सोमवार, 27 अप्रैल 2020

बुरा ना लगे यह सिर्फ फ्रस्ट्रेशन है...,ग्रीन-जोन का चैन, सुरक्षा चक्र टूटगया, धैर्य भी......?( त्रिलोकीनाथ)

बुरा ना लगे यह सिर्फ फ्रस्ट्रेशन है...
27अप्रैल , दो कोरोना मरीज आए ।
अमीरों का रोग , कोरोना मरीज भेजे गए  या आयात किए गए.......?
 ग्रीन-जोन का चैन, सुरक्षा चक्र टूटगया,
 धैर्य भी......?
 यही सच है, गुस्सा भी   ....
 .
अब तक एक भी राजनेता संक्रमित नहीं.....
(त्रिलोकीनाथ)
जिस प्रकार से विभिन्न सूत्रों से खबरें आ रही उसका निष्कर्ष सोच कर मन ठिठक जाता है कि क्या होगा अगर कन्या आश्रम में ठहराए गए कोटा के सभी विद्यार्थी जो अपने-अपने घरों में उसी शाम को भेज दिए गए...., उनमें से कोई दुर्भाग्य जनक खबर आएगी तो। ईश्वर ना करें क्योंकि हम ईश्वर के ही भरोसे हैं.....
 मध्य प्रदेश सरकार की नीतियां और उनकी कारगुजारी का परिणाम शहडोल जैसे ग्रीनजोन में बसे सुरक्षित क्षेत्र में दो मजदूरों के कोरोनावायरस हो जाने के बाद जैसे सरकार पर भरोसा खत्म ही हो चुका है। 

अमीरों का भेजा गया या आयात किया गया यह कोरोना महाबिमारी इन गरीबों तक मजदूरों तक कैसे पहुंचा, इसकी कोई हिस्ट्री अभी मजदूर भी नहीं बता सकते। यही मध्य प्रदेश सरकार की विफलता है, क्योंकि शिवराज सिंह अक्सर कहा करते थे कि शहडोल को उन्होंने गोद में ले लिया है तो अब उनके गोद में कोरोना विदिशा व अहमदनगर से कैसे लोड करके डाल दिया गया है? इसकी हिस्ट्री तो अब शिवराज सिंह भी नहीं बता सकते...?.
 और यह जिम्मेदारी कौन लेगा, किसी राजनीतिक ताकत में यह साहस अगर है तो वह तत्काल इस्तीफा दे दे......
 कि अगर अत्यंत सुरक्षित रहा अब तक, शहडोल जिला किन लोगों की मूर्खता का या फिर उनकी धूर्तता का परिणाम के रूप में शहडोल भी कोरोना पॉजिटिव न सिर्फ हुआ है बल्कि वह अंदर गांव तक भेजने में जो भी संबंधित लोग हैं , क्या उनके ऊपर कोई धारा लग सकती है ....?

शायद नहीं क्योंकि जो जज है, वह अपराधी है, जो अपराधी है, वह दंड का नहीं न्याय का पात्र दिख रहा है.... क्योंकि उसने सत्ता अपने बाहुबल से छीन कर ली है.....?
 शहडोल जैसे अतिदलित शोषित और खुली भ्रष्टाचार के केंद्र में कोरोनावायरस से अब हमें कौन बचाएगा यह एक बड़ा प्रश्न चिन्ह इसलिए भी है क्योंकि जहां कहीं भी कमिश्नर अशोक भार्गव जाते हैं वहां के तो समाचार आ जाते हैं। किंतु संपूर्ण रूप से एक भी डाटा प्रतिदिन पारदर्शी तरीके से नियमित उपलब्ध नहीं है या आमजन के लिए उपलब्ध नहीं कराया गया कि आखिर कुल कितने लोग शहडोल जिले में कहां कहां से लाए गए...

