रूप से पारदर्शी करके इसे सूचित किया गया होता.... ताकि प्रत्येक नागरिक जो अपने घरों में बंद है अथवा सीमित है, अपने गांव में जो स्वयं को सुरक्षित महसूस कर रहा है, वह प्रवासी अतिथि उस व्यक्ति से सतर्क होकर उस पर निगरानी रखता.... उसे सद्भाव इस तरीके से मदद भी करता। किंतु उसके खतरनाक कोरोनावायरस परिणाम होने के संदेह को पूरी तरह से देखकर प्रतिदिन उसका डाटा तैयार करता और यह सतर्कता बरतने में हम और हमारा प्रशासन कितना सफल रहा है। क्योंकि कोई भी चीज पारदर्शी नहीं है...
 प्रतिदिन हमें पता नहीं चल रही है इसलिए हम नहीं बता पाते और यही कारण हैं शहडोल में  एक महिला और एक पुरुष गरीब मजदूर वर्ग के लोग अमीरों के रोगों का दंड भोग रहे हैं.... अब उनके संपर्क में आने वाले सभी लोगों के क्या हालात हैं यह सिर्फ उस क्षेत्र को सील बंद कर देना तक ही सीमित रह जाएगा...?
 अगर इसी प्रकार से हालात बरकरार रहे तो संपूर्ण शहडोल में जैसे माइनिंग माफिया, सरकारी संरक्षण.... अथवा पर्यावरण परिस्थितियों को नष्ट करने वाला माफिया, सरकारी संरक्षण में..... सभी संसाधनों को धीरे-धीरे खत्म कर दिया वैसे धीरे-धीरे कोरोना पॉजिटिव के प्रकरणों की बढ़ोतरी होगी और हम सिर्फ गिनतियां गिनना चालू कर देंगे.....
 और यही वर्तमान का सच है....
 अब तक जिला प्रशासन ने और पुलिस प्रशासन ने जो कुछ भी किया वह सब मिट्टी में मिल जाएगा.., क्योंकि पूरा ध्यान पॉजिटिव/नेगेटिव आए प्रकरणों पर होगा।
 भारत के प्रधानमंत्री अथवा प्रदेश के मुख्यमंत्री सिर्फ आदेश करते हैं, अंततः उसकी जिम्मेदारी कलेक्टर के हस्ताक्षर से उस जिले में लागू होती है। कलेक्टर की यह जिम्मेदारी मानी जाती है अपने क्षेत्र को सुरक्षित रखें, तो 27 अप्रैल के तक के लिए हम जिला प्रशासन और पुलिस प्रशासन को हमें ईश्वर के संरक्षण में रखने के लिए धन्यवाद देना चाहिए।
 किंतु मानवीय अविवेक जनित नीतियों के कारण शहडोल क्षेत्र में इन कोरोनावायरस का आयात किया गया है.... उसके लिए भी किसी को दंडित करके पारदर्शिता दिखाया जाना जरूरी है...?
, किंतु ऐसा होगा नहीं क्योंकि इनकी नीतियां अब तो वन-मैन-आर्मी शिवराज सिंह चौहान इच्छा शक्ति से बनती रही हैं...
  रीवा के नागरिकों की यह तो जागरूकता थी कि उन्होंने कथित तौर पर इंदौर के किसी कोरोनरीज को रीवा में टिकने नहीं दिया, लेकिन अब जो शहडोल में मरीज आए हैं वे तो हमारे यहां के लोग हैं... ऐसे हजारों लोग आ चुके हैं.... बेहतर होता गांव गांव इसकी मुनादी होती और संबंधित ग्राम सरपंच और सचिवों को इसकी सूचना होती कि वे उन पर निगरानी रखें.... हां एक बात और चुकी आदिवासी बच्चों के संरक्षण का मामला है इसलिए उनके हॉस्टलों में उपयोग किए गए सभी संसाधनों मैं संभावित कोरोनावायरस को विनाश करने के लिए भी कोई नितियां न सिर्फ बनानी चाहिए बल्कि उसके क्रियान्वयन को पारदर्शी तरीके से जनता को बताना भी चाहिए..... यही अब समय की मांग है। जहां तक मुझे जानकारी है बहुत कम संख्या में आदिवासी विभाग द्वारा सैनिटाइजर को खरीदा गया है, जबकि शहडोल जिले में आदिवासी छात्रावासों में हजारों की संख्या में प्रवासी मजदूरों अथवा अतिथियों को लाकर नाममात्र का ही सही आइसोलेशन करवाया गया है ।प्रशासन क्या इस बात को लेकर सतर्क रहा कि जिन लोगों को भी आइसोलेशन करवाया गया उनके रहने खाने-पीने की व्यवस्था की गई अथवा उन्हें वहां से विदा किया गया, क्या विदाई के वक्त उनकी संपूर्ण बायोग्राफी के साथ ही उन्हें एक शानदार तरीके से ट्रेनिंग देकर के सैनिटाइजर की एक बोतल उनके हाथ में दी जाती.... ताकि वे न सिर्फ अपनी सुरक्षा करते बल्कि अपने परिवार की और अपने गांव की सुरक्षा और साथ में जागरूकता का संदेश भी देते....
 किंतु क्या इसके लिए स्थानीय प्रशासन ने लोकज्ञान का सहारा लिया ......
यह इस बात पर निर्भर करता है आदमी अनुभवों से सीखता है, और हम अंततः आदमी हैं......
 अभी भी वक्त गुजरा नहीं है ,  हमें हर "चुनौती को अवसर" के रूप में लेना चाहिए सिर्फ नए-नए प्रकार के समाजसेवियों और बुद्धिजीवियों का जमघट पैदा करने के साथ कुछ नवाचार करने का भी काम करना ही चाहिए..... जो हम फिलहाल नहीं करते दिख रहे हैं...?
 जब भी आप काम करें, तो यह अवश्य सोचें कि अब तक भारत में सबसे सुरक्षित जोन में रह रहे आखिर कितने सत्ताधारी नेता, इस बीमारी से संक्रमित हैं......
 मरने वाले करीब 800 लोगों में कितने बड़े नेता मारे गए.... शायद एक भी नहीं..? तो सवाल उठता है जिस बीमारी को आयात तो नेताओं ने किया था, तो क्या मजदूरों के ऊपर प्रयोग करने के लिए....? 
यह भी एक अनुभव है..., और इससे कम से कम अब जब शहडोल में कोरोना पॉजिटिव भेज दिए गए हैं हमें कुछ सीखना चाहिए..., मुख्यमंत्री की गोद में बैठा शहडोल कम से कम अब कलंकित तो हो ही चुका है.... और यह कड़वी सच्चाई है कि अभी तक इन दो पॉजिटिव केस के मामले में किसी ने जिम्मेदारी नहीं ली है....


