मंगलवार, 28 अप्रैल 2020

कोविड-19 का 35 वा दिन "मुझे मार कर बेशर्म (शेर), खा गया..." त्रिलोकीनाथ

कोविड-19 का 35 वा दिन....
"मुझे मार कर बेशर्म खा गया...."
"


आरबीआई के निर्देश फाइनेंस कंपनियों पर क्यों नहीं है लागू....?
 कौन कराएगा इसका पालन ....
बना.,बड़ा यक्ष प्रश्न...?

(त्रिलोकीनाथ)

फिल्म "मिस्टर नटवरलाल" में अमजद खान एक गोल्ड-माइन का माफिया होता है इस माइंस को लूटने के लिए वह गांव में शेर का (फिल्म में बाघ है)भय भी फैला कर रखता है। और उसके भाया  से वह अपनी माफियागिरी सफल बनाए रखता है। इस फिल्म में चर्चित गाना बच्चों में बहुत लोकप्रिय हुआ,
"मेरे पास आओ मेरे दोस्तों एक किस्सा सुनो....."
 इसका अंतिम वाक्य था 
."...खुदा की कसम मजा आ गया, मुझे मार कर बेशर्म (शेर) खा गया..."
 बच्चा पूछता है लेकिन आप तो जिंदा हो तो अमिताभ बच्चन जवाब देता है 
"यह जीना भी कोई जीना है लल्लू....."

फिलहाल हमारे बांधवगढ़ के जंगल से कोई बाघ नहीं आया है, अगल-बगल मारकर खा रहा है.... समाचार आते रहते हैं।
 किंतु बाघ का नकाब पहने नकाबपोश विश्व की महामारी कोरोनावायरस कोविड-19 का डर हमें अपने कमरे में बंद करके रखा है। और भारत के तमाम पूंजीपति घराने माफिया के रूप में अपनी आमदनी बढ़ाने के मीटर चालू किए हुए हैं।
 बावजूद इसके कि रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया ने "कोविड-19" के जनता कर्फ्यू की हालात पर ध्यान में रखते हुए अपनी एडवाइजरी गाइडलाइंस जारी की हैं।..


जिसमें एक है तमाम बैंक और फाइनेंस कंपनियां 3 महीने के लिए किसी भी प्रकार का ब्याज , मासिक किस्त के लिए कोई दवाब नहीं देंगी। किंतु काउंटर पेमेंट करने की शर्त पर ऋण देने वाली फाइनेंस कंपनियां और माइक्रो फाइनेंस कंपनियां अपना अपना कार्यालय तो जरूर ताला लगा कर रख दी हैं और भारतीय जनता पार्टी के शासनकाल में निर्भय होकर आम नागरिकों को खून चूसने के लिए "ऑनलाइन पेमेंट" की नई पॉलिसी चालू करके अपने अपने तरीके से कई गुना ब्याज बढ़ाते हुए एक माह के अंदर ही "अपने ब्याज की राशि को डबल" कर लिए हैं। 
 एक पुलिस उच्चाधिकारी कि अपनी जुबानी में यह बात आई कि किस प्रकार से एक चार पहिया वाहन की किस्त पटाने के लिए कोविड-19 में 7% ब्याज पर किस्तों की सुविधा दी जा रही थी...।