 या फिर आए और उन्हें शहडोल के आदिवासी बच्चों के हॉस्टलों में उनके बिस्तर में अथवा संसाधनों में कहां-कहां ठहराया गया.... और वह किन परिस्थितियों में, क्या अभी भी संबंधित क्षेत्र के प्रमुख को अपने आइसोलेशन होने के हालात की सूचना दे रहे हैं, या कोई सेक्रेटरी अथवा सरपंच उन्हें निगरानी कर रहा है.....?
 शायद यह सूचना शहडोल प्रशासन के पास बिल्कुल नहीं होगी..., क्योंकि अगर होती तो निश्चित तौर पर सार्वजनिक रूप से पारदर्शी करके इसे सूचित किया गया होता.... ताकि प्रत्येक नागरिक जो अपने घरों में बंद है अथवा सीमित है, अपने गांव में जो स्वयं को सुरक्षित महसूस कर रहा है, वह प्रवासी अतिथि उस व्यक्ति से सतर्क होकर उस पर निगरानी रखता.... उसे सद्भाव इस तरीके से मदद भी करता। किंतु उसके खतरनाक कोरोनावायरस परिणाम होने के संदेह को पूरी तरह से देखकर प्रतिदिन उसका डाटा तैयार करता और यह सतर्कता बरतने में हम और हमारा प्रशासन कितना सफल रहा है। क्योंकि कोई भी चीज पारदर्शी नहीं है...
 प्रतिदिन हमें पता नहीं चल रही है इसलिए हम नहीं बता पाते और यही कारण हैं शहडोल में  एक महिला और एक पुरुष गरीब मजदूर वर्ग के लोग अमीरों के रोगों का दंड भोग रहे हैं.... अब उनके संपर्क में आने वाले सभी लोगों के क्या हालात हैं यह सिर्फ उस क्षेत्र को सील बंद कर देना तक ही सीमित रह जाएगा...?
 अगर इसी प्रकार से हालात बरकरार रहे तो संपूर्ण शहडोल में जैसे माइनिंग माफिया, सरकारी संरक्षण.... अथवा पर्यावरण परिस्थितियों को नष्ट करने वाला माफिया, सरकारी संरक्षण में..... सभी संसाधनों को धीरे-धीरे खत्म कर दिया वैसे धीरे-धीरे कोरोना पॉजिटिव के प्रकरणों की बढ़ोतरी होगी और हम सिर्फ गिनतियां गिनना चालू कर देंगे.....
 और यही वर्तमान का सच है....
 अब तक जिला प्रशासन ने और पुलिस प्रशासन ने जो कुछ भी किया वह सब मिट्टी में मिल जाएगा.., क्योंकि पूरा ध्यान पॉजिटिव/नेगेटिव आए प्रकरणों पर होगा।
 भारत के प्रधानमंत्री अथवा प्रदेश के मुख्यमंत्री सिर्फ आदेश करते हैं, अंततः उसकी जिम्मेदारी कलेक्टर के हस्ताक्षर से उस जिले में लागू होती है। कलेक्टर की यह जिम्मेदारी मानी जाती है अपने क्षेत्र को सुरक्षित रखें, तो 27 अप्रैल के तक के लिए हम जिला प्रशासन और पुलिस प्रशासन को हमें ईश्वर के संरक्षण में रखने के लिए धन्यवाद देना चाहिए।
 किंतु मानवीय अविवेक जनित नीतियों के कारण शहडोल क्षेत्र में इन कोरोनावायरस का आयात किया गया है.... उसके लिए भी किसी को दंडित करके पारदर्शिता दिखाया जाना जरूरी है...?
, किंतु ऐसा होगा नहीं क्योंकि इनकी नीतियां अब तो वन-मैन-आर्मी शिवराज सिंह चौहान इच्छा शक्ति से बनती रही हैं...
  रीवा के नागरिकों की यह तो जागरूकता थी कि उन्होंने कथित तौर पर इंदौर के किसी कोरोनरीज को रीवा में टिकने नहीं दिया, लेकिन अब जो शहडोल में मरीज आए हैं वे तो हमारे यहां के लोग हैं... ऐसे हजारों लोग आ चुके हैं.... बेहतर होता गांव गांव इसकी मुनादी होती और संबंधित ग्राम सरपंच और सचिवों को इसकी सूचना होती कि वे उन पर निगरानी रखें.... हां एक बात और चुकी आदिवासी बच्चों के संरक्षण का मामला है इसलिए उनके हॉस्टलों में उपयोग किए गए सभी संसाधनों मैं संभावित कोरोनावायरस को विनाश करने के लिए भी कोई नितियां न सिर्फ बनानी चाहिए बल्कि उसके क्रियान्वयन को पारदर्शी तरीके से जनता को बताना भी चाहिए..... यही अब समय की मांग है। जहां तक मुझे जानकारी है बहुत कम संख्या में आदिवासी विभाग द्वारा सैनिटाइजर को खरीदा गया है, जबकि शहडोल जिले में आदिवासी छात्रावासों में हजारों की संख्या में प्रवासी मजदूरों अथवा अतिथियों को लाकर नाममात्र का ही सही आइसोलेशन करवाया गया है ।प्रशासन क्या इस बात को लेकर सतर्क रहा कि जिन लोगों को भी आइसोलेशन करवाया गया उनके रहने खाने-पीने की व्यवस्था की गई अथवा उन्हें वहां से विदा किया गया, क्या विदाई के वक्त उनकी संपूर्ण बायोग्राफी के साथ ही उन्हें एक शानदार तरीके से ट्रेनिंग देकर के सैनिटाइजर की एक बोतल उनके हाथ में दी जाती.... ताकि वे न सिर्फ अपनी सुरक्षा करते बल्कि अपने परिवार की और अपने गांव की सुरक्षा और साथ में जागरूकता का संदेश भी देते....
 किंतु क्या इसके लिए स्थानीय प्रशासन ने लोकज्ञान का सहारा लिया ......
यह इस बात पर निर्भर करता है आदमी अनुभवों से सीखता है, और हम अंततः आदमी हैं......
 अभी भी वक्त गुजरा नहीं है ,  हमें हर "चुनौती को अवसर" के रूप में लेना चाहिए सिर्फ नए-नए प्रकार के समाजसेवियों और बुद्धिजीवियों का जमघट पैदा करने के साथ कुछ नवाचार करने का भी काम करना ही चाहिए..... जो हम फिलहाल नहीं करते दिख रहे हैं...?
 जब भी आप काम करें, तो यह अवश्य सोचें कि अब तक भारत में सबसे सुरक्षित जोन में रह रहे आखिर कितने सत्ताधारी नेता, इस बीमारी से संक्रमित हैं......
 मरने वाले करीब 800 लोगों में कितने बड़े नेता मारे गए.... शायद एक भी नहीं..? तो सवाल उठता है जिस बीमारी को आयात तो नेताओं ने किया था, तो क्या मजदूरों के ऊपर प्रयोग करने के लिए....? 
यह भी एक अनुभव है..., और इससे कम से कम अब जब शहडोल में कोरोना पॉजिटिव भेज दिए गए हैं हमें कुछ सीखना चाहिए..., मुख्यमंत्री की गोद में बैठा शहडोल कम से कम अब कलंकित तो हो ही चुका है.... और यह कड़वी सच्चाई है कि अभी तक इन दो पॉजिटिव केस के मामले में किसी ने जिम्मेदारी नहीं ली है....


