बुधवार, 29 अप्रैल 2020



"का वर्षा.., जब कृषि सुखानी..!"


एसी ने छात्रावासों में कोविड-19 के मद्देनजर परलगाई रोक।
( त्रिलोकीनाथ )

खबर है, जिला पंचायत के मुख्य कार्यपालन अधिकारी पार्थ जयसवाल के निर्देश के बाद शहडोल सहायक आयुक्त आदिवासी विभाग द्वारा आदिवासी विभाग के विभिन्न छात्रावासों में प्रवासी मजदूरों को ठहराने की प्रक्रिया पर रोक लगा दी है। जिस पर कल 30 अप्रैल से अमल होना चालू हो जाएगा ।
इसके पूर्व अभी तक सिर्फ आदिवासी बच्चों के लिए बनाए गए छात्रावासों में विभिन्न स्तर के कोरोनावायरस के मद्देनजर आए प्रवासी मजदूरों/ नागरिकों को आइसोलेशन के लिए ठहराने का काम हो रहा था । यह अलग बात है की इन हॉस्टलों में ठहराए जाने की संख्या के मामले में बहुत कुछ पारदर्शी नहीं था। किंतु देर से ही सही एक बार ही एक प्रकाशित आंकड़े सामने आए...

 चलिए देर है..,अंधेर नहीं ....के तर्ज पर सहायक आयुक्त ने यह निर्णय ले ही लिया है कि छात्रावासों को कोविड-19 महामारी काल में प्रवासियों के ठहराने के लिए उपयोग नहीं किया जाएगा। इसके पूर्व  शासन-प्रशासन की नीतिगत अदूरदर्शी कार्यक्रमों के कारण गोहपारू विकासखंड में जो भयानक परिणाम सामने आए उससे शहडोल जिला कोविड-19 के मरीजों के मामले में कलंकित हो गया।
     जब ऐसे ही हॉस्टलों में ठहराए गए और बाद में छोड़ दिए जाने से गांव में जाने के बाद जब टेस्ट रिपोर्ट आई तो संक्रमित मजदूरों के मद्देनजर न
न सिर्फ में संबंधित हॉस्टलों को बल्कि संपूर्ण लेदरा और बरेली गांव को कंटेनमेंट एरिया घोषित कर दिया गया।
 अपुष्ट सूत्र के अनुसार इसी प्रकार के मजदूरों में आज ग्राम पपौंध की एक महिला भी संक्रमित मरीज के रूप में चिन्हित की गई है। यानी शहडोल जिले में कोरोना वायरस संक्रमित मरीजों की संख्या मैं विस्तार होना चालू हो गया है। अभी कब थमेगा इसकी गणना हर 14 दिन के बाद अनुमान लगाया जा सकेगा। ईश्वर करें इन संक्रमित मजदूरों की आने वाली दूसरी रिपोर्ट नेगेटिव प्राप्त हो तो शहडोल अपने ग्रीन जोन को बचा सकेगा।

 
      बहरहाल यदि कोई सही रोड मैप होता तो इन हालातों से बचा जा सकता था। किंतु होनी को कौन टाल सकता है...? अब सहायक आयुक्त आदिवासी विभाग में आदिवासी बच्चों के हित को देखते हुए छात्रावासों में प्रवासी मजदूरों/ अतिथियों को ठहराने पर जो पाबंदी लगाई है उसके लिए सिर्फ इतना ही कहा जा सकता है कि,
" का वर्षा जब कृषि सुखानी...!"
 याने अब जब मरीजों का संख्या बढ़ने लगा है असफलता प्रमाणित होने लगी है तो आप कुछ भी करें कोई विशेष फर्क नहीं पड़ने वाला । फिर भी छात्रावासों की सुरक्षा जितनी की जाए उतना कम है। अब चिंता इस बात की होनी चाहिए कि जिन छात्रावासों में ऐसे लोगों को ठहराया गया है उसके संसाधन का जो उपयोग किया गया है उसे किस स्तर पर निपटाया जाए। या तो उस संसाधन को भविष्य में उपयोग करने पर तब तक प्रतिबंधित कर दिया जाए जब तक की तीन चार महीने बाद अपेक्षित सैनिटाइजर का पर्याप्त उपयोग करने के बाद भी उक्त सामग्री का उपयोग करने वाले व्यक्तियों का स्वास्थ्य अच्छा रहता है। इसी गारंटी नहीं मिल जाए ।तब तक कोई सामग्री उपयोग न की जाए ।
यह बात पहले सोच ली गई होती तो शायद शहडोल के लिए ग्रीनजोन में बना रहना मुमकिन रहता।
 लेकिन यह सोच तब पैदा होती है जब मुख्यालय सहायक आदिवासी विभाग पूर्णत: भ्रष्टाचार से मुक्त हो और उसकी मंशा भ्रष्टाचारियों के दिमाग से ना संचालित होती हो...? सच बात यह है कि बंद कमरे में बैठकर भ्रष्टाचार करने वाला अमला अपने भ्रष्ट उद्देश्य मात्र के लिए ही कार्यों को रचता रहता है... फिर चाहे ऐसे कार्यों की सजा पूरे शहडोल के नागरिकों को क्यों ना भोगना  पड़े..., उम्मीद करना चाहिए के अनुभवों से सीखकर संपूर्ण स्वच्छता के मद्देनजर शीर्ष अधिकारियों को अपने इर्द-गिर्द संपूर्ण स्वच्छता के लिए भ्रष्ट व्यक्तियों को जो स्वत: प्रमाणित हैं उन्हें दूर कर देना चाहिए। यदि कोविड-19 के दौरान भी अधिकारी यह नहीं सीख पाए हैं तो उन्हें भगवान भी नहीं समझा सकता....। जब हम नौनिहाल आदिवासी बच्चों के संरक्षण की बात सोच रहे होते हैं तब निजी जीवन में भी दायित्वों को पूर्ण करने का संकल्प होना ही चाहिए... फिर चाहे कोई भी भ्रष्टाचारी कितना भी आप का निकटतम क्यों ना हो उस से दूरी बना ही लेनी चाहिए। क्योंकि यह भी कोरोनावायरस ही  है जो सिस्टम को चर रहे हैं।

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