 यह सरकार की विफलता है या फिर सरकार का इन पूंजीपतियों का संरक्षण है कि वह यह दुस्साहस इस विश्व महामारी के दौर में भी बरकरार किए हुए हैं। और लोगों को कोविड-19 कोरोनावायरस  का भय शहरों में दिखाकर अपने कार्यालय बंद करके ब्याज के जरिए खुली लूट का कारोबार चला रखे हैं।वे विभिन्न प्रकार से संदेश मोबाइल के जरिए भेज कर आम नागरिकों का शोषण कर रहे हैं।
 यह सही है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अथवा मुख्यमंत्री या फिर रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया अपनी इस व्यवस्था को देने के बाद जिला प्रशासन से अपने निर्देशों के पालन कराए जाने पर पूर्ण भरोसा करते है ।और इस प्रकार से शासन चलता है।
 किंतु हम शहडोल जैसे विशेष आदिवासी प्रक्षेत्र के निवासी हैं, जहां पर संविधान की पांचवी अनुसूची में इस बात का आश्वासन देकर शहडोल क्षेत्र को शामिल किया गया था कि उनका शोषण किसी भी रूप में नहीं किया जाएगा।  इसके लिए संविधान की पांचवी अनुसूची क्षेत्र लागू तमाम महाजनी पद्धति के जरिए ऋण देने वाले सभी लाइसेंसों को निरस्त कर दिया जाता है। ताकि 2 गुना 4 गुना और कई गुना ब्याज वसूलने वाले सभी व्यक्ति और संस्थाएं आम नागरिकों को लूट न सके, किंतु आश्चर्यजनक तरीके से शासन ही पिछला दरवाजा खोल कर फाइनेंस कंपनियों के जरिए पूंजीपतियों-लुटेरों को "स्लैब-रेट" ब्याज पद्धति के आधार पर काम करने देती है।
और बकायदा ऐसे क्षेत्रों में इस प्रकार के ऋण फाइनेंस कंपनी दे रही जबकि महाजनो और सूदखोरों से बचाने के लिए ही उनके लाइसेंस निरस्त किए गए थे.....?
 यह एक व्यवस्था है, अब दूसरी व्यवस्था देखते हैं रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया ने जो निर्देश इस महामारी कोरोनावायरस के चलते शहर बंदी के कारण लागू किया गया, निर्देशों का पालन यह फाइनेंस कंपनियां किसके संरक्षण में नहीं करती हैं...? यह चेहरे तक सामने नहीं आएंगे जब तक इनकी पकड़-धकड़ स्थानीय जिला प्रशासन, पुलिस प्रशासन नहीं करेगा ....., राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल तो आने से रहे क्योंकि यह तबलीगी जमात के मरकज नहीं है ।उनको पकड़ने के लिए आदिवासी क्षेत्रों में खुली डकैती मे सिर्फ आम नागरिक लूट रहा है।
 जिन लोगों ने विभिन्न तरीके से कर्ज लेकर इन पूंजीपतियों की  गुलामी स्वीकार कर ली थी, बहराल जिला प्रशासन और स्थानीय नेता भी इस प्रकार की लूट को अनवरत होते रहने देने के लिए जिम्मेदार है... या तो वे चुप हैं, क्योंकि उनका हिस्सा उनके पास पहुंच गया...?
 या फिर वह लापरवाह हैं.. और अपने नागरिकों को गुलाम बनाने की प्रक्रिया में शामिल है... इन पूंजी पतियों के दबाव में । कभी  तत्कालीन सत्ता  ब्रिटिश गवर्नमेंट  व्यापारी बनकर ही  भारत में नागरिकों को गुलाम बनाने का काम की थी  आज जिन्हें हम फाइनेंस कंपनी जो अलग-अलग नामों से प्रचलित हैं, जो किसी भी दुकानदार से एग्रीमेंट  करके उनकी सामग्री विक्रय कराने के लिए फाइनेंस में कर्ज देती हैं और ईएमआई के जरिए।
 यदि 1 दिन भी यह राशि भुगतान चूक हो गई तो बस स्लैबरेट यानी 2 गुना 3 गुना 4 गुना.... उदाहरण है। क्योंकि एक माह पहले अगर किसी का ब्याज ₹5000 था तो वह 1 माह बाद भुगतान करता है तो उसे ₹10000 देने की बाध्यता है.... इस प्रकार की स्कीम से आश्चर्य लगता है कि केंद्र सरकार और राज्य सरकार कुछ क्यों नहीं सीख पाते कि अगर एक माह में ही कोई रकम दुगनी हो जाती है तो फिर आम नागरिकों मैं गरीबी क्यों है..... आखिर किन्ही नियमों के तहत ही तो इनकी यह ब्याज रकम दोगुनी हो रही होती है.... और अगर यह गैरकानूनी है तो इस सार्वजनिक लूट, जो मध्यवर्गीय परिवार के घरों में डाका डाला जा रहा है उसके लिए कौन जिम्मेवार है....?
 यह प्रश्न हमेशा खड़ा रहेगा। किंतु अगर प्रदेश का मुख्यमंत्री कोई शिवराज सिंह चौहान यह कहता है कि मैं इस शहडोल जिले को गोद ले लिया हूं तो भी उसकी गोद में बैठे हुए नागरिकों को अगर पूंजीपति लूट रहे हैं या डाका डाल रहे हैं और शासन-प्रशासन चुप है इसका मतलब है कि वह इस लूट में शामिल है...?, अगर अवसर वैश्विक आपदा का है कोरोनावायरस कोविड-19 जैसी महामारी का है जिससे पूरा सिस्टम बंद हो गया है तो भी इन  सूदखोरों का लूट का मीटर किसके संरक्षण में चालू है ....क्या यह देखना जिला प्रशासन का काम नहीं है...? या वह देखना ही नहीं चाहता ।अथवा लिखित में तो राहत की बात की जाती है किंतु मौखिक में लूट जारी रहे का संदेश रहता है......?
 यह संदेश बार-बार आम नागरिकों के मन में बतौर गुलामी उठता है चुंकी देश स्वतंत्र है, इसलिए उसका हक है यह जानना उसे कौन लूट रहा है.. 
और लूट का बंटवारा ,क्या पीएम केयर फंड में भी जा रहा है....?
 अथवा रेड क्रॉस सोसाइटी में...?
 या फिर पार्टी फंड में...?
 इतना अधिकार तो आम नागरिक का बनता ही है... यह प्रश्न है तो पूरे देश भर नागरिकों के लिए किंतु अगर शहडोल जिला विशेष आदिवासी क्षेत्र जिला है संविधान की अनुसूची में संरक्षित है अगर कोई मुख्यमंत्री है दावा करता है कि उसने इसे गोद में ले रखा है... ऐसे जिले के नागरिकों का इतना हक तो बनता है...? कि वह जाने की लूट का बंटवारा कौन-कौन कर रहा है...?
 और अगर यह नहीं हो रहा है तो कोरोना के कारण बंद कार्यालयों के बावजूद फाइनेंस कंपनियां कैसे अपने व्याज को एक माह में डबल कर रही हैं....?
 निश्चित तौर पर संवेदनशील संबंधित जिला प्रशासन इसे कर्तव्य मानकर नागरिकों को संरक्षित करने का काम करेगा,
 अन्यथा यह माना जाएगा कि शैक्षणिक गुणवत्ता मात्र भ्रष्टाचार संरक्षण के लिए ही जन्मी थी...। 
और मिस्टर नटवरलाल का शेर यानी "कोविड-19 वायरस" डर दिखाकर हमें लूटा जा रहा है....? 
तो कौन है आज का
 मिस्टर नटवरलाल...?





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