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भारतीय जनता पार्टी कैलाश तिवारी ने रखीं यह बातें....


कर्फ्यू लगाने से करोना नहीं रुकेगा बल्कि व्यवस्था सुधारने से करोना रुकेगा ।
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 उक्त  प्रवासी मजदूर  अपने साथ करोना  वायरस  लेकर आए थे  तो इसमें जिला  वासियों  की  क्या गलती है ।उनको  उस समय तक  क्वॉरेंटाइन  में  रखा जाना चाहिए था  जब तक की  उनकी  मेडिकल रिपोर्ट  नहीं आ जाती।  बिना मेडिकल रिपोर्ट  आए  उनको  वहां से  मुक्त करना  स्वास्थ्य विभाग की  भारी चूक है । अपनी चूक को  छिपाने के लिए   प्रशासन  कर्फ्यू लगा कर  यह दिखाना चाहता है  की  वह अत्यंत  सक्रिय है। जिला प्रशासन का  शहडोल की जनता ने  हर कदम पर भरपूर सहयोग दिया है जिला प्रशासन ने भी सक्रियता मैं कोई कमी नहीं छोड़ी दिन रात जिला प्रशासन गली गली गांव गांव घूमता रहा उनका कार्य सराहनीय एवं अनुकरणीय रहा लेकिन  बार-बार के कर्फ्यू  और सख्त  व्यवस्था से  जनता  तंग आ गई है । गलती प्रवासी मजदूरों की और सजा पूरा जिला भुगत रहा है।

भारतीय जनता पार्टी के नेता कैलाश तिवारी ने जिला प्रशासन से अनुरोध किया है कि वह  बाहर से आए हुए लोगों को शहर से बाहर बनी सरकारी इमारतों में संपूर्ण स्वास्थ्य संबंधी शर्तों को पूरा कर वहां पर रखें क्योंकि छात्रावासों में कोई भी स्वास्थ संबंधी शर्तों को पूरा नहीं किया जा रहा है छात्रावासों में ना तो लॉन्ड्री, शुद्ध पेयजल, सुलभ शौचालय, सफाई कर्मी, मास्क, सेफ्टी किट की व्यवस्था है ।ऐसे में संपर्क में आने वाले छात्रावास कर्मचारी भी करोना से प्रभावित हो सकते हैं। आगामी दिनों में हजारों प्रवासी मजदूर वापस लौटेंगे ऐसे में करोना का संकट हमेशा बरकरार रहेगा अस्तु स्वास्थ्य विभाग को सभी शर्तों को पूरा कर मेडिकल रिपोर्ट आने के बाद ही उनको घर जाने की इजाजत दी जाना चाहिए अन्यथा शहडोल जिले वालों को कर्फ्यू के साए मैं रहने को मजबूर होना पड़ेगा। प्रवासी मजदूरों को शहडोल शहर के स्कूलों छात्रावासों में ना ठहराया जाए क्योंकि यह नगर के मध्य में है तथा घनी आबादी का क्षेत्र है ऐसे में शहर में खतरा बढ़ सकता है
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