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भारतीय जनता पार्टी कैलाश तिवारी ने रखीं यह बातें....


कर्फ्यू लगाने से करोना नहीं रुकेगा बल्कि व्यवस्था सुधारने से करोना रुकेगा ।
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 उक्त  प्रवासी मजदूर  अपने साथ करोना  वायरस  लेकर आए थे  तो इसमें जिला  वासियों  की  क्या गलती है ।उनको  उस समय तक  क्वॉरेंटाइन  में  रखा जाना चाहिए था  जब तक की  उनकी  मेडिकल रिपोर्ट  नहीं आ जाती।  बिना मेडिकल रिपोर्ट  आए  उनको  वहां से  मुक्त करना  स्वास्थ्य विभाग की  भारी चूक है । अपनी चूक को  छिपाने के लिए   प्रशासन  कर्फ्यू लगा कर  यह दिखाना चाहता है  की  वह अत्यंत  सक्रिय है। जिला प्रशासन का  शहडोल की जनता ने  हर कदम पर भरपूर सहयोग दिया है जिला प्रशासन ने भी सक्रियता मैं कोई कमी नहीं छोड़ी दिन रात जिला प्रशासन गली गली गांव गांव घूमता रहा उनका कार्य सराहनीय एवं अनुकरणीय रहा लेकिन  बार-बार के कर्फ्यू  और सख्त  व्यवस्था से  जनता  तंग आ गई है । गलती प्रवासी मजदूरों की और सजा पूरा जिला भुगत रहा है।

भारतीय जनता पार्टी के नेता कैलाश तिवारी ने जिला प्रशासन से अनुरोध किया है कि वह  बाहर से आए हुए लोगों को शहर से बाहर बनी सरकारी इमारतों में संपूर्ण स्वास्थ्य संबंधी शर्तों को पूरा कर वहां पर रखें क्योंकि छात्रावासों में कोई भी स्वास्थ संबंधी शर्तों को पूरा नहीं किया जा रहा है छात्रावासों में ना तो लॉन्ड्री, शुद्ध पेयजल, सुलभ शौचालय, सफाई कर्मी, मास्क, सेफ्टी किट की व्यवस्था है ।ऐसे में संपर्क में आने वाले छात्रावास कर्मचारी भी करोना से प्रभावित हो सकते हैं। आगामी दिनों में हजारों प्रवासी मजदूर वापस लौटेंगे ऐसे में करोना का संकट हमेशा बरकरार रहेगा अस्तु स्वास्थ्य विभाग को सभी शर्तों को पूरा कर मेडिकल रिपोर्ट आने के बाद ही उनको घर जाने की इजाजत दी जाना चाहिए अन्यथा शहडोल जिले वालों को कर्फ्यू के साए मैं रहने को मजबूर होना पड़ेगा। प्रवासी मजदूरों को शहडोल शहर के स्कूलों छात्रावासों में ना ठहराया जाए क्योंकि यह नगर के मध्य में है तथा घनी आबादी का क्षेत्र है ऐसे में शहर में खतरा बढ़ सकता है
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    मैंने अदाणी को पहली बार गंभीरता से देखा था जब हमारे प्रधानमंत्री नारेंद्र मोदी बड़े याराना अंदाज में एक व्यक्ति के साथ कथित तौर पर उसके ...